Q. अवैध शराब से होने वाली मौतें भारत के संघीय नियामक पारिस्थितिकी तंत्र की कमज़ोरी को उजागर करती हैं। जाँच कीजिए कि उत्पाद शुल्क और कानून प्रवर्तन जैसे क्षेत्रों में केंद्र और राज्यों के बीच जिम्मेदारियों का विभाजन विनियमन की प्रभावशीलता को कैसे प्रभावित करता है। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • परीक्षण कीजिए कि उत्पाद शुल्क और कानून प्रवर्तन जैसे क्षेत्रों में केन्द्र और राज्यों के बीच जिम्मेदारियों का विभाजन विनियमन की प्रभावशीलता को किस प्रकार प्रभावित करता है।
  • उत्पाद शुल्क और कानून प्रवर्तन जैसे क्षेत्रों में केंद्र और राज्यों के बीच जिम्मेदारियों के विभाजन में चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
  • आगे की राह लिखिये।

उत्तर

संविधान द्वारा परिभाषित केंद्र-राज्य संबंध, संघ, राज्य और समवर्ती सूचियों में शक्तियों का आवंटन करते हैं। हालाँकि आबकारी और कानून प्रवर्तन मुख्य रूप से राज्य के अधिकार क्षेत्र में आते हैं, लेकिन जिम्मेदारियों के अतिव्यापन होने से अक्सर विनियामक अक्षमताएँ उत्पन्न होती हैं, जो विशेष रूप से अवैध शराब की त्रासदियों में स्पष्ट होती हैं ।

विनियामक प्रभावशीलता पर जिम्मेदारियों के विभाजन का प्रभाव

  • विखंडित उत्पाद शुल्क नियंत्रण: राज्य, शराब उत्पादन और बिक्री को नियंत्रित करते हैं परंतु औद्योगिक रसायनों जैसे कि मेथनॉल के उपयोग में कमी के कारण प्रवर्तन में कमी आई है। 
    • उदाहरण: मई 2025 में, पंजाब के वित्त मंत्री ने मेथनॉल युक्त शराब के कारण अमृतसर में 21 लोगों की मृत्यु होने के बाद, केंद्र से उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1951 के तहत मेथनॉल को विनियमित करने का आग्रह किया था।
  • असंगत प्रवर्तन तंत्र: राज्य आबकारी विभाग और पुलिस अक्सर अलग-अलग काम करते हैं, जिससे अवैध व्यापार के खिलाफ समन्वित कार्रवाई में बाधा आती है। 
    • उदाहरण: जनवरी 2025 में संगरूर में हुई शराब त्रासदी ने एकीकृत प्रवर्तन के लिए पूर्व सिफारिशों के बावजूद अंतर-विभागीय समन्वय में विफलताओं को उजागर किया।
  • क्षेत्राधिकार संबंधी ओवरलैप: कानून प्रवर्तन राज्य का विषय है, लेकिन अंतर-राज्यीय तस्करी से जुड़े अपराधों में केंद्रीय हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है जिसके कारण देरी होती है।
  • एकीकृत डेटा सिस्टम की कमी: केंद्रीकृत डेटाबेस की अनुपस्थिति राज्यों में शराब उत्पादन, वितरण और खपत पैटर्न की ट्रैकिंग में बाधा डालती है। 
    • उदाहरण: वर्ष 2020 की शराब त्रासदी जिसमें 120 लोगों की मौत हो गई, विखंडित डेटा सिस्टम के कारण अवैध शराब के स्रोतों का पता लगाने में असमर्थता को उजागर करती है।
  • राजनीतिक-प्रशासनिक वियोग: राजनीतिक विचार अक्सर आबकारी कानूनों के सख्त प्रवर्तन में बाधा डालते हैं  जिससे नियामक परिणाम प्रभावित होते हैं।

जिम्मेदारियों के विभाजन में चुनौतियाँ

  • विनियामक ग्रे क्षेत्र: मेथनॉल जैसे पदार्थ, स्पष्ट विनियामक ढाँचे से बाहर हैं, जिससे प्रवर्तन में खामियाँ उत्पन्न होती हैं। 
    • उदाहरण: एक जहरीला औद्योगिक रसायन होने के बावजूद, मेथनॉल संबंधित विनियमन में कमी, नकली शराब के रूप में इसके दुरुपयोग को बढ़ावा देती है, जैसा कि मजीठा की घटना में देखा गया है ।
  • अंतर-राज्यीय तस्करी: राज्यों में अलग-अलग आबकारी नीतियों के कारण तस्करी को बढ़ावा मिलता है, जिससे प्रवर्तन जटिल हो जाता है। 
    • उदाहरण: आंध्र प्रदेश और केरल जैसे राज्यों की असुरक्षित सीमाओं के कारण अवैध शराब की आमद को नियंत्रित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।
  • संसाधन की कमी: राज्य उत्पाद शुल्क विभागों में अक्सर प्रभावी निगरानी के लिए पर्याप्त जनशक्ति और तकनीक की कमी होती है। 
    • उदाहरण: संगरूर समिति की रिपोर्ट में प्रवर्तन क्षमताओं को बढ़ाने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया, जिस पर ध्यान नहीं दिया गया।
  • सीमित केंद्रीय निगरानी: उत्पाद शुल्क से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने में केंद्र की भूमिका अक्सर सक्रिय होने के बजाय प्रतिक्रियात्मक होती है। 
    • उदाहरण: मेथनॉल के केंद्रीय विनियमन की माँग बार-बार होने वाली त्रासदियों के बाद ही जोर पकड़ पाई है, जो विलम्ब से प्रतिक्रिया का संकेत है।
  • राजनीतिक हस्तक्षेप: स्थानीय राजनीतिक गतिशीलता अवैध शराब नेटवर्क के खिलाफ सख्त कार्रवाई में बाधा डाल सकती है। 
    • उदाहरण: पंजाब में कथित राजनीतिक-पुलिस गठजोड़ की अवैध शराब संचालन को सक्षम करने के लिए आलोचना की गई है।

आगे की राह

  • खतरनाक पदार्थों का केंद्रीय विनियमन: उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1951 में संशोधन करके मेथनॉल जैसे पदार्थों का सख्त नियंत्रण किया जाना चाहिए। 
    • उदाहरण: अमृतसर त्रासदी के बाद पंजाब द्वारा केंद्र से की गई अपील, इस तरह की विधायी कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती है।
  • एकीकृत प्रवर्तन कार्य बल: अवैध शराब व्यापार के खिलाफ समन्वित कार्रवाई के लिए
    संयुक्त केंद्र-राज्य कार्य बल की स्थापना करनी चाहिए।

    • उदाहरण: सरकारिया आयोग ने कानून प्रवर्तन में संघीय सहयोग बढ़ाने के लिए सहयोगी तंत्र की सिफारिश की।
  • एकीकृत डेटा प्रबंधन प्रणाली: शराब के उत्पादन, वितरण और उपभोग प्रतिरूपों की निगरानी के लिए एक केंद्रीकृत डेटाबेस विकसित करना चाहिए।
  • क्षमता निर्माण: राज्य उत्पाद शुल्क विभागों को आधुनिक उपकरणों और प्रौद्योगिकियों से प्रशिक्षित करने और सुसज्जित करने में निवेश करना चाहिए।
  • कानूनी ढाँचे को मजबूत करना: अवैध शराब उत्पादन और वितरण से संबंधित मामलों के लिए कठोर दंड और फास्ट-ट्रैक अदालतें लागू करना चाहिए।

बार-बार होने वाली अवैध शराब की त्रासदी भारत के संघीय विनियामक ढाँचे में प्रणालीगत खामियों को उजागर करती है विशेषकर आबकारी और कानून प्रवर्तन क्षेत्रों में। सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा और सहकारी संघवाद की अखंडता को बनाए रखने के लिए केंद्रीय निगरानी और राज्य स्तरीय निष्पादन को मिलाकर एक समन्वित दृष्टिकोण अपनाना अति आवश्यक है।

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