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वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन की तीन आयामी कार्य योजना

Lokesh Pal May 09, 2024 02:55 140 0

संदर्भ

वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (Global Biofuel Alliance- GBA) ने देश के परिदृश्य का आकलन करने, नीतिगत ढाँचे का मसौदा तैयार करने और जैव ईंधन कार्यशालाओं के संचालन पर केंद्रित एक कार्य योजना अपनाई है। 

संबंधित तथ्य 

  • GBA बैठक में निर्धारित तात्कालिक लक्ष्य: हाल ही में ब्राजील में G20 विचार-विमर्श के दौरान आयोजित निकाय की बैठक के दौरान इन्हें तात्कालिक लक्ष्यों के रूप में अपनाया गया था। GBA ने जुलाई के लिए इन लक्ष्यों की समीक्षा निर्धारित की है।
  • जैव ईंधन उन्नति के लिए भारत के प्रस्ताव: भारत ने जैव ईंधन व्यापार का समर्थन करने, जैव ईंधन में जागरूकता बढ़ाने और जैव ईंधन को बढ़ावा देने के लिए समर्थन तंत्र की पहचान करने हेतु तीन संभावित कार्य योजनाओं का सुझाव दिया है।
  • GBA सचिवालय एवं शासन संरचना को लेकर अनिश्चितता: GBA के नए सचिवालय की लॉन्च तिथि या स्थान स्पष्ट नहीं किया जा सका है।
    • इसके अलावा, शासन संरचना और चार्टर की स्थापना पर चर्चा में भी समय लगेगा।

वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (Global Biofuel Alliance- GBA)

  • परिचय: यह सरकारों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और उद्योगों का एक बहु-हितधारक गठबंधन है, जिसे वर्ष 2023 के G20 शिखर सम्मेलन के अवसर पर लॉन्च किया गया था।
    • इसने ‘भारत की शून्य और कम-उत्सर्जन विकास रणनीतियों में सतत् जैव ईंधन के महत्त्व’ और ‘वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन की स्थापना’ को स्वीकार किया।
  • सदस्य: यह भारत द्वारा नौ आरंभिक सदस्यों (भारत, अमेरिका, ब्राजील, अर्जेंटीना, बांग्लादेश, इटली, मॉरीशस, दक्षिण अफ्रीका और संयुक्त अरब अमीरात) के साथ शुरू की गई एक पहल है, जबकि कनाडा और सिंगापुर पर्यवेक्षक देश हैं।
    • वर्तमान में, 24 सदस्यों ने GBA के लिए हस्ताक्षर किया है।
    • GBA सदस्य जैव ईंधन के प्रमुख उत्पादक और उपभोक्ता हैं।
    • उदाहरण के लिए: संयुक्त राज्य अमेरिका (52 प्रतिशत), ब्राजील (30 प्रतिशत) और भारत (3 प्रतिशत), एथेनॉल के उत्पादन में लगभग 85 प्रतिशत और खपत में लगभग 81 प्रतिशत का योगदान करते हैं।
  • उद्देश्य: दुनिया भर में जैव ईंधन को अपनाने में तेजी लाने के लिए:
    • तकनीकी प्रगति को बढ़ावा देना
    • सतत् जैव ईंधन का उपयोग बढ़ाना।
    • हितधारकों की एक विस्तृत शृंखला की सक्रिय भागीदारी के माध्यम से मजबूत मानकों और प्रमाणन प्रक्रियाओं की स्थापना करना।
  • दूसरी पीढ़ी (2G) एथेनॉल उत्पादन के प्रति प्रतिबद्धता: GBA दूसरी पीढ़ी (2G) एथेनॉल का उत्पादन करने के लिए प्रतिबद्ध है, जो कृषि अपशिष्ट, प्रयुक्त खाना पकाने के तेल और वसा जैसे प्रसंस्कृत पशु उपोत्पादों से प्राप्त होता है।

भारत के लिए GBA का महत्त्व

  • उत्प्रेरक जैव ईंधन कार्यक्रम: यह भारत के मौजूदा जैव ईंधन कार्यक्रमों जैसे पीएम-जीवन योजना, SATAT और गोबरधन योजना में तेजी लाने में मदद करेगा।
  • भारतीय उद्योगों के लिए बढ़ा हुआ सहयोग: गठबंधन सहयोग पर ध्यान केंद्रित करेगा और प्रौद्योगिकी एवं उपकरणों के निर्यात के रूप में भारतीय उद्योगों को अतिरिक्त अवसर प्रदान करेगा।
  • जलवायु और स्थिरता में वैश्विक नेतृत्व (Global Leadership in Climate and Sustainability): GBA जलवायु और स्थिरता में एक नेता के रूप में भारत की स्थिति को प्रभावी बनाएगा, साथ ही वैश्विक दक्षिण के प्रतिनिधि के रूप में इसकी भूमिका को भी मजबूत करेगा।
    • भारत निम्न और मध्यम आय वाले देशों को अपने स्वयं के जैव ईंधन कार्यक्रम शुरू करने में सक्षम बनाने में सहायता करेगा।

  • ऊर्जा संक्रमण (Energy Transition) प्राप्त करना: इसका उद्देश्य भारत को वैकल्पिक ईंधन की ओर संक्रमण में मदद करना है, क्योंकि देश वर्ष 2070 तक अपने नेट-जीरो कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करना चाहता है।
    • भारत में बायोगैस और संपीडित बायो गैस का वर्तमान दैनिक उत्पादन 1151 मीट्रिक टन है। अनुमान है कि इस क्षेत्र में ठोस प्रयास से वर्ष 2025 तक यह बढ़कर 1,750 मीट्रिक टन प्रतिदिन हो सकता है।
  • वैश्विक जैव ईंधन खरीद में बढ़ती हिस्सेदारी: अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, वर्ष 2022 में जैव ईंधन की वैश्विक खरीद लगभग 171.2 बिलियन लीटर थी, जिसमें भारत का योगदान केवल 2.7% था, जो 4.6 बिलियन लीटर के बराबर था।
    • हालाँकि, संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्राजील के बाद भारत विश्व स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा एथेनॉल उत्पादक है। GBA के भीतर ब्राजील और अमेरिका के साथ जुड़ने से भारत को इस अंतर को दूर करने में मदद मिलेगी।
  • आर्थिक वृद्धि: यह किसानों की आय बढ़ाने, रोजगार सृजन और भारतीय पारिस्थितिकी तंत्र के समग्र विकास में योगदान देगा।

जैव ईंधन (Biofuels)

  • परिभाषा: अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) जैव ईंधन को ‘बायोमास से प्राप्त तरल ईंधन और गैसोलीन, डीजल और विमानन ईंधन जैसे जीवाश्म ईंधन आधारित तरल परिवहन ईंधन के विकल्प के रूप में उपयोग किया जाता है’ के रूप में परिभाषित करती है।
    • जैव ईंधन आमतौर पर तरल ईंधन होते हैं, जो बायोमास एवं प्राकृतिक अपशिष्ट जैसे कार्बनिक पदार्थों का उपयोग करके बनाए जाते हैं। जैव ईंधन बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली विशिष्ट सामग्री गन्ना, मक्का और सोयाबीन हैं।

जैव ईंधन के सामान्य प्रकार

  • बायोएथेनॉल (Bioethanol): यह मकई, गन्ना या गेहूँ जैसी शुगर एवं स्टार्च फसलों को किण्वित करके बनाया जाता है और मुख्य रूप से परिवहन क्षेत्र में गैसोलीन विकल्प के रूप में उपयोग किया जाता है।
  • बायोडीजल (Biodiesel): यह वनस्पति तेलों, पशु वसा या पुनर्नवीनीकृत रेस्तराँ वसा से बनाया जाता है। इस जैव ईंधन को आमतौर पर डीजल इंजनों में उपयोग के लिए डीजल ईंधन के साथ मिश्रित किया जाता है।
  • बायोगैस (Biogas): यह कृषि अपशिष्ट या सीवेज जैसे कार्बनिक पदार्थों के अवायवीय पाचन द्वारा निर्मित होता है। इसे विद्युत उत्पन्न करने के लिए जलाया जा सकता है या वाहनों के लिए ईंधन के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
    • अवायवीय पाचन (Anaerobic Digestion) उच्च मेथेन सामग्री वाली गैस का उत्पादन करने के लिए वायु की अनुपस्थिति में माइक्रोबियल क्रिया द्वारा पौधे या पशु पदार्थ को विघटित करने की प्रक्रिया है।
  • इलेक्ट्रोफ्यूल (Electrofuels): ई-ईंधन के रूप में भी जाना जाता है, जैव-सिंथेटिक ईंधन (ई-ईंधन, जैसे ई-मेथेन, ई-केरोसिन और ई-मेथेनॉल) का एक वर्ग, गैस या तरल रूप में सभी ईंधन हैं, जो नवीकरणीय ऊर्जा जैसे सौर या पवन ऊर्जा या डीकार्बोनाइज्ड विद्युत से उत्पन्न होते हैं। 
    • ऐसे ईंधन में दहन इंजन अनुप्रयोगों के लिए उपयुक्त होने के साथ-साथ उत्सर्जन को काफी कम करने की क्षमता होती है।

भारत में जैव ईंधन क्षेत्र की स्थिति

  • प्राथमिक स्रोत: गन्ना एथेनॉल उत्पादन का प्राथमिक स्रोत है, जो मक्का जैसे खाद्यान्न और भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India) द्वारा मूल्यांकन किए गए अतिरिक्त चावल के भंडार से पूरक है।
  • मूल्य निर्धारण तंत्र: भारत ने मक्का आधारित एथेनॉल के लिए अलग मूल्य निर्धारण भी शुरू किया है और कपास के डंठल, गेहूँ के भूसे, चावल के भूसे, खोई और बाँस जैसे विभिन्न स्रोतों से एथेनॉल को शामिल करने के लिए इसका विस्तार किया है।
  • इथेनॉल सम्मिश्रण (Ethanol Blending): भारत में गैसोलीन उत्पादन और खपत में एथेनॉल सम्मिश्रण वर्ष 2018 से 2023 तक लगभग चौगुना हो गया है, जो लगभग 12 प्रतिशत (ऊर्जा आधार पर सात प्रतिशत के बराबर) तक पहुँच गया है।
  • CBG को बढ़ावा देना: भारत कचरे से प्राप्त स्वच्छ ईंधन के रूप में संपीडित बायो-गैस (CBG) को सक्रिय रूप से बढ़ावा दे रहा है।
    • ‘सस्टेनेबल अल्टरनेटिव टुवार्ड्स अफोर्डेबल ट्रांसपोर्टेशन’ (SATAT) कार्यक्रम ने 46 CBG संयंत्रों की स्थापना और मार्च 2023 तक लगभग 16,164 टन CBG की बिक्री में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 
    • भारत ने विमानन क्षेत्र में डीकार्बोनाइजेशन को संबोधित करने के लिए घरेलू स्तर पर उत्पादित सतत् विमानन ईंधन (Sustainable Aviation Fuel- SAF) मिश्रण का उपयोग करके अपनी पहली वाणिज्यिक यात्री उड़ान सफलतापूर्वक संचालित की। 
    • केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने देश में कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए बायो-एविएशन टर्बाइन ईंधन कार्यक्रम समिति की स्थापना की है।

जैव ईंधन के लाभ

  • आयात निर्भरता कम करना और ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाना: यदि सही फीडस्टॉक के साथ जैव ईंधन का उत्पादन किया जाता है, तो यह जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम कर सकता है, विशेषकर भारत जैसे देशों के लिए जो अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए जीवाश्म ईंधन के आयात पर निर्भर हैं।
    • भारत अपनी जरूरत का 85% तेल और 50% प्राकृतिक गैस आयात करता है। इसमें से कुछ को जैव ईंधन से बदलने से ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाने और आयात बिल कम करने में मदद मिल सकती है।
    • भारत ने अपने एथेनॉल मिश्रण लक्ष्य को वर्ष 2030 के बजाय 2025 तक 10% से बढ़ाकर 20% कर दिया है। इस कदम से भारत को तेल आयात में 450 अरब रुपये और सालाना 63 मिलियन टन तेल बचाने की उम्मीद है।
  • परिवहन क्षेत्र का डीकार्बोनाइजेशन: जैव ईंधन में जीवाश्म ईंधन की तुलना में उत्सर्जन की तीव्रता कम होती है और इसलिए यह परिवहन को डीकार्बोनाइज करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
  • इलेक्ट्रिक वाहनों की तुलना में लाभ: इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) पर स्विच करने की तुलना में, जैव ईंधन का उपयोग अक्सर मौजूदा वाहन इंजनों में किया जा सकता है, जिसमें कोई या बहुत कम बदलाव की आवश्यकता नहीं होती है।
    • इन ईंधनों से उत्सर्जन को कम करने के लिए जैव ईंधन को गैसोलीन और डीजल जैसे पारंपरिक वाहन ईंधन के साथ भी मिश्रित किया जा सकता है।
  • जैविक अपशिष्ट का उपयोग: अपशिष्ट से कई जैव ईंधन का उत्पादन किया जा सकता है और जीवाश्म ईंधन के स्थान पर उपयोग किया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिए, बायोगैस को कीचड़, पशु अपशिष्ट, फसल अवशेष और नगर निगम के कचरे से 45-75% मेथेन सामग्री के साथ उत्पन्न किया जा सकता है, जिसका उपयोग खाना पकाने, हीटिंग और विद्युत उत्पादन में किया जा सकता है।
  • पराली जलाने का समाधान: बायोगैस वायु प्रदूषण के एक महत्त्वपूर्ण कारण, पराली उत्पादन और उसके बाद जलने की समस्या का समाधान भी प्रदान कर सकती है।
    • पंजाब और हरियाणा में प्रत्येक वर्ष औसतन कुल 25.5 मिलियन टन पराली का उत्पादन होता है। इससे 116 मिलियन क्यूबिक मीटर (m3) बायोगैस का उत्पादन हो सकता है, क्योंकि 10 किलोग्राम कृषि अवशेष 2.2 मानक क्यूबिक मीटर बायोगैस का उत्पादन कर सकता है।
    • एक किलोवाट-घंटे (kWh) विद्युत का उत्पादन करने के लिए केवल 0.75 m3 बायोगैस की आवश्यकता होती है, जबकि खाना पकाने के लिए प्रति व्यक्ति प्रति दिन 0.24 m3 बायोगैस पर्याप्त है। 

जैव ईंधन को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न सरकारी पहल

  • राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति (National Biofuel Policy): इसका लक्ष्य वर्ष 2025-26 तक पेट्रोल में 20 प्रतिशत बायोएथेनॉल मिश्रण दर हासिल करना है।
  • राष्ट्रीय जैव ऊर्जा कार्यक्रम (National Bioenergy Programme): यह विभिन्न बायोगैस संयंत्रों के लिए सब्सिडी और केंद्रीय वित्तीय सहायता प्रदान करता है। 
  • खाना पकाने के तेल की पुनरुत्पादन (RUCO) पहल: यह एक परियोजना है, जो वनस्पति तेल, पशु वसा या रेस्तराँ वसा को डीजल वाहनों को चलाने के लिए बायोडीजल में बदलने की योजना बना रही है।
  • प्रधानमंत्री जी-वन योजना (Pradhan Mantri JI-VAN Yojana), 2019: इसका उद्देश्य वाणिज्यिक परियोजनाओं की स्थापना के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र बनाना और 2G एथेनॉल क्षेत्र में अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देना है।
  • भारत में एथेनॉल सम्मिश्रण के लिए नीति आयोग रोडमैप 2020-25: इसने वर्ष 2025-26 तक एथेनॉल के उत्पादन और आपूर्ति के लिए एक वार्षिक रोडमैप और एथेनॉल के देशव्यापी विपणन के लिए प्रणालियों का सुझाव दिया। 
  • E100 पायलट प्रोजेक्ट: इसका लक्ष्य पूरे देश में एथेनॉल के उत्पादन और वितरण के लिए एक नेटवर्क स्थापित करना है।
  • गोबरधन योजना (Galvanising Organic Bio-Agro Resources Dhan): इसका उद्देश्य बायोडिग्रेडेबल/जैविक कचरे को बायोगैस, संपीडित बायोगैस (CBG) और जैविक खाद जैसे मूल्यवान संसाधनों में परिवर्तित करना है।
  • FDI: नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन और वितरण परियोजनाओं के लिए स्वचालित मार्ग के माध्यम से 100 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति है, बशर्ते वे विद्युत अधिनियम 2003 में उल्लिखित प्रावधानों का पालन करें।

जैव ईंधन से संबंधित चुनौतियाँ

  • जैव ईंधन उत्पादन की अस्थिर विधि: भारत में, जैव ईंधन पहली पीढ़ी (1G) एथेनॉल का पर्याय है, जो मुख्य रूप से खाद्य फसलों से प्राप्त होता है।
    • भारत, वर्ष 2025-26 तक पेट्रोल (E20) के साथ 20% एथेनॉल मिश्रण प्राप्त करने का नीतिगत लक्ष्य लगभग पूरी तरह से गन्ने और खाद्यान्न से बने 1G एथेनॉल से पूरा होने की उम्मीद जताई है।
    • दूसरी पीढ़ी (2G) एथेनॉल, जो फसल के अपशिष्ट और अवशेषों से बना है, फीडस्टॉक आपूर्ति शृंखला और स्केलिंग से संबंधित कई चुनौतियों के कारण इस लक्ष्य को प्राप्त करने में ज्यादा योगदान देने की संभावना नहीं है।
  • पर्यावरणीय प्रभाव (Environmental Impacts): जैव ईंधन उत्पादन के लिए आवश्यक बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिए पर्याप्त निवेश की आवश्यकता होती है और इससे वनों की कटाई हो सकती है, क्योंकि उपजाऊ भूमि को फसल की खेती के लिए परिवर्तित किया जाता है।
    • अप्रत्यक्ष भूमि उपयोग परिवर्तन (ILUC): इससे जंगलों और आर्द्रभूमि जैसी भूमि को कृषि भूमि में परिवर्तित किया जा सकता है, यह एक प्रक्रिया जिसे अप्रत्यक्ष भूमि उपयोग परिवर्तन (ILUC) के रूप में जाना जाता है।
      • इसके परिणामस्वरूप प्राकृतिक ‘कार्बन सिंक’ अर्थात पौधों एवं मृदा जो कार्बन को संगृहीत कर सकते हैं, की उपस्थिति को कम करके वातावरण में GHG के स्तर में वृद्धि हो सकती है।
      • इंस्टिट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (IEEFA) की रिपोर्ट के अनुसार, एक हेक्टेयर सौर ऊर्जा का उपयोग करके रिचार्ज किए गए EV द्वारा संचालित दूरी से मेल खाने के लिए 251 हेक्टेयर गन्ने या 187 हेक्टेयर मक्का से एथेनॉल प्राप्त करने की आवश्यकता होगी।
    • कृषि से GHG उत्सर्जन: प्रत्यक्ष ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को कम करने के मामले में कृषि क्षेत्र महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है।
      • इस प्रकार, परिवहन क्षेत्र से GHG उत्सर्जन को कम करने के लिए मोटर ईंधन का उत्पादन करने के लिए इस क्षेत्र से GHG उत्सर्जन को बढ़ाना एक संतुलन स्थापित करता है, जिससे न्यूनतम शुद्ध लाभ प्राप्त होगा।
  • अधिशेष फसल उत्पादन पर निर्भरता अस्थिर: ग्लोबल वार्मिंग से फसल की पैदावार कम होने की उम्मीद है, जिसका अर्थ है कि खेती के तहत समान क्षेत्र (कृषि योग्य भूमि) समय के साथ कम उत्पादन करेगा लेकिन बढ़ती आबादी के लिए पर्याप्त होना आवश्यक होगा।
    • यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी के अनुसार, जैव ईंधन के उत्पादन के लिए अधिक जैविक सामग्री का उपयोग करने से खाद्य उत्पादन के लिए फसलों की उपलब्धता कम हो सकती है।
  • कृषि उत्पादकता पर प्रभाव: गन्ने की खेती के लिए जल संसाधनों के बढ़ते उपयोग से भूजल की कमी हो रही है, जिससे कृषि उत्पादकता प्रभावित हो रही है।

अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA)

  • परिचय: IEA एक स्वतंत्र अंतरसरकारी संगठन है। इसकी स्थापना वर्ष 1974 में OECD के ढाँचे के तहत वर्ष 1973 के तेल संकट के प्रत्युत्तर में की गई थी।
  • उद्देश्य: यह वैश्विक ऊर्जा क्षेत्र पर नीतिगत सिफारिशें, विश्लेषण और डेटा प्रदान करता है।
  • IEA मुख्यालय: पेरिस
  • सदस्य: 31 सदस्य देश, 13 सहयोगी देश, 5 एक्सेसन राष्ट्र। 
    • भारत वर्ष 2017 में एक सहयोगी देश के रूप में IEA में शामिल हुआ।

आगे की राह

  • बचे हुए/प्रयुक्त खाना पकाने के तेल का उपयोग:  अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) का अनुमान है कि बचे हुए खाद्य तेल से निर्मित बायोडीजल अकेले भारत में पाँच प्रतिशत तक डीजल की खपत को कम कर सकता है।
  • सतत् फीडस्टॉक:  जैव ईंधन के उत्पादन के लिए सतत् फीडस्टॉक का उपयोग करने और फीडस्टॉक के रूप में उन्नत सामग्रियों के उपयोग को सक्षम करने के लिए तकनीकी प्रगति पर स्पष्ट ध्यान देने की आवश्यकता है।
    • सतत् जैव ईंधन का उत्पादन कम जल और GHG फुटप्रिंट के साथ फसल अवशेषों और अन्य अपशिष्टों से किया जाता है।
    • उदाहरण: शैवाल जैसे जैव ईंधन के लिए वैकल्पिक सामग्री की खोज करना।
  • पैमाना आधारित अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा देना:: बड़ी दूरी पर बायोमास संग्रह और परिवहन की ऊर्जा जरूरतों (और लागत) के साथ पैमाने की अर्थव्यवस्थाओं को संतुलित करना एक बड़ी चुनौती है।
    • यदि उत्पादन विकेंद्रीकृत है तो 2G एथेनॉल एक व्यवहार्य सतत् ईंधन के रूप में काम कर सकता है, जिससे केंद्रीकृत विनिर्माण सुविधाओं के लिए फसल अवशेषों के लंबी दूरी के परिवहन की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी।
  • बायोमास उपयोग को प्राथमिकता देना: ऊर्जा परिवर्तन आयोग ने ‘नेट-जीरो उत्सर्जन अर्थव्यवस्था के भीतर जैव संसाधन’ शीर्षक वाली अपनी रिपोर्ट में कम कार्बन विकल्पों की कमी का सामना करने वाले क्षेत्रों में बायोमास उपयोग को प्राथमिकता देने का सुझाव दिया है।
    • विशेष रूप से, लंबी दूरी के विमानन और सड़क माल ढुलाई उद्योग, जहाँ पूर्ण विद्युतीकरण को तुरंत प्राप्त करना अधिक चुनौतीपूर्ण हो सकता है, इस दृष्टिकोण से लाभान्वित हो सकते हैं।
    • इसके विपरीत, पेट्रोल वाहन जैसे क्षेत्र, जो वर्तमान में एथेनॉल मिश्रण के लिए लक्षित हैं, इस सिफारिश के अनुरूप नहीं हो सकते हैं।
  • GBA की भूमिका
    • जैव ईंधन मूल्य शृंखलाओं के लिए व्यापक दिशा-निर्देश: इसे अपस्ट्रीम (फीडस्टॉक, भूमि मुद्दे), मिडस्ट्रीम (रूपांतरण के लिए रासायनिक मार्ग) और डाउनस्ट्रीम (सम्मिश्रण और खुदरा बिक्री) मूल्य शृंखलाओं के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित करने चाहिए।
      • इससे यह सुनिश्चित होगा कि जैव ईंधन से कोई अतिरिक्त पर्यावरणीय क्षति नहीं होगी। अंतिम उपयोग उत्सर्जन को कम करने से परे, जैव ईंधन के संपूर्ण जीवन चक्र का मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।

ग्लोबल बायोएनर्जी पार्टनरशिप (GBEP)

  • परिचय: GBEP की शुरुआत वर्ष 2006 में G8 + 5 (चीन, ब्राजील, भारत, मैक्सिको और दक्षिण अफ्रीका) द्वारा की गई थी। इसके 39 भागीदार (23 राष्ट्र एवं 16 संगठन) और 48 पर्यवेक्षक (33 राष्ट्र एवं 15 संगठन) हैं।
  • उद्देश्य: GBEP, जिसका सचिवालय रोम में स्थित है, की स्थापना बायोएनर्जी और बायोमास के सतत् एवं कुशल उपयोग को बढ़ावा देने के लिए हितधारकों को एक साथ लाने के लिए की गई थी।

बायोफ्यूचर प्लेटफॉर्म (Biofuture Platform)

  • परिचय: यह 23 देशों का समूह है, जिसे वर्ष 2016 में एक छोटे समूह के रूप में स्थापित किया गया था।
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य सर्वोत्तम नीतियों को बढ़ावा देने और परिवर्तनकारी वित्तपोषण तंत्र को सक्षम करके नवीन और स्केलेबल निम्न-कार्बन बायोइकोनॉमी (नवाचार के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों का कुशल प्रबंधन) को बढ़ावा देना है।

    • फोरम उन्नति के लिए गतिशील लक्ष्य: फोरम को एक स्थिर मंच के बजाय इसमें लघु और मध्यम अवधि में हासिल किए जाने वाले विशिष्ट लक्ष्य होने चाहिए। भारत के संदर्भ में, तात्कालिक उद्देश्यों में शामिल हो सकते हैं:
      • बायोमास आपूर्ति शृंखला को मजबूत करना।
      • कृषि अवशेषों से दूसरी पीढ़ी के एथेनॉल के कुशल उत्पादन के लिए प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण।
      • SAF के लिए पायलट-स्तरीय उत्पादन सुविधाओं का प्रदर्शन।
      • जैव ऊर्जा पहल के लिए स्थायी वित्तीय सहायता को बढ़ावा देना।
    • मौजूदा कंसोर्टियम का लाभ उठाना: GBA को ग्लोबल बायोएनर्जी पार्टनरशिप (GBEP) और क्लीन एनर्जी मिनिस्ट्रियल बायोफ्यूचर प्लेटफॉर्म जैसे समान कंसोर्टियम द्वारा किए गए कार्यों पर निर्माण करना चाहिए।
      • GBA सूचित निर्णय लेने में सक्षम बनाने के लिए बायोएनर्जी के लिए GBEP के 24 विज्ञान-आधारित स्थिरता संकेतकों के सेट का उपयोग कर सकता है।
    • पैमाना आधारित अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा देना: वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन एक कुशल बायोमास आपूर्ति शृंखला और छोटे पैमाने पर विकेंद्रीकृत जैव ईंधन उत्पादन इकाइयों की स्थापना में नवाचार और प्रौद्योगिकी विकास को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है।

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