Q. भारत के विशाल शैक्षिक बुनियादी ढाँचे और NEP जैसी पहलों के बावजूद, STEM स्नातकों की गुणवत्ता चिंता का विषय बनी हुई है। उच्च शिक्षा में चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये और शिक्षण संस्थानों एवं प्रमुख शोध संस्थानों के बीच की अंतर को पाटने के लिए आवश्यक व्यापक सुधारों का सुझाव दीजिये। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • चर्चा कीजिए कि भारत के विशाल शैक्षिक बुनियादी ढाँचे और NEP जैसी पहलों के बावजूद, STEM स्नातकों की गुणवत्ता चिंता का विषय क्यों बनी हुई है।
  • भारत में उच्च शिक्षा में व्याप्त चुनौतियों का विश्लेषण कीजिए ।
  • शिक्षण संस्थानों और प्रमुख शोध संस्थानों के बीच के अंतर को कम करने के लिए आवश्यक व्यापक सुधारों का सुझाव दीजिए।

उत्तर

भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली में 4.33 करोड़ से अधिक नामांकनों (AISHE 2021-22) के साथ उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, फिर भी गुणवत्ता संबंधी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। बहु-विषयक शिक्षण और कौशल विकास के उद्देश्य से शुरू की गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 जैसी पहलों के बावजूद, STEM स्नातकों की गुणवत्ता के संबंध में चिंताएँ बनी हुई है। 28.4% के सकल नामांकन अनुपात (GER) के साथ, भारत पुराने पाठ्यक्रम, कौशल अंतराल और अपर्याप्त संकाय प्रशिक्षण से संबंधित मुद्दों का सामना कर रहा है। भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता और आधुनिक कार्यबल की माँगों को पूरा करने के लिए इन गुणवत्ता अंतरालों को कम करना आवश्यक है।

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STEM स्नातकों की गुणवत्ता में चिंता के कारण

  • पुराना पाठ्यक्रम: तकनीकी प्रगति के बावजूद, कई STEM कार्यक्रमों में अभी भी पुराने पाठ्यक्रम का पालन किया जाता है  जो वर्तमान समय के  उद्योग मानकों से अलग हैं। 
    • उदाहरण के लिए: इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम में अक्सर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डेटा साइंस जैसे आधुनिक क्षेत्रों की कमी होती है, जो उच्च माँग वाले क्षेत्रों में स्नातकों की रोजगार क्षमता को सीमित करता है।
  • व्यावहारिक ज्ञान में कौशल का अंतर: व्यावहारिक प्रशिक्षण की कमी के कारण सैद्धांतिक ज्ञान के बावजूद स्नातक युवा, उद्योग की चुनौतियों के लिए तैयार नहीं होते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: हालाँकि स्नातक नामांकन का 11.8%, इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में होता है, कई स्नातकों में कोडिंग और ऑटोमेशन क्षेत्रों से संबंधित कौशल की कमी है, जो वर्तमान समय के इंजीनियरिंग क्षेत्र  के लिए महत्वपूर्ण है।
  • सीमित फैकल्टी प्रशिक्षण: कई फैकल्टी सदस्यों का नियमित रूप से कौशल उन्नयन नहीं किया जाता है, जिससे अकादमिक शिक्षण और उद्योग की आवश्यकताओं के बीच एक अंतर उत्पन्न होता है। 
    • उदाहरण के लिए: उच्च शिक्षा के अखिल भारतीय सर्वेक्षण से पता चलता है कि शिक्षण पदों में उच्च रिक्तियाँ हैं, जो प्रदान की जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता और प्रासंगिकता को प्रभावित करती हैं।
  • अपर्याप्त शोध अवसर: सीमित शोध अवसर छात्रों की आलोचनात्मक सोच और नवाचार में संलग्न होने की क्षमता को सीमित करते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: केवल 5% स्नातक कर रहे छात्र IITs और IISc जैसे प्रमुख शोध-केंद्रित संस्थानों में जाते हैं जहाँ अनुसंधान की संभावना अधिक है।
  • संसाधनों तक असमान पहुँच: भारत के सभी विश्वविद्यालयों में से 58.6%% विश्वविद्यालय, परंतु वे 73.7% छात्रों को ही शिक्षा प्रदान करते हैं जो बुनियादी ढाँचे और संसाधन उपलब्धता में असमानता को दर्शाता है। 
    • उदाहरण के लिए: संस्थान अक्सर STEM शिक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण उन्नत प्रयोगशालाओं या सिमुलेशन सॉफ्टवेयर का खर्च नहीं उठा सकते हैं, जिससे तकनीकी भूमिकाओं के लिए छात्रों की तत्परता प्रभावित होती है।
  • कमज़ोर औद्योगिक सहयोग: विश्वविद्यालयों और उद्योगों के बीच सीमित साझेदारी, छात्रों के लिए वास्तविक दुनिया की जानकारी को सीमित करती है। 
    • उदाहरण के लिए: इंडिया स्किल्स रिपोर्ट 2024 के अनुसार, डेटा साइंटिस्ट और ML इंजीनियर जैसी भूमिकाओं के लिए 60-73% माँग-आपूर्ति का अंतर है, जो अकादमिक प्रशिक्षण और उद्योग की आवश्यकताओं के बीच के अंतर को उजागर करता है।

भारत में उच्च शिक्षा के लिए चुनौतियाँ

  • असमान पहुँच और निम्न GER: 28.4% की GER के साथ ,भारत में उच्च शिक्षा तक पहुँच सीमित है, विशेष रूप से ग्रामीण और हाशिए के समुदायों के बीच, जो वैश्विक औसत 36.7% से भी कम है
  • राजनीतिकरण और स्वायत्तता का अभाव: राजनीतिक हस्तक्षेप अक्सर प्रशासनिक स्वायत्तता को प्रभावित करता है, जिसमें संकाय भर्ती और पाठ्यक्रम डिजाइन भी शामिल है।
  • वित्त पोषण की कमी: कम बजट से शोध की गुणवत्ता और बुनियादी ढाँचे के उन्नयन पर असर पड़ता है। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2024-25 के अंतरिम बजट में UGC के आवंटन में 61% की कटौती की गई, जिससे उच्च शिक्षा पहलों के लिए दी जाने वाली सहायता सीमित हो गई।
  • संकाय की कमी और प्रतिभा पलायन: केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 30% से अधिक संकाय पद रिक्त हैं, और बेहतर वैश्विक अवसरों के कारण प्रतिभायें अक्सर पलायन कर जाती है। 
    • उदाहरण के लिए: कई शीर्ष स्नातक, भारत में सीमित शोध निधि और कम वेतन के कारण विदेश या निजी क्षेत्रों में भूमिकाएँ पसंद करते हैं।
  • अपर्याप्त उद्योग-अकादमिक सहयोग: प्रभावी सहयोग की कमी से स्नातकों के बीच कौशल अंतर उत्पन्न होता है। 
    • उदाहरण के लिए: कंपनियाँ, प्रत्येक वर्ष बड़ी संख्या में इंजीनियरिंग नामांकन के बावजूद उभरते क्षेत्रों के लिए कुशल स्नातकों को खोजने में कठिनाई का‌ सामना करती हैं ।
  • असमान क्षेत्रीय विकास: दिल्ली और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में सर्वाधिक प्रतिष्ठित संस्थान हैं, जबकि पूर्वोत्तर राज्य गुणवत्ता और पहुँच के मामले में पिछड़े हुए हैं। 
    • उदाहरण के लिए: मध्य क्षेत्रों में कुछ शोध-केंद्रित संस्थान स्थानीय छात्रों की गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा तक पहुँच को सीमित करते हैं।
  • रटने पर ध्यान केंद्रित करना: रटने पर जोर देने से रचनात्मक समस्या-समाधान और आलोचनात्मक सोच में बाधा आती है। 
    • उदाहरण के लिए: NEP 2020 में रटने की पद्धति से हटने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है, फिर भी व्यावहारिक पाठ्यक्रम सीमित हैं।

शिक्षण और अनुसंधान संस्थानों के बीच संबंध सुधारने के लिए व्यापक सुधार की आवश्यकता

  • उन्नत उद्योग सहयोग: व्यावहारिक कौशल अंतराल को कम करने के लिए उद्योगों के साथ इंटर्नशिप और संयुक्त प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय ऋण ढाँचा कौशल-आधारित प्रशिक्षण की सुविधा प्रदान करता है, जो उद्योग-संबंधित कौशल को अकादमिक कार्यक्रमों के साथ एकीकृत करता है।
  • शोध-उन्मुख पाठ्यक्रम: विश्लेषणात्मक कौशल को बढ़ावा देने के लिए शोध विधियों और परियोजना-आधारित शिक्षा को शामिल करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: INSPIRE कार्यक्रम छात्रों को बुनियादी विज्ञान और अनुसंधान के लिए प्रेरित करता है, जिससे उनकी प्रॉब्लम -सॉल्विंग क्षमताओं में सुधार होता है।
  • संकाय विकास पहल: आधुनिक टूल्स और शिक्षण पद्धतियों से संकाय का नियमित प्रशिक्षण अति महत्वपूर्ण है। 
    • उदाहरण के लिए: AICTE द्वारा चलाए जाने वाले कार्यक्रम संकाय को उन्नत प्रौद्योगिकी विषयों को प्रभावी ढंग से पढ़ाने के लिए आवश्यक अद्यतन कौशल प्रदान करते हैं।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी: सहयोगात्मक बुनियादी ढाँचे का विकास संसाधनों की कमी को पूरा कर सकता है, विशेष रूप से ग्रामीण संस्थानों में। 
    • उदाहरण के लिए: निगमों के साथ भागीदारी से कम वित्तपोषित विश्वविद्यालयों के लिए प्रयोगशालाओं और डिजिटल पुस्तकालयों जैसे संसाधनों को बढ़ाया जा सकता है।
  • एकीकृत कौशल-निर्माण पाठ्यक्रम: तकनीकी प्रशिक्षण के साथ-साथ सॉफ्ट स्किल कोर्स  करने चाहिए ताकि अच्छे स्नातक तैयार किए जा सकें। 
    • उदाहरण के लिए: NEP 2020, छात्रों को वास्तविक दुनिया की चुनौतियों के लिए समग्र रूप से तैयार करने के लिए जीवन कौशल शिक्षा को अनिवार्य बनाता है।
  • संयुक्त डिग्री कार्यक्रम: शिक्षण और अनुसंधान संस्थानों के बीच सहयोग से शिक्षण और अनुसंधान दोनों की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है।

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भारत के उच्च शिक्षा क्षेत्र को, अपने विशाल बुनियादी ढाँचे और आशाजनक पहलों के साथ, व्यापक सुधारों को लागू करना चाहिए जो अनुसंधान एकीकरण के साथ शिक्षण गुणवत्ता को संतुलित करते हों संकाय प्रशिक्षण को बढ़ाकर, उद्योग सहयोग को बढ़ावा देकर और क्षेत्रीय असमानताओं को कम करके, भारत वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए सुसज्जित एक कुशल कार्यबल का निर्माण कर सकता है। यह परिवर्तन न केवल राष्ट्रीय प्रगति के लिए बल्कि वैश्विक ज्ञान केंद्र बनने के भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भी महत्वपूर्ण है।

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