Q. भारत के संघीय ढाँचे के सामने कौन सी प्रमुख चुनौतियाँ हैं? संघ-राज्य विवादों को हल करने के लिए मौजूदा संस्थागत तंत्र की प्रभावशीलता का विश्लेषण कीजिये और सहकारी संघवाद को मजबूत करने के लिए सुधार सुझाएँ। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग 

  • भारत के संघीय ढाँचे के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों पर प्रकाश डालिए।
  • संघ-राज्य विवादों को हल करने के लिए मौजूदा संस्थागत तंत्र की प्रभावशीलता का विश्लेषण कीजिये।
  • सहकारी संघवाद को मजबूत करने के लिए सुधारों का सुझाव दीजिये।

उत्तर

भारत की संघीय संरचना एक अद्वितीय शासन मॉडल का प्रतिनिधित्व करती है, जिसे राजनीतिक विचारक के. सी. व्हेयर ने ‘अर्द्ध-संघीय’ के रूप में वर्णित किया है। सातवीं अनुसूची के अनुसार, संविधान का अनुच्छेद 246 संघ एवं राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन करता है। हालाँकि, भारत के संघीय ढाँचे को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जो केंद्र-राज्य संबंधों तथा शासन की प्रभावशीलता को प्रभावित करती हैं।

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भारत की संघीय संरचना के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ

  • राजकोषीय संघवाद संबंधी विवाद: संसाधनों का असमान वितरण एवं विलंबित GST मुआवजा राज्यों पर वित्तीय तनाव उत्पन्न करता है, जिससे विकासात्मक लक्ष्य बाधित होते हैं।
    • उदाहरण के लिए: GST मुआवजे के भुगतान में देरी (अनुच्छेद 279A) ने तनाव उत्पन्न कर दिया है, विशेषकर COVID-19 जैसे संकट के दौरान।
  • राज्यपालों की नियुक्ति: अनुच्छेद 155 एवं 156 के तहत राज्यपालों की नियुक्ति तथा भूमिका अक्सर विवादास्पद रही है, जिसमें राजनीतिक पूर्वाग्रह की धारणा केंद्र-राज्य विश्वास को प्रभावित करती है।
    • उदाहरण के लिए: राज्य की राजनीति में, विशेषकर विपक्ष शासित राज्यों में राज्यपालों की भागीदारी के कारण कभी-कभी राज्य के मामलों में हस्तक्षेप के आरोप लगते हैं।
  • विधायी अतिरेक: छद्मता का सिद्धांत (Doctrine of Colourable Legislation) उन उदाहरणों को दर्शाता है जहाँ केंद्र के कानून संघीय सिद्धांतों को चुनौती देते हुए राज्य के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप करते हैं।
    • उदाहरण के लिए: केंद्र द्वारा अधिनियमित कृषि कानून, जिसने पारंपरिक रूप से कृषि जैसे राज्य सूची के तहत क्षेत्रों को प्रभावित किया, के कारण व्यापक विरोध हुआ है।
  • प्रशासनिक विवाद: प्रशासनिक शक्तियों को लेकर संघर्ष, विशेष रूप से दिल्ली जैसे केंद्र शासित प्रदेशों में, संतुलित शासन बनाए रखने में संघर्ष को उजागर करते हैं।
    • उदाहरण के लिए: प्रशासनिक मामलों पर नियंत्रण को लेकर दिल्ली सरकार का अक्सर संघ के साथ टकराव होता रहता है, जिससे शासन की कार्यक्षमता प्रभावित होती है।
  • राजनीतिक और वैचारिक मतभेद: राज्य एवं केंद्र सरकारों के बीच राजनीतिक एजेंडे में मतभेद के कारण टकराव होता है, जिससे नीति कार्यान्वयन प्रभावित होता है।
    • उदाहरण के लिए: केरल की उधार सीमा पर संघर्ष वैचारिक टकराव को रेखांकित करता है, जो राजकोषीय स्वायत्तता को प्रभावित करता है।
  • केंद्र प्रायोजित योजनाओं के लिए वित्त पोषण: केंद्र प्रायोजित योजनाएँ अक्सर कठोर शर्तों के साथ क्रियान्वित की जाती हैं जो योजना एवं संसाधन आवंटन में राज्यों की स्वायत्तता को प्रतिबंधित करती हैं, जिससे केंद्र-राज्य संबंधों में तनाव उत्पन्न होता है।
  • सुरक्षा एवं स्वायत्तता संघर्ष: पूर्वोत्तर राज्यों में AFSPA लगाने से राज्य की स्वायत्तता एवं सुरक्षा मामलों में केंद्रीय हस्तक्षेप पर विवाद उत्पन्न होता है।
  • प्रतिस्पर्द्धी संघवाद के मुद्दे: प्रतिस्पर्द्धी संघवाद के कारण राज्यों के बीच असमान विकास असमानताएँ उत्पन्न करता है एवं प्रतिकूल प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा दे सकता है।
    • उदाहरण के लिए: औद्योगिक निवेश अक्सर आर्थिक रूप से उन्नत राज्यों का पक्ष लेता है, जिससे विकास में क्षेत्रीय असंतुलन उत्पन्न होता है।

संघ-राज्य संघर्षों के समाधान के लिए मौजूदा संस्थागत तंत्र की प्रभावशीलता

  • अंतर-राज्य परिषद (ISC) की असामयिक बैठकें: सरकारिया आयोग की सिफारिश पर वर्ष 1990 में स्थापित, ISC को केंद्र-राज्य सहयोग को सुविधाजनक बनाने के लिए डिजाइन किया गया था, लेकिन कम बैठकों ने अंतर-सरकारी मुद्दों को हल करने पर इसके प्रभाव को सीमित कर दिया है।
    • उदाहरण के लिए: अपनी स्थापना के बाद से, ISC ने केवल 11 बार बैठक की है, आखिरी बैठक जुलाई 2016 में हुई थी, जो लगातार जुड़ाव की कमी का संकेत देती है।
  • नीति आयोग को शक्ति हस्तांतरण का अभाव: यद्यपि नीति आयोग राष्ट्रीय विकास योजना में राज्यों को शामिल करके सहकारी संघवाद को बढ़ावा देता है, लेकिन इसकी सिफारिशें सलाहकारी बनी रहती हैं, जिससे उनकी प्रवर्तनीयता सीमित हो जाती है।
    • उदाहरण के लिए: हालाँकि नीति आयोग की बैठकें नीति संरेखण को प्रोत्साहित करती हैं, बाध्यकारी प्राधिकरण की अनुपस्थिति इसकी सिफारिशों के व्यावहारिक कार्यान्वयन को प्रतिबंधित करती है।
  • वित्त आयोग का अनुमानित राजकोषीय पूर्वाग्रह: वित्त आयोग को समान संसाधन आवंटन का कार्य सौंपा गया है, लेकिन अक्सर संघ का पक्ष लेने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ता है, जिससे एक कथित राजकोषीय असंतुलन उत्पन्न होता है जो राज्य के वित्त को प्रभावित करता है।
    • उदाहरण के लिए: 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों की केंद्र को असंगत रूप से लाभ पहुँचाने, राज्यों के वित्तीय संसाधनों पर दबाव डालने के लिए आलोचना की गई है।
  • GST परिषद में मुआवजे के मुद्दे: GST परिषद कर एकरूपता को बढ़ावा देती है, फिर भी मुआवजे के विवाद राज्यों के वित्तीय संकटों को संबोधित करने की इसकी क्षमता में सीमाओं को प्रकट करते हैं।
    • उदाहरण के लिए: GST मुआवजे में देरी ने राज्यों के लिए वित्तीय तनाव उत्पन्न कर दिया है, जिससे तत्काल वित्तीय मुद्दों से निपटने में परिषद की सीमाएँ उजागर हो गई हैं।
  • राष्ट्रीय विकास परिषद (NDC) की निष्क्रियता: राष्ट्रीय विकास परिषद (NDC), जिसका मूल उद्देश्य विकासात्मक योजना के माध्यम से राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा देना था, काफी हद तक निष्क्रिय हो गई है, जिससे संघ-राज्य सहयोग को बढ़ावा देने में इसकी भूमिका कम हो गई है।
    • उदाहरण के लिए: NDC की हाल के वर्षों में बैठक नहीं हुई है, जिससे देश भर में सहयोगात्मक विकास लक्ष्यों को संबोधित करने की इसकी क्षमता सीमित हो गई है।

सहकारी संघवाद को मजबूत करने के लिए सुधार

  • अंतर-राज्य परिषद (ISC) को पुनः सक्रिय करना: ISC बैठकों को नियमित करना एवं इसके अधिदेश को मजबूत करना बातचीत में सुधार कर सकता है तथा सहकारी संघर्ष समाधान को बढ़ावा दे सकता है।
    • उदाहरण के लिए: दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) ने सिफारिश की है कि ISC को महत्त्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित करने एवं सहकारी संघवाद में अपनी भूमिका को मजबूत करने के लिए नियमित रूप से, आदर्श रूप से द्विवार्षिक बैठक करनी चाहिए।
  • वित्तीय पारदर्शिता बढ़ाना: केंद्र और राज्यों के बीच पारदर्शी राजस्व-साझाकरण तथा समय पर जीएसटी मुआवजा, विश्वास का निर्माण कर सकता है तथा सहकारी शासन को बढ़ावा दे सकता है।
    • उदाहरण के लिए: GST भुगतान के लिए एक निश्चित समयसीमा शुरू करने से वित्तीय संघर्ष कम हो सकते हैं, जैसा कि राज्य के वित्त मंत्रियों ने सिफारिश की है।
  • सहयोगात्मक नीति-निर्माण को प्रोत्साहित करना: नीति निर्माण में राज्यों को शामिल करना, विशेष रूप से समवर्ती विषयों में, वैचारिक टकराव को कम कर सकता है एवं कार्यान्वयन में सुधार कर सकता है।
    • उदाहरण के लिए: स्वास्थ्य नीति तैयार करने में राज्य की भागीदारी, प्रभावशीलता को बढ़ाते हुए अनुरूप, क्षेत्र-विशिष्ट समाधान सुनिश्चित कर सकती है।
  • नीति आयोग की भूमिका को मजबूत करना: नीति आयोग को नीतिगत क्षेत्रों में अधिक निर्णय लेने की शक्तियाँ प्रदान करने से सहकारी संघवाद पहल के कार्यान्वयन में सुधार हो सकता है।
    • उदाहरण के लिए: नीति आयोग को प्रमुख विकास परियोजनाओं में एक प्रवर्तन भूमिका देने से कार्यान्वयन संबंधी कमियाँ दूर हो सकती हैं।

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पुंछी आयोग एवं राष्ट्रीय संविधान कार्यकरण समीक्षा आयोग (National Commission to Review the Working of the Constitution- NCRWC) की सिफारिशें, जिनमें केंद्र और राज्यों की शक्तियों को बेहतर ढंग से परिभाषित करने के लिए सातवीं अनुसूची पर पुनर्विचार करना शामिल है, भारत के संघीय ढाँचे को मजबूत करने, संतुलित विकास को बढ़ावा देने और राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

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