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मध्यस्थता के लिए एक परिवर्तनकारी दृष्टिकोण को अपनाना

Lokesh Pal May 14, 2024 05:15 101 0

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: मध्यस्थता अधिनियम, 2023,  मध्यस्थता संबंधी प्रमुख कानून।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: मध्यस्थता अधिनियम, 2023 की प्रसंगिकता, वैकल्पिक विवाद समाधान दृष्टिकोण की आवश्यकता एवं चुनौतियाँ, विवाद समाधान के उपकरण के रुप में पंचाट, समझौता वार्ता और सुलह का तुलनात्मक विश्लेषण।

संदर्भ:

  • भारत के मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़, मध्यस्थता अधिनियम, 2023 के अनुरूप मुकदमेबाजी पर मध्यस्थता के महत्त्व पर जोर देते हैं, जिसका उद्देश्य भारत में वैकल्पिक विवाद समाधान में क्रांतिकारी बदलाव लाना है।

मध्यस्थता का दायरा और भूमिका का विस्तार:

  • विधायी ढाँचा: मध्यस्थता अधिनियम, 2023, मध्यस्थता को औपचारिक बनाता है और तटस्थ मध्यस्थों के माध्यम से सौहार्दपूर्ण समाधान की सुविधा के लिए पूर्व-मुकदमेबाजी और न्यायालय-संलग्न मध्यस्थता सहित विभिन्न दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालता है।
  • विकास: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश, न्यायमूर्ति एस.के. कौल, कानूनी समुदाय के भीतर मध्यस्थता की बढ़ती स्वीकार्यता को स्वीकार करते हैं, और दिवालियापन तथा दिवालियापन संहिता (IBC) जैसी स्थापित कानूनी प्रक्रियाओं के साथ-साथ इसकी सहक्रियात्मक भूमिका पर प्रकाश डालते हैं।
  • बदलाव: मध्यस्थता, महात्मा गांधी के लोकाचार को दोहराते हुए, सुलह और उपचार पर जोर देती है। यह प्रतिकूल टकराव से बातचीत और समझ की ओर ले जाती है, इस प्रकार यह संघर्ष समाधान के लिए एक लोकतांत्रिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देती है।

मध्यस्थता अधिनियम (2023) को लागू करने में व्यावहारिक चुनौतियाँ:

  • मध्यस्थों के लिए अर्हता : इच्छुक मध्यस्थों के पास अभ्यास के लिए अर्हता प्राप्त करने से पहले 15 वर्षों तक का पेशेवर अनुभव होना चाहिए।
  • कानूनी शिक्षा: वर्तमान कानूनी शिक्षा और अभ्यास वकालत पर जोर देते हैं, जो मध्यस्थता में आवश्यक तटस्थता के ठीक विपरीत है।
    • यह एक अलगाव पैदा करता है क्योंकि कानूनी पेशेवरों को भूमिकाओं के मध्य परिवर्तन करते समय कौशल को पुनः सीखने या उन्नत करने की आवश्यकता होती है, जिससे प्रक्रिया अक्षम हो जाती है।
  • मध्यस्थों के लिए पंजीकरण की अनिवार्यता: सभी इच्छुक मध्यस्थों को भारतीय मध्यस्थता परिषद, न्यायालय द्वारा अनुलग्न मध्यस्थता केंद्र, एक मान्यता प्राप्त मध्यस्थता केंद्र और एक विधिक सेवा केंद्र में अनिवार्यतः पंजीकृत होना चाहिए।  
  • अपरिभाषित शब्दावली: मध्यस्थता अधिनियम (2023)  के खंड 8 में ‘असाधारण परिस्थिति’ शब्द को स्पष्ट नहीं किया गया है। जो किसी भी व्यक्ति को अंतिम राहत के लिए मध्यस्थता की शुरुआत करने से पूर्व न्यायालय में जाने का अधिकार प्रदान करता है। 

आगे की राह:

  • एकीकृत शिक्षण दृष्टिकोण: वकालत और मध्यस्थता के मध्य अंतर को पाटने के लिए, निरंतर, एकीकृत शिक्षण होना चाहिए।
    • कानूनी पेशेवरों को अपने करियर के दौरान दोनों क्षेत्रों में अपने कौशल को बनाए रखने और बढ़ाने के लिए भूमिकाओं को निर्बाध रूप से बदलने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
  • नवीन प्रशिक्षण विधियाँ: युवा वकीलों के लिए मध्यस्थता अधिनियम 2023 के तहत सह-मध्यस्थता और छाया मध्यस्थता को शामिल किया जाना चाहिए।
    • सह-मध्यस्थता वास्तविक मध्यस्थता सत्रों में नौसिखिए मध्यस्थों को अनुभवी मध्यस्थों के साथ जोड़ती है, जिससे सीखने में गतिशीलता आती है जहाँ कौशल को सक्रिय रूप से देखा और अभ्यास किया जा सकता है।
    • छाया मध्यस्थता नौसिखियों को प्रत्यक्ष भागीदारी के बिना इन सत्रों का निरीक्षण करने का मौका प्रदान करती है, जिससे उन्हें मध्यस्थता प्रक्रिया की सूक्ष्मताओं और विभिन्न संघर्ष समाधान रणनीतियों में अंतर्दृष्टि मिलती है।
  • लॉ स्कूलों में संरचित मध्यस्थता प्रशिक्षण: लॉ स्कूल पाठ्यक्रम में मध्यस्थता प्रशिक्षण को शामिल करने से छात्रों में प्रारंभिक रुचि जागृत हो सकती है और छात्रों को आवश्यक विवाद समाधान कौशल कि प्राप्ति हो सकती है।
  • अनुभव की आवश्यकता में संशोधन: युवा पेशेवरों को जल्द मध्यस्थ बनने की अनुमति देने के लिए अनुभव की आवश्यकता को संशोधित करने से योग्य मध्यस्थों के पूल का विस्तार हो सकता है और मध्यस्थता प्रथाओं को अपनाने में तेजी आ सकती है।

निष्कर्ष:

अर्थात आम जनता और कानूनी समुदाय दोनों के बीच मध्यस्थता के दीर्घकालीन प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और वकालत करने से धारणाओं को बदलने, मुकदमेबाजी से बचने तथा सौहार्दपूर्ण विवाद समाधान को अपनाने की क्षमता है।

प्रारंभिक परीक्षा पर आधारित प्रश्न :                                                                                    (UPSC : 2010)

प्रश्न. “लोक अदालतों” ; के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है?  

  1. लोक अदालतों के पास पूर्व-मुकदमेबाजी के स्तर पर मामलों को निपटाने का अधिकार क्षेत्र है, न कि उन मामलों को जो किसी भी अदालत के समक्ष लंबित हैं। 
  2. लोक अदालतें उन मामलों से निपट सकती हैं जो दीवानी हैं और फ़ौजदारी प्रकृति के नहीं हैं। 
  3. प्रत्येक लोक अदालत में केवल सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी होते हैं, कोई अन्य व्यक्ति नहीं होता है। 
  4. ऊपर दिये गए कथनों में से कोई भी सही नहीं है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

  1. केवल 1
  2. केवल 2
  3. 1 और 2 दोनों
  4. न तो 1, न ही 2

उत्तर:(d)

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