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दोषपूर्ण सेवा प्रदान करने हेतु वकीलों पर नहीं चल सकता मुकदमा

Lokesh Pal May 17, 2024 06:00 116 0

संदर्भ 

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 (Consumer Protection Act, 1986) के तहत दोषपूर्ण सेवा के लिए अधिवक्ताओं को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।

संबंधित तथ्य 

  • न्यायालय ने वर्ष 2007 के राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (National Consumer Disputes Redressal Commission- NCDRC) के निर्णय को पलटते हुए कहा है कि वकील सेवाओं को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत शामिल नहीं किया जाना चाहिए, जिसमें 1986 अधिनियम की धारा 2 (o) के तहत वकील की सेवाओं को शामिल किया गया था।
    • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 2(o) में ‘सेवाओं’ की परिभाषा लिखित है।
  • वर्ष 2007 में NCDRC निर्णय के खिलाफ दाखिल एक अपील के बाद न्यायालय ने यह निर्णय दिया है। वर्ष 2007 के निर्णय में माना गया था कि वकीलों की सेवाएँ उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 2 (o) के तहत प्रदान की गई सेवाओं की परिभाषा के अंतर्गत शामिल हैं।
  • पिछले फैसलों का पुनर्मूल्यांकन: न्यायालय ने सुझाव दिया है कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन बनाम वी.पी. शांता (1995) के मामले में, उचित निर्णय के लिए पेशेवर समझ रखने वाली न्यायिक पीठ द्वारा पुनर्विचार किया जाना चाहिए।
    • इस मामले में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (CPA) के अंतर्गत चिकित्सा सेवाओं को शामिल किया गया था।

याचिकाकर्ताओं का तर्क

  • वकीलों के परस्पर विरोधी कर्तव्य: ‘बार काउंसिल ऑफ इंडिया’ के नियमों के अनुसार, वकीलों को अपने ग्राहकों की इच्छाओं से पहले न्यायालय के प्रति अपने कर्तव्य को प्राथमिकता देनी चाहिए, जिसमें उन मामलों को अस्वीकार करना भी शामिल है, जहाँ ग्राहक अनुचित साधनों का उपयोग करने पर जोर देते हैं।
    • न्यायालय, प्रतिद्वंद्वी और ग्राहक के प्रति कर्तव्यों के बीच अंतर्निहित संघर्ष उनकी भूमिका को अन्य पेशेवरों से अलग बनाता है, क्योंकि अन्य पेशों में पूरी तरह से अपने ग्राहकों की इच्छाओं के लिए कार्य कर सकते हैं।
  • कानूनी परिणामों में अप्रत्याशितता: कानूनों की जटिलता और कार्यवाई की प्रतिकूल प्रकृति के कारण कानूनी परिणाम अप्रत्याशित होते हैं, फलस्वरूप वकील अन्य पेशेवरों से अलग हैं।
  • कानून में देखभाल का कोई सार्वभौमिक मानक नहीं: चिकित्सा क्षेत्र में वैज्ञानिक तरीकों के माध्यम से देखभाल का सार्वभौमिक मानक स्थापित किया जाता है। किंतु इसके विपरीत, कानूनी पेशे में ऐसे मानकों का अभाव है। प्रत्येक वकील का दृष्टिकोण दूसरे वकील से बहुत अलग होता है।
  • अनुशासनात्मक प्रक्रिया: याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि कानूनी पेशे के अंदर पेशेवर धोखाधड़ी को संबोधित करने के लिए पर्याप्त प्रक्रिया मौजूद है।
    • अधिवक्ता अधिनियम, 1961 तथा राजकीय और राष्ट्रीय स्तर पर बार काउंसिल में निहित अनुशासनात्मक शक्तियाँ किसी भी कानूनी दोष से निपटने के लिए रूपरेखा प्रदान करती हैं, परिणामस्वरूप अतिरिक्त उपभोक्ता संरक्षण उपाय अनावश्यक हो जाते हैं।

दूसरे पक्ष का तर्क 

दूसरे पक्ष की ओर से तर्क प्रस्तुत करने के लिए कोई उपस्थित नहीं था, इसलिए न्यायालय ने पीठ की सहायता के लिए ‘एमिकस क्यूरी’ (Amicus Curiae) नियुक्त किया था।

  • वकीलों की दोहरी भूमिका: वकील न्यायालयों के समक्ष अपने ग्राहकों का प्रतिनिधित्व अभिकर्ता (Agent) के रूप में करता है, अर्थात् कोई ऐसा व्यक्ति जो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (CPA) द्वारा परिभाषित सेवाप्रदाता-उपभोक्ता संबंध के बाहर कार्य करता है।
  • मुकदमे के अलावा कानूनी सेवाएँ: कई वकील न्यायालयी कार्यवाई के अलावा सेवाएँ प्रदान करते हैं, जैसे- कानूनी राय देना, दस्तावेजों का मसौदा तैयार करना आदि। ये सेवाएँ CPA के दायरे में आ सकती हैं क्योंकि इन गतिविधियों में कानूनी अभिकर्ता के रूप में कार्य करना शामिल नहीं है।

निर्णय के पक्ष में उच्चतम न्यायालय का तर्क

  • पेशे और व्यवसाय में अंतर: न्यायालय ने ‘व्यवसाय’ और ‘व्यापार’ (जिसमें व्यावसायिक हित शामिल होता है) और ‘पेशे’ (जो विशेष ज्ञान पर निर्भर करता है) के बीच अंतर को रेखांकित किया है। पेशों (Professions) में सफलता को प्रभावित करने वाले अप्रत्याशित कारक CPA के अंतर्गत आने वाली विशेष व्यावसायिक गतिविधियों से अलग होते हैं।
  • कानूनी सेवाओं की संविदात्मक प्रकृति: यह निर्धारित किया गया था कि वकील और ग्राहक के बीच का संबंध ‘व्यक्तिगत सेवा का अनुबंध’ (Contract of Personal Service) है, क्योंकि वकील की सेवाओं पर ग्राहकों का उद्देश्यपूर्ण नियंत्रण होता है।
    • यह संबंध वकीलों को CPA के दायरे से छूट देता है, जो आम तौर पर व्यक्तिगत सेवा अनुबंधों को शामिल नहीं करता है।
  • अधिवक्ताओं की भूमिका और अपेक्षाएँ: न्यायालय ने इस बात पर बल दिया है कि कानूनी पेशा सेवा-उन्मुख है, जिससे नागरिकों के अधिकारों, न्यायिक स्वतंत्रता और कानून के शासन की रक्षा की जाती है, इसमें अधिवक्ताओं के निडर और स्वतंत्र व्यक्तित्व की आवश्यकता होती है। इस पेशे की भूमिका समाज में अद्वितीय है। 
  • न्यायिक प्रणाली पर प्रभाव: न्यायिक पीठ ने कहा कि वकील का कार्य न केवल ग्राहक को बल्कि संपूर्ण न्याय प्रणाली को भी प्रभावित करता है, जो कानूनी पेशे की अनूठी प्रकृति को रेखांकित करता है।

अधिवक्ता का कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व

  • प्रत्ययी कर्तव्य (Fiduciary Duty): अधिवक्ताओं का अपने ग्राहकों के प्रति प्रत्ययी कर्तव्य है, यानी कि वे वफादारी और गोपनीयता के साथ ग्राहकों के सर्वोत्तम हित में कार्य करते हैं।
  • ग्राहक की स्वायत्तता का सम्मान करना: अधिवक्ताओं को ग्राहक की स्वायत्तता का सम्मान करना चाहिए, विशेष रूप से उनके प्रतिनिधित्व के उद्देश्यों के निर्णयों के संबंध में।
  • ग्राहक निर्देशों का पालन करना: अधिवक्ताओं को ग्राहक के कानूनी अधिकारों को प्रभावित करने वाले किसी भी बयान, रियायतें या कार्रवाई का उपयोग करने से पहले ग्राहक की सहमति का सख्ती से पालन करना आवश्यक है।
  • न्यायालय में प्रतिनिधित्व: अधिवक्ता न्यायालयी कार्यवाई में ग्राहकों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो ग्राहक और न्यायालय के बीच प्राथमिक कड़ी के रूप में कार्य करता है।
  • ग्राहक द्वारा नियंत्रित सेवा: अधिवक्ता की कार्य-प्रणाली पर ग्राहक का काफी नियंत्रण होता है।

अधिवक्ताओं की सीमाएँ

  • निर्देशों के बिना कोई रियायत नहीं: अधिवक्ता ग्राहक के स्पष्ट निर्देशों के बिना कोई रियायत नहीं दे सकता है या न्यायालय को कोई वचन नहीं दे सकता है।
    • अधिवक्ताओं को ग्राहक के निर्देशों द्वारा परिभाषित दायरे का सख्ती से पालन करना चाहिए।

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