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क्रेडिट एजेंसियों की पक्षपातपूर्ण रेटिंग

Lokesh Pal May 18, 2024 05:00 141 0

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: क्रेडिट रेटिंग एजेंसियाँ ​​(CRA), क्रिसिल, आईसीआरए, नीति आयोग की विभिन्न रेटिंग्स आदि। 

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: सीआरए रेटिंग एवं भारत की भूमिका और उससे संबंधित चुनौतियाँ, अमेरिकी एनरॉन कॉर्पोरेशन घोटाला, लेखांकन और लेखा परीक्षा सुधार एवं उनके क्रियान्वयन में चुनौतियाँ आदि।    

संदर्भ:

क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों (CRA) का पूर्वाग्रह और पक्षपात भारत की क्रेडिट रेटिंग को प्रभावित कर रहा है। अतः क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों को अपनी विश्वशनीयता बनाये रखने के लिए पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता है।

एनरॉन स्कैण्डल:

  • पृष्ठभूमि: 2001 में, एनरॉन कॉर्पोरेशन, एक अमेरिकी कंपनी ने दिवालियापन के लिए आवेदन किया। इसने अमेरिका में हड़कंप मचा दिया क्योंकि इसने कंपनियों द्वारा व्यापक रूप से लेखांकन और लेखा परीक्षा धोखाधड़ी को उजागर किया।
    • एनरॉन घोटाले को अमेरिकी इतिहास में सबसे बड़ा कॉर्पोरेट घोटाला माना जाता है, जिसके कारण कई लेखांकन और लेखा परीक्षा सुधार किए गए।
  • क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों की भूमिका:
    • संदिग्ध कार्य: सी.आर.ए. के संदिग्ध कार्य के कारण एनरॉन धोखाधड़ी छिपी रही।
    • निवेश को बढ़ावा देना: ये एजेंसियाँ ​​एनरॉन में निवेश को बढ़ावा देती रहीं, जबकि कंपनी बड़े पैमाने पर लेखांकन धोखाधड़ी में लिप्त थी।
    • विकास में बाधा: CRA की पूर्वाग्रह और पक्षपात आधारित क्रेडिट रेटिंग भारत के विकास में बाधा उत्पन्न कर रही है।

क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां ​​क्या हैं?

  • वित्तीय स्वास्थ्य का आकलन: वे कंपनियों और देशों के वित्तीय स्वास्थ्य का आकलन करते हैं।
    • वे लाभ, ऋण और भविष्य के अनुमानों जैसे कारकों के आधार पर AAA, AA, A, BBB आदि रेटिंग प्रदान करते हैं।
  • रेटिंग निहितार्थ: उच्च रेटिंग मजबूत वित्तीय स्थिरता और डिफ़ॉल्ट के कम जोखिम का संकेत देती है। ये रेटिंग निवेशकों के बॉन्ड खरीदने या पैसे उधार देने के फैसले को प्रभावित करती हैं।

देशों के लिए क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों द्वारा विचार किए जाने वाले कारक:

  • प्रति व्यक्ति आय
  • जीडीपी बढ़त
  • मुद्रास्फीति की दर
  • विदेशी कर्ज

क्रेडिट रेटिंग का महत्त्व – देशों की स्थिति एवं प्रभाव 

  • सोमालिया: गृह युद्ध, अस्थिर सरकार और खराब आर्थिक स्थिति के कारण इसकी क्रेडिट रेटिंग बहुत कम है। ऋणदाता सोमालिया को ऋण देने में हिचकिचाते हैं और अगर देते भी हैं तो ब्याज दरें बहुत अधिक होती हैं।
  • यूएसए: अपनी मजबूत अर्थव्यवस्था, स्थिर सरकार और मजबूत वित्तीय प्रणाली के कारण यूएसए को AAA क्रेडिट रेटिंग प्राप्त है। ऋणदाता बहुत कम ब्याज दरों पर यूएसए को उधार देने के लिए उत्सुक हैं।

क्रेडिट रेटिंग एजेंसी और भारत की चुनौतियाँ:

  • विकास में बाधा: पिछले 20 वर्षों से क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां ​​भारत के विकास में बाधा बन रही हैं और इसकी प्रतिष्ठा को धूमिल कर रही हैं।
  • भारत की BBB रेटिंग : भारत कई सालों से बीबीबी रेटिंग कैटेगरी में बरकरार है।
  • पक्षपातपूर्ण व्यवहार : भारत से कमजोर अर्थव्यवस्था वाले देशों को भारत से बेहतर रेटिंग दी गई है। जैसे- पेरू और कजाकिस्तान।

भारतीय विकास पर नकारात्मक प्रभाव 

  • ऋण की आवश्यकता: एक विकासशील देश के रूप में, भारत को बुनियादी ढांचे के विकास के लिए ऋण की आवश्यकता है।
  • घरेलू पूंजी स्त्रोत : भारत सरकार पहले ही घरेलू स्रोतों से पूंजी जुटा चुकी है, इसलिए उसे विदेशी संस्थाओं से ऋण की आवश्यकता है।
  • उच्च ब्याज दरें: भारत की बीबीबी रेटिंग के कारण, इसमें निवेश तो हो सकता है, लेकिन उसे उच्च ब्याज दरों पर ही संतुष्ट होना पड़ेगा।

रेटिंग डाउनग्रेड का जोखिम:

  • बांड प्रतिफल में वृद्धि: यदि भारत बांड जारी करता है और कोई भी संस्थान उसे खरीद लेता है, लेकिन भारत की रेटिंग घटा देने के कारण उसके बांड प्रतिफल में वृद्धि होगी।
  • भविष्य में उच्च बांड प्रतिफल : भविष्य में, यदि भारत को कोई बांड जारी करने की आवश्यकता होगी, तो उसे उच्च बांड प्रतिफल पर पूंजी जुटानी होगी।
  • आर्थिक प्रभाव: यह अतिरिक्त बोझ भारतीय अर्थव्यवस्था पर सीधे प्रभाव डालेगा।

भारत का विदेशी ऋण और निजी कंपनियाँ:

  • भारत के बाह्य ऋण और सकल घरेलू उत्पाद का अनुपात लगभग 18% : यह दर्शाता है कि भारतीय निजी कंपनियां अधिकतर बाह्य ऋण का उपयोग कर रही हैं।
  • कम्पनियों को उच्च ब्याज दर पर ऋण: टीसीएस जैसी कई भारतीय कम्पनियों को ए रेटिंग प्राप्त है। 
    • ये कंपनियां आसानी से कम ब्याज दरों पर ऋण प्राप्त कर सकती हैं, लेकिन उन्हें अधिक भुगतान करना पड़ता है क्योंकि कंपनी का ऋण देश की रेटिंग पर आधारित होता है। 
    • यह भारत में कम पूंजीगत व्यय का एक कारण है।

भारतीय वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट और आर्थिक संकेतक:

  • मंत्रालय की रिपोर्ट: दिसंबर 2023 में भारत के वित्त मंत्रालय ने एक रिपोर्ट जारी की जिसमें भारत के प्रति विश्व रेटिंग एजेंसियों की पक्षपातपूर्ण रैंकिंग पर सवाल उठाया गया।
  • ए रेटिंग का हकदार: भारतीय अर्थव्यवस्था के सभी संकेतकों पर विचार करते हुए, इसमें कहा गया कि भारत को बहुत पहले ही ए रेटिंग श्रेणी में सम्मिलित कर देना चाहिए था।
  • महत्वपूर्ण संकेतक: भारत विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। उसके द्वारा कभी भी ऋण चूक नहीं हुई है, इसकी विकास दर सबसे तेज है तथा मुद्रास्फीति 4-5% के मध्य है।

विकासशील एवं अफ़्रीकी देशों पर प्रभाव

  • विकासशील देश: कई विकासशील देश भी पक्षपातपूर्ण क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के शिकार हैं।
    • संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि कम रेटिंग के कारण अनेक विकासशील देश आर्थिक विकास के लिए पूंजी जुटाने में असफल दिखाई देते हैं।
  • अफ्रीकी देश: अफ्रीकी और गरीब देश पक्षपातपूर्ण रेटिंग से खास तौर पर प्रभावित हैं। निवेश के बिना इन देशों का सामाजिक-आर्थिक विकास बहुत पिछड़ा हुआ है।

बाजार पर कब्जा और रेटिंग एजेंसियों का एकाधिकार:

  • बाजार हिस्सेदारी: संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, फिच, मूडीज और एसएंडपी ने वैश्विक बाजार के 92% हिस्से पर कब्जा किया हुआ है। साथ ही रेटिंग एजेंसियों का एकाधिकार निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा की अनुमति नहीं देता है।
  • अमेरिकी रेटिंग एजेंसियाँ: इन एजेंसियों का यह एकाधिकार उन्हें पश्चिमी देशों को लाभ पहुंचाने वाली रेटिंग प्रदान करने की अनुमति देता है।
  • निम्न रेटिंग: विकासशील देशों की रेटिंग निम्न श्रेणी में रखी जाती है।

रेटिंग पद्धति की आलोचना:

  • मात्रात्मक मापदंड: मूडीज के 18 मापदंड में से केवल 5 मात्रात्मक हैं (तथ्यात्मक संख्याओं पर आधारित)।
  • गुणात्मक मानदंड: शेष 13 मानदंड गुणात्मक हैं, जो विशेषज्ञों की व्यक्तिपरक राय पर आधारित हैं, जो ज्यादातर पश्चिमी देशों से हैं। इन विशेषज्ञों के चयन के लिए कोई वस्तुनिष्ठ मानदंड नहीं हैं।

रेटिंग व्यापार और हितों के मध्य टकराव:

  • रेटिंग शॉपिंग: अध्ययनों से रेटिंग शॉपिंग का विशाल कारोबार सिद्ध हो चुका है, जहां पैसे देकर अपने अनुकूल रेटिंग प्राप्त की जाती है।
  • जुर्माना : हालांकि, इस प्रथा के लिए एजेंसियों पर भारी जुर्माना लगाया गया  परंतु स्थिति अब भी पक्षपाती बनी हुयी है। 
  • हितों का टकराव: इस प्रकार की पक्षपाती गतिविधियों के परिणामस्वरूप हितों का टकराव होना स्वाभाविक है क्योंकि इन एजेंसियों के ग्राहक ज्यादातर वे कंपनियां होती हैं जिनको वे मनचाही रेटिंग प्रदान करते हैं।

संकट पूर्वानुमान में विफलता:

  • उद्देश्य: CRA का निर्माण विश्व में वित्तीय स्थिरता बनाए रखने के लिए किया गया था।
  • जोखिम और एजेंसियों की वास्तविकता: हालाँकि, जब भी कोई बड़ा संकट आया है, तो इन एजेंसियों की वास्तविकता सामने आई है।
  • पूर्वानुमान लगाने में विफलता: ये एजेंसियां अक्सर संकटों का पूर्वानुमान लगाने में विफल रही हैं।  इसके विपरीत, वित्तीय रूप से अलाभकारी कंपनियों को अच्छी रेटिंग प्रदान कर उनके हित में कार्य करती रही हैं 
    • 2008 में लेहमैन ब्रदर्स संकट ने सबसे खराब वित्तीय संकट को जन्म दिया।

आगे की राह:

  • वैश्विक सहमति: भारत को पारदर्शी और स्वतंत्र क्रेडिट रेटिंग प्लेटफॉर्म के लिए वैश्विक दक्षिण के साथ आम सहमति बनानी चाहिए।
  • मौजूदा एजेंसियों में सुधार: मौजूदा क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों की कार्यप्रणाली और प्रशासन में सुधार के लिए नियम कानून निर्धारित कर उनके पालन हेतु दबाव बनाया जाना चाहिए।
  • उचित अवसर: विकासशील देशों को विश्व अर्थव्यवस्था में उचित अवसर प्रदान किए जाने चाहिए ।

News Source: ET

प्रारंभिक परीक्षा पर आधारित प्रश्न :                                                                                       (UPSC : 2022)

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये

  1. भारत में, साख़ क्षमता-निर्धारण एजेंसियां (क्रेडिट रेटिंग एजेंसीज) भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित होती हैं।
  2. ICRA नाम से जानी जाने वाली क्षमता-निर्धारण एजेंसी एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी है।
  3. ब्रिकवर्क रेटिंग्स एक भारतीय साख़ क्षमता-निर्धारण एजेंसी है।

उपर्युक्त कथनों में कौन-से सही हैं?

  1. केवल 1 और 2
  2. केवल 2 और 3
  3. केवल 1 और 3
  4. 1, 2 और 3

उत्तर:(b)

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