उत्तर:
दृष्टिकोण:
- परिचय: सतत विकास के संदर्भ में समावेशी विकास के महत्व पर प्रकाश डालिए।
- मुख्य विषयवस्तु:
- समावेशी विकास की दिशा में भारत की यात्रा में तकनीकी प्रगति की भूमिका पर चर्चा कीजिए।
- वित्तीय समावेशन के महत्व की जाँच कीजिए।
- प्रासंगिक उदाहरण अवश्य प्रदान कीजिए।
- निष्कर्ष: भारत के समावेशी विकास के प्रयास में तकनीकी उन्नति और वित्तीय समावेशन दोनों के महत्व को दोहराते हुए निष्कर्ष निकालिए।
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परिचय:
समावेशी विकास का अर्थ ऐसे विकास से है जो समाज के विभिन्न वर्गों में आर्थिक लाभों को समान रूप से वितरित करता हो, यह टिकाऊ विकास की एक महत्वपूर्ण आधारशिला है। दूसरे शब्दों में कहें, तो सतत विकास का अर्थ भविष्य की पीढ़ियों की अपनी जरूरतों को पूरा करने की क्षमता से समझौता किए बिना वर्तमान की जरूरतों को पूरा करना है। हालाँकि, यह वास्तव में केवल तभी हासिल किया जा सकता है जब पूरी आबादी समान रूप से प्रगति करे, न कि केवल कुछ चुनिंदा लोग। भारत जैसे विशाल व विविधतापूर्ण देश में, जहाँ गंभीर सामाजिक-आर्थिक असमानताएं व्याप्त हैं, समावेशी विकास हासिल करना न केवल एक उद्देश्य है, बल्कि एक सामंजस्यपूर्ण और टिकाऊ भविष्य सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक भी है।
मुख्य विषयवस्तु:
तकनीकी प्रगति और वित्तीय समावेशन, दो महत्वपूर्ण कारक हैं जो सतत विकास के दृष्टिकोण को वास्तविकता में बदल सकते हैं-
प्रौद्योगिकीय उन्नति की भूमिका:
- डिजिटल कनेक्टिविटी:
- ‘डिजिटल इंडिया‘ अभियान जैसी पहल प्रत्येक नागरिक को एक उपयोगिता के रूप में डिजिटल बुनियादी ढाँचा प्रदान करता है, जिससे लोगों का सशक्तिकरण हो सके।
- ग्रामीण क्षेत्रों में मोबाइल फोन और सस्ते इंटरनेट के प्रसार ने शहरी और ग्रामीण भारत के बीच की खाई को पाट दिया है।
- ई-गवर्नेंस:
- शासन में तकनीकी प्रगति, जैसे- ऑनलाइन सेवा पोर्टल, नौकरशाही बाधाओं को कम करते हैं।
- उदाहरण के लिए, आधार प्रणाली की शुरूआत, जिसमें एक बायोमेट्रिक पहचान प्रणाली स्थापित की गयी, ने कई सार्वजनिक सेवाओं और लाभकारी योजनाओं को सुव्यवस्थित किया है।
- कृषि का आधुनिकीकरण:
- इंटरनेट ऑफ थिंग्स (Internet of Things) जैसी प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके सूक्ष्म कृषि, भारत में किसानों को फसल की पैदावार बढ़ाने और बदलती जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल होने में मदद करती है।
- ई-नाम (e-NAM, e-राष्ट्रीय कृषि बाजार) जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म सुनिश्चित करते हैं कि किसानों को उनकी उपज का बेहतर दाम मिले।
- ऑनलाइन शिक्षा:
- कोविड–19 महामारी के कारण शिक्षण संस्थाओं में जाने पर प्रतिबंध के कारण, ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म ने निरंतर शिक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की पहुँच को लोकतांत्रिक बनाने में प्रौद्योगिकी की क्षमता को उजागर करता है।
वित्तीय समावेशन की भूमिका:
- प्रधानमंत्री जन-धन योजना (पीएमजेडीवाई):
- 2014 में लॉन्च किए गए इस प्रमुख वित्तीय समावेशन कार्यक्रम का उद्देश्य हर घर तक बैंकिंग और क्रेडिट सहित वित्तीय सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करना है।
- इसकी स्थापना के नौ साल बाद, अगस्त, 2023 तक, पीएमजेडीवाई खातों की कुल संख्या प्रभावशाली रूप से 500 मिलियन तक बढ़ गई।
- माइक्रोफाइनेंस और स्वयं सहायता समूह (Self Help Groups):
- माइक्रोफाइनेंस संस्थान और स्वयं सहायता समूह वित्तीय समावेशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं के लिए।
- सूक्ष्म ऋण की पेशकश करके, ये संस्थान उद्यमशीलतापूर्ण उद्यम को सक्षम बनाते हैं, जिससे कई परिवारों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
- डिजिटल भुगतान प्रणाली:
- यूपीआई (Unified Payments Interface) और पेटीएम जैसे मोबाइल वॉलेट सिस्टम ने पीयर-टू-पीयर लेनदेन में क्रांति ला दी है, जिससे पारंपरिक बैंकिंग प्रणाली के बिना भी लोग औपचारिक अर्थव्यवस्था में भाग लेने में सक्षम हो गए हैं।
- बीमा और पेंशन योजनाएँ:
- अटल पेंशन योजना और प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना जैसी सरकारी योजनाएं असंगठित क्षेत्र और निम्न-आय समूहों की जरूरतों को पूरा करती हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि उनके पास वित्तीय सुरक्षा जाल मौजूद है।
निष्कर्ष:
भारत के लिए, धन और अवसरों में भारी असमानताओं के साथ, समावेशी विकास पर ध्यान केंद्रित करना न केवल एक नैतिक अनिवार्यता है, बल्कि सतत विकास के लिए भी जरूरी है। जैसे-जैसे भारत एक वैश्विक महाशक्ति बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, उसकी असली सफलता जीडीपी आंकड़ों में नहीं, बल्कि हर किसान, कारीगर और बच्चे की खुशहाली में निहित होगी, जो देश की विकास गाथा में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं।
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