Q. भारत का विकसित भारत का दृष्टिकोण लैंगिक बजट में वृद्धि और विभिन्न पहलों के माध्यम से महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास पर जोर देता है। हालाँकि, अनौपचारिक क्षेत्र के प्रभुत्व और श्रम बल भागीदारी में लैंगिक अंतर जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। वर्तमान उपायों की प्रभावशीलता का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए और वर्ष 2047 तक 70% महिलाओं की आर्थिक भागीदारी हासिल करने के लिए व्यापक सुधार सुझाएँ। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • इस बात पर प्रकाश डालिए कि भारत का विकसित भारत का दृष्टिकोण, बढ़े हुए जेंडर बजटिंग और विभिन्न पहलों के माध्यम से महिला-नेतृत्व वाले विकास पर बल देता है।
  • अनौपचारिक क्षेत्र के प्रभुत्व और श्रम बल भागीदारी में लैंगिक अंतर जैसी चुनौतियों पर चर्चा कीजिए, जो अभी भी कायम हैं।
  • वर्तमान उपायों की सकारात्मक प्रभावशीलता का विश्लेषण कीजिए।
  • वर्तमान उपायों की कमियों का विश्लेषण कीजिए।
  • वर्ष 2047 तक 70% महिलाओं की आर्थिक भागीदारी हासिल करने के लिए व्यापक सुधार सुझाइए।

उत्तर

जेंडर बजटिंग, एक राजकोषीय दृष्टिकोण है, जो सार्वजनिक व्यय के सभी चरणों में लिंग‌ संबंधी परिप्रेक्ष्य को एकीकृत करता है, समान संसाधन आवंटन सुनिश्चित करता है और महिलाओं की विशिष्ट आवश्यकताओं को संबोधित करता है। भारत की विकसित भारत की आकांक्षा, महिला-संचालित विकास के माध्यम से साकार हो रही है, जिसे प्रगतिशील जेंडर बजटिंग द्वारा सशक्त किया गया है।

भारत का विकसित भारत का दृष्टिकोण: जेंडर बजट और पहलों के माध्यम से महिला-नेतृत्व वाला विकास

  • जेंडर बजट आवंटन में वृद्धि: जेंडर बजट कुल बजट का 8.8% हो गया है, जो दो दशकों में किया गया सबसे अधिक आवंटन है।
    • उदाहरण के लिए: 49 मंत्रालयों में 4.49 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जिसमें रेलवे और खाद्य प्रसंस्करण जैसे क्षेत्रों सहित 12 अतिरिक्त मंत्रालयों ने जेंडर बजट को एकीकृत किया है।
  • कौशल और रोजगार पर ध्यान: कौशल भारत कार्यक्रम और DAY-NRLM जैसी प्रमुख योजनाओं के लिए अब 1.24 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जिसमें से 52%, महिलाओं और लड़कियों के लिए आवंटित किए गए हैं। 
    • उदाहरण के लिए: पीएम विश्वकर्मा योजना महिला कारीगरों को कौशल विकास और विपणन सहायता प्रदान करके उन्हें सशक्त बनाती है, जिससे उनकी आर्थिक संभावनाएँ बढ़ती हैं।
  • महिला उद्यमियों के लिए सहायता: बिना किसी जमानत के ऋण और वित्तीय साक्षरता कार्यक्रम जैसे प्रयासों का उद्देश्य महिलाओं के स्वामित्व वाले उद्यमों को वित्त उपललब्ध कराना व लाखों लोगों को रोजगार देना और GDP में वृद्धि करना है। 
    • उदाहरण के लिए: सरकार के Udyam पोर्टल से पता चलता है कि 20.5% MSMEs महिलाओं के स्वामित्व वाले हैं, जो लगभग 27 मिलियन लोगों को रोजगार देते हैं।
  • गिग वर्कर्स का औपचारिकीकरण: e-Shram पोर्टल के माध्यम से पहचान-पत्र जारी करने के प्रस्ताव का उद्देश्य अनौपचारिक क्षेत्र में संलग्न महिलाओं को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है। 
    • उदाहरण के लिए: खाद्य वितरण और घरेलू सेवाओं में कार्यरत गिग वर्कर्स अब इस तरह के औपचारिकीकरण के माध्यम से मातृत्व लाभ और दुर्घटना बीमा तक पहुँच प्राप्त कर सकते हैं।
  • सशक्तीकरण के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: इंडिया AI मिशन, डिजिटल शिक्षा और AI-आधारित कौशल प्रदान करने के लिए 600 करोड़ रुपये समर्पित करता है, जिससे कार्यक्षेत्र में महिलाओं की प्रतिस्पर्द्धात्मकता सुनिश्चित होती है। 
    • उदाहरण के लिए: कृषि में AI-आधारित उपकरण, उपज पूर्वानुमान में सुधार करके और बेहतर फसल मूल्य निर्धारण के लिए बाजार की जानकारी प्रदान करके महिला किसानों को सशक्त बना रहे हैं।

अनौपचारिक क्षेत्र के प्रभुत्व और श्रम बल में लिंग आधारित अंतर से जुड़ी चुनौतियाँ

  • अनौपचारिक क्षेत्र में उच्च भागीदारी: 90% से अधिक कामकाजी महिलाएँ, अनौपचारिक क्षेत्र में  संलग्न हैं, जहाँ उन्हें नौकरी की सुरक्षा, उचित वेतन और मातृत्व लाभ नहीं मिलते। 
    • उदाहरण के लिए: घरेलू कार्यों में संलग्न महिलाएँ अक्सर न्यूनतम वेतन से  भी कम कमाती हैं और उन्हें स्वास्थ्य बीमा या सवेतन अवकाश लाभ का कोई अधिकार नहीं है।
  • सामाजिक सुरक्षा कवरेज का अभाव: गिग श्रमिकों सहित अन्य अनौपचारिक श्रमिकों को पेंशन और बीमा जैसी व्यापक सामाजिक सुरक्षा का अभाव है, जिससे उनकी दीर्घकालिक आर्थिक सुरक्षा प्रभावित होती है।
  • श्रम बल भागीदारी में लैंगिक अंतर: FLFPR 42% (2023-24) है, जो पुरुषों के 79% से काफी कम है, जिसके लिए महिलाओं की कार्यबल भागीदारी बढ़ाने के लिए संरचनात्मक परिवर्तनों की आवश्यकता है। 
    • उदाहरण के लिए: कृषि में महिलाओं का रोजगार व्यापक है, लेकिन उनके भूमि स्वामित्व होने के कारण इसे स्वीकृति नहीं मिलती है, जिससे उनका आर्थिक योगदान प्रभावित होता है।
  • ऋण तक पहुँच में बाधाएँ: किसान क्रेडिट कार्ड के लिए भूमि स्वामित्व जैसी कठोर दस्तावेजी आवश्यकताओं के कारण महिलाओं को ऋण प्राप्त करने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
  • निर्णयन भूमिकाओं में महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व: कॉरपोरेट और गवर्नेंस संरचनाओं में नेतृत्वकारी भूमिकाओं में महिलाओं की उपस्थिति न्यूनतम है, जिससे नीति और आर्थिक परिणामों को प्रभावित करने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है।
    • उदाहरण के लिए: डेलोइट इंडिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत की शीर्ष कंपनियों में केवल 17% बोर्ड सदस्य महिलाएँ हैं, जो सशक्त कॉरपोरेट विविधता नीतियों की आवश्यकता को दर्शाता है।

वर्तमान उपायों की सकारात्मक प्रभावशीलता

  • कौशल विकास और उद्यमिता में उन्नयन: कौशल भारत कार्यक्रम और PM विश्वकर्मा योजना जैसे कार्यक्रमों ने महिलाओं की कार्यबल तत्परता को बढ़ाने के लिए लक्षित प्रशिक्षण और बाजार संपर्क प्रदान किए हैं। 
    • उदाहरण के लिए: इन कार्यक्रमों के तहत 52% से अधिक धनराशि महिलाओं को निर्देशित की जाती है, जिससे उनके कौशल और उद्यमशीलता विकास को बढ़ावा मिलता है।
  • अनौपचारिक कार्य का औपचारिकीकरण: e-Shram पोर्टल जैसी पहल गिग वर्कर्स को पहचान-पत्र प्रदान करती है, जिससे सामाजिक सुरक्षा और वित्तीय समावेशन लाभों तक पहुँच संभव होती है। 
    • उदाहरण के लिए: 2 करोड़ से अधिक महिला गिग वर्कर्स को पंजीकृत किया गया है, जिससे मातृत्व लाभ और दुर्घटना बीमा सुनिश्चित होता है।
  • महिला स्वामित्व वाले उद्यमों के लिए समर्थन: सरलीकृत ऋण पहुँच और वित्तीय साक्षरता कार्यक्रमों ने महिला स्वामित्व वाले MSME के विकास को बढ़ावा दिया है।
  • समावेशन के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग: इंडिया AI मिशन के तहत AI-आधारित शिक्षा और लिंग-केंद्रित योजनाओं में निवेश, महिलाओं को भविष्य की नौकरियों के लिए सशक्त बनाता है।

वर्तमान उपायों की कमियाँ

  • कार्यबल भागीदारी में लैंगिक अंतर: 42% का FLFPR अभी भी 47% के वैश्विक औसत से बहुत दूर है, जो समानता प्राप्त करने में धीमी प्रगति को दर्शाता है। 
    • उदाहरण के लिए: विनिर्माण और औद्योगिक क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों की तुलना में मामूली बनी हुई है।
  • ऋण तक अपर्याप्त पहुँच: महिला किसानों और उद्यमियों को भूमि स्वामित्व या संपार्श्विक जैसी कठोर आवश्यकताओं के कारण वित्त प्राप्त करने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
  • सामाजिक सुरक्षा का असमान क्रियान्वयन: सामाजिक सुरक्षा लाभ समान रूप से लागू नहीं होते हैं, गिग वर्कर्स और अनौपचारिक क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए कवरेज में अंतर होता है। 
    • उदाहरण के लिए: e-SHRAM पोर्टल पर पंजीकृत कई महिलाओं ने दुर्घटना बीमा या पेंशन  लाभ प्राप्त करने में देरी की रिपोर्ट की है।
  • नीति और नेतृत्व में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है: नीति निर्माण और नेतृत्व की भूमिकाओं में महिलाओं की आवाज अभी भी कम प्रतिनिधित्व करती है, जिससे आर्थिक सुधारों में उनका प्रभाव सीमित हो जाता है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत के सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में वरिष्ठ प्रबंधन पदों पर महिलाओं की हिस्सेदारी 10% से भी कम है।

वर्ष 2047 तक 70% महिलाओं की आर्थिक भागीदारी हासिल करने के लिए व्यापक सुधार

  • अनौपचारिक क्षेत्र को औपचारिक बनाना: अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के लिए नौकरी की सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा और मातृत्व लाभ सुनिश्चित करने हेतु एक सार्वभौमिक श्रम संहिता स्थापित करनी चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: घरेलू कामगारों और गिग श्रमिकों के लिए पोर्टेबल सामाजिक सुरक्षा खातों जैसी योजनाओं को शुरू करके उनकी वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।
  • वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना: संपार्श्विक मुक्त ऋण, वैकल्पिक क्रेडिट स्कोरिंग मॉडल और महिलाओं के लिए लक्षित वित्तीय साक्षरता कार्यक्रमों के माध्यम से ऋण तक पहुँच को सरल बनाना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में अधिक महिला उद्यमियों को शामिल करने के लिए स्टैंड-अप इंडिया जैसी पहलों का विस्तार करना चाहिए।
  • उभरते क्षेत्रों में कौशल अंतर को कम करना: AI, रोबोटिक्स और नवीकरणीय ऊर्जा में लिंग-विशिष्ट कौशल कार्यक्रम शुरू करना चाहिए और उच्च-विकास उद्योगों में नेतृत्व के लिए महिलाओं को लक्षित करना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: तकनीक संचालित रोजगार अवसरों को बढ़ावा देने के लिए इंडिया AI मिशन के तहत प्रौद्योगिकी में महिलाओं के लिए 50 उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करना।
  • सामाजिक मानदंडों को संबोधित करना: पितृसत्तात्मक मानदंडों को चुनौती देने और साझा घरेलू जिम्मेदारियों को बढ़ावा देने हेतु राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू करने चाहिए, जिससे महिलाएँ अपना कॅरियर बना सकें। 
    • उदाहरण के लिए: बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान की तरह, काम और नेतृत्व में महिलाओं की भूमिका के बारे में सामाजिक मानसिकता बदलने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
  • महिलाओं के प्रतिनिधित्व को मजबूत करना: नीति निर्माण, नेतृत्व की भूमिकाओं और कॉरपोरेट बोर्ड में लैंगिक कोटा लागू करना चाहिए, ताकि महिलाओं के हित का ध्यान रखना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: सार्वजनिक और निजी संगठनों में नेतृत्व के पदों पर महिलाओं का 30% प्रतिनिधित्व अनिवार्य करने से न्यायसंगत निर्णय लेने में मदद मिल सकती है।

वर्ष 2047 तक 70% महिलाओं की आर्थिक भागीदारी हासिल करने के लिए नीतियों में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है । जेंडर बजट को सशक्त करके, अनौपचारिक क्षेत्र को औपचारिक बनाकर और कौशल अंतर को कम करके भारत अपनी महिलाओं को सशक्त बना सकता है। “सशक्त महिलाएँ, सशक्त राष्ट्र” को कार्रवाई को आगे बढ़ाना चाहिए, एक समावेशी कार्यबल को बढ़ावा देना चाहिए और एक सच्चे विकसित भारत के लिए सतत् विकास सुनिश्चित करना चाहिए ।

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