Q. भारत की रक्षा साझेदारी, विशेष रूप से अमेरिका के साथ, तकनीकी उन्नति और रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने के बीच एक दुविधा प्रस्तुत करती है। भारत के स्वदेशी रक्षा उत्पादन लक्ष्यों और भू-राजनीतिक बाधाओं के संदर्भ में इस संतुलन का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • चर्चा कीजिए कि किस प्रकार भारत की रक्षा साझेदारियाँ, विशेषकर अमेरिका के साथ, तकनीकी प्रगति और रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने के बीच एक रणनीतिक दुविधा प्रस्तुत करती हैं।
  • भारत के स्वदेशी रक्षा उत्पादन लक्ष्यों और भू-राजनीतिक बाधाओं के संदर्भ में इस संतुलन का विश्लेषण कीजिए।
  • आगे की राह लिखिये।

उत्तर

सामरिक स्वायत्तता का तात्पर्य किसी देश की बाहरी प्रभाव के बिना स्वतंत्र रक्षा और विदेश नीतियों को आगे बढ़ाने की क्षमता से है। विशेष रूप से BECA, LEMOA और COMCASA जैसे समझौतों के माध्यम से भारत, अमेरिका के साथ रक्षा संबंधों को मजबूत करते हुए दुविधा का सामना कर रहा है। दीर्घकालिक सुरक्षा और आत्मनिर्भरता के लिए स्वदेशी रक्षा क्षमताओं और बाह्य सहयोग को संतुलित करना महत्त्वपूर्ण है।

प्रौद्योगिकी उन्नति और रणनीतिक स्वायत्तता के बीच रणनीतिक दुविधा

  • अमेरिकी प्रौद्योगिकी पर निर्भरता: तेजस और AMCA जैसी स्वदेशी परियोजनाओं के लिए अमेरिकी इंजनों और प्रणालियों पर भारत की बढ़ती निर्भरता से अमेरिकी रणनीतिक हितों के आधार पर परिचालन संबंधी बाधाओं का खतरा है।
    • उदाहरण के लिए: भू-राजनीतिक मतभेदों के कारण अमेरिका ने तुर्की को F-35 लड़ाकू विमानों की आपूर्ति रोक दी।
  • अमेरिकी नीतियों की अल्प अवधि: रक्षा प्रौद्योगिकी और व्यापार पहल (DTTI) और हालिया समझौतों जैसे रक्षा ढांचे में अक्सर अमेरिकी विदेश नीति में बदलाव के कारण निरंतरता का अभाव रहता है।
    • उदाहरण के लिए: अफगानिस्तान से अमेरिका के बाहर निकलने से क्षेत्रीय साझेदारों के साथ सैन्य समन्वय बाधित हुआ।
  • क्षमताओं में विषमता: रक्षा अनुसंधान एवं विकास में अमेरिका का प्रभुत्व है, जिससे भारत एक समान भागीदार के बजाय प्रौद्योगिकी प्राप्तकर्ता बन गया है।
    • उदाहरण के लिए: भारत-अमेरिका जेट इंजन सौदा (वर्ष 2023) अभी भी प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के संबंध में अमेरिकी विवेक पर निर्भर करता है।
  • संभावित रणनीतिक दबाव: यदि भारत स्वतंत्र विदेश नीति का विकल्प अपनाता है तो अमेरिकी गठबंधन और प्रतिबंध नीतियाँ भारत की सैन्य तैयारियों को प्रभावित कर सकती हैं।
    • उदाहरण के लिए: रूस से S-400 मिसाइल खरीद पर भारत के CAATSA प्रतिबंधों के खतरे ने भारत की सामरिक स्वायत्तता की परीक्षा ली।
  • विविधीकरण पर प्रभाव: अमेरिका पर अत्यधिक निर्भरता रूस, इजरायल और फ्रांस के साथ भारत की स्थापित साझेदारियों को सीमित कर सकती है, जिससे आपूर्ति श्रृंखला सुरक्षा प्रभावित हो सकती है।
    • उदाहरण के लिए: रूस भारत को 36% हथियार उपलब्ध कराता है, जिससे पश्चिमी नीतिगत बदलावों के प्रति भारत की प्रत्यास्थता सुनिश्चित होगी।

भारत के स्वदेशी रक्षा उत्पादन लक्ष्यों और भू-राजनीतिक बाधाओं के संदर्भ में संतुलन

भारत के स्वदेशी रक्षा उत्पादन लक्ष्य

  • रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत: भारत तेजस Mk2, AMCA और कावेरी इंजन परियोजनाओं जैसी पहलों के माध्यम से आत्मनिर्भरता का लक्ष्य रखता है।
    • उदाहरण के लिए: तेजस Mk1A का उत्पादन बढ़ाने का उद्देश्य लड़ाकू विमानों के आयात को कम करना है।
  • सार्वजनिक-निजी सहयोग: घरेलू रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और निजी फर्मों को मजबूत करने से स्वदेशी विनिर्माण और प्रौद्योगिकी अवशोषण सुनिश्चित होता है।
    • उदाहरण के लिए: K9 वज्र तोपखाना उत्पादन में L&T की भागीदारी से घरेलू क्षमता में वृद्धि हुई है।
  • निर्यातोन्मुख रक्षा रणनीति: भारत विदेशी आयात पर निर्भरता कम करते हुए वैश्विक हथियार आपूर्तिकर्ता बनना चाहता है।
    • उदाहरण के लिए: फिलीपींस को ब्रह्मोस मिसाइल का निर्यात, वैश्विक रक्षा व्यापार में भारत की बढ़त को दर्शाता है।

भू-राजनीतिक बाधाएँ

  • अमेरिका और रूस संबंधों में संतुलन: अमेरिकी प्रौद्योगिकी पर निर्भरता से भारत के प्राथमिक रक्षा आपूर्तिकर्ता रूस के साथ सामरिक संबंधों को खतरा हो सकता है।
  • हिंद-प्रशांत सुरक्षा संरचना को आगे बढ़ाना: अमेरिका के साथ QUAD संबंधों को मजबूत करना भारत की स्वतंत्र क्षेत्रीय भूमिका के साथ संतुलित होना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: AUKUS में भारत की गुटनिरपेक्षता अमेरिका-चीन संघर्षों में उलझने से बचाती है।
  • विदेशी प्रौद्योगिकी पर निर्भरता का प्रबंधन: विदेशी रक्षा आपूर्ति में देरी या प्रतिबंध भारत की परिचालन तत्परता को प्रभावित कर सकते हैं।
    • उदाहरण के लिए: फ्रांस के घरेलू मुद्दों के कारण राफेल जेट की डिलीवरी में विलम्ब से आयात की सुभेद्यतायें उजागर होती हैं।

आगे की राह 

  • घरेलू अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना: स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकास में निवेश से विदेशी रक्षा फर्मों पर निर्भरता कम हो सकती है।
    • उदाहरण के लिए: DRDO का मानवरहित ग्राउंड व्हीकल (UGV) विकास भारत की रक्षा विनिर्माण क्षमताओं को मजबूत करता है।
  • संतुलित बहु-संरेखण रणनीति: भारत को अति-निर्भरता से बचने के लिए कई देशों के साथ विविध रक्षा साझेदारी बनाए रखनी चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: इजरायल और फ्रांस के साथ रक्षा समझौते वैकल्पिक प्रौद्योगिकी तक पहुंच सुनिश्चित करते हैं।
  • विदेशी सौदों में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: रक्षा खरीद में स्थानीय विनिर्माण और पूर्ण प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर बल देने से आत्मनिर्भरता बढ़ेगी।
    • उदाहरण के लिए: अमेठी में AK-203 राइफल का उत्पादन आत्मनिर्भरता की ओर एक कदम है।
  • निजी क्षेत्र की मजबूत भूमिका: नीतिगत प्रोत्साहनों के माध्यम से निजी फर्मों को प्रोत्साहित करने से रक्षा औद्योगिक आधार मजबूत होगा।
    • उदाहरण के लिए: C-295 विमान के लिए एयरबस के साथ टाटा की साझेदारी स्वदेशी विनिर्माण को बढ़ावा देती है।
  • नीतिगत निर्णयों में रणनीतिक स्वायत्तता: भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि विदेशी रक्षा साझेदारियों से उसकी स्वतंत्र विदेश नीति विकल्पों पर कोई समझौता न हो।
    • उदाहरण के लिए: यूक्रेन संघर्ष पर भारत का तटस्थ रुख रणनीतिक स्वायत्तता के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

संयुक्त उत्पादन, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और क्षमता निर्माण के लिए रक्षा संबंधों का लाभ उठाकर रणनीतिक स्वायत्तता के साथ तकनीकी आधुनिकीकरण को संतुलित करना चाहिए। रक्षा में आत्मनिर्भर भारत को मजबूत करना, आपूर्तिकर्ताओं में विविधता लाना और iDEX व DRDO सुधारों जैसी पहलों के माध्यम से स्वदेशी अनुसंधान और विकास को बढ़ाना, प्रत्यास्थता सुनिश्चित करेगा, अत्यधिक निर्भरता को कम करेगा और बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित करेगा।

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