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बॉण्ड बायबैक

Lokesh Pal May 22, 2024 04:32 98 0

संदर्भ

हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने सरकार के ‘ट्रेजरी बिल’ की बिक्री में महत्त्वपूर्ण कमी की घोषणा करके और केंद्र के बायबैक परिचालन के लिए बॉण्ड का एक नया चयन शुरू करके बैंकिंग प्रणाली में ‘सख्त तरलता’ (Tight Liquidity) की स्थिति के संबंध में जवाब दिया है।

ट्रेजरी बिल (Treasury Bills)

  • परिचय: ट्रेजरी बिल मुद्रा बाजार में ऐसे वित्तीय साधन हैं, जो भारत सरकार द्वारा जारी अल्पकालिक ऋण का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • ट्रेजरी बिल की अवधि: वर्तमान में वे तीन अवधियों, 91 दिन, 182 दिन और 364 दिन में जारी किए जाते हैं।
  • ट्रेजरी बिल की विशेषताएँ: ये प्रतिभूतियाँ शून्य कूपन बॉण्ड होती हैं, जिसका अर्थ है कि वे ब्याज का भुगतान नहीं करते हैं। इसके बजाय, उन्हें छूट पर जारी किया जाता है और परिपक्वता पर अंकित मूल्य पर भुनाया जाता है।
  • ट्रेजरी बिल जारी करना: ट्रेजरी बिल भारत में वर्ष 1917 में प्रस्तुत किए गए थे और नियमित अंतराल पर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा आयोजित नीलामी के माध्यम से जारी किए जाते हैं।
  • ट्रेजरी बिल का स्वामित्व: व्यक्ति, ट्रस्ट, संस्थान और बैंक ट्रेजरी बिल खरीद सकते हैं, हालाँकि वे आमतौर पर वित्तीय संस्थानों के पास होते हैं।
  • ट्रेजरी बिल की भूमिका: ट्रेजरी बिल निवेश साधन होने के अलावा वित्तीय बाजार में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बैंक रेपो समझौतों के तहत RBI से धन प्राप्त करने और अपनी वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए संपार्श्विक के रूप में ट्रेजरी बिल का उपयोग करते हैं।

 बॉण्ड बायबैक (Bond Buyback)

  • परिचय: बॉण्ड बायबैक वह प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से केंद्र और राज्य सरकारें परिपक्वता तिथि से पहले धारकों से अपनी मौजूदा प्रतिभूतियों की पुनर्खरीद करती हैं।
  • उद्देश्य: बॉण्ड बायबैक देयता प्रबंधन उपकरण हैं, जिनका उपयोग अक्सर सरकारी प्रतिभूति बाजारों में पुनर्वित्त और तरलता जोखिमों को प्रबंधित करने के लिए किया जाता है।

बॉण्ड बायबैक का उद्देश्य

  • लागत में कमी: ब्याज व्यय को कम करने के लिए उच्च-कूपन प्रतिभूतियों की खरीद।
  • तरलता बढ़ाना: सरकारी प्रतिभूति (G-Secs) बाजार में तरलता को बढ़ावा देने के लिए तरलतारहित प्रतिभूतियों को हटाना।
  • तरलता का अंतःक्षेपण: वित्तीय प्रणाली में तरलता जोड़ना।

बॉण्ड बायबैक के लाभ

  • बैंकिंग तरलता में वृद्धि: सरकारी बॉण्ड के प्रमुख धारक होने के नाते, बैंक बॉण्ड बेचते समय सरकार से नकदी प्राप्त करते हैं, जिससे बैंकिंग प्रणाली में तरलता बढ़ती है।
  • तरलता की कमी के दौरान सहायता: बैंकों के लिए तरलता की कमी के दौरान यह नकदी प्रवाह महत्त्वपूर्ण हो सकता है, जो वित्तीय प्रणाली को स्थिर करने में सहायता करता है।

बॉण्ड बायबैक से हानि

  • पूँजी आवंटन संबंधी चिंताएँ: बायबैक में शेयरों की पुनर्खरीद करने के लिए पूँजी आवंटन शामिल है, जिससे निवेशकों पर यह सवाल उठता है कि कंपनियाँ व्यवसाय वृद्धि में निवेश क्यों नहीं कर रही हैं।
    • इससे यह धारणा बन सकती है कि कंपनियाँ अपनी पूँजी का प्रभावी ढंग से अधिकतम उपयोग नहीं कर रही हैं।
  • विकास की बाधाएँ और निवेशकों की अरुचि: ऐसा प्रतीत हो सकता है कि यह विकास को अवरुद्ध कर सकता है और निवेशकों को विमुख कर सकता है।
  • शेयर की कीमत पर प्रभाव: इससे शेयर की कीमत में गिरावट आ सकती है।

बॉण्ड

  • परिचय: बॉण्ड एक वित्तीय साधन है, जो एक निवेशक द्वारा किसी इकाई, आमतौर पर एक निगम या सरकार को प्रदान किए गए ऋण का प्रतीक है।
  • विशेषताएँ
    • ब्याज दर विकल्प: बॉण्ड में निश्चित या परिवर्तनीय ब्याज दरें हो सकती हैं, जो निवेशकों को अनुमानित या समायोज्य रिटर्न प्रदान करती हैं।
    • निवेश की अवधि: बॉण्ड एक निर्दिष्ट परिपक्वता तिथि के साथ आते हैं, जो यह दर्शाता है कि निवेशक को मूल राशि की प्रतिपूर्ति कब की जाती है।

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