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Q. प्रस्तावित 'भारत-मध्य पूर्व कॉरिडोर' (आईएमईसी) और क्षेत्रीय भू-राजनीति पर इसके संभावित प्रभाव के पीछे प्रमुख कारक क्या हैं? इनके उद्देश्यों को प्राप्त करने में आने वाली बाधाओं पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द, 15 अंक)

 उत्तर:

प्रश्न हल करने का दृष्टिकोण:

भूमिका:

भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर (आईएमईसी) को एक महत्वपूर्ण भू-आर्थिक पहल के रूप में पेश करके शुरुआत कीजिए,जो नई दिल्ली में जी20 शिखर सम्मेलन में प्रकाश में आया।

मुख्य भाग

  • आईएमईसी द्वारा भारत को दिए जाने वाले आर्थिक और रणनीतिक लाभों और चीन के बीआरआई से इसके अंतर को स्पष्ट कीजिए।
  • इस बात पर चर्चा कीजिए कि कैसे आईएमईसी भू-राजनीतिक गतिशीलता को बदल सकता है, साथ ही यह भारत के रणनीतिक संबंधों को मजबूत कर चीन के प्रभुत्व का मुकाबला कर सकता है।
  • उन चुनौतियों की पहचान कर उन पर चर्चा कीजिए जिनका आईएमईसी को सामना करना पड़ सकता है, जैसे -कार्यान्वयन से लेकर भूराजनीतिक विचारों और राष्ट्रों में आपसी समन्वय जैसी चुनौतियां।  

निष्कर्ष

वैश्विक भू-राजनीति को नया आकार देने में आईएमईसी की परिवर्तनकारी क्षमता और अधिक समावेशी दृष्टिकोण, विकास-केंद्रित भविष्य के वादे पर बल देते हुए निष्कर्ष निकालें।

भूमिका:

नई दिल्ली में G20 शिखर सम्मेलन में भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर (IMEC), 2013 के चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के समानांतर एक अग्रणी भू-आर्थिक पहल के रूप में उभरा है। इसे वैश्वीकरण को नया आकार देने के लिए निर्मित किया गया है। आईएमईसी का लक्ष्य चीन-केंद्रित वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला की निर्भरता को कम करना है, साथ ही यह सुनिश्चित करना है कि पारस्परिक विकास के लिए देशों को आपस में जोड़ा जाये।

मुख्य भाग :

आईएमईसी के पीछे प्रमुख कारक:

  • भारत के लिए रणनीतिक और आर्थिक लाभ:
    • आईएमईसी व्यापार, परिवहन और बुनियादी ढाँचे के विकास में तेजी लाकर भारत के लिए आर्थिक पुनर्जागरण की स्थिति उत्पन्न कर सकता है।
    • रणनीतिक रूप से संरेखित देशों के साथ गठबंधन स्थापित करके, भारत इंजीनियरिंग से जुड़ी वस्तुओं और हरित हाइड्रोजन नीति (इस नीति के तहत सरकार उत्पादन के लिये विनिर्माण क्षेत्र की स्थापना) को प्रोत्साहित कर सकता है, जिससे उसके निर्यात में वृद्धि हो सकती है।
    • उदाहरण के लिए, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर(IMEC) से भारत और यूरोप के बीच आर्थिक आदान-प्रदान में लगने वाले समय को 40% तक बचाया जा सकता है, जिससे भारत के दूसरे सबसे बड़े व्यापारिक भागीदार यूरोपीय संघ के साथ व्यापार गतिशीलता को मजबूत किया जा सके।
  • आईएमईसी के माध्यम से चीन के बीआरआई को विफल करना:
    • बीआरआई मुख्य रूप से चीन के हितों को पूरा करता है, किन्तु बीआरआई के विपरीत आईएमईसी को एक व्यापक दृष्टिकोण के साथ तैयार किया गया है जिसमें सभी शामिल देशों के विकास को महत्व दिया गया है।
    • यह स्थानीय आबादी के लिए रोजगार के अवसरों की गारंटी देता है और राष्ट्रों की संप्रभुता को कायम रखता है।
    • उदाहरण के लिए, चीन का बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव  राष्ट्रों को भारी कर्ज में डुबो रहा है, जबकि भारत-मध्य पूर्व-यूरोप गलियारा एक अधिक टिकाऊ विकल्प प्रस्तुत करते हुए सर्वोत्तम अंतर्राष्ट्रीय ऋण पद्धतियों का समर्थन करता है।

क्षेत्रीय भूराजनीति पर संभावित प्रभाव:

  • रणनीतिक गठबंधनों को मजबूत बनाना:
    • आईएमईसी न केवल आर्थिक समृद्धि का वादा करता है, बल्कि मध्य पूर्व और यूरोप में भारत के बढ़ते प्रभाव का प्रतीक भी है।
    • यह हिंद महासागर में भारत के रणनीतिक रुख को बढ़ाता है तथा भूमध्यसागरीय और अटलांटिक क्षेत्रों तक इसकी पहुँच बढ़ाता है।
    • उदाहरण के लिए, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के विवादास्पद व्यापार मार्गों को दरकिनार करते हुए, आईएमईसी ने सदियों पुराने रेशम मार्ग को पुनर्जीवित किया है, जो भारत की सामरिक दूरदर्शिता को दर्शाता है।
  • चीनी प्रभाव का प्रतिकार:
    • आईएमईसी, जानबूझकर चीन को बाहर करके, एक नए भू-राजनीतिक परिदृश्य को चित्रित करता है।
    • यह पहल संभावित रूप से चीन के व्यापक आर्थिक प्रभुत्व को कम कर सकती है।
    • उदाहरण के लिए, कई आईएमईसी सदस्य देशों के बीआरआई का हिस्सा होने के बावजूद, आईएमईसी की सफलता बीआरआई के बढ़ते प्रभाव को कम कर सकती है और अधिक समावेशी वैश्विक आर्थिक लाभ प्रस्तुत कर सकती है।

उद्देश्यों की प्राप्ति में आने वाली संभावित बाधाएँ:

  • कार्यान्वयन से जुड़ी चुनौतियाँ:
    • आईएमईसी के दृष्टिकोण को वास्तविकता में बदलने के लिए जबरदस्त निवेश और कुशल बुनियादी ढाँचे के विकास की आवश्यकता है, जो इसके विशाल दायरे को देखते हुए चुनौतियां पैदा कर सकता है। 
    • उदाहरण के लिए, निर्धारित समय-सीमा के भीतर इतने बड़े क्षेत्र में इंटरकनेक्टेड नेटवर्क का निर्माण करना एक कठिन कार्य बना हुआ है।
  • भू-राजनीतिक चुनौतियाँ:
    • आईएमईसी के कुछ भाग जॉर्डन और इज़राइल जैसे भू-राजनीतिक रूप से संवेदनशील इलाकों से होकर गुजरते हैं।
    • लंबे समय से राजनीतिक तनाव वाले क्षेत्रों के साथ गलियारे के संरेखण के लिए कुशल राजनयिक हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है।
    • उदाहरण के लिए, जॉर्डन और इज़राइल जैसे क्षेत्रों में मौजूदा भू-राजनीतिक संघर्ष के साथ आर्थिक आकांक्षाओं को संतुलित करना आईएमईसी की सफलता के लिए महत्वपूर्ण होगा।
  • समन्वय और योजना:
    • कई देशों में सड़कों, रेलवे और बंदरगाहों को जोड़ने के लिए विशुद्ध योजना और अद्वितीय समन्वय की आवश्यकता होती है।
    • उदाहरण के लिए, बाधाओं और अक्षमताओं को रोकने के लिए शामिल देशों के बीच ढाँचागत लक्ष्यों और समयसीमा का सामंजस्य महत्वपूर्ण होगा।

निष्कर्ष:

आईएमईसी, अपनी चुनौतियों के बावजूद, वैश्विक भू-राजनीति को नया आकार देने में सहयोगात्मक प्रयासों के प्रमाण के रूप में खड़ा है। भारत के नेतृत्व में, अपने रणनीतिक साझेदारों के साथ, आईएमईसी न केवल भू-आर्थिक रणनीतियों में एक नया अध्याय जोड़ता है, बल्कि अधिक समावेशी और पारस्परिक विकास-केंद्रित भविष्य का भी वादा करता है। बीआरआई जैसी एकतरफा पहल के विपरीत आईएमईसी का सहयोगात्मक सार एक संतुलित वैश्विक आर्थिक परिदृश्य के लिए शुभ संकेत है।

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