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अमेरिकी डॉलर का प्रभुत्व

Lokesh Pal June 03, 2024 05:30 138 0

संदर्भ :

अमेरिकी डॉलर वैश्विक व्यापार और वित्त का केंद्र है। कई देशों के पास डॉलर का भंडार उपस्थित हैं, और अधिकांश व्यापार डॉलर में ही किए जाते हैं, तब भी जब अमेरिका इसमें शामिल नहीं होता।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: ब्रेटन वुड्स प्रणाली, विनिमय दर प्रणाली।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: डी-डॉलराइजेशन के कारण, डी-डॉलराइजेशन का प्रभाव, पेट्रोडॉलर प्रणाली, डी-डॉलराइजेशन से जुड़े लाभ और चुनौतियाँ।

डॉलराइजेशन क्या है?

  • डॉलराइजेशन तब होता है जब अधिकतर अंतरराष्ट्रीय व्यापार अमेरिकी डॉलर में किया जाता है, भले ही संयुक्त राज्य अमेरिका सीधे तौर पर लेन-देन में शामिल न हो। 
  • डॉलराइजेशन का उदाहरण: यदि भारत और जापान अमेरिकी डॉलर में व्यापार करने के लिए सहमत होते हैं, तो इसे डॉलराइजेशन माना जाता है, भले ही संयुक्त राज्य अमेरिका व्यापार में एक पक्ष न हो

डी-डॉलराइजेशन क्या है?

  • डी-डॉलराइजेशन : अंतरराष्ट्रीय व्यापार और वित्त में अमेरिकी डॉलर के उपयोग को कम करने तथा इसके स्थान पर अन्य मुद्राओं अथवा वस्तुओं के उपयोग को बढ़ाने की प्रक्रिया है।

डी-डॉलराइजेशन के कारण:

  • अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता: देश अमेरिकी डॉलर पर अपनी निर्भरता और संयुक्त राज्य अमेरिका के आर्थिक प्रभाव को कम करने के लिए डी-डॉलराइजेशन का प्रयास कर सकते हैं। 
  • डी-डॉलराइजेशन का उदाहरण: यदि भारत और रूस अमेरिकी डॉलर के बजाय भारतीय रुपये और रूसी रूबल में व्यापार करने का निर्णय लेते हैं, तो इसे डी-डॉलराइजेशन माना जाएगा।

अंतरराष्ट्रीय व्यापार में डॉलराइजेशन के परिणाम:

  • डॉलर की माँग में वृद्धि: डॉलराइजेशन से अमेरिकी डॉलर की माँग में वृद्धि हो जाती है, जिससे अन्य मुद्राओं के सापेक्ष इसके मूल्य में वृद्धि होती है।
  • डॉलर रिजर्व की आवश्यकता: देशों को महत्त्वपूर्ण डॉलर रिजर्व रखने और डॉलर में किए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय लेनदेन को सुविधाजनक बनाने की आवश्यकता है।

अंतरराष्ट्रीय व्यापार में डी-डॉलराइजेशन के परिणाम:

  • डॉलर की माँग में कमी: डी-डॉलराइजेशन से अमेरिकी डॉलर की माँग में कमी आती है, जिससे अन्य मुद्राओं के सापेक्ष इसके मूल्य पर संभावित रूप से दबाव पड़ता है। 
  • भंडार का विविधीकरण: देश अमेरिकी डॉलर के बजाय अपने भंडार में अन्य मुद्राएँ या वस्तुएँ, जैसे- सोना, रख सकते हैं।

संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए डॉलर प्रभुत्व के लाभ:

  • कम उधार लागत: अमेरिकी डॉलर की उच्च माँग की वजह से संयुक्त राज्य अमेरिका को कम ब्याज दरों पर उधार लेने की सुविधा मिल जाती है, जिससे उसके ऋण के वित्तपोषण की लागत कम हो जाती है।
  • सिग्नियोरेज: संयुक्त राज्य अमेरिका को डॉलर की छपाई से लाभ होता है, क्योंकि उनके उत्पादन की लागत उनके अंकित मूल्य से कम होती है, इस लाभ को सिग्नियोरेज के रूप में जाना जाता है।
  • वित्तीय उत्तोलन: डॉलर का प्रभुत्व संयुक्त राज्य अमेरिका को वित्तीय बढ़त प्रदान करता है, क्योंकि यह डॉलर लेनदेन को प्रतिबंधित करके अन्य देशों पर दबाव डाल सकता है।
  • व्यापार लाभ: अमेरिकी कंपनियों को डॉलर में किए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय व्यापार से लाभ होता है, क्योंकि उन्हें मुद्रा विनिमय लागत नहीं उठानी पड़ती

अमेरिकी चुनाव और डी-डॉलराइजेशन:

  • अन्य देशों पर प्रभाव: नवंबर में होने वाले आगामी अमेरिकी चुनावों का प्रभाव अन्य देशों पर भी देखा जा सकता है, जिनमें भारत भी शामिल है, जो ब्रिक्स राष्ट्र समूह का हिस्सा है
  • डी-डॉलराइजेशन पर ट्रम्प का रुख: राष्ट्रपति पद के संभावित उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प ने डी-डॉलराइजेशन नीतियों का पालन करने वाले देशों के खिलाफ कार्रवाई करने की योजना की घोषणा की है।
  • ब्रिक्स डी-डॉलराइजेशन पर जोर दे रहा है: डी-डॉलराइजेशन का सबसे बड़ा खतरा ब्रिक्स देशों से है।

डॉलर प्रभुत्व का इतिहास:

  • चीन में कागजी मुद्रा: कागजी मुद्रा का आविष्कार 7वीं शताब्दी ई. में तांग राजवंश में हुआ था।
  • यूरोप में प्रसार: 13वीं शताब्दी में मार्को पोलो के माध्यम से इस अवधारणा का प्रचार-प्रसार हुआ ।
  • ब्रिटिश पाउंड का उदय: 17-18वीं शताब्दी में पाउंड स्टर्लिंग का प्रभुत्व था।
  • पाउंड स्टर्लिंग का प्रभुत्व: 9वीं शताब्दी में वैश्विक व्यापार के लिए डिफ़ॉल्ट मुद्रा।
  • अमेरिकी महाशक्ति: प्रथम विश्व युद्ध के बाद, अमेरिका एक नई आर्थिक और सैन्य महाशक्ति के रूप में उभरा।
  • स्वर्ण भंडार: अमेरिका ने दोनों विश्व युद्धों में सहयोगी देशों को आपूर्ति करके पर्याप्त स्वर्ण भंडार प्राप्त किया।
  • ब्रेटन वुड्स: 1944 में, 44 देशों ने अपनी मुद्राओं को अमेरिकी डॉलर से जोड़ा, जो सोने द्वारा समर्थित थी।
  • पेट्रोडॉलर: 1945 में, अमेरिका ने सऊदी अरब के साथ केवल अमेरिकी डॉलर में तेल बेचने का सौदा किया।

गोल्ड स्टैंडर्ड और पेट्रोडॉलर का अंत:

  • निक्सन शॉक: 1971 में, निक्सन ने डॉलर के सोने के लिंक को समाप्त कर दिया, जिससे सोने के मानक को समाप्त कर दिया गया। 
  • पेट्रोडॉलर प्रणाली: 1973 में, अमेरिका ने सऊदी अरब के साथ केवल डॉलर में तेल बेचने का सौदा किया, जिससे पेट्रोडॉलर का निर्माण हुआ। 
  • डॉलर की मांग में वृद्धि: पेट्रोडॉलर प्रणाली ने तेल खरीदने के लिए अमेरिकी डॉलर की वैश्विक माँग को बढ़ा दिया। 
  • अमेरिकी घाटे का वित्तपोषण: सऊदी अरब अमेरिकी खजाने में अतिरिक्त डॉलर का निवेश करता है।

वर्तमान विश्व में  डॉलर का प्रभुत्व:

  • केंद्रीय बैंक रिजर्व: विश्व भर में केंद्रीय बैंक रिजर्व का 60% से अधिक हिस्सा अमेरिकी डॉलर में रखा जाता है।
  • वैश्विक संचलन: वैश्विक बाजार में 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रचलन है, जिसमें से आधे से अधिक का उपयोग संयुक्त राज्य अमेरिका के बाहर किया जाता है
  • अंतरराष्ट्रीय व्यापार: विश्व का 80% से अधिक व्यापार अमेरिकी डॉलर में किया जाता है।
  • अमेरिकी महाशक्ति का दर्जा: अमेरिकी डॉलर के बढ़ते प्रभुत्व के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका एक महाशक्ति बन गया है।

डॉलर के बढ़ते प्रभुत्व के परिणाम:

  • सैन्य हस्तक्षेप: संयुक्त राज्य अमेरिका ने डॉलर के वर्चस्व की रक्षा के लिए मध्य पूर्व में हस्तक्षेप किया है (जैसे, इराक, लीबिया)
  • आर्थिक प्रतिबंध: रान और उत्तर कोरिया जैसे देश अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण अलग-थलग पड़ गए हैं, जो कंपनियों को उनके साथ लेन-देन करने से रोकते हैं।
  • डॉलर एकाधिकार जोखिमों का एहसास: जब अमेरिका ने रूस पर प्रतिबंध लगाया और उसे स्विफ्ट भुगतान प्रणाली से हटा दिया, तो अन्य देशों को डॉलर के एकाधिकार के जोखिमों का एहसास हुआ।

डी-डॉलराइजेशन के लिए दबाव:

  • डॉलर की विश्वसनीयता के बारे में चिंताएँ: अमेरिकी डॉलर की विश्वसनीयता और अमेरिकी अर्थव्यवस्था की स्थिरता के बारे में चिंताओं के कारण देश डी-डॉलराइजेशन की ओर बढ़ रहे हैं।
  • अस्थायी अमेरिकी ऋण: अमेरिकी ऋण $31 ट्रिलियन तक पहुँच गया है, और बजट घाटा 16% से अधिक है, जिसे कई विशेषज्ञों द्वारा अस्थाई माना जाता है।
  • वैश्विक पतन का जोखिम: यदि अमेरिकी अर्थव्यवस्था कमजोर हो जाती है, तो अंतरराष्ट्रीय व्यापार और वित्त में डॉलर के प्रभुत्व के कारण वैश्विक आर्थिक पतन हो सकता है।

चीन और रूस द्वारा डी-डॉलराइजेशन के प्रयास:

  • डॉलर के बाहर द्विपक्षीय व्यापार: चीन और रूस के मध्य तकरीबन 90% से अधिक व्यापार अब अमेरिकी डॉलर के आलावा किसी अन्य मुद्रा में किया जाता है।
  • रूस का रूबल जनादेश: रूस ने यूरोप को तेल और गैस का व्यापार करने के लिए रूबल के उपयोग को लागू किया है, जिससे डॉलर की माँग कम हो गई है।
  • चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव: चीन अपनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) परियोजना के माध्यम से 385 बिलियन डॉलर के ऋण को युआन में परिवर्तित कर रहा है, जिससे मुद्रा के उपयोग को बढ़ावा मिल रहा है।
  • सऊदी अरब की युआन में तेल का व्यापार : सऊदी अरब द्वारा चीन को युआन में तेल का व्यापार करने का निर्णय पेट्रोडॉलर प्रणाली के लिए एक बड़ा झटका है।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न :

जीएस-02: विकसित एवं विकासशील देशों की नीतियों एवं राजनीति का भारत के हितों पर प्रभाव।

प्र. संयुक्त राज्य अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय समुदाय दोनों के लिए अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व के निहितार्थ का विश्लेषण करें। कुछ देशों द्वारा डी-डॉलराइजेशन के प्रयासों के संभावित परिणाम और चुनौतियाँ क्या हैं? टिप्पणी कीजिए|   (15 अंक, 250 शब्द)

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