कोलंबिया एवं इक्वाडोर में हालिया सूखे ने जलविद्युत द्वारा आपूर्ति की जाने वाली ऊर्जा को गंभीर रूप से बाधित कर दिया है।
संबंधित तथ्य
जलविद्युत की जलवायु भेद्यता: परिणामस्वरूप विद्युत की कमी ने जलवायु परिवर्तन के सामने जलविद्युत की भेद्यता को उजागर किया है।
सूखे का प्रभाव: अल नीनो मौसम की घटना से उत्पन्न सूखे ने जलविद्युत संयंत्रों में जलाशयों के जल स्तर को कम कर दिया है, जिस पर दोनों देश अपनी अधिकांश विद्युत आवश्यकताओं के लिए निर्भर हैं।
इसके चलते इक्वाडोर को आपातकाल की स्थिति घोषित करनी पड़ी एवं विद्युत कटौती शुरू करनी पड़ी।
कोलंबिया में, राजधानी में जल की राशनिंग कर दी गई है एवं देश ने इक्वाडोर को विद्युत निर्यात रोक दिया है।
जलविद्युत (Hydropower)
जलविद्युतया जल विद्युत ऊर्जा एक नवीकरणीय स्रोत है, जो किसी नदी या अन्य जल निकाय के प्राकृतिक प्रवाह को बदलने के लिए बाँध या डायवर्जन संरचना का उपयोग करके विद्युत उत्पन्न करता है।
जलविद्युत, जल का उपयोग करके विद्युत का उत्पादन करने के लिए जल चक्र की निरंतर रिचार्जिंग प्रणाली पर निर्भर करती है।
तंत्र: जलविद्युत टरबाइन के माध्यम से बहने वाले जल की गति का उपयोग करके कार्य करती है, जो घूमते समय विद्युत उत्पन्न करती है।
स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में वर्तमान प्रभुत्व: जलविद्युत अपनी विश्वसनीयता, सामर्थ्य एवं कम कार्बन फुटप्रिंट के कारण एक महत्त्वपूर्ण स्वच्छ ऊर्जा स्रोत के रूप में विकसित हुआ है।
वर्तमान में, यह विद्युत उत्पादन में संयुक्त रूप से अन्य सभी नवीकरणीय स्रोतों से आगे निकल जाता है।
वर्ष 2021 में, जलविद्युत द्वारा वैश्विक विद्युत आपूर्ति का 15% उत्पादन किया गया, जो कोयले एवं गैस के बाद तीसरा तथा संयुक्त रूप से अन्य सभी नवीकरणीय स्रोतों से अधिक है।
स्थापित क्षमता के आधार पर जलविद्युत परियोजनाओं का वर्गीकरण: जलविद्युत परियोजनाओं को आम तौर पर दो खंडों में वर्गीकृत किया जाता है अर्थात् छोटी एवं बड़ी जलविद्युत परियोजना।
भारत में, 25 मेगावाट स्टेशन क्षमता तक की जल विद्युत परियोजनाओं को लघु जल विद्युत (SHP) परियोजनाओं के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
माइक्रो: 100 किलोवाट तक।
मिनी: 101 किलोवाट से 2 मेगावाट तक।
छोटा: 2 मेगावाट से 25 मेगावाट।
मेगा: 500 मेगावाट से अधिक या बराबर क्षमता वाली जलविद्युत परियोजनाएँ।
लाभ: विद्युत उत्पादन को स्थिर करने के लिए जलविद्युत की आवश्यकता होती है, जब पवन एवं सौर ऊर्जा उपलब्ध नहीं करा सकते।
कम आवर्ती लागत: नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में बहुत कम आवर्ती लागत होती है एवं इसलिए कोई उच्च दीर्घकालिक व्यय नहीं होता है। यह कोयले तथा गैस से चलने वाले संयंत्रों से उत्पन्न विद्युत की तुलना में सस्ता है।
पीक लोड मैनेजमेंट के लिए आदर्श: त्वरित शुरुआत और समापन की अपनी अनूठी क्षमताओं के कारण ग्रिड में पीक लोड को पूरा करने के लिए हाइड्रोपॉवर स्टेशन आदर्श हैं।
जलविद्युत संयंत्र आमतौर पर कोयला, परमाणु या प्राकृतिक गैस की तुलना में विद्युत उत्पादन को अधिक तेजी से ऊपर एवं नीचे करने में सक्षम होते हैं।
जलविद्युत क्षेत्र के लिए चुनौतियाँ
पूँजी गहन (Capital Intensive): जलविद्युत उत्पादन, विद्युत उत्पादन का एक अत्यधिक पूँजी-गहन तरीका है।
पर्यावरणीय प्रभाव (Environmental Impact): जलविद्युत परियोजनाओं के कारण भूमि का जलमग्न होना, जिससे वनस्पतियों एवं जीवों की हानि और बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ है।
जल पर निर्भरता (Dependency on Water): जलविद्युत जल पर निर्भर है एवं इसकी कमी ऊर्जा उत्पादन को बाधित करती है तथा ऊर्जा प्रणालियों पर दबाव डालती है।
जलवायु परिवर्तन (Climate change): सूखे एवं अचानक बाढ़ जो बाँधों को नुकसान पहुँचा सकती हैं।
अत्यधिक निर्भरता से जलवायु भेद्यता बढ़ती है: जलविद्युत पर अत्यधिक निर्भरता वाले देश विशेष रूप से जलवायु प्रभावों के प्रति संवेदनशील होते हैं।
अफ्रीका में, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, इथियोपिया, मलावी, मोजाम्बिक, युगांडा एवं जाम्बिया में 80% से अधिक विद्युत उत्पादन जलविद्युत से होता है।
भारत में नवीकरणीय ऊर्जा हिस्सेदारी: सरकारी आँकड़ों के अनुसार, 31 अक्टूबर, 2023 तक, भारत की स्थापित नवीकरणीय क्षमता 178.98 गीगावाट थी, जिसमें लगभग 47 गीगावाट की बड़ी जलविद्युत क्षमताएँ शामिल हैं।
वर्ष 2023 में जलविद्युत में ऐतिहासिक गिरावट देखी गई: UK स्थित ऊर्जा थिंक टैंक एम्बर के अनुसार, वर्ष 2023 की पहली छमाही में जलविद्युत के वैश्विक उत्पादन में ऐतिहासिक गिरावट देखी गई।
जलवायु परिवर्तन के कारण सूखे की स्थिति संभावित रूप से असंतुलित हो गई, जिसके परिणामस्वरूप इस अवधि के दौरान वैश्विक जलविद्युत उत्पादन में 8.5% की गिरावट आई।
चीन के जलविद्युत उत्पादन पर सूखे का प्रभाव: दुनिया के सबसे बड़े जलविद्युत उत्पादक चीन का वैश्विक गिरावट में तीन चौथाई योगदान रहा।
वर्ष 2022 और 2023 के दौरान, सूखे के कारण चीनी नदियाँ एवं जलाशय सूख गए, जिससे विद्युत की कमी हो गई तथा देश में विद्युत के नियंत्रित वितरण का प्रावधान अपनाना पड़ा।
आगे की राह
ऊर्जा मिश्रण का विविधीकरण: जलवायु के प्रति संवेदनशील देशों को अपने ऊर्जा मिश्रण में पवन एवं सौर जैसी अन्य नवीकरणीय प्रौद्योगिकियों को शामिल करके अपने ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने की आवश्यकता है।
घाना एवं केन्या सफलतापूर्वक जलविद्युत पर उच्च निर्भरता से अधिक ‘उन्नत प्रौद्योगिकियों’ की ओर बढ़ रहे हैं।
जलविद्युत संयंत्रों में फ्लोटिंग सौर पैनलों की क्षमता की खोज: जलविद्युत संयंत्रों में जल की सतह पर तैरते सौर पैनल लगाने की महत्त्वपूर्ण संभावनाएँ हैं। उदाहरण- चीन एवं ब्राजील उनकी खोज कर रहे हैं।
मध्यम स्तर के संयंत्रों पर ध्यान केंद्रित करना: प्रौद्योगिकी से जुड़े जलवायु-जोखिमों के बावजूद, इसे अभी भी वैश्विक अर्थव्यवस्था को डीकार्बोनाइज करने में महत्त्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह बड़े पैमाने पर सस्ती विद्युत प्रदान कर सकता है।
बड़े बाँधों के बजाय अधिक मध्यम स्तर के संयंत्रों के निर्माण से एक बड़े बाँध पर अत्यधिक निर्भरता से जुड़े जलवायु-जोखिम को कम करने में मदद मिलेगी।
जलविद्युत लचीलापन बढ़ाना:बेसिनों के भीतर बेहतर जल प्रबंधन एवं अन्य नवीकरणीय स्रोतों के साथ जलविद्युत संयंत्रों का रणनीतिक एकीकरण सूखे के प्रति लचीलापन बढ़ा सकता है।
पंप आधारित जलविद्युत प्रणालियाँ: ये कम विद्युत की माँग के दौरान जल को ऊपर की ओर पंप करती हैं एवं चरम माँग के दौरान इसे नीचे की ओर छोड़ती हैं।
इन प्रणालियों में जल की न्यूनतम खपत होती है क्योंकि ये जल का पुनर्चक्रण करती हैं। हालाँकि वे सूखे से पूरी तरह प्रतिरक्षित नहीं हैं, फिर भी वे पारंपरिक जलविद्युत योजनाओं की तुलना में अधिक लचीली हैं।
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