Q. 'डिहाइफनेशन' के सिद्धांत (Principle of Dehyphenation) ने इजरायल और फिलिस्तीन के साथ भारत के राजनयिक संबंधों को कैसे प्रभावित किया है? भारत की व्यापक पश्चिम एशिया नीति पर इसके प्रभाव की जाँच कीजिए। (10 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • बताएँ कि ‘डिहाइफनेशन’ के सिद्धांत ने इजराइल एवं फिलिस्तीन के साथ भारत के राजनयिक संबंधों को कैसे प्रभावित किया है।
  • भारत की व्यापक पश्चिम एशिया नीति पर इसके प्रभाव का परीक्षण कीजिए।

 

उत्तर:

इजराइल एवं फिलिस्तीन के प्रति भारत का दृष्टिकोण एक मजबूत फिलिस्तीनी समर्थक रुख से हटकर एक अधिक संतुलित नीति की ओर स्थानांतरित हो गया है जिसे ‘डिहाइफनेशन’ के रूप में जाना जाता है। यह दृष्टिकोण भारत को फिलिस्तीन के लिए अपना समर्थन बनाए रखते हुए इजराइल के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने की अनुमति देता है, जो राष्ट्रीय हितों पर उसके ध्यान तथा एक वैश्विक शक्ति के रूप में उसकी बढ़ती भूमिका को दर्शाता है।

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डिहाइफनेशन नीति का अवलोकन

  • डिहाइफनेशन: डिहाइफनेशन का सिद्धांत भारत को यह सुनिश्चित करते हुए कि एक के साथ रिश्ते में मजबूती दूसरे पर नकारात्मक प्रभाव नहीं डालती है, इजराइल एवं फिलिस्तीन के साथ अपने संबंधों को अलग-अलग प्रबंधित करने में सक्षम बनाता है।
    • उदाहरण के लिए: फिलिस्तीन की यात्रा के बिना, वर्ष 2017 में भारतीय प्रधानमंत्री की इजराइल की पहली द्विपक्षीय यात्रा ने इस रणनीतिक अलगाव को प्रदर्शित किया।
  • इजराइल के साथ संबंधों को सुदृढ़ करना: भारत ने इजराइल के साथ अपने संबंधों का विस्तार किया है, विशेष रूप से रक्षा, प्रौद्योगिकी एवं कृषि जैसे क्षेत्रों में, जो उल्लेखनीय आर्थिक तथा रणनीतिक लाभ प्रदान करते हैं।
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2021 में, भारत ने इजराइल के साथ 200 मिलियन डॉलर के रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए, जो दोनों देशों के मध्य बढ़ते सैन्य सहयोग को दर्शाता है।
  • फिलिस्तीन के लिए निरंतर समर्थन: इजराइल के साथ अपने बढ़ते संबंधों के बावजूद, भारत फिलिस्तीनी संप्रभुता का समर्थन करना जारी रखता है, एवं संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर टू-स्टेट समाधान की वकालत करता है।
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2020 में, भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में शांतिपूर्ण बातचीत एवं  टू-स्टेट समाधान का आह्वान करते हुए फिलिस्तीन के लिए अपना समर्थन दोहराया।
  • रणनीतिक स्वायत्तता: डिहाइफनेशन नीति रणनीतिक स्वायत्तता पर भारत के दृढ़ता को प्रदर्शित करती है, जो इसे वैचारिक संरेखण का पालन करने के बजाय राष्ट्रीय हितों के आधार पर स्वतंत्र विदेश नीति को आगे बढ़ाने की अनुमति देती है।
    • उदाहरण के लिए: भारत पूरे पश्चिम एशिया में अपनी राजनयिक एवं आर्थिक संबंधों को संतुलित करते हुए, इजराइल तथा अरब देशों के साथ मजबूत साझेदारी बनाए रखता है।
  • खाड़ी देशों के साथ आर्थिक कूटनीति: इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष को अपनी व्यापक पश्चिम एशिया नीति से अलग करके, भारत ने ऊर्जा सुरक्षा एवं निवेश आकर्षित करने पर ध्यान केंद्रित करते हुए खाड़ी देशों के साथ अपने संबंधों को मजबूत किया है।
    • उदाहरण के लिए: भारत अपना लगभग 80% तेल खाड़ी क्षेत्र से आयात करता है, जो सऊदी अरब एवं संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने के महत्त्व पर प्रकाश डालता है।
  • वैश्विक कूटनीति में अधिक व्यापक भूमिका: भारत की डिहाइफनेशन नीति ने इसे संघर्ष के किसी भी पक्ष को अलग किए बिना, वैश्विक कूटनीति में, विशेष रूप से पश्चिम एशिया में, अधिक सक्रिय भूमिका निभाने की अनुमति दी है।
    • उदाहरण के लिए, अब्राहम समझौते जैसे मुद्दों पर भारत के तटस्थ रुख ने इजराइल एवं अरब देशो दोनों के साथ संतुलित संबंध बनाए रखने में सहायता की है।
  • रक्षा और प्रौद्योगिकी सहयोग: इस नीति से इजराइल के साथ रक्षा एवं प्रौद्योगिकी साझेदारी बढ़ी है, जिससे भारत को अपनी सैन्य क्षमताओं में सुधार करने तथा अपने साइबर सुरक्षा बुनियादी ढाँचे को सुदृढ़ करने में मदद मिली है।
    • उदाहरण के लिए: भारत द्वारा इजरायली UAVs एवं मिसाइल प्रणालियों की खरीद यह दर्शाती है कि यह साझेदारी भारत के रक्षा क्षेत्र को आधुनिक बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

भारत की पश्चिम एशिया नीति पर प्रभाव

  • क्षेत्रीय हितों को संतुलित करना: डिहाइफनेशन भारत को इजराइल एवं अरब देशों के बीच अपने संबंधों को संतुलित करने की अनुमति देता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि यह पश्चिम एशिया के सभी देशों के लिए एक विश्वसनीय भागीदार बना रहे।
  • राजनयिक गतिविधियों में विविधता लाना: भारत ने इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष से परे अपनी राजनयिक गतिविधियों में विविधता लाई है एवं पश्चिम एशिया में प्रौद्योगिकी, आतंकवाद विरोधी तथा बुनियादी ढाँचा  सहयोग पर ध्यान केंद्रित किया है।
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2017 में संयुक्त अरब अमीरात के साथ भारत की व्यापक रणनीतिक साझेदारी ने व्यापार एवं सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में सहयोग को गहरा किया है।
  • आर्थिक संबंधों में वृद्धि: भारत के संतुलित दृष्टिकोण के परिणामस्वरूप इजराइल एवं खाड़ी देशों दोनों के साथ आर्थिक संबंध बढ़ रहे हैं, जिससे साझेदारी को बढ़ावा मिला है जो इसके आर्थिक विकास में योगदान देता है।
    • उदाहरण के लिए: इजराइल कृषि प्रौद्योगिकी में एक प्रमुख भागीदार है, जबकि संयुक्त अरब अमीरात एवं सऊदी अरब प्रेषण तथा व्यापार में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
  • ऊर्जा आयात में स्थिरता: भारत का तटस्थ रुख खाड़ी देशों से विश्वसनीय ऊर्जा आयात सुनिश्चित करता है, जो इसकी ऊर्जा सुरक्षा एवं आर्थिक स्थिरता के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • बढ़ी हुई वैश्विक भूमिका: तटस्थ विदेश नीति अपनाकर, भारत स्वयं को एक जिम्मेदार वैश्विक लीडर के रूप में स्थापित कर रहा है जो पश्चिम एशिया के संघर्षों में मध्यस्थता करने में सक्षम है।
    • उदाहरण के लिए: पश्चिम एशिया में संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशनों में भारत की भागीदारी क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देने की उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
  • इजराइल के साथ सुरक्षा सहयोग: डिहाइफनेशन नीति ने भारत एवं इजराइल के मध्य आतंकवाद विरोधी तथा साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में सुरक्षा सहयोग को मजबूत किया है।
  • बहुपक्षीय प्लेटफार्म पर भारत की भूमिका: डिहाइफनेशन ने भारत को संयुक्त राष्ट्र जैसे बहुपक्षीय मंचों पर संतुलित रुख बनाए रखने, फिलिस्तीनी अधिकारों का समर्थन करने एवं इजराइल के साथ संबंधों का विस्तार करने की अनुमति दी है।
    • उदाहरण के लिए: भारत संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीनी प्रस्तावों के पक्ष में अक्सर मतदान करता है एवं साथ ही इजराइल के साथ रक्षा सहयोग में भी संलग्न रहता है।

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डिहाइफनेशन के सिद्धांत ने भारत को फिलिस्तीन के लिए अपने ऐतिहासिक समर्थन या पश्चिम एशिया में इसके व्यापक संबंधों को कमजोर किए बिना इजराइल के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने में सक्षम बनाया है। यह रणनीति अपने राजनयिक संबंधों को प्रभावी ढंग से संतुलित करते हुए राष्ट्रीय हितों, आर्थिक विकास एवं क्षेत्रीय स्थिरता पर भारत के फोकस को प्रदर्शित करती है।

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