Q. एसएचजी (SHGs) और विभिन्न समूहों और संघों ने भारत में महिलाओं के सशक्तिकरण, ग्रामीण विकास और सामाजिक समावेशन में कैसे योगदान दिया है? उपयुक्त उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिए ।(10 अंक, 150 शब्द)

उत्तर:

प्रश्न का समाधान कैसे करें

  • परिचय
    • एसएचजी और विभिन्न समूहों और संघों के बारे में संक्षेप में लिखें
  • मुख्य भाग
    • लिखें कि एसएचजी ने महिलाओं के सशक्तिकरण, ग्रामीण विकास और सामाजिक समावेशन में कैसे योगदान दिया
    • लिखें कि विभिन्न समूहों और संघों ने महिलाओं के सशक्तिकरण, ग्रामीण विकास और सामाजिक समावेशन में कैसे योगदान दिया
  • निष्कर्ष
    • इस संबंध में उचित निष्कर्ष दीजिए

 

परिचय     

स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) समान सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि वाले लोगों के अनौपचारिक समूह हैं जो अपनी जीवन स्तर  में सुधार करने के लिए एक साथ आते हैं, उदाहरण अंबा फाउंडेशन। ये एसएचजी और विभिन्न अन्य संघ महिला सशक्तीकरण, ग्रामीण विकास और व्यापक सामाजिक समावेशन सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर भारत के सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य को नया आकार देने में सहायक रहे हैं।

मुख्य भाग   

महिला सशक्तिकरण, ग्रामीण विकास और सामाजिक समावेशन में एसएचजी की भूमिका

महिला सशक्तिकरण:

  • वित्तीय स्वायत्तता: एसएचजी मुख्य रूप से बचत और ऋण सुविधाओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं। महिलाएं, यहां तक कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से भी नियमित रूप से छोटी राशियों को बचाने के लिए एकत्र होती हैं। उदाहरण के लिए, केरल में कुदुम्बश्री पहल ने कई महिलाओं को सफल उद्यमियों में बदल दिया है।
  • जागरूकता और शिक्षा: एसएचजी अक्सर सूचना के प्रसार के लिए मंच बन जाते हैं। उदाहरण के लिए, बिहार में महिला समाख्या कार्यक्रम महिलाओं के अधिकारों और स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता फैलाने में सहायक रहा है।
  • नेतृत्व विकास: एसएचजी के प्रबंधन के लिए संगठनात्मक कौशल की आवश्यकता होती है। आंध्र प्रदेश में, इंदिरा क्रांति पथम पहल के तहत एसएचजी की महिलाओं ने ग्राम संगठनों में नेतृत्व की भूमिका निभाई है।

ग्रामीण विकास:

  • आर्थिक प्रगति: एसएचजी ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करते हैं। ऋण तक पहुंच के साथ, कई ग्रामीण परिवारों ने अपने आय स्रोतों में विविधता ला दी है। नाबार्ड द्वारा शुरू किए गए एसएचजी -बैंक लिंकेज कार्यक्रम ने ग्रामीण उद्यमों को औपचारिक ऋण प्रणालियों से जोड़ने में मदद की है।
  • आधारभूत संरचना में वृद्धि: कई एसएचजी ने गांव के आधारभूत संरचना में सुधार में सक्रिय भूमिका निभाई है। तमिलनाडु के गांवों में , एसएचजी ने सड़कों, स्वच्छता सुविधाओं और जल संरक्षण संरचनाओं के निर्माण में योगदान दिया है।
  • कृषि संवर्द्धन: संगठित प्रयासों के साथ, एसएचजी ने सतत और जैविक कृषि पद्धतियों को बढ़ावा दिया है, पैदावार बढ़ाई है और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की है। तमिलनाडु में पुधु वाज़वु परियोजना जैविक खेती को बढ़ावा देने में एसएचजी का समर्थन करती है।
  • स्थानीय कारीगरों को बढ़ावा देना: स्थानीय हाट या बाज़ार जैसे मंच प्रदान करके, स्वयं सहायता समूहों ने यह सुनिश्चित किया है कि मध्यस्तों को दरकिनार करते हुए कारीगरों को उनके उत्पादों के लिए उचित मूल्य मिले। असम में राष्ट्रीय ग्रामीण विकास निधि स्थानीय हस्तशिल्प को बढ़ावा देने में सहायक रही है।

सामाजिक समावेश:

  • हाशिए पर रहने वाले लोगों को एकीकृत करना: एसएचजी में अक्सर समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्गों, जैसे एससी, एसटी और विधवाओं के सदस्य शामिल होते हैं। उनके सामूहिक प्रयास व्यापक सामाजिक समावेश सुनिश्चित करते हैं। उदाहरण के लिए: DAY-NRLM सीमांत वर्गों के प्रतिनिधित्व के साथ SHG के गठन का समर्थन करता है ।
  • सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देना: कई एसएचजी, विशेष रूप से जातीय रूप से विविध क्षेत्रों में, विभिन्न धार्मिक और जाति पृष्ठभूमि के सदस्यों से बने होते हैं। उदाहरण के लिए, असम और जम्मू-कश्मीर के संघर्ष ग्रस्त क्षेत्रों में एसएचजी सांप्रदायिक सद्भाव के प्रतीक बन गए हैं।
  • सामाजिक एकता: पारंपरिक सामाजिक बाधाओं का सामूहिक रूप से सामना करके, स्वयं सहायता समूहों ने महिलाओं का समर्थन किया है। राजस्थान के कई हिस्सों में राजीविका परियोजना के तहत स्वयं सहायता समूहों ने बाल विवाह और दहेज जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ साहसिक कदम उठाए हैं।

महिला सशक्तिकरण, ग्रामीण विकास और सामाजिक समावेशन में अन्य समूहों और संघों का योगदान

महिला सशक्तिकरण:

  • महिला समूह: SEWA (स्व-रोज़गार महिला संघ) जैसे संगठनों ने अनौपचारिक क्षेत्र में महिला श्रमिकों को संगठित किया है, जो उनके श्रम अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही हैं और उनकी आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित कर रही हैं।
  • समर्थन समूह: अखिल भारतीय महिला सम्मेलन (एआईडब्ल्यूसी) और राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) नीति समर्थन में अग्रणी  रहे हैं, जो महिलाओं की स्थिति को बेहतर करने  और उनके अधिकारों की रक्षा करने वाले कानूनी सुधारों पर जोर दे रहे हैं।
  • जागरूकता अभियान: ब्रेकथ्रू इंडिया जैसे समूहों ने घरेलू हिंसा और लिंग भेदभाव जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों के समाधान के लिए मीडिया अभियानों का उपयोग किया है, जिससे महिलाओं के अधिकारों पर सार्वजनिक चर्चा शुरू हुई है।

ग्रामीण विकास:

  • कृषि सहकारी समितियाँ: गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन महासंघ लिमिटेड द्वारा प्रबंधित सहकारी ब्रांड अमूल ने भारत के डेयरी उद्योग को बदल दिया। डेयरी किसानों के लिए बाज़ारों तक प्रत्यक्ष पहुंच प्रदान करके, इसने ग्रामीण भारत में लाखों लोगों की आजीविका को उन्नत किया है।
  • जल संरक्षण पहल: राजस्थान में जल संरक्षणवादी राजेंद्र सिंह के नेतृत्व में तरुण भारत संघ जैसे संगठनों ने नदियों को पुनर्जीवित किया है और सूखाग्रस्त क्षेत्रों को प्रचुर जल क्षेत्रों में बदल दिया है।
  • ग्रामीण शिक्षा: एकल विद्यालय जैसे समूह समग्र शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हुए दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में एकल-शिक्षक स्कूल का संचालन करते हैं, जिससे ग्रामीण-शहरी शैक्षिक अंतर को कम  किया जाता है।

सामाजिक समावेश:

  • हाशिए पर रहने वाले समुदायों का सशक्तिकरण: दलित इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (DICCI) दलितों के लिए व्यावसायिक उद्यमों को बढ़ावा देता है,एवं उनकी आर्थिक प्रगति के लिए एक मंच तैयार करता है और प्राचीन सामाजिक बाधाओं को समाप्त करता  है।
  • सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देना: आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन , विभिन्न समुदाय-आधारित कार्यक्रमों के माध्यम से, अंतर-धार्मिक संवाद को बढ़ावा देता है, साथ ही विभिन्न समूहों के बीच आपसी सम्मान और समझ को बढ़ावा देता है।
  • एलजीबीटीक्यू+ अधिकार: हमसफर ट्रस्ट और नाज़ फाउंडेशन जैसे संगठन एलजीबीटीक्यू+ व्यक्तियों के अधिकारों का समर्थन करने में सहायक रहे हैं, जिससे भारत में समलैंगिकता को अपराधमुक्त करने और व्यापक सामाजिक स्वीकृति की वकालत करने में मदद मिली है।
  • दिव्यांगों के अधिकार: नेशनल एसोसिएशन ऑफ डेफ (एनएडी) और परिवार नेशनल कन्फेडरेशन ऑफ पेरेंट्स ऑर्गनाइजेशन दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों और समावेशन के लिए अथक प्रयास करते हैं, और यह सुनिश्चित करते हैं कि उन्हें जीवन के सभी क्षेत्रों में समान अवसर प्राप्त हों।

निष्कर्ष

एसएचजी और विभिन्न संघों ने प्रमाणित कर दिया है कि सामूहिक कार्रवाई आर्थिक आयामों के साथ , अधिक न्यायसंगत, समावेशी और सशक्त समाज को बढ़ावा देकर परिवर्तनकारी परिवर्तन ला सकती है। उनके प्रयास ‘अंत्योदय’ के विचार से संगत  हैं, जो कतार में अंतिम व्यक्ति का उत्थान करता है, जो एक एकजुट और प्रगतिशील राष्ट्र के लिए आवश्यक  है।

 

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