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उत्तराधिकार मामलों में मुस्लिम समुदाय हेतु शरीयत कानून की उपयुक्तता

Lokesh Pal May 04, 2024 06:41 172 0

संदर्भ 

उच्चतम न्यायालय जाँच करेगा कि उत्तराधिकार मामलों के संबंध में एक मुसलमान, जिसने अपनी धार्मिक मान्यता का त्याग कर दिया हो, मुस्लिम पर्सनल लॉ (1937) के शरीयत अधिनियम द्वारा शासित होगा या उसके अधिकारों को देश के धर्मनिरपेक्ष कानूनों द्वारा तय किया जाएगा।

संबंधित तथ्य

  • पर्सनल लॉ के चुनाव से संबंधित याचिका: उच्चतम न्यायालय ने केरल की एक महिला द्वारा दायर याचिका का जवाब दिया है, जिसमें ‘महिला ने माँग की थी कि जो व्यक्ति मुस्लिम पर्सनल लॉ (Muslim Personal Law) द्वारा शासित नहीं होना चाहता है, उसे भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 (Indian Succession Act- ISA) द्वारा शासित होने की अनुमति दी जानी चाहिए।’

सबरीमाला मंदिर प्रवेश मामला

  • उच्चतम न्यायालय ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को असंवैधानिक घोषित कर दिया है। न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा है कि सबरीमाला मदिर में 10 से 50 वर्ष के आयु वर्ग की महिलाओं का बहिष्कार उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

  • अनुच्छेद-25 का आह्वान (Invocation of Article 25): याचिकाकर्ता ने सबरीमाला मंदिर प्रवेश मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले (2018) का हवाला दिया है, जिसमें भारतीय संविधान के अनुच्छेद-25 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को आधार बनाकर निर्णय दिया गया था।
    • याचिकाकर्ता का कहना है कि इस अनुच्छेद के तहत धार्मिक स्वतंत्रता के अंतर्गत ‘धार्मिक आस्था में अविश्वास का अधिकार’ भी शामिल होना चाहिए, ताकि जब कोई व्यक्ति अपनी मान्यता का त्याग करता है तो उसे विरासत तथा अन्य महत्त्वपूर्ण नागरिक अधिकारों के मामलों में किसी प्रकार की अयोग्यता का सामना न करना पड़े।
  • मुसलमानों द्वारा विरासत के मामलों में विशेष विवाह अधिनियम के विकल्प का चुनाव: कई मुसलमान अपने विवाह को विशेष विवाह अधिनियम, 1954 (Special Marriage Act) के तहत पंजीकृत करवाते हैं, जो धार्मिक नियमों पर आधारित नहीं है।
    • यह अधिनियम धर्मनिरपेक्ष विरासत कानून (Secular Inheritance Law) द्वारा शासित होता है।

भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम (Indian Succession Act- ISA), 1925: यह अधिनियम वसीयत और उससे संबंधित मामलों को संबोधित करता है।

  • इसमें ईसाइयों सहित अन्य सभी धर्मों के लिए विरासत संबंधी कानूनों के प्रावधान शामिल हैं।

विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act), 1954: इस अधिनियम में भारत तथा विदेशों में रहने वाले सभी धर्म, जाति एवं संप्रदाय के भारतीय नागरिकों के लिए नागरिक विवाह (Civil Marriage) का प्रावधान है।

  • जब कोई व्यक्ति इस कानून के तहत विवाह करता है, तो विवाह व्यक्तिगत कानूनों द्वारा नहीं बल्कि विशेष विवाह अधिनियम द्वारा शासित होता है।

1937 का शरीयत अधिनियम: भारत में मुस्लिम विरासत कानून

  • मुस्लिम विरासत कानून: भारत में मुस्लिम समुदाय के लिए विरासत संबंधी कानून मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अनुप्रयोग अधिनियम, 1937 द्वारा शासित होता है।
    • यह अधिनियम विरासत के संबंध में मुसलमानों को नियंत्रित करने वाले कानून को सूचीबद्ध करता है तथा इसे कुरान के सिद्धांतों, शिक्षाओं और पैगंबर मोहम्मद की हदीस या प्रथाओं के आधार पर निर्मित किया गया है।
  • कानूनी उत्तराधिकारियों की सूची: इस अधिनियम के अनुसार, कानूनी उत्तराधिकारियों या हिस्सेदारों की सूची में 12 व्यक्ति शामिल हैं, जिनमें पति, पत्नी, बेटी, बेटे की बेटी, बेटे का बेटा, पिता, दादा और अन्य लोग हैं।
  • अवशेष उत्तराधिकारी (Residuary Heirs): हिस्सेदारों या उत्तराधिकारियों की एक अन्य सूची भी होती है, जिसे ‘अवशेष उत्तराधिकारी’ कहा जाता है, जिसमें चाची, चाचा, भतीजी, भतीजा और अन्य दूर के रिश्तेदार शामिल होते हैं।
  • विरासत से संबंधित नियम
    • पत्नी का हिस्सा (Share of Wife): कोई पत्नी अपने पति की मृत्यु पर उसकी संपत्ति का 1/8 हिस्सा ले सकती है, यदि दंपति की कोई संतान या वंशज हो तथा संतान की अनुपस्थिति में पत्नी अपने पति की संपत्ति का 1/4 हिस्सा ले सकती है।
    • संपत्ति हस्तांतरण पर प्रतिबंध: किसी मुस्लिम की संपत्ति को केवल मुस्लिम को ही दिया जा सकता है। इस रूप में, यह कानून दूसरे धर्म का पालन करने वाली पत्नी और बच्चों के प्रति पूर्वाग्रह रखता है।
    • बेटियों के लिए विरासत संबंधी नियम: बेटियाँ अपने भाइयों की संपत्ति की तुलना में आधे से अधिक संपत्ति प्राप्त नहीं कर सकतीं।
      • उपरोक्त नियम के संबंध में तर्क दिया गया है कि मुस्लिम कानून के तहत किसी महिला को शादी के बाद अपने पति से मेहर (Mehr) और भरण-पोषण प्राप्त होता है, जबकि पुरुषों को विरासत में मिलने वाली एकमात्र संपत्ति उनके पूर्वजों की संपत्ति होती है।
      • ये कानून उन रीति-रिवाजों से भी उत्पन्न होते हैं, जो पुरुषों को अपनी पत्नियों और बच्चों की देखभाल के लिए जिम्मेदार मानते हैं।
    • विरासत संबंधी सीमाएँ: शरीयत के तहत, पूरी संपत्ति का केवल 1/3 हिस्सा ही वसीयत के रूप में दिया जा सकता है तथा शेष संपत्ति को धार्मिक कानून के अनुसार विभाजित करना होगा।
      • फलस्वरूप कोई मुस्लिम दंपति किसी व्यक्ति को अपना एकमात्र उत्तराधिकारी घोषित नहीं कर सकता है।

मामला से संबंधित महत्त्वपूर्ण प्रावधान

  • याचिकाकर्ता ने 1937 के अधिनियम की धारा 2 और 3 के तहत, वसीयत से संबंधित मामलों के लिए शरीयत द्वारा शासित नहीं होने की माँग करते हुए न्यायालय का रुख किया था।

शायरा बानो बनाम भारत संघ: इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने 3:2 के बहुमत से तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) की प्रथा को असंवैधानिक घोषित कर दिया था।

    • धारा 2: यह व्यक्तिगत कानूनों के अनुप्रयोग से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि कुछ क्षेत्रों जैसे निर्वसीयत उत्तराधिकार (Intestate Succession) तथा महिलाओं के विशेष संपत्ति अधिकार के मामलों में निर्णय मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) द्वारा किया जाएगा, जहाँ दोनों में कोई भी पक्ष मुस्लिम हो।
      • ‘शायरा बानो बनाम भारत संघ’ मामले के संबंध में उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2017 के अपने फैसले में कहा है कि ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ’ को विशेष रूप से धारा 2 के तहत सूचीबद्ध मामलों में निर्णय के लिए उपयोग किया जाएगा।
    • धारा 3: यह धारा व्यक्तियों को शरीयत कानून के तहत औपचारिक रूप से शासित होने का विकल्प चुनने में सक्षम बनाती है।

अपनी मान्यताओं को त्यागने वाले व्यक्तियों के लिए शरीयत की उपयुक्तता

  • शरीयत कानून का पालन करने की बाध्यता: वर्तमान समय में, जो मुसलमान अपनी मान्यताओं को त्यागना चाहते हैं, वे शरीयत कानून से बँधे हुए हैं, जब तक कि वे औपचारिक रूप से घोषित नहीं कर सकते हैं कि वे वर्ष 1937 अधिनियम के तहत मान्यताओं से मुक्त होना चाहते हैं।
    • इसमें विरासत और उत्तराधिकार के पहलुओं को नियंत्रित करने के लिए कोई कानून उपलब्ध नहीं है, क्योंकि भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम (Indian Succession Act) की धारा 58 के तहत विशेष रूप से मुसलमानों को इससे बाहर रखा गया है।
  • वसीयतनामा उत्तराधिकार में अपवाद: पश्चिम बंगाल, चेन्नई और बॉम्बे जैसे राज्यों में संपत्ति का अर्थ अचल संपत्ति से है तथा मुसलमान वर्ष 1925 के अधिनियम से शासित हो रहे हैं।

उत्तराधिकार का माध्यम 

  • निर्वसीयत उत्तराधिकार (Intestate succession): जब संपत्ति के मालिक की मृत्यु  बिना वसीयत बनाए हो जाती है।
  • वसीयतकर्ता उत्तराधिकार (Testate succession): जब संपत्ति के मालिक ने वसीयत बनवाई हो।

उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रस्तुत तर्क

  • भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम (ISA) विरासत के संबंध में विकल्प देता है: न्यायालय ने कहा है कि कोई भी व्यक्ति शरीयत कानूनों द्वारा शासित नहीं होने का विकल्प चुन सकता है। ISA उन व्यक्तियों के लिए विकल्प प्रदान करता है, जो अपनी मान्यताओं का त्याग कर चुके हैं।
    • विरासत से संबंधित समस्याओं से निपटने के लिए उनके पास कोई धर्मनिरपेक्ष कानून उपलब्ध नहीं है।
  • सरकार से प्रतिक्रिया की माँग: मुस्लिम समुदाय के लिए वसीयत और विरासत के संबंध में धर्मनिरपेक्ष कानूनों का अभाव है तथा इस संबंध में उच्चतम न्यायालय ने केंद्र और केरल सरकार से प्रतिक्रियाओं की माँग की है।

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