भारतीय फार्माकोपिया आयोग (IPC) के अनुसार, मेरोपेनेम दवा के उपयोग से प्रतिकूल प्रभाव हो सकता है।
संबंधित तथ्य
भारतीय फार्माकोपिया आयोग (IPC) ने पाया है कि मेरोपेनेम के उपयोग से मरीजों में ‘एक्यूट जनरलाइज्ड एक्सेंथेमेटस पस्टुलोसिस’ (Acute Generalized Exanthematous Pustulosis- AGEP) के रूप में प्रतिकूल प्रभाव हो सकता है।, जो दवा से संबंधित एक गंभीर प्रतिक्रिया है एवं जीवन के लिए खतरा हो सकता है।
यह सलाह दी जाती है कि डॉक्टर एवं मरीज़ दवा का उपयोग करते समय सावधानी बरतें।
IPC की दवा सुरक्षा चेतावनी ने फार्माकोविजिलेंस प्रोग्राम ऑफ इंडिया (Pharmacovigilance Programme of India- PvPI) डेटाबेस से प्रतिकूल दवा प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण किया, जिससे पता चला कि मेरोपेनेम दवा प्रतिकूल दवा प्रतिक्रिया का कारण बनती है।
एंटीबायोटिक दवाओं का विनियमन: भारत के औषधि महानियंत्रक ने राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारों को अनुचित एंटीबायोटिक संयोजनों की बिक्री पर कड़ी नजर रखने का निर्देश दिया है, जिस पर तुरंत प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।
रोकथाम: इसने अधिकारियों को इन मिश्रित दवाओं के बाजार में प्रसार को रोकने का निर्देश दिया है।
नियामक ने राज्य में दवा नियंत्रकों से बिक्री के लिए उपलब्ध लाइसेंस प्राप्त एंटीबायोटिक दवाओं की विस्तृत रिपोर्ट मांगी है।
अनुसूची H दवाएँ
कानूनी प्रावधान: शेड्यूल-H दवा भारत में ‘प्रिस्क्रिप्शन’ आधारित दवाओं का एक वर्ग है, जिसका उल्लेख ड्रग्स एवं कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 के तहत बनाए गए ड्रग्स एवं कॉस्मेटिक्स रूल्स, 1945 की अनुसूची-H में किया गया है।
परिचय: इन दवाओं का अत्यधिक अल्कोहलिक प्रभाव होता है एवं इनका उपयोग कुछ गंभीर बीमारियों जैसे हृदय रोग, चिंता विकार तथा अन्य बीमारियों के उपचार के लिए किया जाता है।
प्रिस्क्रिप्शन बिक्री: अनुसूची H केवल पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टिशनर द्वारा वैध प्रिस्क्रिप्शन के आधार पर दवा की खुदरा बिक्री की गारंटी देती है।
वर्तमान में अनुसूची H सूची में 510 दवाएँ शामिल हैं।
अनुसूची H1:इसे वर्ष 2013 में ड्रग्स एवं कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 में कुछ तीसरी एवं चौथी पीढ़ी के एंटीबायोटिक्स, कुछ लत लगने वाली दवाओं तथा TB विरोधी दवाओं से युक्त प्रिस्क्रिप्शन दवाओं की एक नई श्रेणी के रूप में प्रस्तुत किया गया था।
मेरोपेनेम दवा
यह फाइजर द्वारा निर्मित एक कार्बापेनम एंटीबायोटिक है एवं भारत में विभिन्न ब्रांड नामों के तहत उपलब्ध है।
फाइजर के मेरोपेनेम दवा फॉर्मूलेशन में पहले से ही इसके पैक पर ‘एक्यूट जनरलाइज्ड एक्सेंथेमेटस पस्टुलोसिस’ (AGEP) के लिए सुरक्षा चेतावनी होती है।
क्रिया का तंत्र: मेरोपेनेम बैक्टीरिया कोशिकाओं में प्रवेश करता है एवं महत्त्वपूर्ण कोशिका दीवार घटकों के संश्लेषण में हस्तक्षेप करता है, जिससे कोशिका मृत हो जाती है।
अनुसूची H: दवा औषधि एवं कॉस्मेटिक नियम, 1945 की अनुसूची H तथा H1 के अंतर्गत आती है एवं इसे केवल डॉक्टर के नुस्खे के तहत खुदरा रूप से बेचा जाना आवश्यक है।
संक्रमण के लिए निर्धारित: यह दवा बड़े पैमाने पर निमोनिया, UTI, उदर संबंधी संक्रमण, त्वचा संक्रमण, मेनिनजाइटिस, सेप्टीसीमिया एवं स्त्री रोग संबंधी संक्रमण आदि के उपचार के लिए निर्धारित की जाती है।
भारतीय फार्माकोपिया आयोग (Indian Pharmacopoeia Commission- IPC)
नोडल मंत्रालय: यह स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत केंद्र सरकार द्वारा पूरी तरह से वित्तपोषित एक स्वायत्त संस्थान है।
स्थापित: आयोग 1 जनवरी, 2009 से पूरी तरह से कार्यशील हो गया है।
अध्यक्ष: स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव।
अधिदेश: इसका उद्देश्य फार्माकोपियल मुद्दों पर हितधारकों को IP संदर्भ सामग्री एवं प्रशिक्षण प्रदान करने के अलावा नियमित आधार पर भारतीय फार्माकोपिया तथा भारत के राष्ट्रीय फॉर्मूलरी के संशोधन और प्रकाशन जैसे कार्य करना है।
कार्य:
प्रकाशन: औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 की दूसरी अनुसूची के संदर्भ में शामिल दवा के मानकों की आधिकारिक पुस्तक, इंडियन फार्माकोपिया (Indian Pharmacopoeia) का समय पर प्रकाशन।
मानक स्थापित करना: भारत में आयातित, बिक्री के लिए निर्मित, बिक्री के लिए भंडारित या प्रदर्शित या वितरित दवाओं की पहचान, शुद्धता एवं क्षमता मानकों को निर्दिष्ट करना।
भारत का फार्माकोविजिलेंस कार्यक्रम: यह भारत सरकार का दवा सुरक्षा निगरानी कार्यक्रम है, जो दवा से संबंधित प्रतिकूल घटनाओं को एकत्र करता है, उनका मिलान एवं विश्लेषण करता है तथा उचित नियामक कार्रवाई करने के लिए केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) को सिफारिशें भेजता है।
AGEP के बारे में: AGEP एक असामान्य पुष्ठीय औषधि है इसकी विशेषता शारीरिक सतह पर फुँसी होना है एवं इसे आमतौर पर एक निर्धारित दवा के लिए गंभीर त्वचीय प्रतिकूल प्रतिक्रिया (SCAR) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। इसे ‘टॉक्सिक पुस्टुलोडर्मा’ भी कहा जाता है।
घटना दर: प्रति वर्ष प्रति दस लाख जनसंख्या पर लगभग 3-5 मामले होने का अनुमान है।
कारण: AGEP के लगभग 90% मामले किसी दवा की प्रतिकूल प्रतिक्रिया का परिणाम होते हैं, अक्सर बीटा-लैक्टम एंटीबायोटिक्स (Beta-Lactam Antibiotics) (जैसे, पेनिसिलिन, सेफलोस्पोरिन)।
अन्य दवाएँ: टेट्रासाइक्लिन, सल्फोनामाइड्स, क्विनोलोन, ओरल एंटीफंगल, विशेष रूप से टेरबिनाफाइन, कैल्शियम चैनल ब्लॉकर्स जैसे डिल्टियाज़ेम, हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन, कार्बामाजेपिन एवं पेरासिटामोल।
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