यूक्रेन और रूस के बीच दो वर्ष तक संघर्ष के बाद स्विट्जरलैंड ने एक शांति वार्ता आयोजित करने का निर्णय लिया है।
संबंधित तथ्य
स्विट्जरलैंड के प्रयास: स्विट्जरलैंड उन लोगों को शामिल करके युद्ध पर वैश्विक सहमति को व्यापक बनाने का विशेष प्रयास कर रहा है, जो अब तक पश्चिमी देशों के गठबंधन में शामिल नहीं हुए हैं।
भारत की भागीदारी: शांति शिखर वार्ता में भारत को आमंत्रित किया जाना रूस के साथ रणनीतिक साझेदारी, ब्रिक्स और SCO समूहों में नेतृत्व एवं ग्लोबल साउथ में भारत की भूमिका के कारण महत्त्वपूर्ण है।
शांति शिखर वार्ता के प्रतिभागी: यह शांति वार्ता15 से 16 जून, 2024 को ल्यूसर्न में आयोजित किया जाएगा। इनमें यूरोपीय संघ के देश, नाटो सदस्य, G-7 देश और जापान, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया जैसे अमेरिकी सहयोगी शामिल होंगे।
रूस की अनुपस्थिति: शांति वार्ता में रूस को आमंत्रित नहीं किया गया है।
रूस-यूक्रेन युद्ध का वैश्विक प्रभाव
मानवीय संकट: संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 10,000 से अधिक नागरिक मारे गए हैं और लगभग 20,000 अन्य घायल हुए हैं।
आर्थिक प्रभाव: खाद्य और ऊर्जा बाजारों में वैश्विक मुद्रास्फीति और प्रतिबंध एवं आर्थिक व्यवधान।
गरीबी: यूक्रेन में गरीब लोगों की संख्या में वृद्धि 5.5% से बढ़कर 24.2% हो गई है, जिससे 7.1 मिलियन से अधिक लोग गरीबी रेखा से नीचे चले गए हैं।
भू-राजनीतिक प्रभाव: वैश्विक विश्वास की कमी, संयुक्त राष्ट्र की विफलता आदि।
शिखर सम्मेलन के उद्देश्य
शांति के लिए एक रोडमैप विकसित करना: शिखर वार्ता का उद्देश्य यूक्रेन में व्यापक, न्यायसंगत और स्थायी शांति प्राप्त करने के लिए एक रूपरेखा तैयार करना है।
मानवीय मुद्दों को संबोधित करना: इस वार्ता में खाद्य सुरक्षा, नेविगेशन की स्वतंत्रता और परमाणु सुरक्षा सुनिश्चित करने जैसी महत्त्वपूर्ण मुद्दों को शामिल किया जाएगा।
वैश्विक हितधारकों को शामिल करना: शांति के लिए व्यापक आधारित समर्थन सुनिश्चित करने के लिए, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ से, विविध वैश्विक दृष्टिकोणों को शामिल करने पर जोर देता है।
शांति वार्ता के लिए चुनौतियाँ
तटस्थता का मुद्दा: हालाँकि स्विट्जरलैंड तटस्थ बना हुआ था, लेकिन रूस पर प्रतिबंध लगाने का उसका निर्णय उसकी कथित तटस्थता को प्रभावित कर सकता है।
रूस का बहिष्कार: रूस की भागीदारी के बिना, शांति वार्ता में सार्थक प्रगति की संभावना नहीं है।
व्यापक भागीदारी चुनौतियाँ: ग्लोबल साउथ सहित देशों की एक विस्तृत शृंखला की भागीदारी सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण लेकिन चुनौतीपूर्ण है। शिखर वार्ता की सफलता समावेशी बातचीत और विविध अंतरराष्ट्रीय हितधारकों के योगदान पर निर्भर करती है।
नाटो (NATO)
नाटो 31 सदस्य देशों से बना एक ट्रांस-अटलांटिक सुरक्षा गठबंधन है।
इसकी स्थापना वर्ष 1949 में उत्तरी अटलांटिक संधि पर हस्ताक्षर के साथ हुई थी, जिसे वाशिंगटन संधि भी कहा जाता है।
फिनलैंड एवं स्वीडन NATO में शामिल होने वाले नवीनतम सदस्य हैं।
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