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Q. "विभिन्न राज्यों में हाल के राजनीतिक संकटों के आलोक में, चुनाव के बाद विधायकों के दलबदल करने से शासन और जनता के विश्वास पर पड़ने वाले नैतिक निहितार्थों को स्पष्ट करें। इस बात का उल्लेख कीजिए कि इन परिदृश्यों में विविध नैतिक दर्शन ,निर्णय लेने में कैसे मार्गदर्शन कर सकते हैं। (10 अंक, 150 शब्द)

उत्तर:

प्रश्न का समाधान कैसे करें

  • भूमिका
    • चुनाव के बाद दल-बदल की घटना के बारे में संक्षेप में लिखें
  • मुख्य भाग
    • चुनाव के बाद विधायकों के दल बदलने का शासन और जनता के विश्वास पर नैतिक प्रभाव लिखें
    • लिखें कि विविध नैतिक दर्शन इन परिदृश्यों में निर्णय लेने में कैसे मार्गदर्शन कर सकते हैं
  • निष्कर्ष
    • इस संबंध में उचित निष्कर्ष दीजिए

 

भूमिका              

चुनाव के बाद दलबदल तब होता है जब निर्वाचित विधायक अक्सर व्यक्तिगत लाभ या राजनीतिक लाभ के लिए उस पार्टी से निष्ठा बदल लेते हैं जिसके टिकट पर वे चुने गए थे। यह प्रक्रिया चुनावी जनादेश को कमजोर करती है और लोकतांत्रिक सिद्धांतों को खतरे में डालती है, जिससे यह साबित होता है कि नैतिक शासन और राजनीतिक चालबाजी  के बीच एक अत्यंत सावधानीपूर्ण संतुलन की आवश्यकता है।

मुख्य भाग

चुनाव के बाद विधायकों के दल बदलने का शासन और जनता के विश्वास पर नैतिक प्रभाव

  • दल-बदल विरोधी कानून की भावना का उल्लंघन:दल-बदल से  सामान्यतः  10वीं अनुसूची के तहत दल-बदल विरोधी कानून की भावना का उल्लंघन होता है। अनैतिक राजनीतिक बदलावों पर अंकुश लगाने के कानून के लक्ष्य  के बावजूद, ‘विलय’ सम्बन्धी शर्तों  की  खामियों या औचित्य के माध्यम से इसकी लगातार अनदेखी एक महत्वपूर्ण नैतिक उल्लंघन को उजागर करती है।
  • शासन गुणवत्ता पर प्रभाव: इससे सरकारें अस्थिर हो सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप शासन और नीति कार्यान्वयन की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। उदाहरण के लिए: 2016 में उत्तराखंड में राजनीतिक अस्थिरता,जहां  कई बार दल-बदल के कारण संवैधानिक संकट पैदा हुआ, जो यह रेखांकित करता है कि राजनीतिक चालबाजी से शासन से कैसे समझौता किया जा सकता है।
  • लोकतांत्रिक मूल्यों की क्षति : मतदाताओं की पसंद की उपेक्षा करके दलबदल लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों से समझौता करता है। जैसे: यदि राजस्थान में कोई विधायक जल संरक्षण प्रयासों के वादे पर चुना जाता है, तो वह इस मुद्दे पर कम ध्यान देने वाली पार्टी से अलग हो जाता है, यह मतदाताओं के विशिष्ट जनादेश को धोखा देता है।
  • अवसरवादी राजनीति को प्रोत्साहन: यह वैचारिक प्रतिबद्धता या सार्वजनिक सेवा से अधिक अवसरवाद की संस्कृति को प्रोत्साहित करता है। जैसे:2019 में महाराष्ट्र सरकार का गठन, जिसमें चुनाव के बाद गठबंधन के गठन में परिवर्तन देखा गया, जो यह प्रदर्शित करता कि किस प्रकार  राजनीतिक अवसरवादिता चुनाव पूर्व वादों और विचारधाराओं पर प्रभावी  हो सकती है।
  • भ्रष्टाचार और रिश्वत :दलबदल  , अक्सर वित्तीय प्रोत्साहन या सत्ता के पदों को शामिल करती है, जो भ्रष्टाचार की संस्कृति को बढ़ावा देती है।। जैसे:उदाहरण के लिए: प्रसिद्ध मामले जहां विधायकों ने मंत्री पद के लिए दलबदल किया, ऐसे कदमों की लेन-देन की प्रकृति पर प्रकाश डाला गया, जो नैतिक शासन को कमजोर करता है।
  • सार्वजनिक विश्वास का क्षरण: जब विधायक दलबदल करते हैं, तो यह प्रत्यक्ष रूप से   चुनावी प्रक्रिया में मतदाताओं के विश्वास और उनके द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों को कमजोर करता है। उदाहरण: 2019 में कर्नाटक राजनीतिक संकट के कारण गठबंधन सरकार का पतन यह दर्शाता है कि दलबदल कैसे निर्वाचित अधिकारियों और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में जनता के विश्वास को कम कर सकता है।
  • मतदाताओं में  अलगाव की भावना :जब उनके चुने हुए प्रतिनिधि दलबदल करते  तो मतदाता राजनीतिक प्रक्रिया से अलग-थलग महसूस कर सकते हैं, उन्हें लगता है कि उनका वोट निरर्थक हो गया है। जैसे: 2019 में तेलंगाना में विस्तृत स्तर  पर दलबदल ने कई मतदाताओं को मताधिकार से वंचित और लोकतांत्रिक रूप से निराश  किया।
  • जवाबदेही तंत्र को कमज़ोर करना: दलबदल से निर्वाचित अधिकारियों को जवाबदेह बनाए रखने के लिए बनाए गए तंत्र कमजोर हो सकते हैं, क्योंकि निष्ठा में बदलाव से जिम्मेदारी अस्पष्ट हो सकती है। उदाहरण के लिए: यदि कोई विधायक मजबूत भ्रष्टाचार विरोधी जनादेश पर चुने जाने के बाद पार्टी छोड़ देता है, तो मतदाताओं के लिए उन्हें उनके अभियान के दौरान किये गए  वादों के लिए जवाबदेह ठहराना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

विविध नैतिक दर्शन निम्नलिखित तरीकों से इन परिदृश्यों में निर्णय लेने का मार्गदर्शन कर सकते हैं

  • उपयोगितावाद: इस पर ध्यान केंद्रित करता है कि सबसे अधिक लोगों के लिए सबसे अच्छा हो। विधायकों को अपने दल-बदल के समाज कल्याण पर पड़ने वाले व्यापक प्रभाव पर विचार करना चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि दलबदल से अधिक स्थिर सरकार बन सकती है जो लोक कल्याण के लिए नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू कर सकती है, तो इसे उपयोगितावादी सिद्धांतों के तहत उचित ठहराया जा सकता है।।
  • धर्मशास्त्रीय नैतिकता:
    यह कर्तव्य, नियमों और दायित्वों पर जोर देता है। एक विधायक का प्राथमिक कर्तव्य अपने मतदाताओं और चुनाव के दौरान किए गए वादों के प्रति है। अभियान के वादों के विपरीत, व्यक्तिगत लाभ के लिए दलबदल करना, इस दर्शन के तहत अनैतिक होगा।
  • सदाचार नैतिकता: यह व्यक्ति के चरित्र और गुणों पर केंद्रित है। एक सदाचारी विधायक व्यक्तिगत लाभ की परवाह किए बिना, अपने सिद्धांतों और मतदाताओं के विश्वास के अनुरूप  सत्यनिष्ठा, निष्ठा और ईमानदारी से कार्य करेगा।
  • ठेकेदारी प्रथा(Contractarianism:): यह सामाजिक अनुबंध और पारस्परिक समझौतों पर आधारित है। विधायकों का अपने मतदाताओं के साथ एक अंतर्निहित अनुबंध होता है जिसे आसानी से नहीं तोड़ा जाना चाहिए। दलबदल करना इस अनुबंध का उल्लंघन है जब तक कि इसे मतदाताओं के मूल इरादे या कल्याण की पूर्ति के रूप में उचित नहीं ठहराया जा सकता।
  • देखभाल की नैतिकता:यह एक मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में रिश्तों और देखभाल पर ध्यान केंद्रित करता है। विधायकों को अपने समुदाय की जरूरतों और भलाई के लिए विश्वास और देखभाल बनाए रखने का प्रयास करते हुए, अपने घटकों के साथ अपने संबंधों पर अपने कार्यों के प्रभाव पर विचार करना चाहिए।
  • परिणामवाद:यह किसी व्यक्ति के कार्यों के परिणामों को देखता है। दलबदल करने से पहले, एक विधायक को अपने निर्णय के संभावित परिणामों का पूरी तरह से विश्लेषण करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि इससे बहुमत के लिए सकारात्मक परिणाम होंगे और जनता के विश्वास या शासन की गुणवत्ता को नुकसान नहीं पहुंचेगा।
  • समतावादी नैतिकता:यह समानता एवं न्याय की वकालत करता है। एक विधायक को इस बात पर विचार करना चाहिए कि क्या उनका दलबदल राजनीतिक समानता और न्याय को बढ़ावा देता है या राजनीतिक व्यवस्था के भीतर असमानता और अन्याय को बढ़ाता है।।
  • नारीवादी नैतिकता:नारीवादी नैतिकता यह मानवीय मूल्यों और समानता की महत्वपूर्णता पर ध्यान केंद्रित करती है विधायकों को इस बात पर विचार करना चाहिए कि उनके दलबदल से समाज के सबसे कमजोर और हाशिए पर रहने वाले लोगों पर क्या प्रभाव पड़ता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि उनके कार्यों से असमानता या उत्पीड़न कायम न हो।

निष्कर्ष

इस प्रकार  चुनाव के बाद दलबदल करने का कार्य शासन पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है और जनता के विश्वास को नष्ट करता है, जो लोकतांत्रिक नैतिकता के मूल को चुनौती देता है।विविध नैतिक दर्शन को लागू करके और व्यापक भलाई को प्राथमिकता देने वाले सिद्धांतों का पालन करके, राजनीतिक नेता लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास बनाए रख सकते हैं और समग्र रूप से समाज की भलाई के लिए कार्यों का मार्गदर्शन कर सकते हैं।

 

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