Q. नदी-जोड़ो परियोजनाएँ अतिरिक्त जल भंडारण सुविधाएँ निर्मित करने और अधिशेष क्षेत्रों से सूखाग्रस्त क्षेत्रों में जल स्थानांतरित करने जैसे लाभ प्रदान करती हैं, लेकिन भारत में अंतर-राज्यीय विवादों के कारण उनके कार्यान्वयन में बाधाएँ उत्पन्न हुई हैं, विश्लेषण कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • चर्चा कीजिये कि नदी-जोड़ परियोजनाएँ अतिरिक्त जल भंडारण सुविधाएँ बनाने एवं अधिशेष क्षेत्रों से सूखाग्रस्त क्षेत्रों में जल स्थानांतरित करने जैसे लाभ कैसे प्रदान करती हैं।
  • मूल्यांकन कीजिये कि भारत में अंतर-राज्यीय विवादों के कारण उनके कार्यान्वयन में किस प्रकार बाधा उत्पन्न हुई है।
  • आगे की राह लिखिए।

उत्तर

नदी जोड़ो परियोजनाओं का उद्देश्य अधिशेष क्षेत्रों से सूखाग्रस्त क्षेत्रों में जल स्थानांतरित करके जल की कमी को दूर करना है। सिंचाई में वृद्धि, बाढ़ शमन एवं जल सुरक्षा जैसे संभावित लाभों के बावजूद, जल-बंटवारे समझौतों, कानूनी जटिलताओं तथा क्षेत्रीय राजनीतिक मुद्दों पर अंतर-राज्य विवादों के कारण कार्यान्वयन को चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे राष्ट्रीय जल प्रबंधन प्रयासों में बाधा आती है।

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नदी जोड़ो परियोजनाओं के लाभ

  • जल संसाधन अनुकूलन: नदी-जोड़ों परियोजना के माध्यम से अधिशेष जल को सूखाग्रस्त क्षेत्रों में स्थानांतरित करके, इस महत्त्वपूर्ण संसाधन का न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करके, क्षेत्रों में जल की उपलब्धता को संतुलित करता है।
    • उदाहरण के लिए: केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना का उद्देश्य मध्य प्रदेश में केन नदी से अतिरिक्त जल को जल की कमी वाले बुंदेलखंड में स्थानांतरित करना है।
  • कृषि उत्पादकता: नदियों को जोड़ने से सिंचाई सुविधाओं में सुधार होता है, अनियमित मानसून पर निर्भरता कम होती है एवं बहुफसली कृषि संभव होती है, जिससे किसानों की आय बढ़ती है।
    • उदाहरण के लिए: गोदावरी-कृष्णा लिंक परियोजना ने आंध्र प्रदेश में 7 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचित करने में मदद की है, जिससे कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई है।
  • बाढ़ एवं सूखा शमन: अधिशेष जल वाली नदियों को जोड़ने से शुष्क क्षेत्रों में सूखे की स्थिति का समाधान करते हुए अधिशेष क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा कम हो जाता है।
    • उदाहरण के लिए: गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना परियोजना का लक्ष्य राजस्थान में शुष्क क्षेत्रों को जल उपलब्ध कराते हुए बिहार एवं असम में बाढ़ को कम करना है।
  • जलविद्युत क्षमता: नदी-जोडो परियोजनाएँ जलविद्युत उत्पादन के अवसर उत्पन्न करती हैं, जो भारत के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों में योगदान करती हैं।
    • उदाहरण के लिए: महानदी-गोदावरी परियोजना जलविद्युत उत्पादन को सिंचाई सुविधाओं के साथ एकीकृत करने का प्रस्ताव करती है।
  • पेयजल आपूर्ति: ये परियोजनाएँ बढ़ती घरेलू माँग को पूरा करते हुए शहरी एवं ग्रामीण जल आपूर्ति प्रणालियों को बढ़ाती हैं।
    • उदाहरण के लिए: कावेरी-वैगई-गुंडर परियोजना तमिलनाडु में शहरी क्षेत्रों के लिए जल की उपलब्धता में सुधार करती है।
  • जैव विविधता संरक्षण: विनियमित जल प्रवाह सुनिश्चित करके, नदी-जोड़ परियोजनाएँ शुष्क मौसम के दौरान जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में मदद कर सकती हैं।
    • उदाहरण के लिए: कावेरी-गुंडर लिंक तमिलनाडु में आर्द्रभूमि के मौसमी सूखने को कम करता है, जिससे प्रवासी पक्षियों के आवास में सहायता मिलती है।

अंतर्राज्यीय विवादों के कारण चुनौतियाँ

  • जल आवंटन पर संघर्ष: राज्य अक्सर न्यायसंगत बंटवारे पर बहस करते हैं, अपस्ट्रीम राज्य डाउनस्ट्रीम राज्यों में जल हस्तांतरण का विरोध करते हैं।
    • उदाहरण के लिए: कर्नाटक ने जल संसाधनों के नुकसान के डर से कावेरी-गुंडार लिंक परियोजना का विरोध किया है।
  • क्षेत्राधिकार संबंधी अस्पष्टताएँ: जल-बंटवारे समझौतों के लिए स्पष्ट कानूनी ढाँचे का अभाव विवादों को बढ़ाता है।
    • उदाहरण के लिए: महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं आंध्र प्रदेश के बीच कृष्णा नदी पर विवाद न्यायाधिकरण के पुरस्कारों की अलग-अलग व्याख्याओं के कारण अनसुलझा बना हुआ है।
  • पारिस्थितिक चिंताएँ: राज्य अपने क्षेत्रों में जलमग्न होने एवं जैव विविधता के नुकसान जैसे पारिस्थितिक प्रभावों पर आशंकाएँ व्यक्त करते हैं।
  • राजनीतिक सहमति का अभाव: राजनीतिक दल आधारित मुद्दों से हटकर सहयोग करने की राजनीतिक अनिच्छा परियोजना की मंजूरी एवं कार्यान्वयन में देरी करती है।
    • उदाहरण के लिए: मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश में अलग-अलग राजनीतिक नेतृत्व के कारण केन-बेतवा परियोजना में देरी का सामना करना पड़ा है।
  • वित्तीय बाधाएँ: फंडिंग जिम्मेदारियों पर विवादों की वजह से प्रगति धीमी हो गई है, राज्य परियोजना लागत साझा करने को तैयार नहीं हैं।
    • उदाहरण के लिए: तमिलनाडु ने प्रायद्वीपीय नदी विकास परियोजना के वित्तीय बोझ को साझा करने का विरोध किया।
  • सांस्कृतिक एवं सामाजिक मुद्दे: मौजूदा नदी प्रवाह पर निर्भर समुदाय विस्थापन एवं आजीविका के नुकसान की आशंकाओं के कारण परिवर्तनों का विरोध करते हैं।
    • उदाहरण के लिए: पोलावरम परियोजना को विस्थापन संबंधी चिंताओं को लेकर आंध्र प्रदेश में आदिवासी समुदायों के विरोध का सामना करना पड़ा।

आगे की राह

  • कानूनी सुधार: जल-बंटवारा कानूनों को मजबूत करना एवं अंतर-राज्य विवादों को कुशलतापूर्वक हल करने के लिए एक स्थायी राष्ट्रीय न्यायाधिकरण की स्थापना करना।
    • उदाहरण के लिए: अंतरराज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक, 2019 का उद्देश्य विवाद समाधान तंत्र को सुव्यवस्थित करना है।
  • प्रोत्साहन सहयोग: नदी-जोड़ो परियोजनाओं पर सहमति के लिए राज्यों को वित्तीय एवं विकासात्मक प्रोत्साहन की पेशकश करना।
    • उदाहरण के लिए: केन-बेतवा परियोजना के लिए केंद्र सरकार की फंडिंग से उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश के प्रतिरोध को कम करने में मदद मिली है।
  • पर्यावरणीय सुरक्षा उपाय: पारिस्थितिक चिंताओं को दूर करने एवं सतत कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए विस्तृत पर्यावरणीय प्रभाव आकलन करना।
    • उदाहरण के लिए: केन-बेतवा परियोजना पर राष्ट्रीय हरित अधिकरण के दिशानिर्देशों ने संरक्षण रणनीतियों पर जोर दिया।
  • एकीकृत बेसिन प्रबंधन: सभी हितधारकों को शामिल करते हुए बेसिन स्तर पर एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन के माध्यम से सहयोग को बढ़ावा देना।
    • उदाहरण के लिए: गोदावरी जल विवाद न्यायाधिकरण गोदावरी बेसिन के लिए सहकारी निर्णय लेने को प्रोत्साहित करता है।
  • सामुदायिक भागीदारी: पारदर्शी योजना के माध्यम से विस्थापन एवं आजीविका के नुकसान की आशंकाओं को कम करने के लिए स्थानीय समुदायों को शामिल करना।
    • उदाहरण के लिए: पोलावरम परियोजना ने व्यापक पुनर्वास पैकेजों की पेशकश करके स्वीकार्यता में सुधार किया।
  • प्रौद्योगिकी परिनियोजन: वास्तविक समय में जल की निगरानी एवं जुड़ी हुई नदियों के कुशल प्रबंधन के लिए GIS जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना।
    • उदाहरण के लिए: प्रायद्वीपीय नदी परियोजना के लिए GIS-आधारित निर्णय समर्थन प्रणाली डेटा-संचालित संसाधन आवंटन को सक्षम बनाती है।

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न्यायसंगत जल-बंटवारे ढाँचे के माध्यम से अंतर-राज्य विवादों को संबोधित करना, केंद्रीकृत नीतियों के माध्यम से सहयोग को बढ़ावा देना एवं सतत परियोजना नियोजन के लिए वैज्ञानिक आकलन का लाभ उठाना आवश्यक है। नदी-जोड़ परियोजनाओं के सफल कार्यान्वयन से जल सुरक्षा, कृषि लचीलापन तथा आर्थिक विकास सुनिश्चित हो सकता है, जो भारत के सतत जल संसाधन प्रबंधन के दृष्टिकोण के अनुरूप है।

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