Q. भारत की समुद्री युद्ध क्षमतायें उसकी समुद्री आकांक्षाओं और रणनीतिक प्राथमिकताओं को दर्शाती है। हालाँकि, स्वदेशी विकास और बजटीय बाधाओं में अभी भी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। आलोचनात्मक रूप से विश्लेषण कीजिए कि भारत इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में एक विश्वसनीय नौसैनिक शक्ति के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखते हुए इन प्रतिस्पर्धी मांगों को कैसे संतुलित कर सकता है। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • इस बात पर प्रकाश डालिए कि समुद्री युद्ध क्षमताओं के संदर्भ में भारत के लक्ष्य, किस प्रकार से उसकी समुद्री आकांक्षाओं और रणनीतिक प्राथमिकताओं को प्रतिबिंबित करते हैं।
  • स्वदेशी विकास में आने वाली चुनौतियों और बजटीय बाधाओं का परीक्षण कीजिए जो स्थाई रूप से बनी हुई हैं।
  • विश्लेषण कीजिए कि भारत इन प्रतिस्पर्धी माँगों में किस प्रकार संतुलन बना सकता है।
  • भारत, इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में एक विश्वसनीय नौसैनिक शक्ति के रूप में अपनी स्थिति कैसे बनाए रख सकता है, इस पर उपाय सुझाइये।

उत्तर

भारत का समुद्री युद्ध क्षमताओं पर बल देना, इंडोपैसिफिक क्षेत्र में नौसेना शक्ति को मजबूत करने पर उसके रणनीतिक ध्यान को दर्शाता है। बढ़ती समुद्री महत्त्वाकांक्षाओं के साथ, भारत का लक्ष्य अपनी प्रतिवारण क्षमताओं को बढ़ाना और महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्गों को सुरक्षित करना है। हालाँकि, प्रौद्योगिकी में कमी, बजटीय बाधाएँ और विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता जैसी चुनौतियाँ इस महत्त्वपूर्ण क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने में गंभीर बाधाएँ उत्पन्न  करती हैं।

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भारत की जल-युद्ध क्षमताओं और समुद्री आकांक्षाओं से संबंधित लक्ष्य

  • सामरिक निवारण: भारत, परमाणु ऊर्जा से चलने वाली बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बियों (SSBN) के माध्यम से चीन और पाकिस्तान जैसे शत्रुओं के खतरों का मुकाबला करने के लिए विश्वसनीय परमाणु प्रतिवारण क्षमता विकसित करने का प्रयास कर रहा है। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2024 में भारतीय नौसेना में शामिल होने वाली INS अरिघात (Arighaat), न्यूक्लियर ट्रॉयड को मजबूत करेगा , जिससे भारत SSBN और SSN का संचालन करने वाला एकमात्र गैर-P5 राष्ट्र बन जाएगा।
  • समुद्री व्यापार मार्गों को सुरक्षित करना: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण शिपिंग मार्गों की सुरक्षा से वस्तुओं की मुक्त आवाजाही सुनिश्चित होती है और समुद्री डकैती जैसे खतरों का मुकाबला करने में मदद मिलती है। 
    • उदाहरण के लिए: ऑपरेशन संकल्प का वर्ष 2024 में लाल सागर तक विस्तार किया गया, जो रणनीतिक जल क्षेत्र की समुद्री सुरक्षा में भारत की भूमिका को प्रदर्शित करता है।
  • क्षेत्रीय प्रभाव को बढ़ाना: उन्नत समुद्री क्षमताएं, इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में एक प्राथमिकता प्राप्त सुरक्षा भागीदार के रूप में भारत की स्थिति को मजबूत करती हैं और SAGAR सिद्धांतों को मजबूत करती हैं। 
    • उदाहरण के लिए: मिलन (Milan) जैसे संयुक्त नौसैनिक अभ्यासों के माध्यम से मित्र देशों के साथ सहयोग, समुद्री स्थिरता को बढ़ावा देने में भारत की नेतृत्व क्षमता  को  दर्शाता है।
  • स्वदेशी तकनीक का विकास: घरेलू रक्षा विनिर्माण को मजबूत करना, आत्मनिर्भर भारत के तहत भारत की आत्मनिर्भरता के लिए किए जा रहे प्रयासों के अनुरूप है, जिससे विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता कम होगी। 
    • उदाहरण के लिए: Project-75 के तहत स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियों में 60% स्वदेशी सामग्री का उपयोग किया गया है। इसमें उन्नत SONAR प्रणाली और वायु-स्वतंत्र प्रणोदन सहित अन्य प्रणालियां शामिल है।
  • सामरिक क्षमता में वृद्धि: जल युद्ध में क्षमताओं का विस्तार भारत की समुद्री सीमाओं को सुरक्षित करने और प्रतिद्वंद्वी नौसैनिक प्रगति का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने में मदद करेगा। 
    • उदाहरण के लिए: 3,500 किलोमीटर की रेंज वाली K-4 SLBM के परीक्षण के बाद , चीन के अधिकतर हिस्से  भारत की सामरिक पहुंच के दायरे में आ गये हैं।
  • बहुपक्षीय सहयोग: पनडुब्बी प्रौद्योगिकी के लिए स्पेन और जर्मनी जैसे देशों के साथ साझेदारी, वैश्विक सहयोग और क्षमता वृद्धि सुनिश्चित करती है। 
    • उदाहरण के लिए: Project 75(I) में थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स और नवंतियां शामिल हैं , जिसमें प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और उन्नत पनडुब्बी निर्माण तकनीक शामिल हैं।

स्वदेशी विकास में आने वाली चुनौतियाँ और बजटीय बाधाएँ

  • दीर्घकालिक परियोजनाओं के लिए सीमित वित्तपोषण : भारत को विस्तारित समयसीमा वाली कई बड़े पैमाने की रक्षा परियोजनाओं के प्रबंधन में बजटीय बाधाओं का सामना करना पड़ता है। 
    • उदाहरण के लिए: परमाणु प्रणोदन प्रणालियों में लगने वाली उच्च लागतों के कारण INS Arighaat (अरिघात) जैसी परमाणु ऊर्जा चालित पनडुब्बियों के निर्माण में देरी हो रही है ।
  •  तकनीकी प्रगति में देरी : भारत को समुद्री युद्ध में तेजी से हो रही तकनीकी प्रगति के साथ तालमेल बिठाने में कठिनाई हो रही है, जिससे स्वदेशीकरण की गति प्रभावित हो रही है। 
    • उदाहरण के लिए: AIP-सक्षम पनडुब्बियों के लिए Project-75(I) में देरी हो रही है, क्योंकि इसमें तकनीकी मूल्यांकन और विदेशी भागीदारों से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के कारण चुनौतियां आती हैं।
  • कुशल कार्यबल का अभाव: उन्नत सैन्य प्रौद्योगिकियों के लिए आवश्यक कुशल इंजीनियरों और विशेषज्ञों की कमी के कारण स्वदेशी रक्षा विनिर्माण में बाधा आ रही है ।
  • विदेशी भागीदारों पर निर्भरता में वृद्धि : जबकि भारत स्वदेशी सामग्री को बढ़ाने का प्रयास कर रहा है, कुछ महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियां अभी भी विदेशी भागीदारों पर निर्भर हैं, जिससे पूर्ण आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में बाधा आती है। 
    • उदाहरण के लिए: Project-75 के तहत स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियों के लिये फ्रांस से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण करना पड़ता था, जो जटिल रक्षा प्रणालियों के लिए विदेशी विशेषज्ञता पर भारत की निर्भरता को दर्शाता है।
  • प्रशासनिक  देरी : लंबी खरीद प्रक्रिया और प्रशासनिक बाधाएं रक्षा आधुनिकीकरण परियोजनाओं की प्रगति को धीमा कर देती हैं। 
    • उदाहरण के लिए: सुरक्षा पर कैबिनेट समिति ने SSN निर्माण के लिए Project-77 को मंजूरी देने में वर्षों लगा दिए , जिससे परमाणु ऊर्जा से चलने वाली हमलावर पनडुब्बियों के अधिग्रहण में देरी हुई।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नौसैनिक शक्ति की प्रतिस्पर्धी माँगों में संतुलन बनाना

  • बजटीय बाधाओं को संबोधित करना: परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियों और मानव रहित जलमग्न वाहनों जैसी लंबी अवधि की परियोजनाओं के लिए संसाधनों का कुशल आवंटन और निरंतर वित्त पोषण महत्त्वपूर्ण है। 
    • उदाहरण के लिए: P-77 परियोजना को वर्ष 2036-37 तक भारत की पहली स्वदेशी SSN का निर्माण करने के लिए दीर्घकालिक वित्तीय प्रतिबद्धता की आवश्यकता है ।
  • प्रक्रियाओं को सरल बनाना: अधिग्रहण प्रक्रियाओं को सरल बनाने से देरी कम होती है और परिचालन तत्परता के लिए महत्त्वपूर्ण प्रणालियों का सही समय पर समावेशन सुनिश्चित होता है। 
    • उदाहरण के लिए: Project 75(I) के लिए तीव्र टेंडर मूल्यांकन से AIP-सक्षम पनडुब्बियों को शामिल करने में तेज़ी आएगी, जिससे बढ़ते खतरों का मुकाबला करने के लिए क्षमता उन्नयन सुनिश्चित होगा।
  • स्वदेशी सामग्री को बढ़ावा देना: स्थानीय विनिर्माण सामग्री को बढ़ाने से निर्माण लागत कम होती है और आत्मनिर्भरता बढ़ती है, जो आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्यों के साथ संरेखित होती है।
    • उदाहरण के लिए: छठी स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बी, INS वाघशीर में 60% से अधिक स्वदेशी सामग्री का उपयोग किया गया है , जिसमें SONAR और प्रणोदन जैसी महत्त्वपूर्ण उप प्रणालियाँ शामिल हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का विस्तार: वैश्विक भागीदारों के साथ सहयोग करने से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखते हुए उन्नत तकनीकों तक पहुँच मिलती है। 
    • उदाहरण के लिए: फ्रांस , जर्मनी और स्पेन के साथ समझौते के परिणामस्वरूप, Project 75 और 75 (I) के तहत पनडुब्बी निर्माण विशेषज्ञता के हस्तांतरण की सुविधा मिलती है।
  • आला दर्जे की प्रौद्योगिकियों में निवेश: मानवरहित जलमग्न वाहनों जैसी प्रौद्योगिकियों में केंद्रित अनुसंधान एवं विकास, विविध परिचालन चुनौतियों का समाधान करते हुए निवेश पर उच्च रिटर्न सुनिश्चित करता है। 
    • उदाहरण के लिए: ₹2,500 करोड़ के वित्तपोषण के साथ 100 टन के UUV का विकास, कम लागत वाली निगरानी और पनडुब्बी रोधी युद्ध क्षमताओं को मजबूत करता है।
  • परिचालन संतुलन बनाए रखना: परमाणु और पारंपरिक पनडुब्बी बलों को एकीकृत करने से  बहुमुखी उपयोग को बढ़ावा मिलता है, जिसमें प्रत्येक प्लेटफार्म विशिष्ट मिशन आवश्यकताओं को पूरा करेगा।
    • उदाहरण के लिए: INS Arighaat (अरिघात), INS वाघशीर जैसी परंपरागत पनडुब्बियों का पूरक है , जिससे एक संतुलित जलमग्न युद्ध बेड़े का निर्माण होता है।

एक विश्वसनीय नौसैनिक शक्ति के रूप में भारत की स्थिति बनाए रखने के उपाय

  • रणनीतिक साझेदारी पर ध्यान देना : भारत को अपनी नौसैनिक क्षमताओं को बढ़ाने के लिए विश्वसनीय अंतरराष्ट्रीय भागीदारों के साथ रणनीतिक सहयोग को प्राथमिकता देनी चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: Project-75 के तहत फ्रांस के साथ भारत के सहयोग से स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियों का सफल विकास और समावेश हुआ है।
  • रक्षा परियोजनाओं में स्वदेशी सामग्री बढ़ाना : भारत को विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता कम करने के लिए अनुसंधान और विकास में निवेश करके घरेलू उत्पादन को बढ़ाना चाहिए।
  • रक्षा खरीद प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना : भारत को खरीद में तेजी लाने और महत्त्वपूर्ण नौसैनिक प्लेटफार्मों को प्राप्त करने में देरी को कम करने के लिए प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सरल बनाना होगा।
  • उन्नत प्रौद्योगिकी और नवाचार में निवेश : भारत को समुद्री सुरक्षा चुनौतियों के लागत प्रभावी समाधान के लिए मानवरहित जल वाहन (UUVs) जैसी विशिष्ट प्रौद्योगिकियों में निवेश जारी रखना चाहिए ।
  • नौसेना प्रशिक्षण और मानव संसाधन विकास को बढ़ाना: भारत को उन्नत नौसेना प्रौद्योगिकियों में रक्षा विनिर्माण और परिचालन प्रबंधन के लिए कुशल कार्यबल के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

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भारत को चरणबद्ध दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, जिसमें प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और संयुक्त विकास के लिए रणनीतिक साझेदारी पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए, साथ ही साथ आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने के लिए स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना चाहिए। उच्च प्रभाव वाली परियोजनाओं को प्राथमिकता देकर और निजी क्षेत्र के नवाचार का लाभ उठाकर बजटीय बाधाओं को कम किया जा सकता है। इन प्रयासों को संतुलित करके, भारत अपनी नौसैनिक शक्ति को मजबूत कर सकता है और इंडो-पैसिफिक में एक प्रमुख स्थान बनाए रख सकता है।

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