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सोशल मीडिया का भारतीय राजनीति पर प्रभाव

Lokesh Pal May 20, 2024 05:09 512 0

संदर्भ

डिजिटल युग में, संचार और प्रौद्योगिकी के अभिसरण ने एक ऐसे सोशल मीडिया को जन्म दिया है, जिसने भौगोलिक सीमाओं को पार कर राजनीतिक क्षेत्र में क्रांति ला दी है।

संबंधित तथ्य 

  • भारतीय राजनीति के संदर्भ में, सोशल मीडिया का प्रभाव गहन और दूरगामी दोनों है।
  • एनालिटिक्स फर्म सोशल ब्लेड के आँकड़ों के अनुसार, इंफोटेनमेंट क्रिएटर्स ने अप्रैल महीने में यूट्यूब पर सब्सक्राइबर्स में उल्लेखनीय वृद्धि प्राप्त की।
    • इसी तरह, जनवरी के बाद से, कई डिजिटल समाचार वाले टेलीविजन पत्रकारों ने अपने यूट्यूब चैनलों पर मासिक व्यूज में उल्लेखनीय वृद्धि देखी है।

सोशल मीडिया और इसके उपयोग के बारे में

  • यह लोगों के बीच संवाद के साधनों को संदर्भित करता है, जिसमें वे आभासी तरीके से लोगों और उनके नेटवर्क में जानकारी एवं विचारों का आदान-प्रदान करते हैं।
  • सांख्यिकी: डेटा रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी 2024 में भारत में 462 मिलियन सोशल मीडिया उपयोगकर्ता थे, जो कुल जनसंख्या का 32.2 प्रतिशत है।
  • एक महत्त्वपूर्ण उपकरण
    • सरकारी योजनाओं और प्रमुख कार्यक्रमों के बारे में अपडेट साझा करने के लिए लोगों से जुड़ना।
    • आगामी राष्ट्रीय कार्यक्रमों के बारे में साझा करना।
    • संचार का एक चैनल
      • कोविड के दौरान, सोशल मीडिया एक वरदान था, क्योंकि लोग मदद के लिए सीधे संपर्क कर सकते थे।

डिजिटल लोकतंत्र का उत्थान

  • अनुकूल कारक
    • डिजिटल क्रांति: हाल के वर्षों में, भारत में इंटरनेट पहुँच और स्मार्टफोन के उपयोग में तेजी से वृद्धि देखी गई है, जिससे लाखों नागरिक विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर आ गए हैं।

डिजिटल लोकतंत्र

  • ई-लोकतंत्र, जिसे डिजिटल लोकतंत्र या इंटरनेट लोकतंत्र के रूप में भी जाना जाता है, राजनीतिक और शासन प्रक्रियाओं में सूचना तथा संचार प्रौद्योगिकी का उपयोग करता है।
  • इस शब्द का श्रेय डिजिटल एक्टिविस्ट स्टीवन क्लिफ्ट को दिया जाता है।

  • राजनीतिक विमर्श का लोकतांत्रीकरण: इस डिजिटल क्रांति ने राजनीतिक विमर्श का लोकतांत्रीकरण कर दिया है, जो विविध सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के व्यक्तियों को अपनी राय व्यक्त करने, समान विचारधारा वाले व्यक्तियों से जुड़ने और निर्वाचित प्रतिनिधियों को जवाबदेह रखने के लिए एक आभासी मंच प्रदान करता है।
  • राजनीतिक विमर्श को आकार देने वाले रुझान
    • सूक्ष्म-लक्ष्यीकरण और वैयक्तिकरण: राजनीतिक दल अपने संदेशों को अनुकूलित करने और विशिष्ट जनसांख्यिकी को सटीक रूप से लक्षित करने के लिए डेटा एनालिटिक्स और कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग कर रहे हैं।
    • प्रभावशाली विपणन: प्रभावशाली व्यक्ति और सोशल मीडिया व्यक्तित्व अपने अनुयायियों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। राजनीतिक दल अपने संदेश को बढ़ावा देने, सोशल मीडिया पर व्यूज बढ़ाने और जनता की राय को प्रभावित करने के लिए प्रभावशाली लोगों के साथ सहयोग करके इसका उपयोग कर रहे हैं।
    • रियल टाइम संचार: लाइव स्ट्रीमिंग रैलियों से लेकर इंटरैक्टिव सत्रों की मेजबानी तक, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों का उपयोग करते हुए, राजनेता अधिक प्रामाणिक और सुलभ छवि विकसित करने के लिए इन प्लेटफॉर्मों का लाभ उठा रहे हैं।

मीडिया पर शासन करने वाले कानून एवं विनियम

  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT), 2000: इसका उद्देश्य भारत में साइबरस्पेस के लाभकारी उपयोग को सुविधाजनक बनाना और साइबर-अपराध से संबंधित अपराधों को दंडित करके साइबर सुरक्षा को बढ़ाना है।
    • धारा 69A: यह प्राधिकरण को अन्य कारणों के अलावा, भारत की संप्रभुता और अखंडता तथा राज्यों की सुरक्षा के विरुद्ध इंटरनेट पर किसी भी सामग्री को हटाने का अधिकार देता है।
  • भारतीय प्रेस परिषद: यह एक वैधानिक निकाय है, जो फर्जी खबरों पर निगरानी रखता है। यह प्रेस का, प्रेस के लिए और प्रेस द्वारा स्व-नियामक प्रहरी है, जो वर्ष 1978 के प्रेस परिषद अधिनियम के तहत संचालित होता है।
  • चुनाव संचालन के दौरान
    • चुनावों के दौरान मीडिया आचरण को नियंत्रित करने वाले कानून: चुनावों के दौरान, मीडिया विनियमन मुख्य रूप से चुनाव आयोग के दायरे से बाहर होता है। हालाँकि, आयोग को ऐसे कानूनों और न्यायालयी निर्देशों को लागू करने का काम सौंपा गया है, जो मीडिया गतिविधियों से जुड़ सकते हैं।
    • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 126: यह चुनाव के समापन तक 48 घंटे की अवधि के दौरान सिनेमैटोग्राफ, टेलीविजन या इसी तरह के उपकरणों के माध्यम से किसी भी चुनाव-संबंधी सामग्री के प्रदर्शन पर रोक लगाती है।
    • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 126A: यह निर्दिष्ट अवधि के दौरान एग्जिट पोल के संचालन और उनके परिणामों के प्रसार पर रोक लगाती है, जिसमें पहले चरण में मतदान शुरू होने से पहले और मतदान के आधे घंटे बाद का समय भी शामिल है। सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में अंतिम चरण का मतदान समाप्त हो गया है।
    • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 127A: यह चुनाव-संबंधी सामग्री जैसे पैम्फलेट और पोस्टर की छपाई और प्रकाशन को नियंत्रित करती है, जिसमें यह अनिवार्य है कि उन पर मुद्रक और प्रकाशक के नाम और पते हों।
    • भारतीय दंड संहिता की धारा 171H: यह चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार की अनुमति के बिना विज्ञापनों और चुनाव से संबंधित अन्य गतिविधियों पर व्यय करने पर रोक लगाती है।

सोशल मीडिया को विनियमित करने के लिए विभिन्न पहलें 

वैश्विक स्तर पर

  • यूरोपीय संघ का डिजिटल सेवा अधिनियम: यह बाजार, सामाजिक नेटवर्क, सामग्री-साझाकरण प्लेटफॉर्म, ऐप स्टोर और ऑनलाइन यात्रा तथा आवास प्लेटफॉर्म जैसे ऑनलाइन मध्यस्थों एवं प्लेटफॉर्मों को नियंत्रित करता है। इसका मुख्य लक्ष्य ऑनलाइन अवैध और हानिकारक गतिविधियों और गलत सूचना के प्रसार को रोकना है।
  • अमेरिका में प्रस्तावित प्लेटफॉर्म जवाबदेही और पारदर्शिता अधिनियम (PATA): यह शिक्षाविदों और शोधकर्ताओं को इसके दायरे में आने वाले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के आंतरिक डेटासेट तक व्यापक पहुँच प्रदान करने वाला कानून है।

भारत के स्तर पर 

  • फैक्ट चेक वेबसाइटें: जैसे कि Alt न्यूज और इंडियास्पेंड की FactChecker.in गलत सूचनाओं को उजागर करने का प्रयास करती हैं।
  • अन्य प्लेटफॉर्म: जैसे जानो इंडिया और मुंबई वोट्स का उद्देश्य नागरिकों को सरकारी नीतियों और उम्मीदवारों के प्रदर्शन के बारे में प्रासंगिक जानकारी प्रदान करना है।

भारतीय राजनीति पर सोशल मीडिया का सकारात्मक प्रभाव

  • प्रत्यक्ष सहभागिता और व्यक्तिगत पहुँच: इन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों ने प्रत्यक्ष और बिना फिल्टर किए संचार की सुविधा प्रदान की है, जिससे राजनेताओं को अपनी नीतियों, दृष्टिकोणों और विचारों को तुरंत साझा करने में मदद मिली है।
    • उदाहरण: ‘परीक्षा पे चर्चा’ कार्यक्रम में शिक्षकों और छात्रों के बीच बातचीत होती है, जिन्हें प्रधानमंत्री से मिलने तथा संवाद करने का अवसर दिया जाता है।
  • सूचना और भागीदारी का लोकतांत्रीकरण: सोशल मीडिया नागरिकों को सूचना के विविध स्रोतों से सशक्त बनाता है, राजनीतिक जागरूकता को बढ़ावा देता है और व्यक्तियों को मुख्यधारा के मीडिया की सीमाओं से परे राय बनाने में सक्षम बनाता है।
    • इसके अलावा, इसने नागरिक पत्रकारिता का मार्ग प्रशस्त किया है, जिससे आम लोगों को समाचार रिपोर्ट करने और सत्ता में बैठे लोगों को जवाबदेह ठहराने में सक्षम बनाया गया है।
  • चुनाव अभियानों में क्रांतिकारी बदलाव: हैशटैग, लाइव सत्र और समूह चैट राजनीतिक दलों के लिए अपरिहार्य हो गए हैं, जिससे वे मतदाताओं से सीधे संवाद कर सकते हैं, चिंताओं को दूर कर सकते हैं और उपलब्धियाँ दिखा सकते हैं।
  • जमीनी स्तर पर सक्रियता को सशक्त बनाना: सोशल मीडिया का प्रभाव पारंपरिक राजनीति से आगे बढ़कर सामाजिक आंदोलनों और जमीनी स्तर पर सक्रियता के दायरे तक फैला हुआ है।
    • उदाहरण: भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन और निर्भया विरोध जैसे आंदोलनों को सोशल मीडिया पर एक मंच मिला, जिससे लोगों को शिकायतें व्यक्त करने, विरोध प्रदर्शन आयोजित करने और जनता का समर्थन हासिल करने में मदद मिली।
  • फंडिंग का नया स्वरूप: सोशल मीडिया के माध्यम से क्राउडफंडिंग और माइक्रो-डोनेशन ने फंडिंग प्रक्रिया को लोकतांत्रिक बना दिया है, जिससे छोटे दलों और स्वतंत्र उम्मीदवारों को अधिक स्थापित खिलाड़ियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने में मदद मिली है।
  • डेटा एनालिटिक्स का नया स्वरूप: डेटा एनालिटिक्स और भावना-ट्रैकिंग टूल के आगमन ने चुनाव पूर्वानुमान और सार्वजनिक भावना विश्लेषण में क्रांति ला दी है तथा अभियान रणनीतिकारों के लिए मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान की है।
  • अंतर को कम करना: सोशल मीडिया ने आम नागरिकों के लिए राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने की क्षमता बढ़ा दी है और भारत तथा अन्य देशों के बीच राजनयिक संबंधों को प्रभावित करने के लिए भी इसका सक्रिय रूप से उपयोग किया गया है।
    • उदाहरण: भारत निर्वाचन आयोग का सक्षम ऐप दिव्यांगजनों को मतदान हेतु पंजीकरण करने, अपना मतदान केंद्र ढूँढने तथा वोट डालने में सहायता के लिए अनेक सुविधाएँ प्रदान करता है।

उभरती चुनौतियाँ जिनका समाधान आवश्यक 

  • फर्जी खबरें और गलत सूचना: फर्जी खबरों और गलत सूचनाओं का प्रसार राजनीतिक संवाद की अखंडता के लिए एक बड़ा खतरा है। असत्यापित सामग्री का तेजी से साझा किया जाना तथ्यों को विकृत कर सकता है और जनता की राय को प्रभावित कर सकता है। 
  • ध्रुवीकरण और इको चैंबर को बढ़ाना: वैचारिक ध्रुवीकरण को बढ़ाने में इसके योगदान के लिए कई विशेषज्ञों द्वारा सोशल मीडिया की आलोचना की गई है। उपयोगकर्ता ऐसी सामग्री के संपर्क में आते हैं, जो उनकी मौजूदा मान्यताओं के साथ मेल खाती है, जिससे इको चैंबर को मजबूत किया जाता है जो स्वस्थ राजनीतिक बहस में बाधा डालते हैं।
    • इससे सामाजिक एकता और रचनात्मक संवाद को खतरा है। इसके अलावा, सोशल मीडिया द्वारा दी गई गुमनामी ऑनलाइन उत्पीड़न और नफरत फैलाने वाले भाषणों को बढ़ावा दे सकती है।
  • हिंसा से संबंध: ऑस्ट्रिया, स्वीडन और ऑस्ट्रेलिया में किए गए विभिन्न अध्ययनों के अनुसार, सोशल मीडिया के बढ़ते उपयोग और ऑनलाइन दक्षिणपंथी कट्टरपंथ के बीच संबंध के प्रमाण मिले हैं।
    • उदाहरण: जर्मन अध्ययन में पाया गया कि स्थानीय स्तर पर फेसबुक की सेवाएँ बंद होने (उदाहरण के लिए तकनीकी खराबी या इंटरनेट में रुकावट के कारण) से उन स्थानों पर हिंसा में कमी आई। 
  • विनियामक अस्पष्टता: सोशल मीडिया का तेजी से विकास विनियामक ढाँचे से आगे निकल गया है, जिससे नीति निर्माताओं को डेटा गोपनीयता, ऑनलाइन उत्पीड़न और सामग्री मॉडरेशन से संबंधित जटिल मुद्दों का सामना करना पड़ रहा है।
    • मजबूत विनियमन और प्रवर्तन तंत्र की कमी ऑनलाइन राजनीतिक चर्चा से जुड़े जोखिमों को बढ़ा देती है।
  • डिजिटल विभाजन: जनसंख्या का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा, विशेष रूप से ग्रामीण और हाशिए के समुदायों में, डिजिटल बुनियादी ढाँचे और साक्षरता तक पहुँच का अभाव है, जो राजनीतिक भागीदारी और प्रतिनिधित्व में असमानताओं को बढ़ाता है, तथा समावेशिता के लोकतांत्रिक आदर्श को कमजोर करता है।
    • उदाहरण: भारत में 820 मिलियन से ज्यादा सक्रिय इंटरनेट उपयोगकर्ता हैं, जिनमें से ज्यादातर ग्रामीण इलाकों से आते हैं। गैर-सक्रिय इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या घट रही है। इंटरनेट इस्तेमाल के मामले में महिलाएँ, पुरुषों से पीछे हैं।
  • असमान भागीदारी: सोशल मीडिया नीति निर्माताओं की जनमत की धारणा को विकृत करता है क्योंकि यह माना जाता है कि ये सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जीवन के प्रत्येक क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन हर किसी की आवाज समान रूप से नहीं सुनी जाती है।
  • असमानता: दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका और एशिया में उभरते लोकतंत्रों में राजनीतिक भागीदारी और सूचना उपभोग पर सकारात्मक प्रभाव सबसे अधिक स्पष्ट थे। यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थापित लोकतंत्रों में नकारात्मक प्रभाव अधिक स्पष्ट थे।

आगे की राह 

  • मीडिया साक्षरता: नागरिकों को तथ्य और कल्पना में अंतर करने तथा डिजिटल परिदृश्य को जिम्मेदारी से संचालित करने के लिए आवश्यक आलोचनात्मक सोच कौशल से लैस करने हेतु मीडिया साक्षरता कार्यक्रमों में निवेश की आवश्यकता है।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही: राजनीतिक दलों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को गलत सूचना से निपटने, उपयोगकर्ता डेटा की सुरक्षा करने और नैतिक मानकों को बनाए रखने के लिए पारदर्शिता तथा जवाबदेही उपायों को अपनाना चाहिए।
  • विनियामक सुधार: नीति निर्माताओं को उद्योग के हितधारकों के साथ मिलकर मजबूत विनियामक ढाँचा विकसित करना चाहिए, जो लोकतांत्रिक मूल्यों और सार्वजनिक कल्याण की सुरक्षा की आवश्यकता के साथ मुक्त अभिव्यक्ति की अनिवार्यताओं को संतुलित करता हो।
    • प्रेस की स्वतंत्रता और गलत सूचना या फर्जी खबरों से निपटने के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।
  • डिजिटल समावेशन: डिजिटल बुनियादी ढाँचे तक पहुँच का विस्तार करने, डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने और राजनीतिक भागीदारी के लिए समावेशी ऑनलाइन स्थानों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लक्षित हस्तक्षेपों के माध्यम से डिजिटल विभाजन को पाटना।
  • भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) की भूमिका: ECI को सोशल मीडिया और पारंपरिक मीडिया पर राजनीतिक विज्ञापनों के बीच समानता सुनिश्चित करनी चाहिए और आदर्श आचार संहिता को सख्ती से लागू करना चाहिए तथा राजनीतिक दलों की साइबर गतिविधियों पर सतर्कता बढ़ानी चाहिए।

निष्कर्ष

सोशल मीडिया और भारतीय राजनीति के बीच सहजीवी संबंध एक दोधारी तलवार है, जो अवसरों और चुनौतियों से भरपूर है। जैसे-जैसे तकनीक विकसित होती है, नीति निर्माताओं, तकनीकी कंपनियों और बड़े पैमाने पर समाज के लिए इस क्षेत्र में सहयोगात्मक रूप से आगे बढ़ना, सोशल मीडिया का लाभ उठाना और इसके संभावित नुकसानों को कम करना अनिवार्य हो जाता है।

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