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भारत की युद्ध क्षमता पर ‘चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ’ का प्रभाव

Lokesh Pal May 18, 2024 05:08 175 0

संदर्भ

हाल की मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि सशस्त्र बल एक उप-प्रमुख रक्षा स्टाफ (Vice Chief of Defence Staff- VCDS) और एक उप-प्रमुख रक्षा स्टाफ (Deputy Chief of Defence Staff- DCDS) की नियुक्ति पर विचार कर रहे हैं, जो भारत के उच्च रक्षा प्रबंधन की उभरती प्रकृति पर प्रकाश डालता है।

संबंधित तथ्य 

  • हाल ही में भारत सरकार ने सेना, वायु सेना और नौसेना में समन्वय एवं दक्षता बढ़ाने के लिए भारत के राजपत्र में जारी अधिसूचना के माध्यम से अंतर-सेवा संगठन (Inter-Services Organisations- ISO) (कमांड, नियंत्रण और अनुशासन) अधिनियम, 2023 को अधिसूचित किया है।

नए रक्षा पदों के प्रस्ताव का कारण

  • संयुक्तता में वृद्धि: इन पदों का प्रस्ताव सशस्त्र बलों के बीच संयुक्तता (डोमेन विशेषज्ञता और परिसंपत्तियों का साझाकरण) को बढ़ाने, अंतर-सेवा सहयोग को सुव्यवस्थित करने और समग्र युद्ध क्षमता में सुधार करने के लिए किया गया है।
  • चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का समर्थन करने के लिए: इन पदों का उद्देश्य CDS को उनकी व्यापक जिम्मेदारियों के प्रबंधन में सहायता करना है, जिसमें 4-स्टार जनरल, सरकारी सचिव और रक्षा मंत्री के प्रमुख सलाहकार शामिल है।

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ  (Chief of Defence Staff-CDS) के बारे में 

  • संदर्भ: CDS एक 4-स्टार जनरल के रूप में अन्य तीन सेवा प्रमुखों के साथ बराबरी के बीच प्रथम पद है। CDS एक उच्च सैन्य पद है, जो तीनों सेवाओं के कामकाज की देखरेख एवं समन्वय करता है।
  • पृष्ठभूमि एवं विकास
    • वर्ष 1999: के. सुब्रह्मण्यम समिति द्वारा CDS के लिए पहला प्रस्ताव रखा गया, जिसे कारगिल समीक्षा समिति (Kargil Review Committee-KRC) के रूप में भी जाना जाता है। इस समिति की नियुक्ति वर्ष 1999 के कारगिल संघर्ष के बाद उच्च सैन्य सुधारों की सिफारिश करने के लिए की गई थी।
      • हालाँकि, सेवाओं के बीच आम सहमति की कमी और आशंकाओं के कारण यह कभी आगे नहीं बढ़ सका।
    • वर्ष 2001: के. सुब्रह्मण्यम समिति की रिपोर्ट के आधार पर, मंत्रियों के एक समूह (Group of Ministers- GoM) ने वर्ष 2001 में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के पद के सृजन की सिफारिश की।
    • वर्ष 2012: नरेश चंद्र टास्क फोर्स का गठन वर्ष 2011 में तत्कालीन प्रधानमंत्री द्वारा किया गया और वर्ष 2012 में रिपोर्ट दी गई। इसने सिफारिश की थी कि CDS को चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के स्थायी अध्यक्ष के रूप में नामित किया जाना चाहिए।
    • वर्ष 2016: लेफ्टिनेंट जनरल डी. बी. शेकेतकर (सेवानिवृत्त) समिति द्वारा की गई 99 सिफारिशों में से CDS  भी एक है।
    • वर्ष 2020: जनरल बिपिन रावत को जनवरी 2020 में पहला CDS  नियुक्त किया गया।
    • वर्ष 2022: अक्टूबर 2022 में लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चौहान (सेवानिवृत्त) को दूसरा CDS  नियुक्त किया गया।
      • CDS की अनुपस्थिति में, तीनों प्रमुखों में से सबसे वरिष्ठ, चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी के अध्यक्ष (Chairman of Chiefs of Staff Committee- COSC) के रूप में कार्य करता है।
  • वैश्विक परिदृश्य: कई प्रमुख देशों जैसे इटली, फ्राँस, चीन, ब्रिटेन, अमेरिका आदि ने अपने सशस्त्र बलों में अधिक संयुक्तता और एकीकरण लाने के लिए CDS  का पद गठित किया है।
  • CDS  की आवश्यकता
    • प्रभावशीलता: सेना को अधिक कुशल एवं प्रभावी बनाने के लिए CDS की नियुक्ति आवश्यक है।
    • एकल-बिंदु सैन्य सलाह: राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों पर सरकार को एकल-बिंदु सैन्य सलाह देने के लिए एक पेशेवर निकाय होना आवश्यक है।
    • अंतराल को कम करना: CDS की भूमिका को एक महत्त्वपूर्ण भूमिका के रूप में देखा गया था, जो सैन्य और सरकारी रक्षा संचालन के बीच के अंतराल को कम करता है, इस प्रकार सैन्य विशेषज्ञता, नौकरशाही कौशल और राजनीतिक सलाहकार क्षमताओं के संयोजन की आवश्यकता होती है।
  • जिम्मेदारियाँ एवं अधिदेश
    • सरकार का सलाहकार: CDS का मतलब सरकार के लिए एकल-बिंदु सैन्य सलाहकार होना और तीनों सेवाओं की दीर्घकालिक योजना, खरीद, प्रशिक्षण और रसद का समन्वय करना है।
    • सशस्त्र बलों के बीच संयुक्तता बढ़ाना: CDS  को ‘थिएटर कमांड’ के निर्माण के लिए भी महत्त्वपूर्ण माना जाता है, जो अमेरिकी सेना की तरह त्रि-सेवा परिसंपत्तियों एवं कर्मियों को एकीकृत करता है।
    • अंतर-सेवा खरीद निर्णयों को प्राथमिकता देना: CDS  रक्षा मंत्रालय में नव निर्मित सैन्य मामलों के विभाग (Department of Military Affairs- DMA) का प्रमुख है और DMA के प्रमुख के रूप में, CDS को स्थायी अध्यक्ष-COSC के रूप में अंतर-सेवा खरीद निर्णयों को प्राथमिकता देने का अधिकार है।
    • निर्देश देना: CDS को तीनों प्रमुखों को निर्देश देने का अधिकार भी दिया गया है। हालाँकि, किसी भी सेना पर कोई कमांड अधिकार नहीं है।
      • CDS समान स्तर के पदों पर प्रथम स्थान पर होता है, उसे रक्षा विभाग में सचिव का पद प्राप्त होता है तथा उसकी शक्तियाँ केवल राजस्व बजट तक ही सीमित होती हैं।
      •  वह परमाणु कमांड प्राधिकरण (Nuclear Command Authority- NCA) में सलाहकार की भूमिका भी निभाता है।
    • CDS  की अनेक भूमिकाएँ: CDS को एक चुनौतीपूर्ण और असामान्य संस्थागत स्वरूप प्रदान किया गया था, लेकिन जब इस पद की परिकल्पना की गई थी, तब इसे आवश्यक समझा गया था।

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) का महत्त्व

  • सहयोग एवं सामंजस्य बनाए रखना: CDS रक्षा मंत्रालय की नौकरशाही और सशस्त्र सेवाओं के बीच बेहतर सहयोग बनाए रखता है।
    • वर्ष 1947 से, रक्षा विभाग (DoD) के ‘संलग्न कार्यालय’ के रूप में नामित तीन सेवा मुख्यालय (SHQ) हैं। इसके कारण, SHQ और DOD के बीच संचार मुख्य रूप से फाइलों के माध्यम से होता है।
    • रक्षा मंत्री के प्रधान सैन्य सलाहकार (PMA) के रूप में CDS के सृजन से निर्णय लेने की प्रक्रिया में तेजी आएगी।
  • संयुक्तता: CDS एक उच्च सैन्य कार्यालय है, जो भारत में तीनों रक्षा सेवाओं के कामकाज की देखरेख और समन्वय करता है जिससे सुरक्षा में वृद्धि होती है।
    • चूँकि CDS ‘COSC का स्थायी अध्यक्ष’ है, इसलिए वह तीनों सेनाओं के संगठनों के प्रशासन पर पूरा ध्यान दे सकेगा।
  • थियेटर कमांड का संचालन: DMA के निर्माण से संयुक्त/थिएटर कमांड के संचालन में सुविधा होगी। थियेटर कमांड को थल, जल और वायु सेना को तैनात करने के लिए ज्ञान और अनुभव वाले कर्मचारियों की आवश्यकता होगी, जिसे CDS  द्वारा कार्यान्वित किया जाएगा।
    • यद्यपि अंडमान एवं निकोबार कमान में संयुक्त अभियानों के लिए एक सफल प्रारूप तैयार किया गया था, लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव और COSC की उदासीनता के कारण यह संयुक्त कमांड निष्क्रिय हो गई।
  • संसाधन अनुकूलन: CDS को यह सुनिश्चित करना होगा कि ‘रक्षा संबंधी धन’ युद्ध-क्षमताओं पर विवेकपूर्ण तरीके से खर्च किया जाए, जिन्हें राष्ट्रीय सैन्य शक्ति के लिए महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
    • CDS खतरों से एकीकृत तरीके से निपटने में मदद करता है और उपलब्ध संसाधनों का इष्टतम उपयोग करने में मदद करता है।
    • इसके अलावा, संचालन, खरीद और संयुक्त रसद पर नीति-निर्माण में सुधार होता है।
  • समग्र प्रबंधन: परमाणु हथियारों सहित राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों पर इष्टतम परिणामों और एकल बिंदु सैन्य सलाह के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा के समग्र प्रबंधन में CDS  महत्त्वपूर्ण है।
    • CDS सामरिक बल कमान का प्रशासन करता है और इससे भारत की परमाणु प्रतिरोधक क्षमता की विश्वसनीयता बढ़ेगी।
      • CDS  ने भारत के परमाणु सिद्धांत की शीघ्र समीक्षा भी शुरू की।

संबंधित चिंताएँ 

  • समय लेने वाली प्रक्रिया: जैसा कि भारतीय रक्षा मंत्री ने कहा है, थिएटर कमांड बनाना एक जटिल और समय लेने वाली प्रक्रिया है, जिसके लिए विभिन्न सेवाओं के बीच आम सहमति की आवश्यकता होती है।
    • इसके अलावा, जब पहले भारतीय CDS बिपिन रावत की हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मृत्यु हो गई, तो सरकार को नया CDS नियुक्त करने में 9 महीने लग गए।
  • CDS  पर टालने योग्य अतिरिक्त कार्यभार: CDS की मौजूदा जिम्मेदारियाँ टालने योग्य अतिरिक्त कार्यभार का मामला है। रक्षा मंत्रालय में भारत सरकार के सचिव के रूप में कार्य करने से महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक कर्तव्य जुड़े हैं, जो CDS को उसके प्राथमिक सैन्य कार्यों से विचलित कर सकते हैं।
  • संचालन संबंधी चुनौतियाँ: प्राथमिक चुनौतियों में से एक तीनों सेवाओं के हितों और परिचालन परिदृश्य में सामंजस्य स्थापित करना है, क्योंकि सशस्त्र बलों की प्रत्येक शाखा की अपनी परंपराएँ, प्राथमिकताएँ एवं रणनीतिक सिद्धांत हैं।
  • रैंक पदानुक्रम: रैंक पदानुक्रम सेना के लिए मुख्य है और यदि इसे लागू किया जाता है, तो यह रैंक पदानुक्रम को बाधित कर सकता है और कमांड संरचना को प्रभावित कर सकता है।
  • स्थान का चयन: पहले से विचार किए गए करवार (Karwar) के बजाय कोयंबटूर में मैरीटाइम थिएटर कमांड के लिए प्रस्तावित स्थान मौजूदा बुनियादी ढाँचे के रणनीतिक उपयोग के बारे में प्रश्न उठाता है।
  • थिएटरीकरण पर चिंताएँ: तीनों सेवाओं को इस बात की भी चिंता है कि थिएटरीकरण कैसे सेवा प्रमुखों की भूमिका को कम कर सकता है।
    • इसके अलावा, मनमाने ढंग से किए गए परिवर्तनों से CDS के रूप में नियुक्ति के लिए पात्र उम्मीदवारों की संख्या बढ़ गई, जिससे इस उभरते हुए कार्यालय की गरिमा कम हो गई।
  • सुरक्षा एवं संप्रभुता की चुनौती बरकरार: राष्ट्रीय सुरक्षा एवं संप्रभुता संबंधी चुनौतियाँ स्थायी एवं कठिन बनी हुई हैं।
    • स्थल सीमाओं (चीन और पाकिस्तान) पर दो मोर्चों पर परिचालन कार्य और असमंजस के कारण, लगातार अनसुलझे क्षेत्रीय विवाद हैं।
    • राज्य प्रायोजित आतंकवाद के बढ़ने से वे और भी जटिल हो गए हैं। उदाहरण: कारगिल 1999, मुंबई 2008 और गलवान 2020।

आगे की राह 

  • भूमिकाओं का स्पष्ट सीमांकन: CDS, VCDS और अन्य वरिष्ठ सैन्य पदों की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को स्पष्ट करने की आवश्यकता है। ताकि अधिकार की सीमाओं को रेखांकित किया जा सके और ओवरलैपिंग कर्तव्यों के जोखिम को कम किया जा सके, जो अकुशलता को जन्म दे सकते हैं।
  • अंतर-सेवा सहयोग को मजबूत करना: नियमित संयुक्त प्रशिक्षण अभ्यास, एकीकृत योजना सत्र और साझा संसाधनों का आयोजन करके सेवाओं के बीच संयुक्तता बढ़ाने की पहल को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
  • रणनीतिक नेतृत्व पर ध्यान केंद्रित करना: VCDS को नौकरशाही जिम्मेदारियाँ सौंपकर, CDS रणनीतिक नेतृत्व और दीर्घकालिक रक्षा योजना पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकता है।
    • इससे CDS को सेना की परिचालन क्षमताओं और तत्परता को बढ़ाने वाली पहल करने में मदद मिलेगी।
  • पेशेवर सत्यनिष्ठा बनाए रखना: CDS की पेशेवर स्वतंत्रता को बनाए रखना महत्त्वपूर्ण है। यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि CDS सरकार को ईमानदार और निष्पक्ष सलाह दे सके और साथ ही सशस्त्र बलों की जरूरतों की प्रभावी ढंग से सिफारिश भी कर सके।
    • सैन्य लोकाचार के अनुसार यह आवश्यक है कि CDS अपनी पेशेवर स्वतंत्रता बनाए रखे तथा संविधान के प्रति अपनी निष्ठा की शपथ कायम रखे।

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