50 वर्ष पहले, 18 मई, 1974 को भारत ने ‘स्माइलिंग बुद्धा’ (Smiling Buddha) ऑपरेशन के तहत राजस्थान के पोखरण में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था।
भारत द्वारा अपने परमाणु परीक्षण करने की पृष्ठभूमि
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद का कालखंड: वर्ष 1945 में द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद, अमेरिका और USSR के बीच शीतयुद्ध की पृष्ठभूमि में नए वैश्विक गठबंधन उभरने लगे।
परमाणु अप्रसार संधि (Nuclear Non Proliferation Treaty- NPT): परमाणु प्रसार को रोकने और शांति बनाए रखने के लिए, वर्ष 1968 में कई राष्ट्रों द्वारा NPT पर हस्ताक्षर किए गए थे।
इसने परमाणु हथियार वाले राष्ट्रों को उन पक्षकारों के रूप में परिभाषित किया है, जिन्होंने 1 जनवरी, 1967 से पहले परमाणु हथियार या अन्य परमाणु विस्फोटक उपकरणों का निर्माण एवं परीक्षण किया था, जिसका अर्थ P-5 देशों (संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, फ्राँस, चीन और रूस) से है।
भारत की आपत्ति: भारत ने इस संधि पर इस आधार पर आपत्ति जताई कि यह P-5 को छोड़कर अन्य देशों के साथ भेदभावपूर्ण है।
भारत में परमाणु ऊर्जा के परीक्षण: भारतीय वैज्ञानिक होमी जे. भाभा एवं विक्रम साराभाई ने भारत में परमाणु ऊर्जा के परीक्षण के लिए पहले ही आधार तैयार कर लिया था।
वर्ष 1954 में, परमाणु ऊर्जा विभाग (Department of Atomic Energy) की स्थापना की गई, जिसके निदेशक होमी जे. भाभा थे।
पोखरण-I के बारे में
राजनीतिक नेतृत्व द्वारा समर्थन: 7 सितंबर, 1972 को, इंदिरा गांधी ने परीक्षण के लिए एक परमाणु उपकरण विकसित करने हेतु भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) को अधिकृत किया।
पोखरण में क्यों?
परीक्षण की गोपनीयता बनाए रखने के लिए पोखरण को चुना गया, यह राजस्थान के जैसलमेर जिले के थार रेगिस्तान में एक दूरस्थ स्थान है।
यह परीक्षण मई महीने के दौरान आयोजित किया गया था, जब इस क्षेत्र में रेतीला तूफान उत्पन्न हुआ था।
रेतीले तूफान अमेरिकी जासूसी उपग्रहों को स्पष्ट दृश्यता में अवरोध डालते हैं।
साथ ही, दिन के समय तापमान 50 डिग्री से अधिक बढ़ने के कारण इन्फ्रारेड सेंसर ऐसी गतिविधियों को नहीं पकड़ पाते हैं।
गोपनीयता बनाए रखना: P-5 के साथ हुई संधियों के साथ, भारत ने दुनिया को कोई पूर्व सूचना दिए बिना वर्ष 1974 में पोखरण में परमाणु परीक्षण करने का निर्णय लिया।
स्थान एवं कोडनाम: पश्चिमी राजस्थान के रेगिस्तान में स्थित एक सेना परीक्षण रेंज पोखरण को चुना गया एवं जिसका कोड नाम ‘ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा’ था।
विदेश मंत्रालय (भारत सरकार) ने इसे पोखरण-1 नाम दिया।
18 मई, 1974 को 12-13 किलोटन TNT क्षमता के साथ एक परमाणु परीक्षण किया गया था।
इस तरह भारत सफल परमाणु परीक्षण करने वाला दुनिया का छठा देश बन गया।
परीक्षण के बाद वैश्विक प्रतिक्रियाएँ
अंतरराष्ट्रीय आलोचना: लगभग सभी देशों ने भारत के परमाणु परीक्षण की निंदा की थी।
वर्ष 1978 में भी, अमेरिका ने परमाणु अप्रसार अधिनियम पर हस्ताक्षर किए, जिसके बाद अमेरिका ने भारत को परमाणु सहायता निर्यात करना बंद कर दिया।
परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (Nuclear Suppliers Group- NSG) की स्थापना: इस परमाणु परीक्षण के जवाब में NSG का गठन किया गया था।
अमेरिका ने परमाणु उपकरण एवं विखंडनीय सामग्री आपूर्तिकर्ताओं का एक क्लब स्थापित करने पर जोर दिया।
इसका उद्देश्य परमाणु-संबंधित सामग्रियों एवं मशीनरी के निर्यात को नियंत्रित करना है।
कूटनीतिक प्रयास: भारत ने स्वयं को इन हथियारों के ‘जिम्मेदार’ के रूप में पेश किया है, जिससे देशों एवं NSG जैसे समूहों के बीच स्वीकृति मिल गई है।
भारत वर्ष 2008 से ही NSG में शामिल होने की कोशिश कर रहा है। ऑस्ट्रेलिया जैसे कई देशों ने, जिन्होंने शुरू में भारत के प्रवेश का विरोध किया था, अपना रुख बदल दिया है। हाल के वर्षों में मेक्सिको एवं स्विट्जरलैंड ने भी भारत का समर्थन किया है। भारत को एकमात्र प्रतिरोध का सामना चीन से करना पड़ रहा है।
रणनीतिक बदलाव: भारत ने स्वयं को एक परमाणु-सक्षम राष्ट्र के रूप में स्थापित किया, जिससे वर्ष 1998 में पोखरण-2 जैसे भविष्य के विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ।
वर्ष 1998 में, प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में, भारत ने एक बार फिर पोखरण में परमाणु परीक्षणों की एक शृंखला आयोजित की, जिसे कोड नाम ऑपरेशन शक्ति (Operation Shakti) दिया गया।
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