Q. चुनावों के दौरान फेक न्यूज फैलाने के लिए डिजिटल प्लेटफार्मों के बढ़ते दुरुपयोग के आलोक में, गलत सूचना से निपटने के लिए भारत में मौजूदा कानूनी ढाँचे की प्रभावशीलता की जाँच कीजिए। इन तंत्रों को मजबूत करने के लिए क्या अतिरिक्त कदम उठाए जा सकते हैं? (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • फेक न्यूज फैलाने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म के बढ़ते दुरुपयोग पर प्रकाश डालिये, विशेषकर चुनावों के दौरान।
  • इस संदर्भ में, गलत सूचना से निपटने के लिए भारत में मौजूदा कानूनी ढाँचे की प्रभावशीलता का परीक्षण कीजिए।
  • इन तंत्रों को मजबूत करने के लिए उठाए जा सकने वाले अतिरिक्त कदमों पर चर्चा कीजिये।

उत्तर

फेक न्यूज लोकतंत्र के लिए खतरा हैं जो जनता की राय और चुनावी सत्यनिष्ठा को प्रभावित करती हैं। माइक्रोसॉफ्ट के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 60% से अधिक भारतीयों को ऑनलाइन गलत सूचनाओं का सामना करना पड़ा जो वैश्विक औसत से अधिक है। IT अधिनियम और चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों जैसे कानूनों के बावजूद, डीपफेक और AI-संचालित प्रचार जैसे उभरते खतरे डिजिटल गलत सूचनाओं को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने की भारत की क्षमता को चुनौती देते हैं।

फेक न्यूज फैलाने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म का बढ़ता दुरुपयोग, विशेषकर चुनावों के दौरान

  • डीपफेक प्रसार: राजनेता और पार्टियां मतदाताओं को गुमराह करने और विरोधियों की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाने के लिए एडिट किए गए भाषणों या विजुअल को फैलाने के लिए AI-जनरेटेड डीपफेक का उपयोग करते हैं।
  • वोटरटर्नआउट से संबंधित गलत सूचना: मतदान की तारीखों, मतदाता पहचान-पत्र की आवश्यकताओं और मतदान प्रतिशत के बारे में झूठे दावे नागरिकों को गुमराह करते हैं, भागीदारी को हतोत्साहित करते हैं और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करते हैं।
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2019 के आम चुनावों में, व्हाट्सएप संदेशों में झूठा दावा किया गया कि मतदाता बिना मतदाता पहचान पत्र के भी मतदान कर सकते हैं, जिससे पहली बार मतदान करने वाले मतदाता गुमराह हुए।
  • सांप्रदायिक और जाति-आधारित प्रचार: चुनावों के दौरान धार्मिक या जाति-आधारित भेदभाव के बारे में भ्रामक कहानियाँ फैलाकर सांप्रदायिक तनाव भड़काने के लिए अक्सर फेक न्यूज का इस्तेमाल किया जाता है।
  • मनगढ़ंत जनमत सर्वेक्षण: सोशल मीडिया पर विशिष्ट दलों के पक्ष में फेक प्रीइलेक्शन सर्वेक्षणों की बाढ़ आ गई है जो जनता की भावनाओं के बारे में मतदाताओं को गुमराह करते हैं और उनके निर्णयों को प्रभावित करते हैं।
  • सोशल मीडिया विज्ञापनों का दुरुपयोग: राजनीतिक दल गलत बयानों को बढ़ावा देने और भ्रामक सामग्री के साथ विशिष्ट मतदाता समूहों को लक्षित करने के लिए अनियमित डिजिटल विज्ञापनों का उपयोग करते हैं।

भारत में फेक न्यूज की समस्या से निपटने के लिए मौजूदा कानूनी ढांचे की प्रभावशीलता

  • IT नियम 2021 का प्रवर्तन: सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को जवाबदेह बनाते हैं, लेकिन इनमें प्रभावी निगरानी तंत्र का अभाव है। 
    • उदाहरण के लिए: इन नियमों के बावजूद, ट्विटर और फेसबुक विधानसभा चुनावों के दौरान फेक न्यूज पर अंकुश लगाने में विफल रहे, जिससे भ्रामक पोस्ट वायरल हो गए।
  • IPC के सेक्शन 505 की सीमाएँ: भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 505 झूठी सूचना फैलाने पर दंड का प्रावधान करती है, लेकिन दोषसिद्धि की कम दर के कारण यह निवारक के रूप में अप्रभावी है।
  • चुनाव आयोग के MCC दिशानिर्देश: आदर्श आचार संहिता (MCC) राजनीतिक दलों को फेक न्यूज फैलाने के खिलाफ निर्देश देती है, लेकिन इसका प्रवर्तन कानूनी बाध्यता के बिना सलाह तक ही सीमित है।
  • फैक्टचेकिंग पार्टनरशिप: मेटा जैसे प्लेटफार्मों में फैक्ट-चेकिंग पार्टनरशिप होती हैं लेकिन इनमें कानूनी प्रवर्तन का अभाव होता है जिससे इनका अनुपालन स्वैच्छिक हो जाता है।
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान, मेटा के फैक्ट-चेकिंग पार्टनर  ने फर्जी राजनीतिक विज्ञापनों को चिह्नित किया, लेकिन कई भ्रामक पोस्ट अनियंत्रित रहे।
  • PIB  फैक्ट-चेकिंग इकाई का सीमित प्रभाव: प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB) की  फैक्ट-चेकिंग इकाई फर्जी खबरों का पर्दाफाश करती है, लेकिन इसका दायरा सरकार से संबंधित गलत सूचना तक ही सीमित है।
    • उदाहरण के लिए: जबकि PIB ने वर्ष 2023 में चुनावी बांड के बारे में फर्जी दावों को रोकने में मदद की पर इसने गलत सूचना वाले व्यापक राजनीतिक  अभियानों के संबंध में कोई कार्य नहीं किया।

इन तंत्रों को मजबूत करने के लिए अतिरिक्त कदम

  • अनिवार्य रियलटाइम फैक्ट-चेकिंग: सरकार को प्रमुख प्लेटफार्मों के लिए AI-संचालित फैक्टचेकिंग प्रणाली को अनिवार्य करना चाहिए, ताकि पता चलने के कुछ ही मिनटों के भीतर फेक न्यूज को पहचाना और हटाया जा सके।
    • उदाहरण के लिए: यूरोपीय संघ के डिजिटल सेवा अधिनियम के तहत गूगल और मेटा जैसे प्लेटफार्मों को 24 घंटे के भीतर गलत सूचना पर कार्रवाई करने की आवश्यकता होती है, जिससे चुनाव संबंधी गलत सूचनाओं में कमी आती है।
  • मजबूत कानूनी प्रतिवारण: जानबूझकर गलत सूचना देने पर दंड बढ़ाने के लिए कानूनों में संशोधन, जिसमें राजनीतिक संस्थाओं के लिए अधिक जुर्माना और संभावित अयोग्यता शामिल हो, अपराधियों को रोकेगा।
    • उदाहरण के लिए: जर्मनी में वर्ष 2018 NetzDG कानून गलत सूचना को तुरंत हटाने में विफल रहने वाले प्लेटफार्मों पर 50 मिलियन यूरो तक का जुर्माना लगाता है।
  • चुनाव आयोग की स्वतंत्र निगरानी: चुनाव से पहले और चुनाव के दौरान राजनीतिक गलत सूचना की निगरानी करने और अपराधियों को दंडित करने के लिए एक स्वतंत्र इलेक्शन डिसइन्फॉर्मेशन टास्क फोर्स की स्थापना करनी चाहिए।
  • सोशल मीडिया पर राजनीतिक विज्ञापनों को विनियमित करना: हेरफेर को रोकने के लिए प्लेटफार्मों को विज्ञापन के वित्तपोषणकर्ताओं, लक्षित जनसांख्यिकी और सामग्री स्रोतों का खुलासा करना आवश्यक होना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: अमेरिका में, ऑनेस्ट ऐड्स अधिनियम डिजिटल राजनीतिक विज्ञापनों में पारदर्शिता को अनिवार्य बनाता है, जिससे गलत सूचना का जोखिम कम होता है।
  • डिजिटल साक्षरता अभियान: स्कूलों और समुदायों में बड़े पैमाने पर डिजिटल साक्षरता पहल, नागरिकों को फेक न्यूज  की पहचान करने और गलत सूचना फैलाने से बचने में मदद कर सकती है।

गलत सूचनाओं का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिए तकनीकी प्रगति के साथ-साथ एक मजबूत कानूनी ढाँचा विकसित किया जाना चाहिए। तथ्य-जाँच तंत्र को मजबूत करना, अपराधियों पर कठोर दंड लगाना, डिजिटल साक्षरता को बढ़ाना और प्लेटफॉर्म जवाबदेही को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है। लोकतांत्रिक सत्यनिष्ठा की रक्षा के लिए एक सक्रिय, बहु-हितधारक दृष्टिकोण अति आवश्यक है।

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