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पारा प्रदूषण का उन्मूलन

Lokesh Pal May 18, 2024 04:35 174 0

संदर्भ

हाल ही में अल्बानिया, बुर्किना फासो, भारत, मोंटेनेग्रो एवं युगांडा रासायनिक प्रदूषण से निपटने के लिए एकजुट हुए तथा चिकित्सा उपकरणों में पारे के उपयोग को समाप्त करने के लिए 134 मिलियन डॉलर की परियोजना शुरू की है।

संबंधित तथ्य

  • UNEP के नेतृत्व में एवं GEF द्वारा वित्तपोषित तथा WHO द्वारा क्रियान्वित हेल्थकेयर प्रोजेक्ट में मरकरी डिवाइसेस को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने का उद्देश्य पारा-आधारित थर्मामीटर एवं स्फिग्मोमैनोमीटर के आयात, निर्यात तथा विनिर्माण को रोकने के लिए राष्ट्रव्यापी रणनीति विकसित करना है।
  •  यह सटीक, किफायती एवं सुरक्षित पारा-मुक्त विकल्पों को अपनाने को बढ़ावा देता है तथा पारा युक्त चिकित्सा अपशिष्ट के प्रबंधन को बढ़ाता है।

पारा (Mercury)

  • परिचय: पारा प्राकृतिक रूप से पृथ्वी की पर्पटी में पाया जाता है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) इसे महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम पैदा करने वाले शीर्ष दस रसायनों या रासायनिक समूहों में से एक मानता है।

पारा के प्रमुख अनुप्रयोग

  • थर्मामीटर एवं बैरोमीटर: पारा का उच्च तापीय विस्तार गुणांक एवं दृश्यमान गुण इसे पारंपरिक थर्मामीटर तथा बैरोमीटर के लिए आदर्श बनाते हैं।
  • रासायनिक एवं खनन अनुप्रयोग: पारे का उपयोग क्लोरीन उत्पादन एवं सोने के खनन जैसी कई रासायनिक तथा खनन प्रक्रियाओं में किया गया है।
  • इलेक्ट्रॉनिक्स एवं विद्युत घटक: मरकरी-वेटेड स्विच, पारे की चालकता एवं कम प्रतिरोध के कारण विभिन्न विद्युत प्रणालियों में उपयोग किए जाते हैं, जिससे विश्वसनीय विद्युत कनेक्शन सुनिश्चित होते हैं।

पारा प्रदूषण के स्रोत

  • प्राकृतिक स्रोत: ज्वालामुखी विस्फोट से मामूली मात्रा में पारा उत्सर्जित होता है। चट्टानों एवं मिट्टी के कटाव से पारा जलीय वातावरण में फैल सकता है।
  • मानवजनित स्रोत
    • कारीगर एवं छोटे पैमाने पर सोने का खनन (ASGM): यह पारा प्रदूषण में एक महत्त्वपूर्ण योगदानकर्ता के रूप में कार्य करता है, अयस्क से सोने के निष्कर्षण में पारे का उपयोग करता है।
    • पारे का उपयोग सोने के कणों के साथ मिश्रण बनाने के लिए किया जाता है, जिसे बाद में पारे को वाष्पीकृत करने के लिए गर्म किया जाता है, जिससे शुद्ध सोना बच जाता है।
    • ASGM गतिविधियों के कारण दुनिया भर में पारा प्रदूषण का 37% हिस्सा है।
  • औद्योगिक गतिविधियाँ: क्लोरीन उत्पादन, सीमेंट निर्माण एवं अपशिष्ट भस्मीकरण सहित कई उद्योग, पर्यावरण में पारा उत्सर्जित करते हैं।
    • वैश्विक मानवजनित कुल पारा उत्सर्जन का लगभग 11% के लिए सीमेंट उद्योग जिम्मेदार है।
  • कोयले से चलने वाले विद्युत संयंत्र: कोयले के भीतर सूक्ष्म मात्रा में मौजूद पारा, दहन के दौरान वायुमंडल में उत्सर्जित हो जाता है। ये उत्सर्जित कण लंबी दूरी तक फैल सकते हैं एवं पर्यावरण में जमा हो सकते हैं।
  • उपभोक्ता वस्तुएँ: पारे का उपयोग थर्मामीटर, फ्लोरोसेंट लाइट बल्ब एवं बैटरी सहित चुनिंदा उपभोक्ता उत्पादों में किया जाता है।
  • अपशिष्ट प्रबंधन: पारा युक्त ई-कचरा वस्तुओं, जैसे- फ्लोरोसेंट बल्ब और बैटरी, के अपर्याप्त निपटान के परिणामस्वरूप पारा पर्यावरण में घुल जाता है।

आर्टिजनल एंड स्माल स्केल गोल्ड माइनिंग (ASGM)

  • शब्द ‘आर्टिजनल एंड स्माल स्केल गोल्ड माइनिंग’ (ASGM) कम प्रौद्योगिकी तथा अत्यधिक श्रम-गहन सोने की खनन गतिविधियों को संदर्भित करता है, जो बुनियादी निष्कर्षण एवं प्रसंस्करण विधियों को नियोजित करते हैं।

पारा प्रदूषण के प्रभाव

  • स्वास्थ्य पर प्रभाव: पारा का उच्च स्तर मस्तिष्क, गुर्दे एवं केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुँचा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप विकास में देरी, संज्ञानात्मक हानि तथा कई अन्य स्वास्थ्य जटिलताएँ हो सकती हैं।
  • पर्यावरणीय परिणाम: पारा संदूषण के व्यापक पर्यावरणीय प्रभाव हो सकते हैं, जिनमें जैव विविधता में कमी, प्रजातियों के वितरण में परिवर्तन एवं पोषक चक्र में व्यवधान शामिल हैं।
  • वन्यजीव प्रभाव: पारा संदूषण जलीय वन्यजीवों के लिए महत्त्वपूर्ण जोखिम पैदा करता है, खाद्य शृंखला के कारण बड़ी मछलियों में उच्च स्तर पर पारा पाया जाता है। इससे वन्यजीवों के लिए प्रजनन संबंधी समस्याएँ, वृद्धि में कमी, जीवित रहने की दर एवं अन्य स्वास्थ्य चुनौतियाँ पैदा हो सकती हैं।
  • मिनामाटा रोग: मिथाइलमरकरी (Methylmercury), मछली जैसे जलीय जीवों में जमा हो जाता है एवं मुख्य रूप से मछली तथा शेलफिश के सेवन के माध्यम से मनुष्यों द्वारा ग्रहण किया जाता है। यह यौगिक मिनामाटा रोग के खतरे को बढ़ाता है।

पारे पर मिनामाटा कन्वेंशन के बारे में

  • परिचय: इसे वर्ष 2013 में जिनेवा में अपनाया गया एवं वर्ष 2017 में लागू किया गया, यह कानूनी दायित्वों वाली पहली वैश्विक संधि है, जिसका उद्देश्य मानव स्वास्थ्य तथा पर्यावरण को पारे के हानिकारक प्रभावों से बचाना है।
  • उत्पत्ति: इसका नाम जापानी शहर के नाम पर रखा गया है, जहाँ 1950 के दशक के दौरान मिनामाटा रोग का प्रकोप देखा गया था, जो गंभीर पारा विषाक्तता से उत्पन्न एक तंत्रिका संबंधी स्थिति थी।
  • हस्ताक्षरकर्ता: भारत वर्ष 2025 तक पारा-आधारित उत्पादों तथा पारा यौगिकों से जुड़ी प्रक्रियाओं के निरंतर उपयोग के लिए लचीलेपन को अपनाएगा। भारत ने इस लक्ष्य की पुष्टि वर्ष 2018 में की थी।

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