हाल ही में, तेलुगु देशम पार्टी के प्रमुख ने आंध्र प्रदेश के लिए विशेष श्रेणी का दर्जा (Special Category Status- SCS) देने की मांग की है
विशेष श्रेणी का दर्जा (SCS) के बारे में
विषय: यह एक पदनाम है जिसे केंद्र सरकार भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहे राज्यों की सहायता के लिए प्रदान करती है।
उत्पत्ति: वर्ष 1969 में, भारत के पाँचवें वित्त आयोग ने कुछ राज्यों को उनके विकास में सहायता करने और ऐतिहासिक आर्थिक या भौगोलिक नुकसान का सामना करने पर विकास को तेजी से आगे बढ़ाने के लिए SCS तंत्र की शुरुआत की।
संवैधानिकता: संविधान में विशेष श्रेणी का दर्जा प्रदान करने का प्रावधान नहीं है।
पूर्ववर्ती योजना आयोग की राष्ट्रीय विकास परिषद नेयोजना सहायता के लिए विशेष श्रेणी दर्जा का प्रावधान किया था।
SCS वाले राज्य: यह दर्जा सबसे पहले वर्ष 1969 में जम्मू-कश्मीर, असम और नागालैंड को दिया गया था। हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और उत्तराखंड सहित 11 राज्यों को यह दर्जा प्रदान किया गया था।
तेलंगाना को यह आंध्र प्रदेश से अलग होकर प्राप्त हुआ।
मानदंड: दुर्गम और पहाड़ी क्षेत्र, कम जनसंख्या घनत्व और/या बड़ी जनजातीय आबादी, सीमाओं के साथ रणनीतिक स्थान, आर्थिक और बुनियादी ढाँचे का पिछड़ापन, और राज्य वित्त की गैर-व्यवहार्य प्रकृति को आमतौर पर SCS प्रदान करने के कारक माना जाता था।
उन्मूलन: 14वें वित्त आयोग ने अधिकांश राज्यों का ‘विशेष श्रेणी का दर्जा’ समाप्त कर दिया तथा इसे केवल पूर्वोत्तर राज्यों और तीन पहाड़ी राज्यों के लिए बरकरार रखा।
विशेष श्रेणी की स्थिति के संबंध में चिंताएँ
मानदंड पर असहमति: राज्य विशेष श्रेणी का दर्जा प्रदान करने के मानदंड पर असहमत हैं।
उदाहरण के लिए: चीन की सीमा से संलग्न हिमालयी राज्य उत्तराखंड को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया, जबकि झारखंड और छत्तीसगढ़ को विभिन्न विकास संकेतकों में उत्तराखंड से पीछे रहने के बावजूद समान दर्जा नहीं दिया गया।
अंतर-राज्यीय असमानताएँ: विशिष्ट राज्यों को विशेष दर्जा प्रदान करने से असमान आर्थिक और सामाजिक संरचनाओं के बारे में चिंताएँ उत्पन्न हो सकती हैं, जिससे अंतर-राज्यीय असमानताओं में और भी वृद्धि हो सकती हैं।
राजकोषीय गैरजिम्मेदारी को बढ़ावा: ऋण-विनिमय और ऋण-राहत पहल अप्रत्यक्ष रूप से राज्यों को ऋण लेने की अपनी क्षमता से अधिक ऋण लेने के लिए प्रोत्साहित करती है, जिसके परिणामस्वरूप देयताएँ लंबी अवधि तक बनी रहती हैं।
उदाहरण के लिए, जम्मू और कश्मीर में बकाया गारंटी, सकल राज्य घरेलू उत्पाद (Gross State Domestic Product- GSDP) की 20% है, जबकि हिमाचल प्रदेश में यह 10% है।
मांग श्रृंखला प्रतिक्रिया: एक राज्य को विशेष दर्जा देने से अक्सर अन्य राज्य भी ऐसा ही दर्जा मांगने लगते हैं, जिससे अनुरोधों की एक श्रृंखला शुरू हो जाती है और अपेक्षित लाभ कम हो जाते हैं।
उदाहरण के लिए: नवंबर 2023 में बिहार सरकार (कैबिनेट) ने बिहार को विशेष श्रेणी का दर्जा (SCS) देने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया।
अनुच्छेद 371 के अंतर्गत विशेष प्रावधान
अनुच्छेद 371: यह महाराष्ट्र और गुजरात के राज्यपालों को विशिष्ट कर्तव्य सौंपता है।
अनुच्छेद 371A: यह नगालैंड को विशेष दर्जा प्रदान करता है, संसद को राज्य विधानसभा की सहमति के बिना सामाजिक प्रथाओं, प्रथागत कानून, भूमि अधिकार और नागरिक एवं आपराधिक न्याय से संबंधित मामलों पर कानून निर्माण से रोकता है।
अनुच्छेद 371B: यह असम को संबोधित करता है, जो राष्ट्रपति को वर्ष 1969 में अधिनियमित आदिवासी सदस्यों वाली विधानसभा समिति के संविधान और कामकाज की निगरानी करने का अधिकार देता है।
अनुच्छेद 371C: यह मणिपुर से संबंधित है, जिसमें पहाड़ी क्षेत्रों के विधायकों की एक समिति की स्थापना की जाती है, जिसे राज्यपाल के प्रशासन पर एक वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होती है।
अनुच्छेद 371D और 371 E: ये आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के संबंध में विशेष प्रावधान प्रदान करते हैं, जिससे राष्ट्रपति को आंध्र प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में सार्वजनिक रोजगार और शिक्षा में समान अवसर सुनिश्चित करने के आदेश जारी करने की अनुमति मिलती है।
अनुच्छेद 371F: यह सिक्किम को विशेष दर्जा प्रदान करता है, मौजूदा कानूनों, रीति-रिवाजों और लोगों के अधिकारों की रक्षा करता है।
अनुच्छेद 371G: यह मिजोरम पर लागू होता है, मिजोरम में धार्मिक, सामाजिक प्रथाओं, प्रथागत कानून, न्याय प्रशासन और भूमि स्वामित्व और हस्तांतरण को संरक्षित करता है।
अनुच्छेद 371H: यह कानून और व्यवस्था के संबंध में अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल को विशेष जिम्मेदारी प्रदान करता है।
अनुच्छेद 371I: यह गोवा से संबंधित है, जिसमें विधानसभा में कम-से-कम 30 सदस्यों का होना अनिवार्य है।
अनुच्छेद 371J: यह हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र (कल्याण कर्नाटक) को विशेष दर्जा देता है, जिससे क्षेत्र के लिए एक अलग विकास बोर्ड की स्थापना की आवश्यकता होती है।
वर्ष 2014 से विशेष श्रेणी का दर्जा समाप्त करने के कारण
उन्नत हस्तांतरण: 14वें वित्त आयोग ने राज्यों को ऊर्ध्वाधर हस्तांतरण को 13वें वित्त आयोग के 32% से बढ़ाकर 42% कर दिया।
संशोधित फॉर्मूला: 14वें वित्त आयोग ने क्षैतिज हस्तांतरण के फॉर्मूले में ‘वन एवं पारिस्थितिकी’ जैसे कारकों को शामिल किया, इसलिए पहाड़ी और चुनौतीपूर्ण इलाके वाले राज्यों को केंद्र सरकार से हस्तांतरण में बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है।
अतिरिक्त अनुदान: कर हस्तांतरण के अलावा वित्त आयोग, स्थानीय निकायों, आपदा प्रबंधन, राजस्व घाटे और सरकार के संदर्भ की शर्तों में उल्लिखित अन्य निर्दिष्ट क्षेत्रों के लिए अनुदान की सिफारिश करता है।
विशेष सहायता: केंद्र सरकार, GST प्रणाली को अपनाने और पूंजीगत व्यय के लिए 50 वर्षों तक ब्याज मुक्त ऋण के कारण होने वाले किसी भी कर राजस्व घाटे की भरपाई के लिए GST मुआवजे जैसे तंत्र के माध्यम से राज्यों को सहायता प्रदान करती है।
विशेष श्रेणी के दर्जे के लाभ
केंद्रीय सहायता आबंटन: इससे पहले, गाडगिल-मुखर्जी फार्मूले के तहत कुल केंद्रीय सहायता का लगभग 30% विशेष श्रेणी दर्जा (Special Category Status- SCS) वाले राज्यों को आवंटित किया जाता था।
हालाँकि, 14वें और 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के परिणामस्वरूप इस आवंटन को सभी राज्यों के लिए निधियों के विस्तारित विभाज्य पूल में एकीकृत कर दिया गया, जो 15वें वित्त आयोग में बढ़कर 41% हो गया।
वित्तपोषण: विशेष श्रेणी के दर्जा (SCS) वाले राज्यों में, केंद्र प्रायोजित योजनाओं के लिए केंद्र-राज्य वित्तपोषण का विभाजन 90:10 के अनुपात के पक्ष में था, जबकि गैर-SCS राज्यों में यह 70% था।
अव्ययित निधियों की निरंतरता: विशेष श्रेणी के राज्यों को इस प्रावधान का लाभ मिला कि एक वित्तीय वर्ष में अव्ययित निधि समाप्त नहीं होगी, बल्कि अगले वित्तीय वर्ष में आगे बढ़ाई जाएगी।
प्रोत्साहन: विशेष श्रेणी का दर्जा (SCS) वाले राज्यों को विभिन्न लाभ मिलते हैं, जैसे कि सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क में रियायतें, आयकर दरों में कमी और नए उद्योगों की स्थापना के लिए निवेश आकर्षित करने के उद्देश्य से कॉर्पोरेट कर दरें।
इसके अतिरिक्त, SCS राज्यों ने अपने लाभ के लिए ऋण-विनिमय और ऋण-राहत योजनाओं का उपयोग किया है।
आंध्र प्रदेश विशेष राज्य का दर्जा क्यों मांग रहा है?
राज्य का विभाजन: वर्ष 2014 में अपने विभाजन के बाद से, आंध्र प्रदेश ने हैदराबाद के तेलंगाना में स्थानांतरण से होने वाली राजस्व हानि का हवाला देते हुए विशेष श्रेणी का दर्जा मांगा है।
उच्चतर अनुदान सहायता: SCS का अर्थ होगा केंद्र से राज्य सरकार को उच्चतर अनुदान सहायता मिलना।
उदाहरण के लिए, विशेष श्रेणी राज्यों को प्रति व्यक्ति अनुदान 5,573 करोड़ रुपये प्रति वर्ष है, जबकि आंध्र प्रदेश को केवल 3,428 करोड़ रुपये मिलते हैं।
रोजगार में वृद्धि: आंध्र प्रदेश सरकार ने तर्क दिया है कि इस प्रकार के विशेष प्रोत्साहन मुख्य रूप से कृषि प्रधान राज्य के तीव्र औद्योगिकीकरण के लिए महत्त्वपूर्ण हैं तथा इससे युवाओं के लिए रोजगार के अवसरों में सुधार होगा तथा राज्य का समग्र विकास होगा।
निवेश को प्रोत्साहित करना: SCS प्रदान करने से विशिष्ट अस्पतालों, पाँच सितारा होटलों, विनिर्माण उद्योगों, IT जैसे उच्च मूल्य वाले सेवा उद्योगों और उच्च शिक्षा एवं अनुसंधान के प्रमुख संस्थानों में निवेश को बढ़ावा मिलेगा।
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