दृष्टिकोण:
परिचय: बदलती भू-राजनीतिक गतिशीलता के बीच भारत की सूक्ष्म तिब्बत नीति का संक्षेप में परिचय दीजिए।
मुख्य विषय-वस्तु:
➢ तिब्बत मुद्दे पर भारत के बदलते रुख पर चर्चा कीजिये।
➢ भारत की तिब्बत नीति में हाल के घटनाक्रमों और बदलती गतिशीलता का परीक्षण कीजिये।
➢ भारत की तिब्बत नीति के समक्ष आने वाली कमियों की पहचान कीजिये।
निष्कर्ष: भारत की तिब्बत नीति के जटिल प्रक्षेप पथ और उसके भावी कार्यवाही के तरीके का सारांश लिखिये । |
परिचय:
सदियों पुराने सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक आदान-प्रदान पर आधारित भारत-तिब्बत संबंध क्षेत्रीय गतिशीलता को आकार देने में महत्वपूर्ण रहे हैं। बौद्ध धर्म और व्यापार के माध्यम से ऐतिहासिक रूप से जुड़े इन संबंधों में विशेषकर 1950 के बाद तिब्बत पर चीन के दावे के बाद जटिलताएँ आई हैं।
हाल ही में, एक अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल ने दलाई लामा से मिलने के लिए धर्मशाला का दौरा किया, जिससे तिब्बती मुद्दे के लिए अमेरिका के निरंतर समर्थन को रेखांकित किया गया। यह यात्रा अमेरिकी कांग्रेस द्वारा ‘तिब्बत-चीन विवाद के समाधान को बढ़ावा देने वाले अधिनियम’ के पारित होने के साथ हुई। |
मुख्य विषय-वस्तु:
तिब्बत मुद्दे पर भारत का बदलता रुख:
- ऐतिहासिक संदर्भ:
- 1959 शरण-स्थल: भारत ने दलाई लामा और हजारों तिब्बती शरणार्थियों को शरण दी, जो चीन के साथ कूटनीतिक चुनौतियों के बीच मानवीय समर्थन का प्रतीक था।
- धर्मशाला : धर्मशाला निर्वासित तिब्बती सरकार का मुख्यालय बन गया, जो तिब्बती संस्कृति और राजनीतिक गतिविधियों के लिए एक केंद्र बन गया।
- 1962 के बाद बदलाव: 1962 में भारत –चीन युद्ध एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ, जब भारत ने चीन के साथ आगे के संघर्ष से बचने के लिए अधिक सतर्क दृष्टिकोण अपनाया।
- रणनीतिक हित:
- सीमा सुरक्षा: तिब्बत की भारत से भौगोलिक निकटता इसे सीमा स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण बनाती है , जो चीनी अतिक्रमणों के विरुद्ध एक बफर क्षेत्र के रूप में कार्य करती है।
- भू–राजनीतिक लाभ: तिब्बती मुद्दे के प्रति समर्थन भारत को चीन के साथ कूटनीतिक संबंधों में रणनीतिक संतुलन प्रदान करता है ।
- सैन्य विचार: तिब्बती निर्वासितों से युक्त विशेष फ्रंटियर फोर्स (एसएफएफ) भारत की रक्षा रणनीति में तिब्बती समुदाय के रणनीतिक महत्व को उजागर करता है ।
- मानवीय चिंताएँ:
- शरण और सहायता: भारत ने तिब्बती शरणार्थियों को कल्याणकारी सेवाओं, शिक्षा और पुनर्वास सहायता सहित व्यापक सहायता प्रदान की है।
- सांस्कृतिक संरक्षण: तिब्बती संस्कृति, धर्म और भाषा को संरक्षित करने के प्रयास किए गए हैं, जिससे निर्वासन में समुदाय की पहचान मजबूत हुई है।
- मानवाधिकार की वकालत: भारत कभी–कभी वैश्विक मानवाधिकार मानकों के अनुरूप तिब्बत में मानवाधिकारों के उल्लंघन के बारे में चिंता व्यक्त करता रहा है ।
- कूटनीतिक व्यावहारिकता
- एक–चीन नीति: 1954 से, भारत आधिकारिक तौर पर तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (TAR) को चीन के क्षेत्र के रूप में मान्यता देता है, तिब्बतियों के लिए अपने रणनीतिक और मानवीय समर्थन के साथ राजनयिक संबंधों को संतुलित करता है।
- द्विपक्षीय संबंध: भारत चीन के साथ आर्थिक और कूटनीतिक संबंधों को बढ़ावा देते हुए तिब्बतियों के लिए अपना समर्थन जारी रखता है , तथा संतुलित दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है ।
- गैर–हस्तक्षेप सिद्धांत: भारत चीन के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का सिद्धांत अपनाता है तथा प्रत्यक्ष टकराव को भड़काए बिना मानवीय सहायता प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करता है।
भारत की तिब्बत नीति के हालिया घटनाक्रम और बदलती गतिशीलता:
- एक–चीन नीति में बदलाव: 2010 से भारत ने अरुणाचल प्रदेश में स्थानों का नाम बदलने और जम्मू–कश्मीर के निवासियों को “नत्थी वीजा” जारी करने जैसी चीन की कार्रवाइयों के जवाब में ‘एक चीन’ नीति को स्पष्ट करने या आधिकारिक बयानों में तिब्बत का उल्लेख करने से परहेज किया है ।
- चीन–भारत तनाव: डोकलाम गतिरोध (2017) और गलवान घाटी संघर्ष (2020) जैसी सीमा पर बढ़ती झड़पों ने भारत की तिब्बत नीति के पुनर्मूल्यांकन पर बहस छेड़ दी है।
- दलाई लामा की स्थिति: चीन द्वारा दलाई लामा को “अलगाववादी” बताए जाने के बावजूद भारत उन्हें एक सम्मानित आध्यात्मिक नेता के रूप में मानता है ।
- वैश्विक भू–राजनीतिक बदलाव: अमेरिका –चीन प्रतिद्वंद्विता और क्वाड गठबंधन ने तिब्बती मुद्दे के संबंध में भारत के रणनीतिक विचारों को प्रभावित किया है।
- घरेलू दबाव: बढ़ती घरेलू भावना तिब्बत पर सख्त रुख की मांग कर रही है, जिससे भारत सरकार पर अपने दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करने का दबाव पड़ रहा है।
- तिब्बती नेतृत्व में परिवर्तन: दलाई लामा की बढ़ती उम्र के कारण तिब्बती आंदोलन के भविष्य के बारे में अनिश्चितताएं उत्पन्न हो रही हैं, जिसके कारण अनुकूल नीतियों की आवश्यकता है।
- निर्वासित तिब्बती सरकार: भारत आधिकारिक तौर पर निर्वासित तिब्बती सरकार को मान्यता नहीं देता है , तथा उन्हें केवल तिब्बती प्रवासियों के लिए संगठनात्मक तंत्र के रूप में देखता है ।
भारत की तिब्बत नीति की कमियां:
● तनावपूर्ण भारत–चीन संबंध:
- कूटनीतिक तनाव: तिब्बती समुदाय के प्रति भारत का समर्थन और दलाई लामा को दिए गये शरण, लंबे समय से चीन के साथ टकराव का कारण रहे हैं, जिससे कूटनीतिक संबंधों में तनाव पैदा हुआ है।
- जवाबी कार्रवाई: वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन की आक्रामक मुद्रा और सैन्य घुसपैठ को भारत की तिब्बत नीति के विरुद्ध जवाबी कार्रवाई के रूप में देखा जा सकता है।
- सैन्यीकरण: तिब्बती समुदाय के भीतर सैन्यीकरण की संभावना, चीन द्वारा तिब्बती मिलिशिया समूहों को खड़ा किए जाने से समुदाय के भीतर संघर्ष का खतरा पैदा हो सकता है।
● आर्थिक परिणाम
- व्यापार प्रभाव: चीन के साथ राजनयिक तनाव द्विपक्षीय व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है , जिससे भारत के आर्थिक हित और विकास की संभावनाएं प्रभावित हो सकती हैं ।
- निवेश में हिचकिचाहट: भू–राजनीतिक तनाव के कारण भारतीय बुनियादी ढांचे और उद्योगों में चीनी निवेश में बाधा आ सकती है ।
● कूटनीतिक अलगाव
- अंतर्राष्ट्रीय दबाव: तिब्बत के प्रति भारत के रुख के कारण कूटनीतिक अलगाव हो सकता है या चीन के साथ आर्थिक संबंधों को प्राथमिकता देने वाले देशों से समर्थन कम हो सकता है।
- संतुलन बनाना: स्वतंत्र तिब्बत नीति को बनाए रखते हुए जटिल अमेरिकी–चीन संबंधों को बनाए रखना कूटनीतिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है, जिससे प्रमुख वैश्विक शक्तियों के साथ संबंधों में तनाव पैदा हो सकता है।
● पर्यावरणीय संबंधी चिंताएँ
- पारिस्थितिक प्रभाव: तिब्बत में चीन की बुनियादी ढांचा परियोजनाएं भारत के लिए महत्वपूर्ण नदी के प्रवाह को बदल रही हैं, जिससे इसकी पर्यावरणीय और संसाधन प्रबंधन चुनौतियां और बदतर हो रही हैं।
● दलाई लामा के उत्तराधिकार पर अनिश्चितता
- नेतृत्व शून्यता: दलाई लामा के उत्तराधिकार पर अनिश्चितता भारत में तिब्बती शरणार्थी समुदाय को अस्थिर कर सकती है ।
- भू–राजनीतिक निहितार्थ: चीन उत्तराधिकार में हेरफेर करके बीजिंग समर्थक दलाई लामा को स्थापित कर सकता है , जिससे तिब्बती मुद्दे के प्रति भारत का समर्थन जटिल हो सकता है।
आगे की राह:
- चीन के साथ संवाद को मजबूत करना: सीमा मुद्दों को सुलझाने और तनाव को कम करने के लिए चीन के साथ संवाद के खुले मार्ग बनाए रखना, साथ ही तिब्बतियों के अधिकारों की वकालत करना जारी रखना।
- आर्थिक और सामाजिक समर्थन : तिब्बती शरणार्थियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने और भारतीय समाज में एकीकरण के लिए समर्थन बढ़ाना।
- उत्तराधिकार वार्ता : दलाई लामा के लिए एक सुचारू और वैध उत्तराधिकार प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए तिब्बती समुदाय और हितधारकों को शामिल करते हुए वार्ता की सुविधा प्रदान करना ।
- क्वाड और हिंद–प्रशांत रणनीति : इस क्षेत्र में चीन के प्रभाव को संतुलित करने के लिए क्वाड देशों और अन्य समान विचारधारा वाले देशों के साथ गठबंधन को मजबूत करना।
- मीडिया और वकालत: तिब्बती संस्कृति, मानवाधिकारों और तिब्बत मुद्दे के भू-राजनीतिक निहितार्थों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मीडिया और वकालत प्लेटफार्मों का उपयोग करना ।
निष्कर्ष:
भारत की तिब्बत नीति को भू–राजनीतिक गतिशीलता में बदलाव के लिए पुनः समायोजन की आवश्यकता है। भारत को तिब्बतियों को शरण देने और जटिल अमेरिकी–चीन संबंधों को संतुलित करना होगा, साथ ही रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने और राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा के लिए अपने क्षेत्रीय हितों पर दृढ़ता से जोर देना होगा ।
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