हाल ही में अत्यधिक वर्षा के कारण कर्नाटक में विरुपाक्ष मंदिर का एक हिस्सा ढह गया।
संबंधित तथ्य
हम्पी के ऐतिहासिक स्थल पर स्थित विरुपाक्ष मंदिर का मंडप या ‘सालू मंडप’ (Saalu Mantap) क्षतिग्रस्त हो गया।
कुछ संरक्षणवादियों ने भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) के अधिकारियों पर इसकी सुरक्षा और संरक्षण की उपेक्षा करने का आरोप लगाया।
क्षतिग्रस्त होने के कारण
मंडप का निर्माण पत्थर के खंभों का उपयोग करके किया गया था।
ASI अधिकारियों के अनुसार, लंबे समय से वर्षा जैसी प्राकृतिक घटनाओं के कारण खंभों की स्थिति खराब हो गई है।
इन स्तंभों में मजबूत नींव का अभाव था।
ASI द्वारा विरुपाक्ष मंदिर का जीर्णोद्धार
हम्पी में राष्ट्रीय स्तर पर संरक्षित 95 स्मारकों में से 57 के लिए ASI उत्तरदायी है, जबकि बाकी राज्य सरकार के नियंत्रण में हैं।
जीर्णोद्धार कार्य शुरू करने से पहले, ASI ने अपने नियंत्रण वाले सभी स्मारकों का डिजिटल रूप से दस्तावेजीकरण किया।
जीर्णोद्धार का कार्य वर्ष 2019 में शुरू हुआ, पहला चरण वर्ष 2019-20 के बीच पूरा हुआ और दूसरा चरण वर्ष 2022 में पूर्ण हुआ।
स्मारकों के जीर्णोद्धार में चुनौतियाँ
ASI के अनुसार, फंडिंग, लॉजिस्टिक्स और मानव संसाधन से संबंधित मुद्दे बहाली कार्य करते समय उनके सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियाँ हैं।
विजयनगर से बीदर तक फैले कल्याण कर्नाटक क्षेत्र में स्मारकों के जीर्णोद्धार के लिए केंद्र सरकार द्वारा पिछले वित्तीय वर्ष में 8 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे।
इसके अलावा, पत्थर के खंभों के जीर्णोद्धार के लिए शुरू में उसी प्रकार के पत्थर की आवश्यकता होती है और यह पारंपरिक विधि के माध्यम से किया जाता है, जिसमें समय लगता है।
यूनेस्को ने इस विरासत स्थल के संरक्षण के बारे में व्यापक चिंताओं को भी नोट किया है।
विरुपाक्ष मंदिर में लगातार पूजा होती रहती है। इससे मंदिर परिसर के विभिन्न हिस्सों में कई परिवर्तन हुए हैं।
इसी प्रकार, धार्मिक और सामाजिक पर्यटकों को सेवाएँ प्रदान करने वाले इसके बाजार और इसके आसपास आधुनिक दुकानों, रेस्तराँ की बेतरतीब वृद्धि ने इस पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है।
हम्पी का विरुपाक्ष मंदिर
ऐतिहासिक परिचय
इसकी उत्पत्ति के बारे में विभिन्न प्रकार की किंवदंतियों के बावजूद, विरुपाक्ष मंदिर को प्रमुखता मिली और 14वीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य (1336 से 1646 ई.) के दौरान इसका व्यापक विस्तार हुआ।
संगम वंश के हरिहर प्रथम द्वारा स्थापित, विजयनगर साम्राज्य तुंगभद्रा नदी के तट पर एक रणनीतिक स्थिति से विस्तारित होकर अपने समय के सबसे शक्तिशाली राज्यों में से एक बन गया।
यह मंदिर विजयनगर शासकों के संरक्षण में फला-फूला, जो महान निर्माता और कला के संरक्षक थे।
यह अपने समय की धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र बन गया।
मंदिर की विशेषताएँ
यह द्रविड़ मंदिर वास्तुकला का एक प्रमुख उदाहरण है, जिसकी विशेषता इसके भव्य गोपुरम् (ऊँचे प्रवेश द्वार), गर्भगृह के ऊपर ऊँचा शिखर, इसकी जटिल नक्काशी और स्तंभयुक्त हॉल हैं।
नक्काशी और मूर्तियों से युक्त गोपुरम् में विभिन्न देवताओं, पौराणिक दृश्यों और जीवों को दर्शाया गया है।
गर्भगृह में शिव लिंगम् है, जो पूजनीय है।
इतिहासकारों का कहना है कि सभी मंदिरों में मंडप होते थे, जहाँ व्यापारी पूजा में प्रयोग होने वाली वस्तुएँ बेचते थे। कभी-कभी मंदिर में आने वाले श्रद्धालु मंडपों के नीचे भी डेरा डालते थे।
हम्पी के मंदिरों की एक और अनूठी विशेषता खंभेयुक्त मंडपों की पंक्तियों से घिरी चौड़ी ‘रथ सड़कें’ हैं, जो तब प्रारंभ हुईं जब रथ उत्सव अनुष्ठानों का एक अभिन्न अंग बन गया।
हम्पी की अधिकांश संरचनाएँ स्थानीय ग्रेनाइट, पक्की ईंटों और चूने के गारे से निर्मित हैं। इसके निर्माण में ‘पोस्ट और लिंटेल प्रणाली’ सबसे पसंदीदा निर्माण तकनीक थी।
महत्त्व
वहाँ स्थित कई अन्य मंदिरों और संरचनाओं की भूमि, हम्पी साम्राज्य की राजधानी थी और आज यह दक्षिण भारत के अंतिम ‘महान साम्राज्य’ के रूप में पहचाने जाने वाले साक्ष्य के रूप में खड़ा है।
यूनेस्को ने भी इसकी विशिष्टता को पहचाना और हम्पी में स्मारकों के समूह को वर्ष 1986 में विश्व धरोहर स्थल के रूप में वर्गीकृत किया।
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