Q. “ शहरी तापमान में वृद्धि के मद्देनजर, सड़क विक्रेताओं जैसे अनौपचारिक श्रमिकों द्वारा सामना किए जाने वाले सामाजिक-आर्थिक परिणाम क्या हैं? अंतर-क्षेत्रीय शासन उनकी कार्य स्थितियों में सुधार कैसे कर सकता है और जलवायु जोखिमों को कम कर सकता है? (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • शहरी तापमान में वृद्धि के मद्देनजर सड़क विक्रेताओं जैसे अनौपचारिक श्रमिकों के समक्ष आने वाले सामाजिक-आर्थिक परिणामों का मूल्यांकन कीजिए।
  • परीक्षण कीजिए कि अंतर-क्षेत्रीय शासन, अनौपचारिक श्रमिकों की कार्य-दशाओं में किस प्रकार सुधार ला सकता है।
  • परीक्षण कीजिए कि अंतर-क्षेत्रीय शासन किस प्रकार जलवायु जोखिमों को कम कर सकता है।

उत्तर

बढ़ता तापमान जो जलवायु परिवर्तन और शहरी हीट आइलैंड के कारण और भी तीव्र हो गया है- सड़क विक्रेताओं जैसे अनौपचारिक श्रमिकों के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न करता है, जिनके पास सुरक्षात्मक अवसंरचना का अभाव है। चूँकि भारतीय शहर पर्यावरणीय चरम सीमाओं से जूझ रहे हैं, इसलिए ये सुभेद्यतायें व्यापक शासन विफलताओं को दर्शाती हैं और सतत विकास लक्ष्य-11 समावेशी, सुरक्षित, प्रत्यास्थ और संधारणीय शहरों के लक्ष्य में बाधा उत्पन्न करती हैं।

अनौपचारिक श्रमिकों के लिए सामाजिक-आर्थिक परिणाम

  • स्वास्थ्य जोखिम में वृद्धि: अनौपचारिक श्रमिकों को बाहरी कार्य दशाओं और अपर्याप्त शहरी प्रत्यास्थ अवसंरचना के कारण प्रत्यक्ष ऊष्मा के संपर्क में रहना पड़ता है। 
  • उदाहरण के लिए: वर्ष 2025 सस्टेनेबल फ्यूचर्स कलेक्टिव रिपोर्ट से पता चलता है कि भारतीय शहरों में जलवायु और शहरी ऊष्मा के जोखिमों से निपटने के लिए दीर्घकालिक योजना का अभाव है।
  • मौसम संबंधी व्यवधानों से आय में अस्थिरता: हीट वेव्स, सड़क विक्रेताओं की दैनिक आय को कम कर देती हैं, जिन्हें काम के घंटे कम करने पड़ते हैं या थकावट के कारण जल्दी काम बंद करना पड़ता है, जिससे आर्थिक असुरक्षा होती है। 
    • उदाहरण के लिए: रिपोर्ट से पता चलता है कि खराब तैयारी के कारण शहरी गरीबों को उच्च जलवायु भेद्यता का सामना करना पड़ता है, वर्ष 2023 में केवल 17 शहरों में शहर प्रत्यास्थता रणनीति थी।
  • अनौपचारिक बस्तियों में असंगत प्रभाव: अनौपचारिक श्रमिक अक्सर अनियोजित क्षेत्रों में रहते हैं जहां खराब बुनियादी ढाँचे, भीड़भाड़ वाले आवास और हरियाली की कमी के कारण गर्मी के प्रभाव और भी बदतर हो जाते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: भारतीय शहरी प्रणालियों के वार्षिक सर्वेक्षण (वर्ष 2023) में भारतीय शहरों में असमान आपदा तत्परता और प्रत्यास्थता योजना पाई गई।
  • जल जैसी बुनियादी सेवाओं की कमी: बढ़ते तापमान के कारण हाइड्रेशन और कूलिंग की माँग बढ़ जाती है, लेकिन अनौपचारिक क्षेत्रों में जल की आपूर्ति या कूलिंग सुविधाओं की कमी होती है, जिससे श्रमिकों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। 
    • उदाहरण के लिए: NITI आयोग SDG शहरी सूचकांक, जल या जलवायु-अनुकूल शहरी सेवाओं तक पहुँच का पूरी तरह से आकलन नहीं करता है, जिससे जवाबदेही सीमित हो जाती है।
  • बढ़ती शहरी असमानता: ऊष्मा शहरी असमानता को बढ़ाती है, जिनके पास शीतलन, स्वच्छता या आवास तक पहुंच नहीं है, उन्हें अधिक जोखिम का सामना करना पड़ता है, जिससे हाशिए पर रहना पड़ता है। 
    • उदाहरण के लिए: सस्टेनेबल फ्यूचर्स कलेक्टिव, जयपुर और कोलकाता जैसे शहरों में समावेशिता और बुनियादी शहरी सेवाओं तक पहुंच में असमानताओं को उजागर करता है।

कार्य दशाओं में सुधार के लिए अंतर-क्षेत्रीय शासन

  • स्थानीयकृत जलवायु और सुरक्षा योजनाएँ: शहर-विशिष्ट नियोजन को स्वास्थ्य, श्रम और शहरी विभागों के बीच समन्वित कार्रवाई के माध्यम से अनौपचारिक श्रमिकों की आवश्यकताओं को पूरा करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2023 में केवल 16 भारतीय शहरों में ‘शहर संधारणीयता योजनाएँ’ थीं। जो सुभेद्य श्रमिकों की सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण शासन अंतराल को उजागर करती हैं।
  • ऊष्मा प्रत्यास्थता के लिए स्मार्ट सिटीज़ का बुनियादी ढाँचा: स्मार्ट सिटीज को अनौपचारिक क्षेत्रों को छायादार संरचनाओं, जल स्टेशनों और सुरक्षा अलर्ट के ज़रिए सुरक्षित रखने के लिए रियलटाइम शहरी डेटा को एकीकृत करना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: स्मार्ट सिटी मिशन के अंतर्गत एकीकृत कमांड एवं नियंत्रण केन्द्रों का उपयोग हीटस्ट्रेस के विरुद्ध रियलटाइम योजना बनाने के लिए कम किया जा रहा है।
  • अनौपचारिक क्षेत्र को शामिल करने के लिए शहरी सूचकांकों को अपडेट करना: उत्तरदायी नीति निर्माण को सूचित करने के लिए शासन संरचना को अनौपचारिक क्षेत्र को शामिल करके SDG-11 की प्रगति को ट्रैक करने की आवश्यकता है। 
    • उदाहरण के लिए: नीति आयोग, SDG शहरी सूचकांक और जीवन की सुगमता सूचकांक में माइक्रोक्लाइमेट जोखिम या जल की पहुंच जैसे सड़क विक्रेताओं को प्रभावित करने वाले प्रमुख संकेतकों को शामिल नहीं किया गया है।
  • शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) को मजबूत बनाना: स्थानीय डेटा के साथ ULB को सशक्त बनाना, क्षेत्र-विशिष्ट योजना के माध्यम से अनौपचारिक श्रमिकों के लिए लक्षित कार्रवाई को सक्षम बनाता है। 
    • उदाहरण के लिए: रिपोर्ट अनौपचारिक क्षेत्र की चुनौतियों का समाधान करने के लिए शहरी स्तर पर सफल जिला-स्तरीय SDG ट्रैकिंग मॉडल की नकल करने का सुझाव देती है।
  • अर्बन पुअर क्वालिटी ऑफ़ लिविंग सर्वे आयोजित करना: समय-समय पर होने वाले सर्वेक्षण, अनौपचारिक श्रमिकों की कार्य दशाओं का मानचित्रण कर सकते हैं और उत्तरदायी शहरी नियोजन का मार्गदर्शन कर सकते हैं।
    • उदाहरण के लिए: भारत अभी भी जनगणना वर्ष 2011 के आंकड़ों पर निर्भर है-जो चरम जलवायु जोखिमों का सामना करने वाले अनौपचारिक श्रमिकों के हितों को‌ नीति निर्धारण में अनदेखा करने में मदद करता है।

जलवायु जोखिमों को कम करने के लिए अंतर-क्षेत्रीय शासन

  • एकीकृत संधारणीयता रूपरेखाएँ बनाना: पर्यावरण, स्वास्थ्य और नियोजन क्षेत्रों में प्रयासों को मिलाकर शहरों और उनकी अनौपचारिक अर्थव्यवस्थाओं के लिए जलवायु जोखिम शमन सुनिश्चित किया जा सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2025 सस्टेनेबल फ्यूचर्स कलेक्टिव रिपोर्ट शहरी प्रदर्शन माप के लिए चार अलग-अलग सूचकांक सुरक्षा, समावेशिता, प्रत्यास्थता और संधारणीयता का सुझाव देती है।
  • नियोजन में उच्च जोखिम वाले शहरों को प्राथमिकता देना: भविष्य में जलवायु से जुड़ी आजीविका के ह्वास से बचने के लिए, संधारणीयता या प्रत्यास्थता के मामले में सबसे कम रैंकिंग वाले शहरों में प्राथमिकता देते हुए मध्यक्षेप किये जाने चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: नए ढाँचे के अंतर्गत प्रत्यास्थता और समावेशिता के‌ मामले में जयपुर सबसे निचले स्थान पर है, सुरक्षा और संधारणीयता में कोलकाता सबसे निचले स्थान पर है।
  • डेटा-आधारित जलवायु कार्य योजनाएं विकसित करना: मजबूत अंतर-क्षेत्रीय कार्रवाई, ताप जोखिम का मॉडल तैयार करने और शमन को लागू करने के लिए रियलटाइम और स्थानीय रूप से आधारित डेटा पर निर्भर करती है।
  • शहरी जलवायु मॉडल में अनौपचारिक श्रमिकों को शामिल करना: अनौपचारिक आजीविका पर जलवायु प्रभावों का मानचित्रण और मॉडलिंग निष्पक्ष जलवायु अनुकूलन और जोखिम साझाकरण सुनिश्चित करता है। 
    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय शहरी नीति ढाँचा (NUPF) अनौपचारिक श्रमिकों की आवश्यकताओं को पहचानकर समावेशी, भागीदारीपूर्ण योजना की सिफारिश करता है।
  • शहर-विशिष्ट जलवायु अनुकूलन योजनाएँ बनाना: प्रत्येक शहर को अपनी विशिष्ट शहरी ऊष्मा और जलवायु जोखिम प्रोफाइल के आधार पर अनुकूलित अनुकूलन रणनीतियों की आवश्यकता होती है। 
    • उदाहरण के लिए: अहमदाबाद को समावेशिता में प्रथम स्थान मिला जबकि चेन्नई जलवायु प्रत्यास्थता के मामले में अग्रणी रहा जिससे पता चलता है कि किस प्रकार शहर-विशिष्ट डेटा प्रभावी प्रतिक्रियाओं का मार्गदर्शन कर सकता है।

तेजी से बढ़ती हुई शहरी ऊष्मा, भारत के अनौपचारिक श्रमिकों के लिए जोखिम को बढ़ाती है जिससे जलवायु प्रत्यास्थता और समावेशिता में शासन की कमियां उजागर होती हैं। SDG-11 को प्राप्त करने के लिए मजबूत अंतर-क्षेत्रीय कार्रवाई, मजबूत डेटा सिस्टम और शहरी रणनीतियों की आवश्यकता होती है जो सबसे अधिक जोखिम वाले क्षेत्रों को प्राथमिकता देती हैं। सशक्त स्थानीय निकाय और अनुकूली योजना न्यायसंगत और जलवायु-प्रत्यास्थ शहरी परिवर्तन को आगे बढ़ा सकती है।

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