प्रश्न की मुख्य माँग
- चर्चा कीजिए कि वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता सूचकांक रैंकिंग में भारत की स्थिति के संदर्भ में भारत का घरेलू बाजार, निर्यात-आधारित विकास के लिए किस प्रकार एक परिसंपत्ति है।
 
- चर्चा कीजिए कि वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता सूचकांक रैंकिंग में भारत के निम्न स्थान पर होने के संदर्भ में भारत का घरेलू बाजार पैमाना किस प्रकार निर्यात-आधारित विकास के लिए एक सीमा है।
 
- वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता सूचकांक में भारत की रैंकिंग सुधारने के उपाय सुझाइए।
 
 
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उत्तर
वर्ष 2024 के वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता सूचकांक में भारत 39वें स्थान पर है। जबकि भारत का विशाल घरेलू बाजार एक महत्त्वपूर्ण परिसंपत्ति है, यह निर्यात-आधारित विकास के लिए चुनौतियाँ भी प्रस्तुत करता है, जिससे इसकी वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता प्रभावित होती है।
एक परिसंपत्ति के रूप में घरेलू बाजार का पैमाना
- इकोनॉमी ऑफ स्केल: भारत का विशाल उपभोक्ता आधार बड़े पैमाने पर उत्पादन को सक्षम बनाता है, जिससे प्रति इकाई लागत कम हो जाती है। 
- उदाहरण: वस्त्र उद्योग जिसमें 35 मिलियन से अधिक लोग कार्यरत हैं, कुशलतापूर्वक संचालन बढ़ाने के लिए घरेलू माँग का लाभ उठाता है।
 
 
- इनोवेशन हब: एक बड़ा बाजार नवाचार और उत्पाद विविधीकरण को बढ़ावा देता है। 
- उदाहरण: 50 बिलियन डॉलर मूल्य का फार्मास्युटिकल क्षेत्र वैश्विक स्तर पर निर्यात करने से पहले घरेलू परीक्षणों से लाभ उठाता है।
 
 
- FDI को आकर्षित करना: एक विशाल बाजार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित करता है, जिससे निर्यात को बढ़ावा मिलता है।
- उदाहरण: Apple का भारत में विनिर्माण स्थानांतरण, जो 15% आईफोन का उत्पादन करता है, घरेलू माँग और निर्यात क्षमता से प्रेरित है।
 
 
- आपूर्ति शृंखला विकास: आंतरिक माँग, व्यापक आपूर्ति शृंखलाओं की सहायता करती है। 
- उदाहरण: ऑटोमोटिव उद्योग, जो सकल घरेलू उत्पाद में 7.1% का योगदान देता है, ने व्यापक आपूर्तिकर्ता नेटवर्क विकसित किया है, जिससे निर्यात में सहायता मिलती है।
 
 
- नीतिगत समर्थन: सरकार की पहल निर्यात को बढ़ावा देने के लिए घरेलू बाजारों का लाभ उठाती है। 
- उदाहरण: उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजना घरेलू बिक्री और निर्यात दोनों के लिए निर्माताओं को प्रोत्साहित करती है।
 
 
घरेलू बाजार का पैमाना एक सीमा के रूप में
- प्रतिस्पर्द्धात्मक जोखिम: अधिक आंतरिक माँग, निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता को कम कर सकती है। 
- उदाहरण: वैश्विक व्यापार अनिश्चितताओं के बीच 87% भारतीय कंपनियाँ घरेलू बाजार पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही हैं।
 
 
- संसाधन आवंटन: घरेलू आवश्यकताओं को प्राथमिकता देने से निर्यात क्षेत्रों के लिए संसाधन सीमित हो सकते हैं। 
- उदाहरण: बंदरगाहों में सीमित बुनियादी ढाँचे से निर्यात रसद प्रभावित होती है, क्योंकि संसाधनों का दोहन आंतरिक माँगों को पूरा करने के लिए होने लगता है।
 
 
- विनियामक बाधाएँ: जटिल विनियमन, निर्यातोन्मुख व्यवसायों को बाधित कर सकते हैं।
 
- बुनियादी ढाँचे की कमी: अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे के कारण निर्यात दक्षता में बाधा आती है। 
- उदाहरण: कुछ क्षेत्रों में खराब कनेक्टिविटी के कारण शिपमेंट में देरी होती है, जिससे निर्यात समयसीमा प्रभावित होती है।
 
 
- कौशल की कमी: घरेलू बाजारों पर ध्यान केंद्रित करने से निर्यात क्षेत्रों में कौशल की कमी हो सकती है। 
- उदाहरण: विशेष प्रशिक्षण की कमी निर्यात वस्तुओं की गुणवत्ता को प्रभावित करती है, जिससे वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा सीमित हो जाती है।
 
 
भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता सूचकांक रैंकिंग में सुधार के तरीके
- बुनियादी ढाँचे का विस्तार: निर्यात को बढ़ावा देने के लिए रसद और परिवहन में निवेश करना चाहिए।
- उदाहरण:  माल ढुलाई कॉरिडोर विकसित करने से पारगमन समय कम हो जाता है, जिससे निर्यात दक्षता बढ़ती है।
 
 
- विनियमनों को सरल बनाना: वैश्विक व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिए निर्यात प्रक्रियाओं को सरल बनाना चाहिए। 
- उदाहरण: सिंगल-विंडो मंजूरी लागू करने से निर्यात प्रक्रिया में तेजी आती है।
 
 
- कौशल विकास: निर्यातोन्मुखी उद्योगों के लिए कार्यबल को प्रशिक्षित करना। 
- उदाहरण: इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में व्यावसायिक कार्यक्रम, निर्यात के लिए उत्पाद की गुणवत्ता बढ़ाते हैं।
 
 
- नवाचार को बढ़ावा देना: वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी उत्पाद बनाने के लिए अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित करना चाहिए।
- उदाहरण: टेक स्टार्ट-अप को प्रोत्साहित करने से निर्यात क्षमता वाले अभिनव समाधान सामने आते हैं।
 
 
- व्यापार संबंधों को मजबूत करना: निर्यात बाजारों का विस्तार करने के लिए अंतरराष्ट्रीय साझेदारी बनानी चाहिए।
- उदाहरण: द्विपक्षीय व्यापार समझौते भारतीय निर्यातकों के लिए नए रास्ते खोलते हैं।
 
 
भारत का घरेलू बाजार एक दोधारी तलवार है – जहाँ एक तरफ यह आर्थिक विकास के लिए एक आधार प्रदान करता है, वहीं दूसरी तरफ यह निर्यात पर भी प्रभाव डाल सकता है। वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता सूचकांक पर अच्छी  रैंकिंग के लिए भारत को रणनीतिक निर्यात पहलों, बुनियादी ढाँचे को उन्नत करने, नियमों को सरल बनाने और नवाचार को बढ़ावा देने के साथ आंतरिक माँग को संतुलित करना होगा।
                     
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