उत्तर:
दृष्टिकोण:
- परिचय: कुछ प्रमुख आंकड़ों का उपयोग करके भारत के जल संकट की तात्कालिकता पर प्रकाश डालिए। शहरी केंद्रों के संबंध में नीति आयोग द्वारा जारी सीडब्ल्यूएमआई रिपोर्ट, 2018 की चिंताजनक भविष्यवाणियों का हवाला दीजिए।
- मुख्य विषयवस्तु:
- ‘डे ज़ीरो‘ परिदृश्य और राष्ट्र के लिए इसके आर्थिक प्रभावों का जिक्र करते हुए जल संकट को विस्तार से बताएं।
- जल संचयन को परिभाषित करते हुए इसका महत्व बताइए।
- शहरी क्षेत्रों में जल संचयन को अपनाने की रणनीतियों पर चर्चा कीजिए।
- प्रासंगिक उदाहरण अवश्य प्रदान कीजिए।
- निष्कर्ष: सामूहिक जिम्मेदारी और सतत जल उपयोग के मूल्य पर जोर देते हुए निष्कर्ष निकालिए।
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परिचय:
भारत इस समय बड़े जल संकट के कगार पर खड़ा हुआ है। लगातार विगत दो वर्षों के कमजोर मानसून के बाद, 330 मिलियन लोग, जो भारत की आबादी का एक चौथाई हिस्सा हैं, गंभीर सूखे का सामना कर रहे हैं। ऐसे में देखा जाये तो लगभग आधा देश सूखे जैसी स्थिति का सामना कर रहा है। गौरतलब है कि पश्चिमी और दक्षिणी राज्य गंभीर रूप से प्रभावित हो रहे हैं, जहां सामान्य से कम वर्षा हुई है। ऐसी विकट परिस्थितियों में, विशेषकर शहरी क्षेत्रों में, जल संचयन जैसे स्थायी समाधानों का महत्व सर्वोपरि हो जाता है।
मुख्य विषयवस्तु:
वर्तमान परिदृश्य और स्थिति की तात्कालिकता:
- विदित हो कि पूर्व से ही भारत की लगभग 12% आबादी ‘डे जीरो‘ परिदृश्य का सामना कर रही है, जिसमें मुख्य रूप से अत्यधिक भूजल दोहन, अकुशल जल प्रबंधन के कारण नल का सूख जाना और लगातार कम वर्षा वाले वर्ष इस स्थिति को और गंभीर बना रहे हैं।
- यह बढ़ता जल संकट न केवल बुनियादी मानव अधिकार तक पहुंच को खतरे में डालता है, बल्कि 2030 तक देश की जीडीपी में 6% की गिरावट भी ला सकता है, क्योंकि संभव है कि मांग आपूर्ति से आगे निकल जाएगी।
जल संचयन द्वारा प्रदान किए जाने वाले निवारण:
- जल संचयन, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में, एक शक्तिशाली समाधान के रूप में कार्य कर सकता है। वर्षा और बहते पानी को एकत्रित और संग्रहित करके, शहर घटते भूजल स्रोतों पर अपनी अत्यधिक निर्भरता को कम कर सकते हैं।
- उदाहरण के लिए, 2002 में चेन्नई में वर्षा जल संचयन के कार्यान्वयन ने बाद में पानी की कमी के दौरान एक जीवन रेखा प्रदान की, जिससे शहर के कई हिस्सों में भूजल स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
शहरी क्षेत्रों में जल संचयन को बढ़ाने के कारगर उपाय:
- नीतिगत उपाय: नए बिल्डिंग निर्माणों में वर्षा जल संचयन को अनिवार्य बनाना और इसे अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना आवश्यक प्रोत्साहन प्रदान कर सकता है।
- उदाहरण के लिए, दिल्ली में वर्षा जल संचयन करने वाले परिवारों के लिए संपत्ति कर में छूट का प्रावधान।
- तकनीकी नवाचार: एकत्रित पानी की निगरानी, अनुकूलन और कुशल उपयोग सुनिश्चित करने के लिए IoT( Internet of Things) जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियों को एकीकृत करने से लाभ बढ़ सकता है।
- शहरी बुनियादी ढाँचे में संशोधन: जल-संवेदनशील शहरी डिज़ाइन, जैसे कि पारगम्य फुटपाथ और हरी छतें बनाना, वर्षा जल अवशोषण और भंडारण को बढ़ा सकता है।
- उदाहरण के लिए, हैदराबाद की ‘झील पुनरुद्धार‘ परियोजना जो अपनी प्राचीन झीलों को बहाल करने, भूजल पुनर्भरण में मदद करने पर केंद्रित है।
- सहयोगात्मक कार्रवाईयां: नगर निकायों, गैर सरकारी संगठनों और नागरिक समूहों को संरेखित करने से न केवल जल संचयन प्रणालियों का निर्माण बल्कि रखरखाव और अनुकूलन सुनिश्चित किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिए, जयपुर नगर पालिका और गैर सरकारी संगठन तरुण भारत संघ के बीच सहयोग के परिणामस्वरूप शहर भर में कई जल संचयन संरचनाओं की स्थापना हुई।
- जागरूकता और शिक्षा: शहरी आबादी को पानी की कमी के बारे में जागरूक करना और उन्हें सरल जल संचयन तकनीकों से परिचित कराना समुदाय-संचालित समाधानों को बढ़ावा दे सकता है।
- उदाहरण के लिए, बेंगलुरु का ‘कैच एवरी ड्रॉप‘ अभियान, छत पर वर्षा जल संचयन के महत्व पर जोर देता है।
निष्कर्ष:
घटते जल संसाधनों के साथ विशाल शहरी परिदृश्य का मेल भारत के लिए एक गंभीर चुनौती है। लेकिन इतिहास से सबक मिलता है कि, प्रतिकूल परिस्थितियाँ अकसर नवीनता को जन्म देती हैं। शहरी केंद्रों में जल संचयन सिर्फ एक समाधान से कहीं अधिक हो सकता है; यह एक क्रांति हो सकती है, जो भारत के आसन्न जल संकट का रुख मोड़ सकती है। हर बूंद को महत्व देकर और एकजुट रणनीतियों को अपनाकर, भारत अपने भविष्य की रक्षा कर सकता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि पानी एक अधिकार बना रहे न कि विशेषाधिकार।
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