उत्तर:
दृष्टिकोण:
- परिचय: वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक परिदृश्य में जी20 के महत्व को रेखांकित कीजिए, साथ ही बहुपक्षीय संस्थानों में सुधारों के लिए भारत के प्रयास पर टिप्पणी कीजिए।
- मुख्य विषयवस्तु:
- वैश्विक प्राथमिकताएं तय करने और वैश्विक चुनौतियों से निपटने में जी20 की भूमिका पर चर्चा कीजिए। इसके अतिरिक्त बहुपक्षवाद में विश्वास बहाल करने के लिए जी20 की क्षमता को उजागर कीजिए।
- उन प्रमुख चुनौतियों की पहचान कर उल्लेख कीजिए जो डब्ल्यूटीओ जैसे संस्थानों में सुधारों में बाधा डालती हैं।
- उन तरीकों की गणना करें जिनके माध्यम से जी20, भारत की सक्रिय भूमिका के साथ, बहुपक्षवाद को बढ़ावा दे सकता है।
- निष्कर्ष: बहुपक्षीय संस्थानों में सुधारों को आगे बढ़ाने में जी20 की क्षमता और एकीकृत वैश्विक व्यवस्था की वकालत में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देते हुए निष्कर्ष निकालें।
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परिचय:
जी20, एक प्राथमिक आर्थिक निर्णय लेने वाली संस्था है। जी20 की स्थापना के बाद से इसका कद अब काफी बढ़ गया है। भारत द्वारा अपनी जी20 अध्यक्षता के दौरान बहुपक्षीय संस्थानों में सुधारों पर जोर देने के साथ, विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसे वैश्विक संस्थानों में सुधार में जी20 की भूमिका ने ध्यान आकर्षित किया है।
मुख्य विषयवस्तु:
बहुपक्षीय संस्थानों के सुधार में G20 की भूमिका:
- प्राथमिकताएँ निर्धारित करना: बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार को भारत अपनी शीर्ष प्राथमिकताओं में से एक बना सकता है, भारत का यह प्रयास वैश्विक सुधारों को आगे बढ़ाने में जी20 की महत्वपूर्ण भूमिका को इंगित करता है।
- वैश्विक मुद्दों को संबोधित करना: विकास और सुरक्षा मुद्दों पर वैश्विक सहमति बनाना और वैश्विक वस्तुओं की आवाजाही सुनिश्चित करना प्राथमिक उद्देश्य होना चाहिए। ऐसे में देखा जाये तो बहुपक्षवाद को बढ़ावा देने में जी20 की भूमिका महत्वपूर्ण है।
- बहुपक्षवाद में विश्वास बहाल करना: गतिरोधों के कारण बढ़ते अविश्वास के मद्देनजर, जी20 एक ऐसे मंच के रूप में खड़ा है जो सहयोग को बढ़ावा देने और वैश्विक चुनौतियों के सामूहिक समाधान की तलाश करके बहुपक्षीय दृष्टिकोण में विश्वास बहाल कर सकता है।
डब्ल्यूटीओ जैसी संस्थाओं में सुधार स्थापित करने में चुनौतियाँ:
- मजबूत सत्ता की राजनीति: बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार अक्सर मौजूदा सत्ता की गतिशीलता को चुनौती देते हैं, जिससे महत्वपूर्ण सदस्य परिवर्तन के प्रति प्रतिरोधी हो जाते हैं।
- शून्य-संचय परिप्रेक्ष्य: प्रभुत्वशाली शक्तियां अक्सर सुधारों को अपने प्रभाव को कम करने के रूप में देखती हैं। ऐसी मानसिकता डब्ल्यूटीओ जैसी संस्थाओं में सुधार स्थापित करने में सर्वसम्मति निर्णय को जटिल बनाती है।
- मल्टीप्लेक्स ग्लोबल ऑर्डर का उद्भव: आधुनिक वैश्विक परिदृश्य, जो कई शक्ति केंद्रों की विशेषता है, पारंपरिक बहुपक्षीय रास्ते को दरकिनार करते हुए समान विचारधारा वाले गठबंधन के गठन को बढ़ावा देता है।
G20 और भारत कैसे बहुपक्षवाद को बढ़ावा दे सकते हैं:
- विचारों में बदलाव: जी20 बहुपक्षीय सुधारों के महत्व पर जोर देने के लिए समर्पित एक सहभागिता समूह बना सकता है, जिससे वैश्विक आयाम को आकार दिया जा सके।
- लघुपक्षीय समूहों को प्रोत्साहित करना: जी20 को मुद्दे-विशिष्ट लघुपक्षीय गठबंधनों को बढ़ावा देना चाहिए, विशेष रूप से वैश्विक प्रशासन से संबंधित विषयों में, ताकि खंडित विश्व व्यवस्था को रोका जा सके ।
- समावेशिता: जी20 को अपनी वैधता बढ़ाने के लिए अधिक देशों और अंतर्राष्ट्रीय निकायों को शामिल करना चाहिए। उदाहरण के लिए, अफ्रीकी संघ और संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख अधिकारी इसके प्रतिनिधित्व संबंधी दावे को मजबूत कर सकते हैं।
- गंभीर मुद्दों को संबोधित करना: विश्वास बहाली के लिए, जी20 को ज्वलंत मुद्दों; जैसे- भोजन, ईंधन और उर्वरक सुरक्षा के संबंध में उत्पन्न वैश्विक समस्याओं का समाधान करना चाहिए।
निष्कर्ष:
चूंकि डब्ल्यूटीओ जैसे बहुपक्षीय संस्थानों को सुधार से संबंधित प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, ऐसे में जी20 अपनी सामूहिक शक्ति के साथ, इन संस्थानों को अधिक समावेशी, प्रभावी और प्रतिनिधि भविष्य की ओर ले जा सकता है। G20 की अध्यक्षता के दौरान बहुपक्षीय सुधारों पर भारत का जोर इस परिप्रेक्ष्य को मजबूत करता है, तथा अधिक सहयोगात्मक और एकीकृत वैश्विक व्यवस्था की वकालत करता है।
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