Q. भारत दुग्ध का सबसे बड़ा उत्पादक होने के बावजूद, सामाजिक-आर्थिक और क्षेत्रीय समूहों में दुग्ध की खपत में असमानताएँ बनी हुई हैं। इन असमानताओं के पीछे के कारणों की जाँच कीजिए और समाज के कमजोर वर्गों के लिए दुग्ध की समान पहुँच सुनिश्चित करने के लिए नीतिगत उपाय भी सुझाएँ। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • दुग्ध का सबसे बड़ा उत्पादक देश होने के बावजूद, भारत में सामाजिक-आर्थिक और क्षेत्रीय समूहों के बीच दुग्ध की खपत में मौजूद असमानताओं का मूल्यांकन कीजिए।
  • इन असमानताओं के पीछे के कारणों का परीक्षण कीजिए।
  • समाज के सुभेद्य वर्गों के लिए दुग्ध की समान पहुँच सुनिश्चित करने हेतु नीतिगत उपाय सुझाइये।

उत्तर

श्वेत क्रांति से प्रेरित भारत के डेयरी क्षेत्र ने इसे विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक बना दिया है, फिर भी इसकी पहुँच अत्यधिक असमान बनी हुई है। आय असमानताएँ, क्षेत्रीय विविधताएँ और सामर्थ्य संबंधी बाधाएँ जैसे कारक सुभेद्य समूहों के बीच दुग्ध की खपत को सीमित करते हैं। कुपोषण और अतिपोषण पर बढ़ती चिंताओं के साथ, इन अंतरों को कम करने और समाज के सभी वर्गों में समान पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए लक्षित नीतियाँ आवश्यक हैं।

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सामाजिक-आर्थिक और क्षेत्रीय समूहों के बीच दुग्ध  की खपत में असमानताएँ

  • आय-आधारित असमानताएँ: शीर्ष आय वर्ग के परिवार सामान्य आय वर्ग की तुलना में तीन से चार गुना अधिक उपभोग करते हैं। प्रति व्यक्ति दुग्ध  की खपत निम्न आय वर्ग के लोगों की तुलना में अधिक है, जो महत्त्वपूर्ण आर्थिक बाधाओं को दर्शाता है। 
    • उदाहरण के लिए: सबसे गरीब 30% परिवार, भारत के दुग्ध का केवल 18% उपभोग करते हैं, जो कुल मिलाकर उच्च उत्पादन होने के बावजूद निम्न आय वर्ग में वहनीयता संबंधी चुनौतियों को उजागर करता है।
  • शहरी-ग्रामीण विभाजन: शहरी परिवार, 30% अधिक दुग्ध  का उपभोग करते हैं। जबकि भारत में दुग्ध  का अधिकांश उत्पादन ग्रामीण क्षेत्रों में होता है।
  • क्षेत्रीय असमानताएँ: राजस्थान, पंजाब और हरियाणा जैसे पश्चिमी और उत्तरी राज्यों में दुग्ध  की  प्रति व्यक्ति खपत अधिक है (333g-421g प्रतिदिन), जबकि छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे पूर्वी राज्यों में प्रति व्यक्ति खपत केवल 75g-171g प्रतिदिन है। 
    • उदाहरण के लिए: हरियाणा की डेयरी-अनुकूल संस्कृति और सहकारी नेटवर्क, घरों में दुग्ध  की उच्च खपत को सक्षम बनाते हैं।
  • सामाजिक विषमताएँ: जनजातीय (ST) परिवार सामान्य रूप से अन्य परिवारों की तुलना में प्रति व्यक्ति चार लीटर कम दुग्ध  का उपभोग करते हैं, जो गहरी सामाजिक असमानताओं को उजागर करता है। 
    • उदाहरण के लिए: डेयरी बाजारों तक सीमित पहुँच और आर्थिक वंचन, ST समुदायों को दुग्ध के पोषण संबंधी लाभों के बावजूद कम लागत वाले, गैर-डेयरी विकल्पों पर निर्भर रहने के लिए मजबूर करते हैं।
  • संपन्न समूहों में अत्यधिक उपभोग:  सघन शहरी आबादी अनुशंसित स्तर से दोगुना से अधिक दुग्ध  का उपभोग करती है, मुख्य रूप से उच्च वसा, उच्च चीनी वाले डेयरी उत्पादों के माध्यम से, जो मोटापे और संबंधित बीमारियों में योगदान देता है। 
    • उदाहरण के लिए: पैकेज्ड मिल्क आधारित मिठाइयाँ और आइसक्रीम अत्यधिक डेयरी सेवन में प्रमुख योगदान देती हैं, जिससे मधुमेह जैसी गैर-संचारी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

दुग्ध की खपत में असमानता के पीछे कारण

  • वहनीयता संबंधी बाधाएँ: निम्न आय वर्ग के लिए दुग्ध  महंगा है। प्रतिदिन 300 ग्राम की अनुशंसित मात्रा को पूरा करने के लिए उन्हें अपने मासिक व्यय का 10%-30% खर्च करना पड़ता है। 
    • उदाहरण के लिए: प्रतिदिन ₹300 कमाने वाला एक दिहाड़ी मजदूर केवल दुग्ध के लिए ₹30-₹90 खर्च करने में विचार करने हेतु विवश हो सकता है, जिससे उसे आहार संबंधी समझौता करने पर मजबूर होना पड़ेगा।
  • आपूर्ति श्रृंखला और वितरण अंतराल: ग्रामीण उत्पादकों के पास उचित भंडारण और वितरण नेटवर्क का अभाव है, जिसके कारण निम्न आय वाले और दूरदराज के परिवारों तक पहुंचने में अक्षमता होती है।
  • सांस्कृतिक और आहार संबंधी प्राथमिकताएँ: लैक्टोज असहिष्णुता और आहार संबंधी विकल्प दुग्ध की खपत को प्रभावित करते हैं, विशेषकर पूर्वी और आदिवासी क्षेत्रों में, जहाँ वैकल्पिक प्रोटीन स्रोतों को प्राथमिकता दी जाती है। 
    • उदाहरण के लिए: झारखंड में आदिवासी समुदाय, सांस्कृतिक आहार आदतों और उच्च लैक्टोज असहिष्णुता दर के कारण दालों और बाजरा पर निर्भर हैं।
  • कुछ राज्यों में अपर्याप्त सरकारी सहायता: कुछ राज्यों ने वित्तीय बाधाओं के कारण कल्याणकारी योजनाओं में दुग्ध  का प्रावधान बंद कर दिया, जिससे सुभेद्य आबादी तक दुग्ध  की पहुँच कम हो गई। 
    • उदाहरण के लिए: छत्तीसगढ़ ने एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) के तहत दुग्ध  उपलब्ध कराना बंद कर दिया, जिससे बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए पोषण सहायता कमजोर हो गई।
  • पोषण संबंधी लाभों के बारे में जागरूकता की कमी: कई कम आय वाले परिवारों में कुपोषण और बौनेपन को रोकने में दुग्ध  के महत्त्व के बारे में जानकारी का अभाव है। 
    • उदाहरण के लिए: बिहार और महाराष्ट्र में महिलाओं ने दुग्ध  के सेवन के बाद आहार विविधता में सुधार दिखाया। आंगनवाड़ी केन्द्रों के माध्यम से लक्षित पोषण जागरूकता अभियान।

दुग्ध की समान उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए नीतिगत उपाय

  • पोषण कार्यक्रमों को मजबूत करना: प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण (POSHAN) और ICDS जैसी योजनाओं के लिए वित्तीय आवंटन में वृद्धि करनी चाहिए ताकि स्कूल के भोजन और घर ले जाने वाले राशन में दुग्ध  उपलब्ध कराया जा सके। 
    • उदाहरण के लिए: कर्नाटक और गुजरात जैसे राज्य पहले से ही स्कूल पोषण कार्यक्रमों के तहत दुग्ध उपलब्ध कराते हैं लेकिन कवरेज का विस्तार करने से बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है।
  • कम आय वाले परिवारों के लिए मिल्क कूपन: वितरण लागत कम करने और सामर्थ्य बढ़ाने के लिए मजबूत डेयरी नेटवर्क वाले क्षेत्रों में सुभेद्य परिवारों के लिए मिल्क कूपन की शुरुआत करनी चाहिये। 
    • उदाहरण के लिए: गुजरात में डेयरी सहकारी समितियाँ, कल्याणकारी कार्यक्रमों के साथ साझेदारी कर सकती हैं ताकि स्थानीय दुकानों पर इस्तेमाल किये जा सकने वाले मिल्क वाउचर की पेशकश की जा सके।
  • अभिनव वित्तपोषण समाधान: सब्सिडी वाले दुग्ध  वितरण के लिए संसाधन जुटाने हेतु
    सामाजिक बांड, CSR फंडिंग और अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों पर विचार करना चाहिए।

    •  उदाहरण के लिए: आइसक्रीम जैसे उच्च शुगर वाले डेयरी उत्पादों पर लगाये गये एक छोटे  उपकर को कुपोषित जिलों में दुग्ध वितरण के लिए पुनर्निर्देशित किया जा सकता है।
  • पोषण जागरूकता अभियान:  महिलाओं और परिवारों को दुग्ध  के महत्त्व के बारे में शिक्षित करने के लिए आंगनवाड़ी केंद्रों, स्वयं सहायता समूहों और मीडिया भागीदारी का उपयोग करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: महाराष्ट्र के पोषण माह 2024 अभियान ने संतुलित आहार के संबंध में सफलतापूर्वक जागरूकता बढ़ाई, जिससे ग्रामीण समुदायों में आहार विविधता में सुधार हुआ।
  • संपन्न समूहों में अत्यधिक उपभोग को नियंत्रित करना: ब्रिटेन के चेंज4लाइफ शुगर स्वैप्स अभियान की तरह, अत्यधिक डेयरी सेवन को रोकने के लिए‌ स्वास्थ्य संदेश के माध्यम से संयम को प्रोत्साहित करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: डॉक्टर और पोषण विशेषज्ञ, स्वस्थ डेयरी उपभोग पैटर्न की वकालत कर सकते हैं, जिससे मोटापे और गैर-संचारी रोगों को कम करने में मदद मिल सकती है।

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दुग्ध  की खपत में असमानताओं को कम करने के लिए लक्षित सब्सिडी, मजबूत सार्वजनिक वितरण प्रणाली और छोटे पैमाने पर डेयरी फार्मिंग के लिए प्रोत्साहन की आवश्यकता है। कोल्ड स्टोरेज से संबंधित बुनियादी ढाँचे को मजबूत करने और फोर्टिफाइड डेयरी उत्पादों को बढ़ावा देने से दुग्ध  की उपलब्धता को बढ़ाया जा  सकता है। प्रौद्योगिकी और जागरूकता अभियानों को एकीकृत करने वाला एक बहु-हितधारक दृष्टिकोण पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करेगा, जिससे एक स्वस्थ और समतापूर्ण भारत का निर्माण होगा

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