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लक्षद्वीप प्रवाल भित्तियों का विरंजन

Lokesh Pal May 08, 2024 07:15 169 0

संदर्भ

ICAR-सेंट्रल मरीन फिशरीज रिसर्च इंस्टिट्यूट (CMFRI) ने रिपोर्ट किया है कि अक्टूबर 2023 से लंबे समय तक चलने वाली समुद्री हीट वेव के कारण लक्षद्वीप सागर में प्रवाल भित्तियों में गंभीर विरंजन हो गया है।

  • कोरल ब्लीचिंग से लक्षद्वीप के विविध समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा है।

अंतर्राष्ट्रीय कोरल रीफ पहल (International Coral Reef Initiative- ICRI)

  • परिचय: यह दुनिया भर में प्रवाल भित्तियों एवं संबंधित पारिस्थितिकी प्रणालियों को संरक्षित करने का प्रयास करने वाले राष्ट्रों तथा संगठनों के बीच एक वैश्विक साझेदारी है।
  • स्थापित: इसकी स्थापना वर्ष 1994 में आठ राष्ट्रों (ऑस्ट्रेलिया, फ्राँस, जापान, जमैका, फिलीपींस, स्वीडन, यूनाइटेड किंगडम एवं संयुक्त राज्य अमेरिका) द्वारा की गई थी।
  • इसकी घोषणा दिसंबर 1994 में जैविक विविधता पर कन्वेंशन के पक्षों के पहले सम्मेलन में की गई थी।
  • सदस्यता: ICRI में अब भारत सहित 100 से अधिक सदस्य हैं।

प्रवाल चट्टानें (Coral Reefs)

  • परिचय: प्रवाल का निर्माण तब होता है, जब कोरल कॉलोनी में एक साथ रहने वाले हजारों पॉलिप्स इसके नीचे कैल्शियम कार्बोनेट एक्सोस्केलेटन का स्राव करते हैं। समय के साथ, कई प्रवाल कॉलोनी के कंकाल मिलकर प्रवाल चट्टान की संरचना का निर्माण करते हैं।
    • एक व्यक्तिगत प्रवाल को पॉलिप के रूप में जाना जाता है। पॉलिप एक थैली जैसा जीव है, जो आधार के पास एक एक्सोस्केलेटन उत्सर्जित करता है। पॉलिप्स पौधे जैसी कोशिकाओं के साथ एक सहजीवी संबंध बनाते हैं, जिन्हें जूक्सांथेला (Zooxanthellae) अर्थात् एककोशिकीय डाइनोफ्लैगलेट्स (Unicellular Dinoflagellates)  कहा जाता है।
  • वर्गीकरण: उन्हें ‘कठोर’ या ‘नरम’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
    • कठोर प्रवाल (Hard Corals): इनके पास चूना पत्थर से निर्मित पथरीले कंकाल होते हैं, जो प्रवाल पॉलिप्स द्वारा निर्मित होते हैं। जब पॉलिप्स मर जाते हैं, तो उनके कंकाल शेष रह जाते हैं एवं नए पॉलिप्स की नींव के रूप में उपयोग किए जाते हैं।

      • हजारों-लाखों वर्षों में ये पथरीले प्रवाल के कंकाल, जटिल प्रवाल चट्टानों का निर्माण करते हैं, जिन्हें अक्सर ‘समुद्री वर्षावन’ के रूप में जाना जाता है।
  • नरम प्रवाल (Soft Corals): ये अक्सर पौधों या पेड़ों से मिलते जुलते होते हैं। इन प्रवालों में पथरीले कंकाल नहीं होते हैं तथा ये प्रवाल चट्टान-निर्माण नहीं करते हैं।
    • सुरक्षा के दृष्टिकोण से इनकी सतह पर लकड़ी जैसे कोर एवं मांसल छिलके उगते हैं। कठोर प्रवालों की तरह, वे कॉलोनी में रहते हैं।
    • लक्षद्वीप के लगभग सभी द्वीप प्रवाल एटाॅल हैं, जिनकी मृदा काफी हद तक प्रवालों से निर्मित हुई है।

  • वितरण: वे ज्यादातर 30º उत्तरी और 30º दक्षिणी अक्षांशों के बीच उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय जल क्षेत्र में पाए जाते हैं।
  • प्रवाल चट्टानों के प्रकार
    • फ्रिंजिंग रीफ (Fringing Reef) या तटीय चट्टानें (Shore Reefs): यह एक महाद्वीपीय तट या द्वीप से जुड़ा एक प्रवाल प्लेटफॉर्म है, जिसे कभी-कभी एक संकीर्ण, उथले लैगून द्वारा अलग किया जाता है, जिसे ‘बोट चैनल’ के रूप में जाना जाता है।
    • बैरियर रीफ (Barrier Reef): यह मोटे तौर पर एक स्थल किनारे के समानांतर होती है एवं एक लैगून या जल के अन्य क्षेत्र द्वारा इससे अलग होती है
    • एटाॅल चट्टानें (Atoll Reefs): ये ऐसी चट्टानें हैं, जो मोटे तौर पर गोलाकार होती हैं एवं एक बड़े केंद्रीय लैगून को घेरती हैं।

  • प्रवालों के पनपने की शर्तें
    • उथला जल: प्रवालों को अपनी वृद्धि के लिए सूर्य के प्रकाश एवं साफ उथले जल की आवश्यकता होती है। वे आम तौर पर 165 फीट (50 मीटर) से ऊपर जल में पाए जाते हैं।
    • साफ जल: यह सूर्य की रोशनी को गुजरने देता है। जब जल अपारदर्शी होता है तो वे अच्छी तरह पनपते नहीं हैं।
    • गर्म जल: कोरल को जीवित रहने के लिए गर्म जल की आवश्यकता होती है। विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले विभिन्न प्रवाल 20-32 डिग्री सेल्सियस के बीच जल के तापमान का सामना कर सकते हैं।
    • प्रदूषण मुक्त जल: प्रवाल प्रदूषण एवं तलछट के प्रति संवेदनशील होते हैं। चट्टान के पास समुद्र में छोड़े गए अपशिष्ट जल में बहुत अधिक पोषक तत्त्व हो सकते हैं जिससे चट्टान पर समुद्री शैवाल उग आते हैं
    • लवणता: प्रवालों को जीवित रहने के लिए खारे जल (लवणता लगभग 27 PPt) की आवश्यकता होती है एवं नमक और जल के अनुपात में एक निश्चित संतुलन की आवश्यकता होती है।
    • इस प्रकार, प्रवाल उन क्षेत्रों में नहीं रहते हैं, जहाँ नदियाँ ताजा जल समुद्र में गिरती हैं, उदाहरण के लिए मुहाना।
  • भारत में कुछ स्थानिक प्रवाल प्रजातियाँ: सी. क्लैवस स्कैची (C. Clavus Scacchi), सी. आर्कुआटा (C. Arcuata) एम. एडवर्ड्स (M. Edwards) एवं पी. अंडमानेंसिस (P. Andamanensis)।

प्रवाल विरंजन (Coral Bleaching)

  • परिचय: प्रवाल विरंजन तब होता है जब कोरल पॉलिप समुद्री शैवाल को बाहर निकाल देता है। इसके ऊतक से जूक्सांथेला एवं सहजीवी संबंध टूट जाता है।
    • इसके परिणामस्वरूप प्रवाल के चमकीले सफेद कंकाल के साथ उनका रंग एवं पोषक तत्त्वों तथा ऊर्जा के स्रोत का पता चलता है।
  • कारण: प्रवाल विरंजन तब होता है, जब जल का तापमान बढ़ जाता है। ऐसी स्थितियों में, प्रवाल अपने ऊतकों में रहने वाले सूक्ष्म शैवाल को बाहर निकाल देते हैं।
    • जब समुद्र की सतह का तापमान अधिकतम औसत तापमान से 1 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाता है तो प्रवाल तापीय तनाव का अनुभव करते हैं। 

लक्षद्वीप में प्रवाल विरंजन के कारण

  • तापमान में वृद्धि: लक्षद्वीप में डिग्री हीटिंग वीक (DHW) ने अनुकूलन सीमा को पार कर लिया है, जिसमें 27 अक्टूबर, 2023 से लक्षद्वीप सागर में लगातार सामान्य से 1 डिग्री सेल्सियस अधिक तापमान का अनुभव किया जा रहा है।
    • अत्यधिक वायुमंडलीय ताप (ग्लोबल वार्मिंग के कारण) के अलावा, समुद्री धाराओं में बदलाव से भी जल का तापमान असामान्य रूप से बढ़ जाता है।
  • समुद्री हीट वेव: लक्षद्वीप में अक्टूबर 2023 से समुद्री हीट वेव का प्रभाव बढ़ रहा में है। यदि यहाँ का जल ठंडा नहीं हुआ, तो ब्लीचिंग से अंततः लक्षद्वीप के प्रवाल मर सकते हैं।
  • लक्षद्वीप सागर में इससे पहले वर्ष 1998, 2010 एवं 2015 में प्रवाल विरंजन की घटनाएँ देखी गई हैं, लेकिन वर्तमान का पैमाना अभूतपूर्व है।

हिंद महासागर में समुद्री हीट वेव

  • समुद्री हीट वेव में वृद्धि: भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM) पुणे के वर्ष 2022 के अध्ययन के अनुसार, हिंद महासागर में समुद्री हीट वेव की आवृत्ति बढ़ रही हैं।

समुद्री हीटवेव (Marine Heatwave): यह असामान्य रूप से उच्च समुद्री तापमान की अवधि है।

  • यह तब होता है जब समुद्र के किसी विशेष क्षेत्र की सतह का तापमान कम-से-कम पाँच दिनों के लिए औसत तापमान से 3 या 4 डिग्री सेल्सियस ऊपर बढ़ जाता है।

डिग्री हिटिंग वीक (DHW) संकेतक

  • परिचय: इसका उपयोग पिछले 12 हफ्तों में किसी क्षेत्र में संचित गर्मी के तनाव को मापने के लिए किया जाता है, उस समय अवधि के दौरान ब्लीचिंग सीमा से अधिक तापमान को जोड़कर।
    • इसकी गणना सेल्सियस-सप्ताह में की जाती है।
    • 4 डिग्री सेल्सियस-सप्ताह से ऊपर DHW मान महत्त्वपूर्ण प्रवाल विरंजन का कारण बनता है।

    • अध्ययन में बताया गया कि हिंद महासागर में तेजी से हो रही गर्मी एवं प्रभावी अल नीनो के कारण समुद्री हीट  वेव में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
  • हिंद महासागर क्षेत्रों में वृद्धि की दर: पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र में प्रति दशक लगभग 1.5 घटनाओं की दर से समुद्री हीट वेव में सबसे बड़ी वृद्धि देखी गई, इसके बाद उत्तरी बंगाल की खाड़ी में प्रति दशक 0.5 घटनाओं की दर से वृद्धि हुई।
    • वर्ष 1982-2018 के दौरान, पश्चिमी हिंद महासागर में कुल 66 घटनाएँ हुईं, जबकि बंगाल की खाड़ी में 94 घटनाएँ हुईं।
    • सर्वेक्षण से पता चला है कि मई 2020 में समुद्री हीट वेव के बाद तमिलनाडु तट के पास मन्नार की खाड़ी में 85% प्रवाल विरंजन हुआ था।

समुद्री हीट वेव का प्रभाव

  • तटीय समुदायों पर प्रभाव: हीट वेव तटीय समुदायों, पर्यटन एवं मत्स्यपालन क्षेत्रों तथा समुद्री घास के मैदानों सहित महत्त्वपूर्ण समुद्री आवासों की आजीविका को खतरे में डालती हैं।
  • समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र: प्रवाल, समुद्री घास के मैदानों के समान, केल्प वन भी हीट वेव के कारण प्रकाश संश्लेषण में कमी, विकास में कमी और प्रजनन कार्यों में बाधा जैसे हानिकारक प्रभावों का अनुभव करते हैं।
  • प्रवाल चट्टानों पर प्रभाव: लक्षद्वीप का निर्माण प्रवाल चट्टानों से हुआ है एवं इसलिए द्वीपों की संरचना के लिए चट्टानों का स्वास्थ्य महत्त्वपूर्ण है।
    • प्रवाल की मृत्यु से कार्बनिक पदार्थ का संचय भी हो सकता है, जो बाद में प्रवालों के निर्माण को रोक सकता है।

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