‘एटा एक्वारिड उल्कापात’ (Eta Aquariid Meteor Shower) जो 15 अप्रैल से सक्रिय है, 5 और 6 मई को अपने चरम पर पहुँचने वाला है।
‘एटा एक्वारिड’ उल्कापात के बारे में
‘एटा एक्वारिड’ उल्कापात द्विवार्षिक रूप से होने वाले उल्कापात में से एक है।
एटा एक्वारिड उल्कापात का निर्माण उस समय होता है, जब पृथ्वी हैली धूमकेतु के कक्षीय पथ से गुजरती है।
हैली धूमकेतु की एक कक्षीय परिक्रमा को पूर्ण करना: हैली धूमकेतु लगभग हर 76 वर्ष में सूर्य की परिक्रमा करता है और जब पृथ्वी इसकी कक्षा से होकर गुजरती है तो हैली के मलबे से ‘एटा एक्वारिड’ का निर्माण होता है।
हैली धूमकेतु की खोज: खगोलशास्त्री एडमंड हैली द्वारा वर्ष 1705 में हैली धूमकेतु की उपस्थिति की आवधिक प्रकृति की खोज की थी।
हैली धूमकेतु की अंतिम उपस्थिति: हैली धूमकेतु आखिरी बार वर्ष 1986 में दिखा गया था तथा वर्ष 2061 में आंतरिक सौरमंडल में पुनः देखे जाने की उम्मीद है।
ओरियोनिड्स उल्का बौछार: यह बौछार अक्टूबर में होती है और यह भी हैली धूमकेतु के मलबे के कारण होती है।
विशेषताएँ
प्रज्वलित मार्ग/ चिह्न: ‘एटा एक्वारिड’ उल्कापात में तीव्र उल्काएंँ होती हैं, जो अपने पीछे दीर्घ प्रज्वलित मार्ग/चिह्न निर्मित करती हैं।
तीव्र गति/संचार: यह पृथ्वी के वायुमंडल में लगभग 66 किमी. प्रति सेकंड (2.37 लाख किमी प्रति घंटे) की गति से चलती है।
कालावधि और चरम अवधि
एक वर्ष में समय अवधि: एटा एक्वारिड उल्कापात की अवधि सामान्यत: प्रत्येक वर्ष 21 अप्रैल से 12 मई के मध्य होती है।
5 या 6 मई के आस-पास अपने चरम पर पहुंँचने तक दृश्य उल्काओं की संख्या कम बनी रहती है।
सर्वोत्तम दृश्यता स्थान: ये बौछारें दक्षिणी गोलार्द्ध में इंडोनेशिया और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में सबसे अच्छी तरह दिखाई देती हैं।
दीप्तिमान बौछारों का स्थान: दक्षिणी गोलार्द्ध के पर्यवेक्षकों को बौछारों के दीप्तिमान स्थान के कारण आकाश में उल्कापिंड स्पष्ट रूप से देखाई देते हैं।
‘एटा एक्वारिड’ उल्काओं का दीप्तिमान बिंदु ‘अक्वेरिस’ तारामंडल के भीतर स्थित है।
सुबह धुँधलके होने के कारण पर्यवेक्षकों को इन्हें देखने में कठिनाई होती है।
उत्तरी गोलार्द्ध में, एटा एक्वारिड उल्काएँ सामन्यत “अर्थग्राजर्स” अर्थात् लंबे उल्काओं के रूप में दिखाई देती हैं, जो पृथ्वी की सतह को छूते हुए प्रतीत होते हैं।
धूमकेतु क्या हैं?
लगभग 4.6 अरब वर्ष पूर्व जब हमारे सौरमंडल का निर्माण हो रहा था, धूमकेतु तब के बर्फीले अवशेष हैं।
मिश्रण: इनमें धूल, चट्टानें और बर्फ का मिश्रण होता है।
धूमकेतुओं की कक्षीय विशेषताएँ
अंडाकार कक्षा: धूमकेतु अत्यधिक अंडाकार कक्षाओं में सूर्य के चारों ओर गति करते हैं।
एक परिक्रमा पूर्ण करना: कुछ धूमकेतुओं को सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने में सैकड़ों-हजारों वर्ष लग सकते हैं।
धूमकेतु का आकार
अधिकांश धूमकेतु लगभग 10 किलोमीटर चौड़े होते हैं।
जैसे-जैसे धूमकेतु सूर्य के करीब आते हैं, वे गर्म हो जाते हैं और गैसें तथा धूल के कण बाहर की ओर उत्सर्जित करते हैं।
इससे उनका शीर्ष ग्रहों से भी बड़े आकार का हो सकता है।
पूँछ का निर्माण
धूमकेतु से निकलने वाली सामग्री पूँछ का निर्माण करती है, जो धूमकेतु से लाखों मील दूर तक फैली हो सकती है।
ये पूँछें धूमकेतुओं की एक विशिष्ट विशेषता होती हैं, जब वे सूर्य के निकट होते हैं।
ज्ञात धूमकेतु की संख्या
वर्तमान धूमकेतु: नासा द्वारा अब तक 3,910 धूमकेतुओं की पहचान की जा चुकी है।
हालाँकि, वैज्ञानिकों का मानना है कि नेप्च्यून से परे, कुइपर बेल्ट और अधिक दूर के ऊर्ट क्लाउड जैसे क्षेत्रों में अरबों धूमकेतु परिक्रमा कर रहे हैं।
उल्कापात और धूमकेतु के बीच संबंध
उल्कापात तब होता है, जब पृथ्वी अंतरिक्ष में धूमकेतुओं द्वारा छोड़े गए धूल भरे मार्गों से होकर गुजरती है।
विजिबल स्ट्रीकस: धूमकेतु का मलबा पृथ्वी के वायुमंडल में जल जाता है, जिससे दृश्यमान धारियाँ निर्मित होती हैं।
इन दृश्यमान रेखाओं को उल्का या ‘टूटते तारे’ के नाम से जाना जाता है।
जलने से टूटते तारे के पीछे एक छोटी पूँछ भी बन जाती है।
उल्कापिंडों के लक्षण
उल्काएँ: ये धूल या चट्टान के छोटे टुकड़े होते हैं, जो पृथ्वी के वायुमंडल से टकराते ही जल जाते हैं।
अधिकांश उल्काएँ वास्तव में रेत के कणों के समान छोटे होती हैं और आकाश में विलुप्त हो जाती हैं।
उल्कापिंड: कभी-कभी बड़े उल्का सुरक्षित रहते हैं और जमीन से टकराते हैं तथा तब उन्हें उल्कापिंड कहा जाता है।
उल्कापात का निर्माण
उल्कापात का निर्माण उस समय होता है, जब पृथ्वी धूमकेतु के कक्षीय तल से होकर गुजरती है और धूमकेतु द्वारा छोड़े गए मलबे का सामना करती है।
जैसे ही पृथ्वी इस मलबे के क्षेत्र से गुजरती है, आकाश छोटे और बड़े उल्कापिंडों से जगमगा उठता है।
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