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भारतीय जेलों में मासिक धर्म स्वच्छता

Lokesh Pal May 29, 2024 03:55 166 0

संदर्भ

28 मई को प्रतिवर्ष विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस मनाया जाता है तथा इस मौके पर एक रिपोर्ट जारी की गई, जो भारतीय जेलों में मासिक धर्म स्वच्छता पर प्रकाश डालती है।

भारत में मासिक धर्म स्वच्छता की पृष्ठभूमि

  • मासिक धर्म स्वच्छता में प्रगति: भारत में मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन में उल्लेखनीय प्रगति देखी गई है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS 2019-2020) के अनुसार, 15 से 24 वर्ष के आयु वर्ग की लगभग 80% किशोरियाँ अब सुरक्षित मासिक धर्म उत्पादों का उपयोग करती हैं।
  • भारतीय जेलों में मासिक धर्म स्वच्छता में असमानता: शहरी क्षेत्रों और विशिष्ट जनसांख्यिकी में प्रगति के बावजूद, भारतीय जेलों में महिलाओं को सामाजिक एवं स्वास्थ्य संबंधी उपेक्षा का सामना करना पड़ रहा है।
    • ऐसे सामाजिक संदर्भ में महिला कैदियों के बुनियादी अधिकारों को आमतौर पर नकार दिया जाता है, साथ ही महिला कैदियों को पूर्वाग्रहों के कारण अतिरिक्त चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

मानवाधिकारों और मासिक धर्म का संबंध

  • स्वास्थ्य का अधिकार: महिलाओं और लड़कियों को अपने मासिक धर्म स्वास्थ्य को प्रबंधित करने में उचित सुविधाओं की कमी के कारण नकारात्मक स्वास्थ्य परिणामों का सामना करना पड़ता है।
  • शिक्षा का अधिकार: मासिक धर्म स्वच्छता को प्रबंधित करने के लिए सुरक्षित स्थान या क्षमता की कमी के साथ-साथ मासिक धर्म के दर्द के इलाज के लिए दवा की उपलब्धता कम है। मासिक-धर्म से संबंधित ये समस्याएँ स्कूलों में अनुपस्थिति और खराब शैक्षिक परिणामों में योगदान करती हैं। 
  • काम का अधिकार: मासिक धर्म स्वच्छता के प्रबंधन में सुरक्षित साधनों तक कम पहुँच और मासिक धर्म से संबंधित दर्द के इलाज हेतु दवा की सीमित उपलब्धता भी महिलाओं और लड़कियों के लिए नौकरी के अवसरों को सीमित करती है। 
  • गैर-भेदभाव और लैंगिक समानता का अधिकार: मासिक धर्म से संबंधित लांछन और सामाजिक कुप्रथा के कारण महिलाओं को भेदभाव का सामना करना पड़ता है। 
  • जल और स्वच्छता का अधिकार: जल और स्वच्छता सुविधाएँ, जैसे- स्नान की सुविधा, जल की उचित आपूर्ति आदि मासिक धर्म स्वास्थ्य प्रबंधन के लिए बुनियादी आवश्यकताएँ हैं।

भारतीय जेलों में मासिक धर्म स्वच्छता की स्थिति

  • भारतीय जेलों में मासिक धर्म स्वच्छता: भारतीय जेलों में 23,772 महिलाएँ हैं, जिनमें से 77% प्रजनन आयु वर्ग के अंतर्गत आती हैं, जिन्हें नियमित रूप से मासिक धर्म होने की संभावना है।
  • पर्याप्त सुविधाएँ प्रदान करने में चुनौतियाँ: वर्ष 2016 के जारी मॉडल जेल मैनुअल में उल्लिखित सिफारिशों के बावजूद, कई राज्य महिला कैदियों के लिए पर्याप्त जल एवं शौचालय की सुविधा प्रदान करने में विफल रहे हैं।
    • अधिक भीड़भाड़ और जेल की खराब स्थितियों के कारण मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को सैनिटरी नैपकिन, डिटर्जेंट और साबुन जैसी आवश्यक वस्तुओं को प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है।
  • जेलों की स्थिति: महाराष्ट्र की एक जेल में वर्ष 2023 में स्थितियों का अध्ययन किया गया, जिसमें अपर्याप्त पेयजल, स्वच्छता और स्वच्छता सुविधाओं का पता चला, परिणामस्वरूप महिलाओं को जल-संग्रह करने और सीमित शौचालयों का सामूहिक रूप से उपयोग करने के लिए बाध्य होना पड़ता है।
    • परिणामस्वरूप ऐसे परिदृश्य में मूत्र संक्रमण की घटनाओं में वृद्धि होती है और मासिक धर्म स्वच्छता से निपटने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  • अपर्याप्त सैनिटरी नैपकिन (Inadequate Sanitary Napkins): सामान्य तौर पर, जेल सैनिटरी नैपकिन के लिए गैर-सरकारी संगठनों पर निर्भर रहते हैं, इसलिए कभी-कभी निम्न गुणवत्ता वाले उत्पादों का वितरण हो सकता है।
    • एक मामले में, प्रत्येक महिला को पुन: प्रयोज्य नैपकिन का केवल एक सेट दिया गया, जो जल और डिटर्जेंट की सीमित पहुँच के कारण अव्यावहारिक साबित हुआ।

मासिक धर्म स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम

  • सबला योजना (SABLA Scheme): इस योजना को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया है, जो पोषण, स्वास्थ्य, स्वच्छता और प्रजनन एवं यौन स्वास्थ्य को संबोधित करती है तथा महिलाओं को ग्रामीण मातृ एवं शिशु देखभाल केंद्रों से जोड़ता है।
  • राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (National Rural Livelihood Mission): ग्रामीण विकास मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत, स्वयं सहायता समूहों (Self Help Group) और छोटे पैमाने के निर्माताओं को सैनिटरी पैड के निर्माण में सहायता की जाती है।
  • मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय दिशा-निर्देश: स्वच्छ भारत अभियान के तहत पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय ने वर्ष 2015 में मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
    • इन दिशा-निर्देशों में जागरूकता बढ़ाने, व्यवहार में बदलाव, स्वच्छता उत्पादों की माँग को बढ़ाने, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए क्षमता निर्माण, हितधारकों को जागरूक करना, प्रभावी हस्तक्षेप के लिए प्रयासों आदि को शामिल किया गया है, साथ ही सुरक्षित निपटान विकल्प एवं उचित सुविधाओं की स्थापना जैसे विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
  • सुविधा सैनिटरी नैपकिन (Suvidha Sanitary Napkins): जन औषधि सैनिटरी नैपकिन भारत के सभी जन औषधि केंद्रों पर एक रुपये प्रति पैड की रियायती दर पर उपलब्ध हैं। इस पहल को प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना (PMBJP) के तहत शुरू किया गया है। 

आगे की राह 

  • जेलों में मासिक-धर्म स्वच्छता मानकों को सुनिश्चित करना: भारत सरकार को जेलों में महिलाओं के लिए बुनियादी मासिक-धर्म स्वच्छता मानकों को लागू करना चाहिए। 
    • मॉडल जेल मैनुअल 2016 के असंगत कार्यान्वयन को संबोधित करने के लिए तत्काल कारवाई की आवश्यकता है, साथ ही यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी राज्य इन सिफारिशों का पालन करें।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राथमिकता: जेलों में मासिक-धर्म स्वच्छता को सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राथमिकता और ‘पीरियड अनवेलेबिलिटी’ से निपटने में एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जाना चाहिए। 
  • सहयोगात्मक रणनीति: जेल प्रशासकों और सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारियों को व्यापक योजना पर कार्य करना चाहिए, ताकि महिला कैदियों के स्वास्थ्य और सम्मान को प्राथमिकता देते हुए पर्याप्त मासिक धर्म स्वच्छता उत्पादों एवं सुविधाओं तक उनकी पहुँच को सुनिश्चित किया जा सके।
    • जेलों में मासिक-धर्म स्वच्छता की वर्तमान स्थिति को समझने के लिए उचित जाँच-पड़ताल की आवश्यकता है।

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