प्रश्न की मुख्य माँग
- परीक्षण कीजिए कि भारत की शिक्षा प्रणाली केवल विद्यार्थियों के नामांकन पर ही केंद्रित है।
- समझाइए कि किस प्रकार भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था एक ऐसी शिक्षा प्रणाली की माँग करती है, जो न केवल छात्रों को नामांकित करे, बल्कि उन्हें कौशल से सुसज्जित भी करे।
|
उत्तर
भारत की शिक्षा प्रणाली ने ऐतिहासिक रूप से छात्र नामांकन को प्राथमिकता दी है, सर्व शिक्षा अभियान जैसी पहलों के माध्यम से लगभग सार्वभौमिक पहुँच प्राप्त की है। हालाँकि, नामांकन पर इस फोकस ने अक्सर कौशल विकास को नजरअंदाज कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप एक ऐसा कार्यबल बना, जिसमें तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक योग्यताओं का अभाव था। शिक्षा को रोजगार के अवसरों के साथ जोड़ने के लिए इस अंतर को कम करना आवश्यक है।
भारतीय शिक्षा प्रणाली में नामांकन पर बल देना
- पहुँच पर नीतिगत ध्यान: सर्व शिक्षा अभियान जैसे कार्यक्रमों ने सार्वभौमिक नामांकन पर बल दिया, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि 6-14 वर्ष की आयु के बच्चे स्कूल जाएँ।
- उदाहरण: वर्ष 2010 तक, SSA ने पूरे भारत में नामांकन दरों में उल्लेखनीय वृद्धि की।
- कौशल विकास की उपेक्षा: पाठ्यक्रम काफी हद तक सैद्धांतिक रहा, जिसमें व्यावहारिक कौशल पर न्यूनतम बल दिया गया।
- उदाहरण: इंडिया स्किल्स रिपोर्ट 2018 में बताया गया कि केवल 4.69% कार्यबल के पास औपचारिक कौशल प्रशिक्षण था।
- सीमित व्यावसायिक शिक्षा: व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को अक्सर दरकिनार कर दिया जाता था, क्योंकि मुख्यधारा की शिक्षा में उनका एकीकरण नहीं हो पाता था।
- रटने पर आधारित मूल्यांकन: परीक्षाओं में आलोचनात्मक सोच या समस्या-समाधान क्षमताओं की तुलना में याद करने को प्राथमिकता दी गई।
- अपर्याप्त शिक्षक प्रशिक्षण: शिक्षकों को कौशल-आधारित शिक्षा प्रदान करने के लिए पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित नहीं किया गया था, जिससे छात्रों को व्यावहारिक दक्षताओं तक सीमित पहुँच मिली।
- उदाहरण: वर्ष 2023-24 शैक्षणिक वर्ष के दौरान, लगभग 12 प्रतिशत प्राथमिक और उच्चतर माध्यमिक शिक्षकों के पास पेशेवर शिक्षण योग्यता का अभाव था।
- शहरी-ग्रामीण विभाजन: ग्रामीण क्षेत्रों को सीमित बुनियादी ढाँचे और संसाधनों के साथ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँचने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
- उदाहरण: UDISE 2023-24 के अनुसार, 2020 में केवल 32% ग्रामीण स्कूलों में कार्यात्मक कंप्यूटर तक पहुँच थी।
- ड्रॉपआउट दरें: उच्च नामांकन के बावजूद, ड्रॉपआउट दरें महत्त्वपूर्ण बनी रहीं, खासकर माध्यमिक स्तर पर।
- उदाहरण: वर्ष 2019 में माध्यमिक स्तर पर ड्रॉपआउट दर 17% थी ।
बढ़ती अर्थव्यवस्था में कौशल-उन्मुख शिक्षा की आवश्यकता
- आर्थिक परिवर्तन: ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था की ओर भारत के कदम के लिए प्रासंगिक कौशल से लैस कार्यबल की आवश्यकता है।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020: NEP 2020 में स्कूल स्तर से ही व्यावसायिक शिक्षा को मुख्यधारा के पाठ्यक्रम में शामिल करने पर बल दिया गया है।
- उदाहरण: इस नीति का लक्ष्य वर्ष 2025 तक 50% शिक्षार्थियों को व्यावसायिक शिक्षा से परिचित कराना है।
- कौशल भारत मिशन: युवाओं में रोजगार क्षमता बढ़ाने के लिए उद्योग-संबंधित कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने हेतु शुरू किया गया।
- उदाहरण: प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत 1.4 करोड़ से अधिक व्यक्तियों को प्रशिक्षित किया गया है ।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी: उद्योगों के साथ सहयोग यह सुनिश्चित करता है कि प्रशिक्षण कार्यक्रम, बाजार की माँग के अनुरूप हों।
- उदाहरण: टाटा स्ट्राइव ने 5,00,000 से अधिक युवाओं को प्रशिक्षित किया है , जिसमें 70% को नौकरी मिली है।
- डिजिटल लर्निंग प्लेटफॉर्म: SWAYAM जैसी पहल ऑनलाइन पाठ्यक्रम प्रदान करती है, जिससे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच बढ़ती है।
- उदाहरण: SWAYAM विभिन्न विषयों में 2,000 से अधिक पाठ्यक्रम प्रदान करता है ।
- प्रशिक्षुता कार्यक्रम: राष्ट्रीय प्रशिक्षुता प्रोत्साहन योजना जैसी योजनाएँ शिक्षा और रोजगार के बीच के अंतर को कम करती है।
- उभरती हुई प्रौद्योगिकियों पर ध्यान देना: AI, डेटा विज्ञान और साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में प्रशिक्षण छात्रों को भविष्य की नौकरी के लिए तैयार करता है।
- उदाहरण: PMKVY 4.0 में उद्योग 4.0 प्रौद्योगिकियों पर पाठ्यक्रम शामिल हैं।
जबकि भारत की शिक्षा प्रणाली ने सराहनीय नामांकन दर हासिल की है, अब छात्रों को उद्योग की माँगों के अनुरूप कौशल से लैस करने की सबसे बड़ी आवश्यकता है। व्यावसायिक प्रशिक्षण को एकीकृत करना, उद्योग भागीदारी को बढ़ावा देना और डिजिटल प्लेटफॉर्म को अपनाना एक सक्षम और भविष्य के लिए तैयार कार्यबल बनाने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम हैं।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Latest Comments