Q. कृषि के मशीनीकरण के कारण भारत में पराली जलाने की प्रवृत्ति बढ़ी है। किसानों के लिए मशीनीकृत कटाई से जुड़ी चुनौतियों की व्याख्या कीजिये और आकलन कीजिये कि ये चुनौतियाँ पर्यावरण क्षरण में किस प्रकार योगदान करती हैं। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • चर्चा कीजिए कि कृषि के मशीनीकरण के कारण भारत में पराली जलाने की प्रवृत्ति में किस प्रकार वृद्धि हुई है।
  • किसानों के लिए मशीनीकृत कटाई से जुड़ी चुनौतियों की व्याख्या कीजिए।
  • आकलन कीजिए कि ये चुनौतियाँ पर्यावरणीय निम्नीकरण में किस प्रकार योगदान करती हैं।
  • आगे की राह लिखिये।

उत्तर

उन्नत कटाई मशीनों को अपनाने से प्रेरित कृषि के मशीनीकरण ने खेती के तरीकों को काफी हद तक बदल दिया है। हालाँकि, इससे पराली जलाने की प्रथा को भी बढ़ावा मिला है विशेष रूप से चावल उत्पादक राज्यों में, जिससे गंभीर पर्यावरणीय चुनौतियाँ उत्पन्न हुई हैं मशीनीकृत कटाई के कारण पराली बच जाती है, जिसे अगली फसल को उगाने से पहले साफ करना पड़ता है, तथा समय और लागत की कमी के कारण अक्सर इस अवशेष को जला दिया जाता है।

Enroll now for UPSC Online Course

कृषि के मशीनीकरण के कारण भारत में पराली जलाने की घटनाएं बढ़ी हैं

  • कंबाइन हार्वेस्टर द्वारा छोड़े गए अवशेष: कंबाइन हार्वेस्टर जैसी मशीनें, कटाई में कुशल होने के बावजूद, खेतों में फसल  अवशेष की पर्याप्त मात्रा छोड़ती हैं। समय की कमी के कारण किसान अक्सर अगली फसल से पहले खेतों को साफ करने के लिए पराली जलाते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: पंजाब और हरियाणा में, जहाँ कटाई के बाद धान के अवशेष छोड़ दिए जाते हैं, अक्टूबर में पराली जलाने की घटनाएँ बढ़ जाती हैं।
  • फसल चक्रों के बीच कम समय: मशीनीकृत खेती से कटाई प्रक्रिया में तेजी आती है, लेकिन अगली बुवाई के मौसम से पहले पराली के प्राकृतिक अपघटन के लिए बहुत कम समय बचता है, जिससे उसे जलाना सबसे त्वरित विकल्प बन जाता है। 
    • उदाहरण के लिए: धान की कटाई के बाद, किसान कुछ हफ्तों के भीतर ही गेहूँ की बुवाई की तैयारी कर लेते हैं, जिससे पराली को जलाना पड़ता है।
  • वैकल्पिक तरीकों की उच्च लागत: मशीनीकृत विकल्प उपलब्ध हैं, लेकिन उनकी लागत बहुत अधिक है जिसके परिणामस्वरूप इन विकल्पों को अपनाना सबके लिए आर्थिक रूप से वहनीय नही है। जिससे कई लघु किसानों के लिए प्रणाली जलाना अधिक सुलभ विकल्प बन जाता है। 
    • उदाहरण के लिए: एक हैप्पी सीडर की कीमत ₹1-1.5 लाख के बीच होती है, जो सब्सिडी के बिना सीमांत किसानों के लिए इसे वहन करने योग्य नहीं बनाती है।
  • पर्याप्त सहायता और जागरूकता का अभाव: पर्यावरण के अनुकूल अवशेष प्रबंधन तकनीक के  प्रशिक्षण और सब्सिडी के साथ-साथ यंत्रीकरण का तालमेल नहीं बन पाया है जिसके परिणामस्वरूप पराली जलाने पर निर्भरता बढ़ गई है। 
    • उदाहरण के लिए: कई किसानों का कहना है कि वैकल्पिक तरीकों जैसे मल्चिंग को लेकर उनका पर्याप्त मार्गदर्शन नहीं किया गया है। 
  • उच्च उत्पादकता के लिए दबाव: उच्च उत्पादकता लक्ष्यों को पूरा करने के लिए तेजी से फसल के बदलाव पर बल देने से समय बचाने और उपज के स्तर को बनाए रखने के लिए पराली जलाने जैसी प्रथाओं को प्रोत्साहन मिलता  है। 
    • उदाहरण के लिए: हरियाणा जैसे उच्च उत्पादन वाले राज्यों में, अगली फसल के लिए तेजी से तैयारी की तात्कालिकता अक्सर पराली जलाने की प्रथा को बढ़ावा देती है।

किसानों के लिए मशीनीकृत कटाई से जुड़ी चुनौतियाँ

  • मशीनीकृत उपकरणों की उच्च लागत: उन्नत मशीनों के लिए पर्याप्त निवेश की आवश्यकता होती है, जो अक्सर लघु किसानों के लिए वहनीय नहीं होती, जिसके कारण उन्हें किराये के विकल्प अपनाने पड़ते हैं या पराली जलाने जैसे सस्ते समाधान तलाशने पड़ते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: मशीनीकरण प्रोत्साहनों के बावजूद कई लघु किसान कंबाइन हार्वेस्टर या हैप्पी सीडर का खर्च नहीं उठा सकते।
  • सब्सिडी और सहायता तक सीमित पहुँच: मशीनीकृत कृषि उपकरणों के लिए सीमित और प्रतिस्पर्धी सरकारी सब्सिडी मिलती है, जिससे किसानों के लिए संधारणीय कृषि हेतु आवश्यक संसाधन प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। 
    • उदाहरण के लिए: पंजाब में , किसानों को प्रशासनिक देरी और सब्सिडी वाले हैप्पी सीडर के लिए सीमित कोटा का सामना करना पड़ता है, जिससे इन विकल्पों को अपनाने की दर प्रभावित होती है।
  • किराए की मशीनरी पर निर्भरता: लघु किसान जो उपकरण नहीं खरीद सकते, वे अक्सर मौसमी किराये पर निर्भर रहते हैं, जिससे उन्हें उच्च लागत और उपलब्धता संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिससे स्थायी पराली प्रबंधन मुश्किल हो जाता है। 
    • उदाहरण के लिए: फसल कटाई के दौरान किराये की सेवाएँ बढ़ जाती हैं जिससे लघु किसान समय पर फसल चक्र के लिए पराली जलाने जैसे तेज तरीकों को अपनाने का विकल्प चुनते हैं।
  • उपकरण संचालन में तकनीकी चुनौतियाँ: हैप्पी सीडर जैसी जटिल मशीनों के लिए तकनीकी विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है, जिसकी कई किसानों में कमी होती है जिसके परिणामस्वरूप पर्यावरण के अनुकूल मशीनीकृत विकल्पों को अपनाने में बाधा आती है। 
    • उदाहरण के लिए: प्रशिक्षण कार्यक्रमों की कमी की वजह से किसान पराली प्रबंधन के लिए परिष्कृत उपकरणों के संचालन के संबंध में अप्रशिक्षित रह जाते हैं।
  • अवशेष निपटान के लिए उपयुक्त बुनियादी ढाँचे का अभाव: बायोमास प्रसंस्करण इकाइयों या खाद बनाने के संयंत्रों तक सीमित पहुंच के कारण, किसानों को फसल अवशेषों का संधारणीय तरीके से निपटान करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। 
    • उदाहरण के लिए: पुआल संग्रह केंद्रों की कमी का अर्थ है, कि किसान अक्सर निपटान के सबसे सुलभ तरीके के रूप में पराली जलाने के विकल्प को चुनते हैं।

यंत्रीकृत कटाई से पर्यावरण को नुकसान

  • पराली जलाने से वायु प्रदूषण: पराली जलाने से जहरीली गैसें निकलती हैं, जिससे आस-पास के इलाकों में वायु की गुणवत्ता खराब होती है और स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न होता है। 
    • उदाहरण के लिए: पराली जलाने के चरम मौसम के दौरान, कार्बन मोनोऑक्साइड और मीथेन जैसी गैसों में वृद्धि के कारण दिल्ली के वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) में गंभीर गिरावट देखी जाती है
  • अवशेष जलाने से मृदा निम्नीकरण: पराली जलाने से मृदा के कार्बनिक पदार्थ और उसमें सूक्ष्मजीवी गतिविधि कम हो जाती है, जिससे समय के साथ मृदा की उर्वरता और उत्पादकता कम हो जाती है। 
    • उदाहरण के लिए: पंजाब की मिट्टी में कार्बनिक कार्बन का स्तर घट रहा है, जिससे फसल की पैदावार और संधारणीयता प्रभावित हो रही है।
  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन: अवशेष जलाने से कार्बन डाइऑक्साइड और नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन में वृद्धि होती है, जो महत्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैसें हैं जो जलवायु परिवर्तन को गति प्रदान करती हैं । 
    • उदाहरण के लिए: उत्तर भारत में पराली जलाने से सालाना 13 मिलियन टन से अधिक CO2 उत्सर्जित होती है,  जिससे ग्लोबल वार्मिंग की समस्या बढ़ती है।
  • कृषि क्षेत्रों में जैव विविधता ह्वास: पराली जलाने से केंचुओं और परागणकों जैसे लाभकारी जीवों के आवास नष्ट हो जाते हैं, जो कृषि पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: अध्ययनों से पता चलता है कि नियमित रूप से पराली जलाने से केंचुओं की आबादी कम हो जाती है, जिससे मृदा का वातन और पोषक चक्र प्रभावित होता है
  • जल प्रदूषण: पराली जलाने से निकलने वाली राख के कण जल निकायों में जमा हो सकते हैं, जिससे प्रदूषण होता है और जलीय जीवन प्रभावित होता है। 
    • उदाहरण के लिए: पराली जलाने के अवशेष आस-पास की नदियों में पाए गए हैं, जिससे कृषि और मानव उपभोग के लिए उपलब्ध जल की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है।

Check Out UPSC CSE Books From PW Store

आगे की राह 

  • किफायती मशीनीकरण विकल्पों को बढ़ावा देना: लघु किसानों के लिए
    व्यापक पहुँच सुनिश्चित करने हेतु हैप्पी सीडर और रोटावेटर जैसी पर्यावरण-अनुकूल मशीनों को प्रदान की जाने वाली सब्सिडी और प्रोत्साहन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। 

    • उदाहरण के लिए: हैप्पी सीडर को सब्सिडी देने की केंद्र सरकार की पहल को अधिकांश किसानों तक लाभ पहुँचाने के लिए विस्तारित किया जाना चाहिए।
  • किसान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को बढ़ावा देना: किसानों के लिए प्रभावी अवशेष प्रबंधन और मशीनीकृत उपकरणों के उपयोग से संबंधित नियमित प्रशिक्षण सत्र आयोजित करने चाहिए, ताकि संधारणीय प्रथाओं को सुनिश्चित किया जा सके। 
    • उदाहरण के लिए: हरियाणा में सरकार द्वारा संचालित कार्यशालाओं के सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं, जिससे आगजनी की घटनाओं में कमी आई है।
  • बायोमास आधारित उद्योग विकसित करना: बायोमास प्रसंस्करण इकाइयों में निवेश करना चाहिए जो पराली को ईंधन या उर्वरक में परिवर्तित कर सकें, जिससे आर्थिक रूप से व्यवहार्य अवशेष निपटान विधि बन सके। 
    • उदाहरण के लिए: पंजाब के पायलट बायोमास संयंत्र जैव-ऊर्जा उत्पादन के लिए पराली का उपयोग  कर रहे हैं, जिससे पराली को जलाने की आवश्यकता कम हो रही है।
  • फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करना: कम पराली अवशेष वाली फसलों जैसे दलहन फसलों को बढ़ावा देना चाहिए, ताकि किसान जल गहन फसलों जैसे धान की खेती कम करें।
  • निगरानी और दंड प्रणाली को मजबूत करना: पराली जलाने के खिलाफ सख्त नियम और प्रवर्तन तंत्र लागू करने के साथ- साथ, संधारणीय प्रथाओं को अपनाने के लिए प्रोत्साहन प्रदान करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए:  पंजाब के रियल टाइम स्टबल बर्निंग मॉनिटरिंग सिस्टम  ने जुर्माने और प्रोत्साहन के माध्यम से पराली जलाने की दर को सफलतापूर्वक कम किया है।

भारत में कृषि के मशीनीकरण ने उत्पादकता को बढ़ाने के साथ-साथ पराली जलाने और पर्यावरणीय निम्नीकरण जैसे मुद्दों को भी बढ़ा दिया है। इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए संधारणीय विकल्प, मजबूत प्रशिक्षण और पर्यावरण के अनुकूल प्रथाओं को अपनाने हेतु किसानों को  प्रोत्साहन प्रदान करने की आवश्यकता है। जागरूकता और विनियामक उपायों के साथ तकनीकी सहायता प्रदान करते हुए भारत, पर्यावरण की दृष्टि से संधारणीय कृषि की दिशा की ओर अपने कदम बढ़ा सकता है जो जलवायु लक्ष्यों के साथ संरेखित हो और प्रदूषण कम करने में मदद करता हो।

To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

Need help preparing for UPSC or State PSCs?

Connect with our experts to get free counselling & start preparing

Know about Physics Wallah

Physics Wallah is an Indian online education platform, that provides accessible & comprehensive learning experiences to students of classes 6 to 12 and those preparing for JEE and NEET exams. We also provide extensive NCERT solutions, sample papers, NEET, JEE Mains, BITSAT previous year papers, which makes us a one-stop solution for all resources. Physics Wallah also caters to over 3.5 million registered students and over 78 lakh+ Youtube subscribers with 4.8 rating on its app.

We Stand Out because

We successfully provide students with intensive courses by India's qualified & experienced faculties. PW strives to make the learning experience comprehensive and accessible for students of all sections of society. We believe in empowering every single student who couldn't dream of a good career in engineering and medical field earlier.

Our Key Focus Areas

Physics Wallah’s main focus is to create accessible learning experiences for students all over India. With courses like Lakshya, Udaan, Arjuna & many others, we have been able to provide a ready solution for lakhs of aspirants. From providing Chemistry, Maths, Physics formulae to giving e-books of eminent authors, PW aims to provide reliable solutions for student prep.

What Makes Us Different

Physics Wallah strives to develop a comprehensive pedagogical structure for students, where they get a state-of-the-art learning experience with study material and resources. Apart from catering students preparing for JEE Mains and NEET, PW also provides study material for each state board like Uttar Pradesh, Bihar, and others.

Aiming for UPSC?

Download Our App

      
Quick Revise Now !
AVAILABLE FOR DOWNLOAD SOON
UDAAN PRELIMS WALLAH
Comprehensive coverage with a concise format
Integration of PYQ within the booklet
Designed as per recent trends of Prelims questions
हिंदी में भी उपलब्ध
Quick Revise Now !
UDAAN PRELIMS WALLAH
Comprehensive coverage with a concise format
Integration of PYQ within the booklet
Designed as per recent trends of Prelims questions
हिंदी में भी उपलब्ध

<div class="new-fform">






    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.