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भारत में न्यूनतम मजदूरी दर

Lokesh Pal May 16, 2024 05:00 241 0

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: न्यूनतम वेतन अधिनियम, महंगाई भत्ता, मुद्रास्फीति, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन, महिला कार्यबल भागीदारी दर। 

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: भारत में न्यूनतम मजदूरी के मुद्दे, न्यूनतम मजदूरी के वैश्विक उदाहरण। 

संदर्भ:

  • हाल ही में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) द्वारा वर्ष 2025 तक देश में न्यूनतम वेतन की वैज्ञानिक रूप से गणना की गई।
    • भारत में वर्तमान जीवन निर्वाह योग्य मजदूरी दर में परिवर्तन का भारत सरकार का निर्णय स्वागत योग्य है।

भारत की न्यूनतम मज़दूरी नीति में सुधार:

  • न्यूनतम मजदूरी दर: न्यूनतम मजदूरी दर का संबंध सबसे कम प्रति घंटा, दैनिक या मासिक मजदूरी की दर से है जिसे कंपनियों को अपने कर्मचारियों को कानूनी रूप से प्रदान करना आवश्यक होता है।
  • भारत में न्यूनतम मजदूरी दर में असमानता: भारत का राष्ट्रीय फ्लोर लेवल न्यूनतम मजदूरी (NFLMW) ₹176 ($2.1) प्रति दिन है, जिसे आखिरी बार 2017 में परिवर्तित किया गया था, यह आँकड़ा एशिया-प्रशांत क्षेत्र के सबसे न्यूनतम आँकड़ों में से एक है।
    • भारत की न्यूनतम मजदूरी सीमा चीन के $11.9, वियतनाम के $6.5 और बांग्लादेश के $3.7 से भी कम है।
    • विश्व के अन्य देशों में न्यूनतम मजदूरी दर: ब्राज़ील में $47 प्रति दिन, ऑस्ट्रेलिया ($14.8 प्रति घंटा), यूके ($14.1) और अमेरिका ($7.2) है।
  • महंगाई भत्ता: भारत के स्थिर न्यूनतम मजदूरी के बावजूद, सरकार मुद्रास्फीति का मुकाबला करने के लिए केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए नियमित रूप से महंगाई भत्ते (डीए) को समायोजित करने का प्रयास कर रही  है। 
    • मार्च 2024 में, संबंधित भत्तों के साथ, इसमें 4% की बढ़ोतरी की गयी है और अब यह 46% से  बढ़कर 50% तक पहुँच गया है ।
  • भारत को न्यूनतम मजदूरी दर को संरेखित करने की आवश्यकता: भारत को जीवन यापन की लागत और मुद्रास्फीति के साथ न्यूनतम वेतन को ₹176 प्रति दिन को संरेखित करने की आवश्यकता है।  
    • एक  सम्मानजनक जीवन स्तर के लिए ILO द्वारा परिभाषित मूलभूत आवश्यकताओं, जैसे- भोजन, परिवहन, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल आदि पर खर्चों को ध्यान में रखते हुए इसे जीवन निर्वाह मजदूरी से प्रतिस्थापित करने की आवश्यकता है। 

न्यूनतम मज़दूरी बढ़ाने की आवश्यकता:

  • भारतीय कार्यबल पर वेतन मानदंडों का प्रभाव: अपर्याप्त महिला कार्यबल भागीदारी और अधिकांश औपचारिक कर्मचारियों में कुशल या अर्ध-कुशल कर्मचारियों के लिए न्यूनतम वेतन की पेशकश की जाती है, जबकि कुछ उच्च कुशल श्रमिकों के साथ इसके विपरीत व्यवहार किया जाता है।
    • वर्तमान वेतन मानदंड, भारत के अधिकांश कार्यबल और विशेष रूप से उन परिवारों को प्रभावित कर रहे हैं जो एकल कमाऊ (Single Earner) सदस्य पर निर्भर हैं।
  • वेतन सुधार के सामाजिक लाभ: प्रभावी वेतन सुधार पहल के तहत, गरीबी तथा असमानता को कम किया सकता है इसके अतिरिक्त जीवन स्तर में सुधार किया जा सकता है । 
  • बढ़ा हुआ खर्च और माँग में वृद्धि: आर्थिक रूप से, बढ़ी हुई आय से खर्च को बढ़ावा मिलेगा जिससे समग्र अर्थव्यवस्था में सुधार आने की संभावना है। हालाँकि निरंतर वेतन वृद्धि अंततः माँग को बढ़ा सकती है, परंतु प्रारंभिक बचत, व्यय के प्रभाव को सीमित कर सकती है। 

वेतन वृद्धि का प्रभाव 

  • इंडोनेशिया के एक अध्ययन के अनुसार, “वेतन वृद्धि के कारण काम के घंटों और औपचारिक रोजगार में कमी देखी गयी है।” 
  • दक्षिण अफ्रीकी अध्ययन के अनुसार, “घरेलू श्रमिकों पर वेतन वृद्धि से रोजगार के स्तर पर न्यूनतम प्रभाव देखा गया है।” 
  • भारत के औपचारिक क्षेत्र पर न्यूनतम वेतन वृद्धि का प्रभाव: भारत में, गहन शोध अध्ययनों केअभाव के कारण, यह निश्चित करना मुश्किल है कि क्या न्यूनतम वेतन वृद्धि औपचारिक क्षेत्र की भर्ती में बाधा बनेगी, जहाँ मानव संसाधनों के मूल्य पर बहुत जोर दिया जाता है और बड़ी कंपनियों के पास अधिक भुगतान करने की अधिक क्षमता होती है।

आगे की राह:

  • उचित जीवनयापन वेतन विनियम लागू करना: अनिवार्य और उचित जीवनयापन वेतन शुरू करने में, वेतन नियमों का सशक्त प्रवर्तन आवश्यक है। क्योंकि भारत की अनुमानित 550 मिलियन कामकाजी आबादी में से केवल पाँचवाँ हिस्सा ही औपचारिक रूप से कार्यरत है, बाकी स्व-रोज़गार और आकस्मिक मजदूर हैं।
  • अनुपालन के लिए सरकारी सहायता उपाय: कर्मचारी की स्थिति, लिंग और कौशल स्तर पर अनुपालन सुनिश्चित करना एक चुनौती होगी।
  • कर छूट उपाय : कर छूट जैसे सरकारी सहायता उपाय, प्रभावी प्रवर्तन के प्रारंभिक चरण के दौरान छोटे व्यवसायों पर पड़ने वाले आर्थिक तनाव को कम कर सकते हैं।
  • सामाजिक सुरक्षा लाभ सुनिश्चित करना: इसके अतिरिक्त, बढ़ी हुई न्यूनतम मजदूरी के साथ भविष्य निधि और कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ESIC) व्यवस्था के तहत सुनिश्चित सामाजिक-सुरक्षा लाभों के लिए बढ़ी हुई वेतन कटौती नहीं होनी चाहिए। 
  • ईएसआईसी अधिशेष का उपयोग: हालाँकि, सरकार को कर्मचारियों के ईएसआईसी योगदान को समाप्त करना चाहिए और नियोक्ता के ईएसआईसी योगदान को 3.2% से घटाकर 1.5% कर देना चाहिए, जो वर्तमान परिस्थितियों में, आसानी से किया जा सकता है क्योंकि ईएसआईसी के पास ₹65,000 करोड़ का अधिशेष है (जो सालाना ₹8,000-9000 करोड़ तक बढ़ रहा है)।
  • कर्मचारी भविष्य निधि में संशोधन: कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के लिए, ₹15,000 से कम मासिक वेतन के लिए कर्मचारी का योगदान 12% से घटाकर 8% किया जाना चाहिए, जबकि इससे अधिक कमाने वालों के लिए यह योगदान 12% बरकरार रखा जाना चाहिए, यह देखते हुए कि भारतीय कर्मचारी सामाजिक सुरक्षा कटौती की तुलना में अधिक घरेलू -भुगतान को प्राथमिकता देते हैं। 

निष्कर्ष:

निष्कर्षतः देश को न्यूनतम या जीवनयापन योग्य मजदूरी में प्रत्येक दो वर्षों के अंतराल पर मुद्रास्फीति के अनुसार समायोजित किए जाने की आवश्यकता है। इस पहल का प्रभावी कार्यान्वयन अधिक व्यक्तियों को औपचारिक रोजगार में परिवर्तित कर उनके समग्र जीवन स्तर को ऊपर उठाने में उपयोगी सिद्ध हो सकता है, जिससे देश के आर्थिक विकास को समर्थन मिलेगा।

प्रारंभिक परीक्षा पर आधारित प्रश्न :                                                                                 (UPSC:2020)   

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: 

  1. खाद्य वस्तुओं का उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में उनके भार थोक मूल्य सूचकांक में दिये गए भार से अधिक है। 
  2. WPI, सेवाओं के मूल्यों में होने वाले परिवर्तनों को नहीं पकड़ता, जैसा कि CPI करता है। 
  3. भारतीय रिज़र्व बैंक ने अब मुद्रास्फीति के मुख्य मान हेतु तथा प्रमुख नीतिगत दरों के निर्धारण और परिवर्तन हेतु  WPI को अपना लिया है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

  1. केवल 1 और 2
  2. केवल 2
  3. केवल 3
  4. 1, 2 और 3

उत्तर: (a)

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