Q. ताइवान जलडमरूमध्य संकट न केवल एक क्षेत्रीय विवाद का विषय है, बल्कि एक संभावित वैश्विक आर्थिक और सुरक्षा चुनौती भी है। भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक हितों पर इसके प्रभावों का विश्लेषण कीजिये। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • ताइवान एक क्षेत्रीय विवाद का विषय क्यों है?
  • चर्चा कीजिए कि ताइवान किस प्रकार वैश्विक आर्थिक और सुरक्षा चुनौती प्रस्तुत करता है।
  • भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक हितों पर पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण कीजिए।
  • भारत के लिए आगे की राह लिखिये।

उत्तर

ताइवान जलडमरूमध्य संकट, वैश्विक आर्थिक और सुरक्षा निहितार्थों के साथ एक महत्त्वपूर्ण भू-राजनीतिक फ्लैशपॉइंट है। सेमीकंडक्टर उत्पादन में ताइवान का रणनीतिक स्थान और प्रभुत्व, किसी भी संघर्ष को अत्यधिक विघटनकारी बनाता है। भारत के लिए, यह संकट राष्ट्रीय सुरक्षा, व्यापार मार्गों और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में आर्थिक स्थिरता के लिए जोखिम उत्पन्न करता है।

एक क्षेत्रीय संघर्ष बिंदु के रूप में ताइवान

  • ऐतिहासिक तनाव: ताइवान जलडमरूमध्य वर्ष 1950 के दशक से ही एक अस्थिर क्षेत्र रहा है, जिसे अमेरिका और चीन के बीच अपनी सामरिक अवस्थिति के कारण “डैंजर प्वाइंट” के रूप में जाना जाता है।
  • सैन्य वृद्धि: वर्ष 2022 से, चीन की PLA  ने ताइवान के एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन जोन (ADIZ) में अभ्यास और घुसपैठ बढ़ा दी है, जिसे अमेरिका संभावित आक्रमण पूर्वाभ्यास के रूप में देख रहा है।
  • राजनीतिक तनाव: राष्ट्रपति लाई के अधीन ताइवान की नीतियों को बीजिंग, स्वतंत्रता समर्थक नीति के रूप में देखता है, जिससे आपसी अविश्वास बढ़ता है।
  • डेविडसन विंडो (वर्ष 2021): एक अमेरिकी एडमिरल ने वर्ष 2027 तक संभावित चीनी कार्रवाई की चेतावनी दी, जिससे इंडो-पैसिफिक पर ध्यान केंद्रित हुआ।
  • अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता: ताइवान दोनों देशों के बीच बढ़ते शक्ति संघर्ष और वैचारिक संघर्ष का केंद्र है।

ताइवान किस प्रकार वैश्विक आर्थिक और सुरक्षा चुनौती बन रहा है

आर्थिक चुनौतियाँ सुरक्षा चुनौतियाँ
सेमीकंडक्टर निर्भरता: ताइवान में TSMC स्थित है, जो दुनिया की सबसे बड़ी उन्नत चिप निर्माता कंपनी है। सैन्य वृद्धि का जोखिम: खुला संघर्ष अमेरिका के सहयोगियों (जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया) को भी आकर्षित कर सकता है, तथा एक व्यापक क्षेत्रीय या वैश्विक युद्ध का रूप ले सकता है।
वैश्विक आपूर्ति शृंखलाएँ: ताइवान दक्षिण चीन सागर सहित हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री व्यापार मार्गों का केंद्र है। कोई भी नाकाबंदी या संघर्ष शिपिंग मार्गों को बुरी तरह प्रभावित करेगा। साइबर सुरक्षा खतरे: चीन अपनी ताइवान रणनीति के तहत बड़े पैमाने पर साइबर हमलों का उपयोग कर सकता है, जिससे वैश्विक संचार और वित्तीय प्रणालियाँ बाधित हो सकती हैं।
पनडुब्बी केबल अवसंरचना: ताइवान के निकट अंडरसी इंटरनेट केबल में व्यवधान से वैश्विक इंटरनेट यातायात और संचार प्रभावित हो सकता है, विशेष रूप से एशिया-प्रशांत क्षेत्र में। परमाणु खतरे में वृद्धि: लंबे समय तक चलने वाले संकट में, परमाणु खतरे की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है, विशेष रूप से तब जब अमेरिका और चीन दोनों ही परमाणु शक्तियाँ हैं।

भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक हितों पर प्रभाव

राष्ट्रीय सुरक्षा हित आर्थिक हित
सामरिक दबाव: भारत को अमेरिका और चीन के साथ संबंधों में संतुलन बनाने में कठिनाई हो सकती है, जिससे उसकी स्वायत्तता प्रभावित होगी। व्यापार व्यवधान: ताइवान जलडमरूमध्य तनाव भारत के व्यापार के लिए महत्वपूर्ण हिंद-प्रशांत शिपिंग मार्गों को बाधित कर सकता है।
समुद्री खतरे: नौसेना संचालन और समुद्री मार्ग सुरक्षा से समझौता हो सकता है। चिप निर्भरता: संघर्ष के कारण ताइवान का चिप निर्यात रुक सकता है, जिससे भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटो क्षेत्र पर असर पड़ सकता है।
सीमा तनाव: अमेरिका-चीन गतिरोध के बीच चीन LAC पर संघर्ष बढ़ा सकता है। मुद्रास्फीति जोखिम: युद्ध से तकनीकी और औद्योगिक वस्तुओं की वैश्विक कीमतें बढ़ सकती हैं, जिसका असर भारत पर पड़ेगा।
साइबर खतरे: चीन साइबर हमलों के माध्यम से भारत के डिजिटल बुनियादी ढाँचे को निशाना बना सकता है। निवेशक अनिश्चितता: क्षेत्रीय अस्थिरता विदेशी निवेश को बाधित कर सकती है और बाजार में अस्थिरता बढ़ा सकती है।

आगे की राह 

  • सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखला में विविधता लाना: सेमीकंडक्टर मिशन में तेजी लाना तथा निर्भरता कम करने के लिए जापान, अमेरिका और ताइवान जैसे देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी को प्रोत्साहित करना।
  • समुद्री सुरक्षा को मजबूत करना: अंडमान और निकोबार क्षेत्र में नौसैनिक उपस्थिति और रणनीतिक ठिकानों का निर्माण करना तथा व्यापार सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए QUAD भागीदारों के साथ सहयोग बढ़ाना।
  • रणनीतिक संतुलन: सक्रिय भागीदारी के साथ गुटनिरपेक्षता बनाए रखनी चाहिए- प्रत्यक्ष संघर्ष में उलझने से बचते हुए अंतर्राष्ट्रीय कानून के लिए समर्थन पर बल‌ देना चाहिए।
  • साइबर सुरक्षा को बढ़ावा देना: साइबर सुरक्षा के बुनियादी ढाँचे में निवेश करना तथा संभावित चीनी हमलों के विरुद्ध महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों को मजबूत बनाने के लिए सार्वजनिक-निजी सहयोग को बढ़ाना चाहिए।
  • आर्थिक आकस्मिक योजना: वैकल्पिक व्यापार कॉरिडोर विकसित करना, तथा महत्त्वपूर्ण तकनीकी घटकों का भण्डारण करना।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत अद्यतन: ताइवान जलडमरूमध्य और हिंद-प्रशांत गतिशीलता को भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति योजना में एकीकृत करना चाहिए।

ताइवान जलडमरूमध्य संकट सिर्फ द्विपक्षीय मुद्दा नहीं है, इसका भारत की आर्थिक प्रत्यास्थता, समुद्री सुरक्षा और एशिया में रणनीतिक स्थिति पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। बदलती वैश्विक व्यवस्था के बीच अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा हेतु भारत के लिए एक संतुलित, सक्रिय और लचीला दृष्टिकोण आवश्यक है।

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