Q. भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) डिजिटलीकरण से लेकर दस्तावेजीकरण आवश्यकताओं संबंधी चुनौतियों का सामना कर रही है। मौलिक अधिकार होने के बावजूद, वंचित समुदायों के लिए भोजन तक पहुँच प्रतिबंधित है। प्रणालीगत मुद्दों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए और समावेशी PDS के लिए व्यापक सुधारों का सुझाव दीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • बताइए कि भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) को डिजिटलीकरण से लेकर दस्तावेजीकरण आवश्यकताओं तक किस प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  • उन मुद्दों का विश्लेषण कीजिए जिनके कारण सुभेद्य समुदायों के लिए भोजन तक पहुँच सीमित हो जाती है, जबकि यह उनका मौलिक अधिकार है।
  • समावेशी सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए व्यापक सुधार सुझाइये।

उत्तर

सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) भारत में खाद्य सुरक्षा तंत्र है जिसका उद्देश्य ,सुभेद्य वर्गों को सब्सिडी वाला भोजन उपलब्ध कराना है। हालाँकि, डिजिटलीकरण अंतराल, दस्तावेजीकरण संबंधी बाधाएँ और अपवर्जन त्रुटियाँ जैसे मुद्दे अक्सर वंचित समुदायों के लिए पहुँच को सीमित कर देते हैं। उदाहरण के लिए, आधार-लिंक्ड राशन कार्ड विफलताओं की रिपोर्टों ने प्रणालीगत खामियों को उजागर किया है, जिससे समावेशिता और दक्षता सुनिश्चित करने के लिए सुधारों की आवश्यकता का पता चलता है।

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डिजिटलीकरण से लेकर दस्तावेज़ीकरण आवश्यकताओं तक की चुनौतियाँ

  • अनिवार्य बायोमेट्रिक सत्यापन: फेयर प्राइस शॉप्स पर बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण विफल होने के कारण कई व्यक्ति राशन पाने से वंचित रह जाते हैं।
  • अनावश्यक प्रमाणपत्रों की माँग: राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) में कोई कानूनी अनिवार्यता न होने के बावजूद राज्यों को जाति, आय और निवास प्रमाणपत्रों की आवश्यकता होती है।
    • उदाहरण के लिए: बिहार और झारखंड PDS नामांकन के लिए ऐसे दस्तावेजों की माँग करते हैं, जिससे आवेदकों के लिए प्रशासनिक बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।
  • आवेदन प्रक्रिया में लगने वाला समय: PDS आवेदन अक्सर महीनों तक लंबित रहते हैं, जिससे राशन प्राप्त करने में देरी होती है। 
    • उदाहरण के लिए: बिहार के निवासियों ने बताया कि 30 दिन के अंदर अनिवार्य रूप से जारी कर देने की अवधि होने के बावजूद इस संदर्भ में आवेदन 4 से 18 महीने तक लंबित रहते हैं।
  • ऑनलाइन सिस्टम की सुलभता: सुभेद्य समूहों के पास ई-गवर्नेंस सिस्टम को सुलझाने के लिए संसाधनों और ज्ञान की कमी है, जिससे शोषक बिचौलियों पर निर्भरता बढ़ जाती है। 
    • उदाहरण के लिए: बिहार में बिचौलिए राशन कार्ड के लिए 3,000 रुपये से अधिक लेते हैं, और इस तरह से निर्धन लोगों का शोषण करते हैं।
  • गुणवत्ता और मात्रा में अंतर: लाभार्थियों ने घटिया राशन और कानूनी तौर पर मिलने वाले राशन से कम मात्रा में राशन मिलने की बात कही है। 
    • उदाहरण के लिए: ऐसे मामले हैं जब खाद्य वितरक प्रति व्यक्ति पांच किलोग्राम के बजाय चार किलोग्राम गुणवत्ताहीन चावल दे रहे हैं।

सुभेद्य समुदायों के लिए भोजन तक पहुँच को प्रतिबंधित करने वाले मुद्दे

  • वितरण में भ्रष्टाचार: फेयर प्राइस शॉप्स के मालिक अनाज की हेराफेरी करते हैं, जिससे लाभार्थियों को उनके हक से कम मिलता है।
  • बिचौलियों द्वारा शोषण: सुभेद्य समूह राशन कार्ड आवेदनों के लिए बिचौलियों को उच्च शुल्क का भुगतान करते हैं, लेकिन अक्सर इनका कोई परिणाम नहीं मिलता।
  • सूची से अपवर्जित होना: कई परिवारों, विशेष रूप से वंचित समुदायों के पास सक्रिय राशन कार्ड या परिवार के सदस्यों का पूर्ण विवरण नहीं है।
  • प्रणालीगत विलंब: नौकरशाही की अकुशलता और जवाबदेही की कमी के कारण राशन कार्ड जारी करने में लंबा विलम्ब होती है।
  • वंचित समुदायों की उपेक्षा: सरकारी कल्याण कार्यक्रमों और वास्तविकता के मध्य का अंतर, जाति-आधारित वंचना को बढ़ाता है।

समावेशी सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए व्यापक सुधार

  • नामांकन प्रक्रिया को सरल बनाना: बाधाओं को कम करने के लिए NFSA 2013 दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन करके दस्तावेज़ीकरण आवश्यकताओं को सरल बनाना चाहिये। 
    • उदाहरण के लिए: जाति और आय प्रमाण पत्र की माँग को आधार से जुड़े नामांकन से बदलना चाहिए, क्योंकि बिहार का खाद्य विभाग दस्तावेज आवश्यकताओं को प्रणालीगत चूक मानता है।
  • बायोमेट्रिक विकल्पों को मजबूत करना: प्रौद्योगिकी या पहुँच संबंधी समस्याओं का सामना करने वाले व्यक्तियों को शामिल करने के लिए बायोमेट्रिक सत्यापन हेतु मैन्युअल विकल्प प्रदान करने चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: झारखंड ने फिंगरप्रिंट प्रमाणित करने में असमर्थ परिवारों के लिए मैन्युअल सत्यापन को अपनाया।
  • FPS जवाबदेही में सुधार: डीलरों की गलत प्रथाओं पर अंकुश लगाने के लिए अनाज आवंटन और धोखाधड़ी के लिए दंड हेतु पारदर्शी प्रणाली लागू करनी चाहिए।
  • जागरूकता और सहायता बढ़ाना: PDS अधिकारों और प्रक्रियाओं पर समुदायों को शिक्षित करने के लिए अभियान चलाने चाहिए, जिससे शोषक बिचौलियों पर निर्भरता कम हो। 
    • उदाहरण के लिए: ओडिशा में समुदाय-आधारित संगठनों ने e-ODS पोर्टल पर कार्यशालाएँ आयोजित कीं, जिससे ग्रामीणों को स्वतंत्र रूप से आवेदन करने का अधिकार मिला।
  • राशन कार्डों की समय पर डिलीवरी की निगरानी करना: राशन कार्ड जारी करने में देरी को दूर करने और समयसीमा का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: मध्य प्रदेश ने PDS आवेदनों की ऑनलाइन ट्रैकिंग लागू की, जिससे अनुमोदन में तेजी आई और प्रतीक्षा समय कम हुआ।

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समावेशी और कुशल PDS सुनिश्चित करने के लिए, सुधारों में पारदर्शिता और ब्लॉकचेन जैसी तकनीकी प्रगति को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। दस्तावेजीकरण प्रक्रियाओं को सरल बनाया जाना चाहिए और लाइस्ट मील कनेक्टिविटी को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। शिकायत निवारण तंत्र को मजबूत करना, सामाजिक ऑडिट को एकीकृत करना और लाभार्थी ट्रैकिंग के लिए AI का लाभ उठाना, जवाबदेही को बढ़ा सकता है।

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