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वैवाहिक बलात्कार: महिला समानता व स्वायत्तता का मुद्दा

Lokesh Pal May 28, 2024 05:15 246 0

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: भारतीय दंड संहिता की धारा 375, गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम, भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए। 

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने के पक्ष और विपक्ष में तर्क। 

संदर्भ: 

हाल ही में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने, मनीष साहू बनाम मध्य प्रदेश राज्य मामले में माना कि पति द्वारा 15 वर्ष से कम आयु की पत्नी के साथ किया गया कोई भी यौन संबंध या यौन कृत्य बलात्कार नहीं है।

वैवाहिक बलात्कार

  • परिभाषा : वैवाहिक बलात्कार से तात्पर्य अपने जीवनसाथी की सहमति के बगैर उनके साथ यौन संबंध बनाने से है।
  • भारत में कानूनी स्थिति: भारत में, ऐसा कोई भी कानूनी प्रावधान नहीं है जो स्पष्ट रूप से “वैवाहिक बलात्कार” से संबंधित मुद्दे पर ध्यान केन्द्रित करता हो।
    • भारत विश्व के उन 36 देशों की सूचि में शामिल है जहाँ वैवाहिक बलात्कार को अब भी आपराधिक अपराध के रूप में मान्यता नहीं दी गई है।

भारत में वैवाहिक बलात्कार की स्थिति:

  • भारतीय दंड संहिता में बलात्कार का प्रावधान: भारतीय दंड संहिता की धारा 375 बलात्कार को एक आपराधिक कृत्य के रूप में परिभाषित करती है, जिसमें इस बात का जिक्र किया गया है कि यदि कोई पुरुष किसी महिला की सहमति के बिना या यदि वह नाबालिग है, तो उसके साथ किसी भी प्रकार का यौन संबंध बनाता है तो वह बलात्कार का दोषी होगा।
    • यद्यपि, धारा 375 के अपवाद 2 में इस बात का जिक्र किया गया है कि किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध, बशर्ते कि उसकी आयु पंद्रह वर्ष से कम न हो, बलात्कार नहीं माना जाएगा।
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय : भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने, वर्ष 2018 के एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में, निर्धारित किया कि 15 से 18 वर्ष की आयु की पत्नी के साथ यौन संबंध को बलात्कार के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा।
    • सितंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फ़ैसले में वैवाहिक स्थिति की परवाह किए बगैर महिलाओं के सुरक्षित गर्भपात के अधिकार की पुष्टि की।
    • इसने निर्धारित किया कि ‘मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नेंसी एक्ट’ के तहत बलात्कार की परिभाषा में वैवाहिक बलात्कार भी शामिल होना चाहिए।
  • वैवाहिक बलात्कार के लिए कानूनी प्रावधान : विवाहित महिलाओं के लिए, गैर-सहमति वाले यौन संबंधों के खिलाफ एकमात्र कानूनी उपाय घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम (2005) या आईपीसी की धारा 498-ए में उल्लिखित नागरिक प्रावधानों में निहित है, जो पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा पत्नी के खिलाफ क्रूरता से संबंधित है।

वैवाहिक बलात्कार से संबंधित वैश्विक प्रावधान:

  • रूस: 1922 में, सोवियत संघ, अर्थात वर्तमान रूस, बलात्कार को अपराध घोषित करने वाला और अपने बलात्कार कानूनों से “वैवाहिक छूट” को समाप्त करने वाला पहला देश बना।
  • वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने वाले अन्य देश:
    • संयुक्त राज्य अमेरिका: 1993 से, वैवाहिक बलात्कार को अमेरिका के सभी 50 राज्यों में अपराध घोषित कर दिया गया है, हालाँकि, वहाँ के सभी राज्यों के अनुसार कानून अलग-अलग हैं।
    • यूनाइटेड किंगडम: ब्रिटेन में वैवाहिक बलात्कार को भी अपराध की श्रेणी में शामिल कर दिया गया है, जिसके लिए आजीवन कारावास सहित सजा का भी प्रावधान किया गया है।
    • दक्षिण अफ्रीका: दक्षिण अफ्रीका में 1993 से वैवाहिक बलात्कार अवैध है।
    • कनाडा: कनाडा में वैवाहिक बलात्कार कानूनन दंडनीय है।

वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने के पक्ष में तर्क:

  • विवाह को पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ जबरन बलात्कार करने के लाइसेंस के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।
  • कवरचर का सिद्धांत (The doctrine of Coverture): बलात्कार की आईपीसी की परिभाषा में वैवाहिक अपवाद को विक्टोरियन पितृसत्तात्मक मानदंडों के आधार पर तैयार किया गया था, जो पुरुषों और महिलाओं को समान नहीं मानते थे। 
    • इसने विवाहित महिलाओं को संपत्ति रखने की अनुमति नहीं दी, तथा “कवरचर के सिद्धांत” के तहत पति और पत्नी की पहचान को एक कर दिया।
  • अनुच्छेद 14: भारतीय महिलाओं को अनुच्छेद 14 के तहत समान व्यवहार का अधिकार है और किसी भी व्यक्ति के मानवाधिकारों को किसी के द्वारा, यहाँ तक ​​कि उसके पति या पत्नी द्वारा भी नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।
    • इसके अलावा, एक विवाहित महिला को अपने शरीर पर नियंत्रण रखने का उतना ही अधिकार है जितना एक अविवाहित महिला को।
  • शारीरिक स्वायत्तता अनुच्छेद 21 का अभिन्न अंग : कोई भी महिला अपने पति के साथ यौन संबंध बनाने से इनकार करने का अधिकार रखती है, क्योंकि शारीरिक स्वायत्तता और गोपनीयता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 का अभिन्न अंग है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने महिलाओं की पवित्रता और यौन गतिविधि से संबंधित विकल्प चुनने की स्वतंत्रता को अनुच्छेद 21 के दायरे में शामिल किया है।
  • बलात्कार तलाक का आधार नहीं: वैवाहिक बलात्कार किसी भी व्यक्तिगत कानून और यहाँ तक ​​कि विशेष विवाह अधिनियम, 1954 में भी तलाक का आधार नहीं है, इसे पति के खिलाफ क्रूरता और तलाक के आधार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।
    • इस प्रकार, सशक्त कानूनी प्रावधानों के अभाव में, अक्सर महिलाएँ असहज और असहाय महसूस करती हैं और चुपचाप पीड़ा सहती रहती हैं क्योंकि बलात्कार अपने प्रत्येक स्वरूप में, बलात्कार ही होता है, चाहे अपराधी की पहचान कुछ भी हो, या पीड़िता की उम्र कुछ भी हो।
  • वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करना : वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने से यह सुनिश्चित होगा कि महिलाएँ दुर्व्यवहार करने वाले पतियों से सुरक्षित रहें और उन्हें वैवाहिक बलात्कार से उबरने के लिए आवश्यक सहायता मिल सके और वे खुद को घरेलू हिंसा और यौन दुर्व्यवहार से बचा सकें।
  • विश्व के अधिकांश विकसित देशों द्वारा इसे अपराध घोषित कर दिया है, जैसे – यूनाइटेड किंगडम, जिसके सामान्य कानून का भारत भी पालन करता है, ने 1991 में वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में शामिल कर दिया था।
  • सिफारिशें : निर्भया सामूहिक बलात्कार मामले में गठित जे.एस. वर्मा समिति और 2013 में महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव उन्मूलन पर संयुक्त राष्ट्र समिति (CEDAW) ने सिफारिश की थी कि भारत सरकार को वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करना चाहिए।

वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने के विपक्ष में तर्क:

  • विवाह संस्था को अस्थिर करना: यह परिवारों में पूर्णतः अराजकता पैदा कर सकता है, विवाह संस्था को अस्थिर कर सकता है और इस प्रकार पारिवारिक मंच को नष्ट कर सकता है जो पारिवारिक मूल्यों को कायम रखता है ।
    • भारतीय समाज में विवाह को एक संस्कार माना जाता है।
  • कानून का दुरुपयोग: यह आईपीसी की धारा 498 ए (पति और ससुराल वालों द्वारा विवाहित महिला को परेशान करना) के बढ़ते दुरुपयोग के समान कानून का दुरुपयोग करके पतियों को परेशान करने का एक आसान साधन बन सकता है।
  • राज्यों की संस्कृतियों में विविधता: भारत में साक्षरता, अधिकांश महिलाओं के वित्तीय सशक्तिकरण की कमी, समाज की मानसिकता, विशाल विविधता, गरीबी आदि जैसे विभिन्न कारकों के कारण पृथक-पृथक समस्याएँ हैं और वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने से पहले इन पर सावधानीपूर्वक विचार किया जाना चाहिए।
  • विधि आयोग की सिफारिशों का अभाव : भारतीय विधि आयोग और गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने मामले की गहन जाँच के बाद वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने की सिफारिश नहीं की।

भारत में वैवाहिक बलात्कार की चुनौतीपूर्ण स्थिति:

  • कार्यान्वयन संबंधी मुद्दे: वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने से गंभीर कार्यान्वयन संबंधी मुद्दे उत्पन्न होंगे।
    • यदि किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ किए गए सभी यौन कृत्य वैवाहिक बलात्कार की श्रेणी में आते हैं, तो यह वैवाहिक बलात्कार है अथवा नहीं, इसका निर्णय पूरी तरह से पत्नी पर निर्भर करेगा, जिस पर हमेशा भरोसा नहीं किया जा सकता।
  • साक्ष्यों का अभाव: ऐसी परिस्थितियों में अदालतें किस साक्ष्य पर भरोसा करेंगी, क्योंकि एक पुरुष और उसकी पत्नी के मध्य यौन संबंधों के मामले में कोई स्थायी साक्ष्य नहीं हैं ।

निष्कर्ष:

अंततः कानून हमारी अंतःक्रियाओं में सीमाओं को परिभाषित करने के लिए आवश्यक हैं, जो समानता, सम्मान और शारीरिक स्वायत्तता जैसे संवैधानिक सिद्धांतों के संरक्षण को सुनिश्चित करते हैं। हालाँकि, कठोर सामाजिक वास्तविकताओं को स्वीकार करना आवश्यक है जो व्यवहार में उनके प्रभावी कार्यान्वयन को सीमित करते हैं।

प्रारंभिक परीक्षा पर आधारित प्रश्न :                                                                            

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए :

  1. भारतीय दंड संहिता की धारा 498A एक आपराधिक कानून है, इसमें यह प्रावधान है कि  किसी महिला के साथ क्रूरता करने पर सिर्फ उसके  पति को सज़ा  मिलेगी  ना कि पति के रिश्तेदारों को |
  2. भारतीय दंड संहिता की धारा 375 , पुरुष द्वारा किये गए वैवाहिक बलात्कार को अपराधमुक्त घोषित  करने के अलावा यह उल्लेख करता है कि चिकित्सा प्रक्रियाओं या हस्तक्षेप को बलात्कार नहीं माना जाएगा।
  3. भारतीय दंड संहिता की धारा 375  में यह भी कहा गया है कि “किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ संभोग या यौन कृत्य, यदि पत्नी की उम्र पंद्रह वर्ष से कम नहीं है, बलात्कार नहीं है”।

उपर्युक्त कथनों में से कितने कथन सही है/हैं?

  1. केवल 1 
  2. केवल 2 
  3. सभी तीनों
  4.  कोई भी नहीं 

उत्तर: (b)

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न                                                                               

प्रश्न. हमें देश में महिलाओं के खिलाफ यौन-उत्पीड़न के बढ़ते हुए दृष्टांत दिखाई दे रहे हैं। इस कुकृत्य के विरूद्ध विद्यमान विधिक उपबंधों के होते हुए भी ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। इस संकट से निपटने के लिये कुछ नवाचारी उपाय सुझाएँ।                                                                                                                     (UPSC : 2014)

प्रश्न. भारत में वैवाहिक बलात्कार के पीड़ितों द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों की जाँच करें, पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण, सामाजिक कलंक और कानूनी सहारा पर विचार करें। विवाहित महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने में मौजूदा कानूनों और सहायता प्रणालियों की पर्याप्तता का मूल्यांकन करें और पीड़ितों के लिए एक सहायक वातावरण बनाने के लिए सुधारों का सुझाव दें। (15 अंक, 250 शब्द)

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