Q. किसी राष्ट्र की आर्थिक सफलता निर्धारित करने में संस्थाएँ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वर्ष 2024 के आर्थिक नोबेल पुरस्कार विजेता शोध के आलोक में कथन का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। चर्चा कीजिए कि औपनिवेशिक इतिहास ने आधुनिक संस्थाओं को कैसे आकार दिया है और भारत जैसे देशों में आर्थिक विकास पर उनका क्या प्रभाव पड़ा है। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • वर्ष 2024 के अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार विजेता के शोध के संबंध में विश्लेषण कीजिए कि किस प्रकार संस्थाएँ किसी राष्ट्र की आर्थिक सफलता को निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
  • वर्ष 2024 के अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार विजेता शोध के प्रकाश में किसी राष्ट्र की आर्थिक सफलता को निर्धारित करने में संस्थाओं की भूमिका की कमियों का विश्लेषण कीजिए।
  • चर्चा कीजिए, कि औपनिवेशिक इतिहास ने आधुनिक संस्थाओं को किस प्रकार आकार दिया है।
  • भारत जैसे देशों में आर्थिक विकास पर संस्थाओं के प्रभाव पर प्रकाश डालिए।

उत्तर

अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार 2024 डेरॉन ऐसमोग्लू, साइमन जॉनसन और जेम्स ए रॉबिन्सन को ‘संस्थाओं के निर्माण और समृद्धि पर उनके प्रभाव के शोध के लिये’ दिया गया है, जिसमें उन्होंने बताया कि संस्थाएँ किस तरह से किसी देश की आर्थिक सफलता को आकार देती हैं। उनके कार्य समावेशी संस्थानों के महत्त्व को उजागर करते हैं जो सुरक्षित संपत्ति अधिकार, लोकतांत्रिक शासन और आर्थिक अवसरों को बढ़ावा देते हैं

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किसी राष्ट्र की आर्थिक सफलता निर्धारित करने में संस्थाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका

  • संपत्ति के अधिकारों की सुरक्षा और विधि का शासन: संपत्ति के अधिकारों को लागू करने वाली संस्थाएँ अधिग्रहण के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करके निवेश के लिए अनुकूल वातावरण निर्मित करती  हैं। 
    • उदाहरण के लिए: दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (2016) ने दिवालियेपन के समाधान के लिए एक ढाँचा प्रदान करके व्यापारिक विश्वास में सुधार किया है।
  • राजनीतिक स्थिरता और आर्थिक विकास: एक स्थिर राजनीतिक वातावरण पूर्वानुमानित स्थितियों को बढ़ावा देता है, निवेश को आकर्षित करता है और स्थिर आर्थिक विकास सुनिश्चित करता है। 
    • उदाहरण के लिए: केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अनुसार, भारत के लोकतांत्रिक शासन ने सुधारों को सुगम बनाया है, जिससे वर्ष 2021-22 में 83 बिलियन डॉलर से अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित करने में मदद मिली है।
  • समावेशी आर्थिक नीतियाँ: समावेशी नीतियों को बढ़ावा देने वाली संस्थाएँ आर्थिक लाभों का समान वितरण सुनिश्चित करती हैं और इस तरह से गरीबी को कम करती हैं और सतत विकास को बढ़ावा देती हैं। 
    • उदाहरण के लिए: प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) योजना ने सब्सिडी वितरण को सुव्यवस्थित किया है, जिससे 900 मिलियन से अधिक लोग लाभान्वित हुए हैं और कल्याणकारी योजनाओं में पारदर्शिता को बढ़ावा मिला है।
  • पारदर्शी कानूनी ढाँचा: पारदर्शी और पूर्वानुमानित कानूनी प्रणालियाँ भ्रष्टाचार को कम करने और निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करने, उद्यमशीलता को बढ़ावा देने में मदद करती हैं। 
    • उदाहरण के लिए: वस्तु और सेवा कर (GST) सुधार ने बाजार को एकीकृत किया है और वर्ष 2023 में कर अनुपालन में 17% की वृद्धि की है, जिससे व्यापारिक माहौल में सुधार हुआ है।
  • नवाचार के लिए संस्थागत समर्थन: अनुसंधान और नवाचार को प्रोत्साहित करने वाली संस्थाएँ तकनीकी प्रगति और आर्थिक विकास में योगदान देती हैं। 
    • उदाहरण के लिए: अटल इनोवेशन मिशन (AIM) के अंतर्गत नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए स्कूलों में 10,000 से अधिक टिंकरिंग लैब स्थापित किये गये हैं।
  • संस्थागत सुधारों के माध्यम से बुनियादी ढाँचे का विकास: मजबूत संस्थाएँ बुनियादी ढाँचे के विकास का समर्थन करती हैं, जिससे व्यापार और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है। 
    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP) का लक्ष्य वर्ष 2025 तक भारत में अवसंरचना, कनेक्टिविटी में सुधार और सतत आर्थिक विकास के लिए 111 लाख करोड़ रुपये का निवेश करना है।
  • मानव पूंजी को सशक्त बनाना: शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा पर ध्यान केंद्रित करने वाले संस्थान कुशल कार्यबल का निर्माण करते हैं, जो दीर्घकालिक विकास में सहायता करता है।
    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (2020) का लक्ष्य वर्ष 2035 तक उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात को दोगुना करना है, जिससे देश अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ उठा पाये।

किसी राष्ट्र की आर्थिक सफलता निर्धारित करने में संस्थाओं की कमियाँ

  • भ्रष्टाचार और प्रशासनिक अक्षमताएँ: भ्रष्टाचार संस्थागत प्रभावशीलता को कम कर सकता है, जिससे निवेश और विकास में कमी आ सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा भ्रष्टाचार बोध सूचकांक -2023 में भारत की निम्न रैंक ( 85वाँ स्थान) भ्रष्टाचार को कम करने में आने वाली चुनौतियों को उजागर करती है, जो निवेशकों को हतोत्साहित कर सकती है।
  • धीमी न्यायिक प्रक्रियाएँ: न्यायिक प्रक्रियाओं में विलम्ब से व्यवसाय संचालन में बाधा आ सकती है और आर्थिक गतिविधियाँ बाधित हो सकती हैं। 
    • उदाहरण के लिए: विश्व बैंक के अनुसार, भारत में वाणिज्यिक विवादों को सुलझाने में औसत समय 1,400 दिनों से अधिक है, जिससे व्यवसाय संबंधी कानूनी प्रक्रियाएँ बोझिल हो जाती हैं।
  • सुधारों का विरोध: संस्थाओं को अक्सर सुधारों के विरोध का सामना करना पड़ता है, जिससे बदलाव की गति मंद  हो जाती है। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2020 में भारत में कृषि सुधारों के खिलाफ हुये विरोध प्रदर्शनों ने आर्थिक सुधारों और जनता की स्वीकृति का संतुलन बनाने में उन चुनौतियों को उजागर किया जो नीति कार्यान्वयन को  प्रभावित करती हैं।
  • संस्थागत लाभों तक असमान पहुँच: सुधारों के बावजूद, वंचित समुदायों को अक्सर लाभ पाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। 
    • उदाहरण के लिए: डिजिटल इंडिया पहल, यद्यपि व्यापक है, लेकिन यह डिजिटल विभाजन की समस्या से ग्रस्त है, जिसमें केवल 37% ग्रामीण क्षेत्रों में ही इंटरनेट उपलब्ध है, जिससे आर्थिक समावेशन सीमित हो रहा है।
  • निर्णयन प्रक्रिया का अतिकेंद्रीकरण: केंद्रीकृत शक्ति क्षेत्रीय स्वायत्तता को सीमित कर सकती है, जिससे स्थानीय विकास प्रभावित हो सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत के राजकोषीय संघवाद में राज्यों ने स्थानीय आर्थिक आवश्यकताओं को बेहतर ढंग से पूर्ण करने के लिए GST राजस्व पर अधिक नियंत्रण की माँग की है।
  • नीतियों में अनिश्चितता: निरंतर होने वाले नीति परिवर्तन अनिश्चितता उत्पन्न कर सकते हैं, जिससे दीर्घकालिक निवेश हतोत्साहित हो सकते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: भारत की ई-कॉमर्स और डेटा स्थानीयकरण नीतियों में हुये परिवर्तनों ने वैश्विक निवेशकों के बीच विनियामक पूर्वानुमान के संबंध में चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमो में अक्षमताएँ: सरकारी स्वामित्व वाले उद्यम अक्सर कम उत्पादन कर पाते हैं, जिससे आर्थिक दक्षता प्रभावित होती है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत की घाटे में चल रही सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों को सरकारी सहायता मिलती रहती है, जिससे राजकोषीय स्वास्थ्य प्रभावित होता है और विकासोन्मुख निवेशों में संसाधन की कमी हो जाती है।

औपनिवेशिक इतिहास ने आधुनिक संस्थाओं को किस प्रकार आकार दिया है-

  • केंद्रीकृत शासन की शुरूआत: औपनिवेशिक शक्तियाँ अक्सर केंद्रीकृत प्रशासनिक प्रणालियाँ स्थापित करती हैं जो स्वतंत्रता के बाद भी जारी रहती हैं।
  • भूमि स्वामित्व प्रणाली: उपनिवेशीकरण ने भूमि स्वामित्व प्रणाली शुरू की जिसमें विकास की तुलना में निष्कर्षण को प्राथमिकता दी गई। 
    • उदाहरण के लिए: भारत में जमींदारी प्रथा के कारण भूमि अधिग्रहण और ग्रामीण गरीबी बढ़ी, जिसके प्रभाव आज भी आर्थिक असमानताओं पर असर डालते हैं।
  • कानूनी और न्यायिक प्रणालियाँ: उपनिवेशवादियों ने पश्चिमी कानूनी ढाँचे लागू किए जो वर्तमान कानूनी प्रणालियों को आकार देते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: ब्रिटिश कॉमन लॉ पर आधारित भारत की कानूनी प्रणाली प्रभावशाली बनी हुई है, परंतु लंबित मामलों को निपटाने में इसको चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • संसाधन निष्कर्षण पर केंद्रित बुनियादी ढाँचा: औपनिवेशिक बुनियादी ढाँचे को निष्कर्षण की सुविधा के लिए डिजाइन किया गया था, जिसने दीर्घकालिक विकास को प्रभावित किया।
    • उदाहरण के लिए: भारत की रेलवे, जिसे शुरू में कच्चे माल के परिवहन के लिए बनाया गया था, ने आधुनिक रेल नेटवर्क की नींव रखी, लेकिन इसका विकास मुख्य रूप से औपनिवेशिक हितों के लिए हुआ था। 
  • शिक्षा प्रणाली और अभिजात वर्ग: उपनिवेशवादियों ने प्रशासन के लिए स्थानीय अभिजात वर्ग को प्रशिक्षित करने हेतु शिक्षा प्रणाली की स्थापना की। 
    • उदाहरण के लिए: कलकत्ता विश्वविद्यालय (1857) जैसे विश्वविद्यालयों की स्थापना अंग्रेजी बोलने वाले प्रशासकों का एक वर्ग तैयार करने के लिए की गई थी, जिसने स्वतंत्रता के बाद भारत की प्रशासनिक कार्यप्रणाली को प्रभावित किया।

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भारत जैसे देशों में आर्थिक विकास पर संस्थाओं का प्रभाव

  • आर्थिक सुधार और विकास: संस्थागत सुधारों ने भारत के आर्थिक उदारीकरण को गति प्रदान की है , जिससे विकास और वैश्विक बाजार के साथ एकीकरण को बढ़ावा मिला है।
  • बेहतर वित्तीय समावेशन: संस्थाओं ने व्यापक वित्तीय समावेशन को सक्षम बनाया है, जिससे लाखों लोगों को लाभ हुआ है। 
    • उदाहरण के लिए: जन धन योजना के अंतर्गत 500 मिलियन से अधिक बैंक खाते खोले गये हैं, जिससे लोगों को औपचारिक बैंकिंग तक पहुँच प्राप्त हुई है और गरीबी भी कम हुई है।
  • कृषि नीतियाँ और ग्रामीण विकास: संस्थागत पहलों ने कृषि उत्पादकता और प्रत्यास्थता को बढ़ावा दिया है। 
    • उदाहरण के लिए: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY), लाखों किसानों को जोखिम से बचाते हुए फसल बीमा प्रदान करती है।
  • सामाजिक कल्याण योजनाएँ: संस्थाएँ सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करती हैं । 
    • उदाहरण के लिए: मनरेगा ने ग्रामीण आजीविका को समर्थन देते हुए 3 बिलियन से अधिक व्यक्ति-दिवस रोजगार सृजित किए हैं।
  • डिजिटल अवसंरचना और ई-गवर्नेंस: डिजिटल अवसंरचना में निवेश से सार्वजनिक सेवा वितरण में सुधार हुआ है। 
    • उदाहरण के लिए: आधार प्रणाली ने सब्सिडी वितरण को सुव्यवस्थित किया है , पारदर्शिता में सुधार किया है और कल्याणकारी सेवाओं तक पहुँच को आसान बनाया है।

अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार 2024, किसी देश के आर्थिक भविष्य को आकार देने में समावेशी संस्थानों की भूमिका पर बल देता है। जबकि सशक्त संस्थान विकास और समानता को बढ़ावा देते हैं, सुधार और नवाचार के माध्यम से उनकी कमियों को दूर करना निरंतर प्रगति के लिए आवश्यक है। शिक्षा, पारदर्शिता और सहयोगी शासन पर संतुलित ध्यान यह सुनिश्चित कर सकता है, कि संस्थान आर्थिक समृद्धि में योगदान देते रहें।

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