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रेमल उष्णकटिबंधीय चक्रवात और भूस्खलन का खतरा

Lokesh Pal May 30, 2024 05:00 126 0

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: भूस्खलन, भूस्खलन की भविष्यवाणी के तरीके, भूस्खलन के कारण बनने वाले कारक, चक्रवात और प्रतिचक्रवात के बारे में । 

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: भूस्खलन की पूर्व सुचना/चतावनी तथा संबंधित आपदा प्रबंधन प्रणाली, उष्णकटिबंधीय चक्रवात कारण एवं प्रभाव।

संदर्भ: 

  • हाल ही में मध्य बंगाल की खाड़ी में, चक्रवात रेमल के कारण बड़े पैमाने पर क्षति हुई है क्योंकि इस चक्रवात के कारण हुई भारी बारिश की वजह से मेघालय, मिजोरम, असम और नागालैंड में कई स्थानों पर भूस्खलन की घटनाएँ हुई हैं।
    • इस घटना की वजह से कई लोगों की मृत्यु हो गई। 

भारत में भूस्खलन:

  • आईएमडी पूर्वानुमान: भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने अपने सभी चक्रवात बुलेटिनों में पूर्वोत्तर में भारी बारिश की चेतावनी दी थी।
  • भूस्खलन प्रवण क्षेत्र: सिक्किम और उत्तरी पश्चिम बंगाल सहित लगभग पूरा क्षेत्र भूस्खलन प्रवण क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं।
  • चक्रवात-प्रेरित भूस्खलन: चक्रवात पहले भी पूर्वोत्तर राज्यों को प्रभावित कर चुके हैं। मई 2009 में चक्रवात आइला के कारण इस क्षेत्र में भूस्खलन की घटनाओं से क्षेत्रीय जनजीवन प्रभावित हुआ था।
  • प्राकृतिक आपदाएँ: प्राकृतिक आपदाओं के रुप में ऐसी घटनाओं की आवृति बहु-खतरनाक आपदाओं के लिए उचित नीतियाँ बनाकर उनका बेहतर संचालन व त्वरित प्रबंधन सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
    • संभव है कि एक घटना दूसरी घटना को जन्म दे सकती है, तथा एक साथ कई आपदाओं का कर्ण भी बन सकती है।
  • भूस्खलन और बाढ़: पिछले कुछ वर्षों में भारत में ऐसी कई घटनाएँ हुई हैं जिनमें भारी वर्षा के कारण हिमनद झीलों में दरार पड़ गई, परिणामस्वरूप भूस्खलन और बाढ़ जैसी घटनाएँ हुई। 
    • इन घटनाओं की वजह से बड़े पैमाने पर बिजली कटौती, परिवहन और संचार संबंधी विफलताएँ, स्वास्थ्य सेवाओं में व्यवधान, तथा बचाव और राहत कार्यों में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

भूस्खलन और इसके कारण

  • भूस्खलन: ढलान से चट्टान, पत्थर, धरती या मलबे का अचानक खिसकना भूस्खलन कहलाता है।
  • कारक: जब गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव पहाड़ी या पर्वतीय ढलान से अधिक हो जाता है।
  • प्राकृतिक कारक: ये घटनाएँ मुख्य रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में ही देखने को मिलती हैं जहाँ मिट्टी, चट्टान, भूविज्ञान और ढलान की अनुकूल परिस्थितियाँ मौजूद होती हैं।
  • कारण: इसके उत्पन्न होने वाले प्राकृतिक कारणों में भारी वर्षा, भूकंप, चक्रवती तूफान, बर्फ पिघलना और बाढ़ के कारण ढलानों का कटाव इत्यादि शामिल है।

पूर्व चेतावनी:

  • पूर्व चेतावनी प्रणाली (EWS) की तैनाती: कुछ पूर्व चेतावनी प्रणालियों को विकसित किया गया है और कुछ स्थानों पर परीक्षण के आधार पर इन्हें तैनात किया गया है।
    • ये चेतावनी प्रणालियाँ IMD के वर्षा पूर्वानुमान से जुड़ी हुई हैं।
  • वर्षा आधारित पूर्वानुमान: इसे मिट्टी और भूभाग की जानकारी के साथ संयोजित करके यह गणना की जाती है कि क्या इससे भूमि का विस्थापन होने की संभावना है।
    • पहाड़ी क्षेत्रों में ज़्यादातर भूस्खलन भारी बारिश के कारण होते हैं। भूस्खलन के लिए वर्षा-आधारित पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ ऐसे संवेदनशील क्षेत्रों के लिए बेहतर मानी जाती हैं।
  • भूकंप आधारित पूर्व चेतावनी: भूकंप की घटना की वजह से भूस्खलन भी हो सकता है, लेकिन हम ऐसा सामन्यतः नहीं देखते हैं। 
    • उदाहरण के लिए, पूर्वोत्तर क्षेत्र में पिछले एक या दो दशकों में भूकंप से कोई बड़ा भूस्खलन नहीं हुआ है।
    • चूँकि, अनेक तकनीकी अनुसंधानों के बावजूद भी भूकंप की सटीक चेतावनी डे पाना कठिन है, इसलिए हम भूकंप के आधार पर भूस्खलन की पूर्व चेतावनी नहीं दे सकते हैं।
  • ईडब्ल्यूएस का विकास: अभी तक, इनमें से केवल कुछ विशिष्ट स्थानों पर ही पूर्व चेतावनी प्रणालियों को स्थापित किया जा सका है।
    • सीबीआरआई और आईआईटी रुड़की, सिक्किम के दो स्थानों, उत्तराखंड के दो और केरल के एक स्थान पर इन्हें स्थापित करने की प्रक्रिया चल रही हैं। 
    • आईआईटी मंडी जैसे अन्य संस्थान भी प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली विकसित करने और स्थापित करने के लिए काम कर रहे हैं।

मानवीय दबाव:

  • अतिरिक्त भार: भूस्खलन का जोखिम इसलिए भी बढ़ गया है क्योंकि इन क्षेत्रों में निरंतर काहल रहे निर्माण कार्यों की वजह से हमारी प्रणालियाँ उस क्षेत्र विशेष के  भार को सहन कर सकने में सक्षम नहीं हैं ।
  • नियमों का अभाव: कई पहाड़ी इलाकों में निर्माणगत नियमों का अभाव है या फिर नियमों को प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया जा सका है।
  • निर्माण और विकास: नवीन निर्माण, बुनियादी ढाँचे का विकास और यहाँ तक ​​कि आधुनिक कृषि पद्धतियाँ भी भूस्खलन के जोखिम को बढ़ा सकती हैं।
  • वहन क्षमता से अधिक दबाव : किसी भी पहाड़ी क्षेत्र की एक वहन क्षमता होती है। विकास आवश्यक है, और कोई भी स्थानीय आबादी के लिए बुनियादी ढाँचे अथवा नई सुविधाओं या आर्थिक गतिविधियों से संबंधित निर्माण गतिविधियों को रोक नहीं सकता।
    • लेकिन इन्हें विनियमित किया जाना चाहिए। स्थिरता को ध्यान में रखना होगा, ताकि आरोपित भार उनकी वहन क्षमता से अधिक न हो। यही कारण है कि जोनिंग विनियमन की आवश्यकता महसूस की जा रही है। 
    • इन्हें अंतिम रूप दिया जाना चाहिए और सख्ती से लागू किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष: 

निष्कर्षतः भारत के भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों में खतरनाक प्राकृतिक आपदाओं के प्रति लचीलापन बनाने के लिए कड़े जोनिंग विनियमन, प्रभावी प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और सतत विकास प्रथाओं की आवश्यकता है।

प्रारंभिक परीक्षा पर आधारित प्रश्न :                                                                                         (UPSC :2015)

प्रश्न. उष्णकटिबंधीय (ट्रॉपिकल) अक्षांशों में दक्षिणी अटलांटिक और दक्षिण-पूर्वी प्रशांत क्षेत्रों में चक्रवात उत्पन्न नहीं होता। इसका क्या कारण है? 

  1. समुद्री पृष्ठों के ताप निम्न होते हैं
  2. अंतःउष्णकटिबंधीय अभिसारी क्षेत्र (इंटर-ट्रॉपिकल कन्वर्जेंस ज़ोन) बिरले ही होता है,
  3. कोरिऑलिस बल अत्यंत दुर्बल होता है
  4. उन क्षेत्रों में भूमि मौज़ूद नहीं होती

उत्तर: (b)

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न:

विषय GS-03: आपदा और आपदा प्रबंधन।

प्रश्न: भूस्खलन भारत में एक प्रमुख भू-आपदा है, जिससे प्रत्येक वर्ष जान-माल का भारी नुकसान होता है। देश में भूस्खलन की बढ़ती घटनाओं के लिए जिम्मेवार मुख्य कारकों का विश्लेषण करें। भूस्खलन के लिए वर्तमान आपदा प्रबंधन ढाँचे की आलोचनात्मक जाँच करें। (15 अंक, 250 शब्द)

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