Q. भारत के जेनेरिक फार्मास्युटिकल परिदृश्य में सामर्थ्य एवं गुणवत्ता के बीच परस्पर क्रिया की आलोचनात्मक जाँच कीजिये। विकेंद्रीकृत दवा विनियमन, विनिर्माण मानकों में भिन्नता और गैर-समान प्रवर्तन तंत्र द्वारा उत्पन्न चुनौतियों पर प्रकाश डालिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत के जेनेरिक फार्मास्युटिकल परिदृश्य में वहनीयता का परीक्षण कीजिए।
  • भारत के जेनेरिक फार्मास्युटिकल परिदृश्य में गुणवत्ता के साथ वहनीयता को संतुलित करने में मौजूद कमियों का परीक्षण कीजिए। 
  • विकेंद्रीकृत औषधि विनियमन, विनिर्माण मानकों में भिन्नता और गैर-समान प्रवर्तन तंत्र द्वारा उत्पन्न चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
  • आगे की राह लिखिये।

उत्तर

भारत का जेनेरिक फार्मास्युटिकल क्षेत्र, जो दुनिया के 60% से अधिक टीकों और सभी जेनेरिक दवाओं का 20% आपूर्ति करता है, वैश्विक स्वास्थ्य सेवा वहनीयता में केंद्रीय भूमिका निभाता है। हालाँकि, वहनीयता और गुणवत्ता के बीच के अंतर के संबंध में गंभीर चुनौतियाँ देखने को मिलती हैं। विकेंद्रीकृत दवा विनियमन, विनिर्माण मानकों में भिन्नता और असंगत प्रवर्तन तंत्र दवा की गुणवत्ता में विसंगतियों को जन्म देते हैं। देश में लगभग 1.5% दवाएँ गुणवत्ता परीक्षण में विफल हो जाती हैं। यह रोगी सुरक्षा को प्रभावित करता है और स्वास्थ्य सेवा परिणामों पर प्रभाव डालता है।

Enroll now for UPSC Online Course

भारत के जेनेरिक  फार्मास्युटिकल परिदृश्य में वहनीयता 

  • ‘इकोनॉमी ऑफ स्केल’ के माध्यम से लागत-प्रभावशीलता: भारत अपने विशाल विनिर्माण आधार और कम उत्पादन लागत का लाभ उठाकर सस्ती जेनेरिक दवाइयाँ बनाता है, जिससे स्वास्थ्य सेवा व्यय कम होता है। 
    • उदाहरण के लिए: प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना के तहत बेची जाने वाली जेनेरिक दवाओं में पिछले दशक में उपभोक्ताओं के 30,000 करोड़ रुपये की बचत की।
  • आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय में कमी: किफायती जेनेरिक दवाएँ आउट-ऑफ-पॉकेट स्वास्थ्य सेवा लागत को कम करने में योगदान करती हैं, जो भारत में स्वास्थ्य व्यय का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2021-22 में, आउट-ऑफ-पॉकेट स्वास्थ्य सेवा व्यय कुल स्वास्थ्य व्यय का 39.4% था, जहाँ जेनेरिक दवाओं ने लागत प्रभावी समाधान प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • उपचार अनुपालन में वृद्धि: कम लागत वाली जेनेरिक दवाओं की उपलब्धता से रोगी अपनी उपचार प्रक्रियाओं का नियमित रूप से पालन करते हैं जिससे निरंतर देखभाल और बेहतर स्वास्थ्य परिणाम सुनिश्चित होते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: सस्ती एंटीडायबिटिक जेनेरिक दवाएँ कम आय वाली आबादी में पुरानी बीमारियों के लिए आवश्यक उपचार तक व्यापक पहुँच को सक्षम बनाती हैं।
  • वैश्विक स्तर पर सस्ती दवाओं का निर्यात: भारत का जेनेरिक फार्मास्युटिकल उद्योग विकासशील देशों को किफायती दवाइयाँ उपलब्ध कराता है, जिससे वैश्विक स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच बढ़ती है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत को अक्सर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किफायती जेनेरिक दवाओं की आपूर्ति करने में अपनी भूमिका हेतु ‘विश्व की फार्मेसी’ के रूप में जाना जाता है , विशेषकर COVID-19 महामारी के दौरान।
  • ब्रांडेड दवाओं के लिए जैव-समतुल्यता: जेनेरिक दवाओं को उनके ब्रांडेड समकक्षों के लिए जैव-समतुल्य होने हेतु डिजाइन किया गया है, जो कम कीमत में समान चिकित्सीय प्रभाव प्रदान करते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: जेनेरिक एंटीबायोटिक्स और एंटीहाइपरटेंसिव ड्रग्स ब्रांडेड दवाओं के समान प्रभावकारिता प्रदान करते हैं, जिससे आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए उपचार सुलभ हो जाता है।

गुणवत्ता के साथ वहनीयता को संतुलित करने में सीमाएँ

  • गुणवत्ता नियंत्रण में खामियाँ: असंगत गुणवत्ता मानक और विनियामक निरीक्षण जेनेरिक दवाओं की प्रभावशीलता और सुरक्षा को कमजोर करते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: PGIMER द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि जेनेरिक इट्राकोनाजोल ने दो सप्ताह के भीतर केवल 29% रोगियों में चिकित्सीय दवा का स्तर प्राप्त किया , जबकि नवप्रवर्तक दवा के लिए यह स्तर 73% था।
  • दवा सामग्री और निर्माण प्रक्रियाओं में भिन्नता: दवा सामग्री और उत्पादन विधियों में अंतर दवा की स्थिरता, अवशोषण और जैव उपलब्धता को प्रभावित कर सकता है, जिससे चिकित्सीय परिणाम प्रभावित हो सकते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: असमान पैलेट आकार वाले जेनेरिक कैप्सूल में ड्रग रिलीज में देरी से संबंधित समस्या का सामना करना पड़ा, जिसके लिए खुराक बढ़ाने की आवश्यकता पड़ी।
  • विकेंद्रीकरण के कारण विनियामक मध्यस्थता: राज्य औषधि विनियामक प्राधिकरणों (SDRA) द्वारा खंडित औषधि विनियमन निर्माताओं को कमजोर निगरानी का लाभ उठाने की अनुमति देता है, जिससे असंगत गुणवत्ता होती है। 
    • उदाहरण के लिए: केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) के पास सीमित शक्ति है, जो गुणवत्ता मानकों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए राज्यों पर निर्भर है।
  • स्थिरता परीक्षण का अपर्याप्त प्रवर्तन: वर्ष 2018 में CDSCO द्वारा अनिवार्य स्थिरता परीक्षण असंगत रूप से लागू किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप खराब शेल्फ लाइफ और प्रभावकारिता वाली जेनेरिक दवाएँ बनती हैं। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2018 से पहले स्वीकृत दवाओं के निर्माण में अक्सर इन आवश्यकताओं को दरकिनार कर दिया जाता है, जिससे कम गुणवत्तापूर्ण दवाओं की उपलब्धता बनी रहती है।
  • भारतीय फार्माकोपिया में अशुद्धता के ढीले मानक: अमेरिका और यूरोपीय संघ के मानकों की तुलना में उच्च स्वीकार्य अशुद्धता स्तर ,भारत में जेनेरिक दवाओं की सुरक्षा संबंधी कर्मियों को दर्शाता है। 
    • उदाहरण के लिए: CDSCO और फार्माकोपिया आयोग द्वारा लागत के आधार पर सख्त ICH दिशानिर्देशों को अस्वीकार करना इस अंतर को उजागर करता है।
  • कम चिकित्सीय सूचकांक वाली दवाओं के लिए जैव-समतुल्यता सीमा: कम चिकित्सीय सूचकांक वाली दवाओं के लिए 80%-125% की स्वीकार्य जैव-समतुल्यता सीमा अपर्याप्त है, जिसके परिणामस्वरूप उप-चिकित्सीय प्रभाव या प्रतिकूल प्रतिक्रियाएँ होती हैं। 
    • उदाहरण के लिए: इस अपर्याप्त सीमा के कारण जेनेरिक संस्करणों में एंटीकोएगुलंट्स जैसी जीवन रक्षक दवाओं के ड्रग लेवेल में उतार-चढ़ाव देखा गया है।
  • दवा विनियमन में केंद्रीकरण का अभाव: भारत की विकेंद्रीकृत दवा विनियमन प्रणाली एकरूपी गुणवत्ता मानकों की स्थापना में बाधा डालती है। 
    • उदाहरण के लिए: भाटिया (1954), हाथी (1975), और माशेलकर (2003) समितियों के अनुसार केंद्रीकृत निगरानी के लिए गठित समितियों का अभी तक पूर्ण कार्यान्वयन नहीं हुआ है, जिससे नियामक असमानताएँ बनी हुई हैं।

विकेंद्रीकृत औषधि विनियमन से उत्पन्न चुनौतियाँ

  • राज्यों में असंगत गुणवत्ता मानक: भारत की विकेंद्रीकृत औषधि विनियमन प्रणाली, राज्य औषधि विनियामक प्राधिकरणों (SDRA) को अपने स्वयं के मानक निर्धारित करने की अनुमति देती है, जिससे औषधि की गुणवत्ता में विसंगतियाँ उत्पन्न होती हैं। 
    • उदाहरण के लिए: कुछ राज्यों में कमजोर निगरानी के कारण विनिर्माताओं को नियामक खामियों का लाभ उठाने का मौका मिल जाता है, जिसके परिणामस्वरूप कम गुणवत्तापूर्ण वाली जेनेरिक दवाओं का प्रचलन बढ़ जाता है।
  • केंद्रीय विनियामक निकाय के सीमित अधिकार: केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) के पास प्रवर्तन शक्ति का अभाव है, जिससे देश भर में एकरूपी गुणवत्ता सुनिश्चित करने की इसकी क्षमता कम हो जाती है। 
    • उदाहरण के लिए: CDSCO केवल निर्माताओं के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश कर सकता है, जिससे  प्रवर्तन का कार्य राज्य अधिकारियों पर छोड़ दिया जाता है, जिनके पास संसाधनों या इच्छाशक्ति की कमी हो सकती है।
  • विनियामक मध्यस्थता: सख्त अनुपालन से बचने के लिए निर्माता अपने परिचालन को कम सख्त विनियमन वाले राज्यों में स्थानांतरित कर सकते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: कई दवा कंपनियाँ, अप्रभावी निरीक्षण प्रणालियों वाले राज्यों में परिचालन स्थानांतरित कर लेती  हैं, जिससे गुणवत्ता आश्वासन प्रक्रिया कमजोर होती है।
  • राज्यों और केंद्र के बीच समन्वय की कमी: खंडित प्राधिकरण, प्रयासों के दोहराव और गुणवत्ता संबंधी चिंताओं को दूर करने में देरी का कारण बनता है। 
    • उदाहरण के लिए: खराब समन्वय के कारण कम गुणवत्ता वाली इंट्राकोनाजोल जेनेरिक्स के प्रति कार्यवाई करने में हुई देरी ने विकेंद्रीकृत विनियमन की अक्षमताओं को उजागर किया।

Check Out UPSC CSE Books From PW Store

विनिर्माण मानकों में भिन्नता से उत्पन्न चुनौतियाँ

  • दवा सामग्री में अंतर: बाइंडर, फिलर्स और कोटिंग्स में भिन्नता, दवा के अवशोषण और उपचारात्मक परिणामों को प्रभावित करती है। 
    • उदाहरण के लिए: PGIMER अध्ययन से पता चला है कि इट्राकोनाजोल के जेनेरिक में कम और असमान आकार के पैलेट थे, जिससे इसकी जैव उपलब्धता पर प्रभाव पड़ा।
  • असंगत विनिर्माण प्रक्रियाएँ: उपकरण और विधियों जैसे कि ग्रैनुलेशन व कम्प्रेशन में भिन्नता के कारण दवा के गुणों में अंतर आ  जाता है। 
    • उदाहरण के लिए: जेनेरिक दवाएँ सक्रिय दवा सामग्री (API) को अधिक तेजी से रिलीज करती हैं जिससे ड्रग लेवेल में उतार-चढ़ाव होता है और इसके परिणामस्वरूप दवा की प्रभावकारिता पर असर पड़ता है।
  • कम गुणवत्तापूर्ण टैबलेट डिजाइन: भौतिक दोष, जैसे कि अनियमित टैबलेट कठोरता और छिद्रण, दवा के विघटन और अवशोषण को बाधित करते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: जेनेरिक इट्राकोनाजोल कैप्सूल में मौजूद दोष के कारण इनोवेटर दवाओं की तुलना में इस कैप्सूल के  ड्रग लेवेल पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
  • उत्पादन में उन्नत प्रौद्योगिकी का अभाव: कई निर्माताओं के पास निरंतर विनिर्माण के लिए अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों तक पहुँच की कमी है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत में लघु-स्तरीय इकाइयाँ अक्सर पुराने उपकरणों का उपयोग करती हैं , जिससे इनोवेटर की तरह निरंतर-रिलीज तंत्र को सुनिश्चित करना‌ मुश्किल हो जाता है।

असमान प्रवर्तन तंत्र द्वारा उत्पन्न चुनौतियाँ

  • अपर्याप्त स्थिरता परीक्षण: स्थिरता प्रोटोकॉल के सीमित प्रवर्तन से कम गुणवत्तापूर्ण दवाएँ बनती हैं, विशेषकर  विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2018 में CDSCO द्वारा स्थिरता परीक्षण अनिवार्यताओं का खराब तरीके से क्रियान्वयन किया गया और इसके अंतर्गत 2018 से पहले की जेनेरिक दवाएँ जाँच से  बच गई।
  • उच्च अनुमेय अशुद्धता स्तर: भारतीय फार्माकोपिया, अंतरराष्ट्रीय मानकों की तुलना में उच्च अशुद्धता सीमा की अनुमति देता है, जिससे दवा सुरक्षा को खतरा होता है। 
    • उदाहरण के लिए: लागत संबंधी चिंताओं के कारण सख्त ICH दिशानिर्देशों को अस्वीकार करने से बाजार में अशुद्ध दवाओं की उपस्थिति बनी रहती है।
  • आवधिक पुनर्मूल्यांकन का अभाव: अतीत में स्वीकृत जेनेरिक दवाओं का वर्तमान मानकों के तहत गुणवत्ता अनुपालन के लिए शायद ही कभी पुनर्मूल्यांकन किया जाता है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत में कई लंबे समय से चली आ रही जेनेरिक दवाएँ जैव-समतुल्यता और स्थिरता के लिए निर्धारित अद्यतन नियामक मानदंडों को पूरा नहीं करती हैं।
  • परीक्षण सुविधाओं की कमी: केंद्रीय औषधि परीक्षण प्रयोगशालाओं की कमी होने के परिणाम स्वरूप गुणवत्ता संबंधी प्रभावी निगरानी में बाधा आती है।  
    • उदाहरण के लिए: अत्यधिक कार्य के बोझ से दबी राज्य प्रयोगशालाएँ समय पर निरीक्षण करने में विफल रहती हैं, जिससे कम गुणवत्तापूर्ण दवाएँ आपूर्ति श्रृंखला में बनी रहती हैं।

भारत के जेनेरिक फार्मास्युटिकल परिदृश्य में चुनौतियों से निपटने के लिए आगे की राह

  • दवा विनियमन को केंद्रीकृत करना: भारत में गुणवत्ता मानकों के एकरूपी प्रवर्तन को सुनिश्चित करने के लिए USFDA की तरह एक केंद्रीकृत विनियामक निकाय की स्थापना की जानी चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: EMA के केंद्रीकृत ढाँचे ने पूरे यूरोप में एक समान दवा मानकों को बनाए रखा है, जिससे एकरूपता सुनिश्चित होती है।
  • स्थिरता परीक्षण: सभी जेनेरिक दवाओं के लिए एक समान स्थिरता परीक्षण प्रोटोकॉल अनिवार्य करना चाहिए ताकि विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में प्रभावकारिता सुनिश्चित की जा सके। 
    • उदाहरण के लिए: उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के लिए WHO के दिशा-निर्देश, भारत के विविध जलवायु क्षेत्रों के लिए एक मॉडल के रूप में कार्य कर सकते हैं।
  • विनिर्माण मानक: स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए दवा सामग्री एवं फॉर्मूलेशन हेतु सख्त विनिर्माण मानकों को लागू करना चाहिए।
  • प्रवर्तन तंत्र: राज्य औषधि विनियामक प्राधिकरणों (SDRA) को मानकीकृत प्रशिक्षण और स्पष्ट प्रवर्तन दिशा-निर्देश प्रदान किए जाने चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: उत्तर प्रदेश में विनियामक निरीक्षण में असमानताएँ, राज्यों में दवा की गुणवत्ता की स्थिरता को प्रभावित करती हैं।
  • जन विश्वास: जेनेरिक दवाओं की सुरक्षा और प्रभावकारिता में जनता का विश्वास बनाने के लिए राष्ट्रव्यापी जागरूकता अभियान शुरू करना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: PMBJP ने व्यापक आबादी को सस्ती दवाइयाँ उपलब्ध कराकर जेनेरिक दवाओं में विश्वास बढ़ाया है।
  • प्रौद्योगिकी एकीकरण: दवा निर्माण और वितरण में पारदर्शिता और  ट्रेसेबिलिटी सुनिश्चित करने के लिए ब्लॉकचेन जैसे डिजिटल उपकरणों का लाभ उठाना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: ड्रग ऑथेंटिकेशन एंड वेरिफिकेशन एप्लीकेशन (DAVA) भारत में नकली दवाओं को कम करने में प्रभावी रहा है।

Enroll now for UPSC Online Classes

भारत के जेनेरिक दवा क्षेत्र में सामर्थ्य और गुणवत्ता के बीच संतुलन हासिल करने के लिए विनियामक विखंडन को संबोधित करने और विनिर्माण मानकों को बढ़ाने की आवश्यकता है। एक एकीकृत विनियामक ढाँचा, सुसंगत प्रवर्तन और गुणवत्ता आश्वासन में निवेश, इस अंतर को कम करने में मदद कर सकता है। एक सहयोगी दृष्टिकोण यह सुनिश्चित कर सकता है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए सामर्थ्य और गुणवत्ता दोनों को प्राथमिकता दी जाए।

To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

Need help preparing for UPSC or State PSCs?

Connect with our experts to get free counselling & start preparing

Know about Physics Wallah

Physics Wallah is an Indian online education platform, that provides accessible & comprehensive learning experiences to students of classes 6 to 12 and those preparing for JEE and NEET exams. We also provide extensive NCERT solutions, sample papers, NEET, JEE Mains, BITSAT previous year papers, which makes us a one-stop solution for all resources. Physics Wallah also caters to over 3.5 million registered students and over 78 lakh+ Youtube subscribers with 4.8 rating on its app.

We Stand Out because

We successfully provide students with intensive courses by India's qualified & experienced faculties. PW strives to make the learning experience comprehensive and accessible for students of all sections of society. We believe in empowering every single student who couldn't dream of a good career in engineering and medical field earlier.

Our Key Focus Areas

Physics Wallah’s main focus is to create accessible learning experiences for students all over India. With courses like Lakshya, Udaan, Arjuna & many others, we have been able to provide a ready solution for lakhs of aspirants. From providing Chemistry, Maths, Physics formulae to giving e-books of eminent authors, PW aims to provide reliable solutions for student prep.

What Makes Us Different

Physics Wallah strives to develop a comprehensive pedagogical structure for students, where they get a state-of-the-art learning experience with study material and resources. Apart from catering students preparing for JEE Mains and NEET, PW also provides study material for each state board like Uttar Pradesh, Bihar, and others.

Aiming for UPSC?

Download Our App

      
Quick Revise Now !
AVAILABLE FOR DOWNLOAD SOON
UDAAN PRELIMS WALLAH
Comprehensive coverage with a concise format
Integration of PYQ within the booklet
Designed as per recent trends of Prelims questions
हिंदी में भी उपलब्ध
Quick Revise Now !
UDAAN PRELIMS WALLAH
Comprehensive coverage with a concise format
Integration of PYQ within the booklet
Designed as per recent trends of Prelims questions
हिंदी में भी उपलब्ध

<div class="new-fform">






    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.