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राईट टू रिजेक्ट (नकारने का अधिकार) और नोटा

Lokesh Pal June 06, 2024 05:15 123 0

संदर्भ:

हाल ही में इंदौर में भाजपा के शंकर लालवानी ने 10.09 लाख वोटों के बड़े अंतर के साथ जीत हासिल की है। उन्हें 12,26,751 वोट मिले हैं। उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी नोटा रहे, जिन्हें 2,18,674 वोट मिले।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: नोटा का परिचय, मतदाताओं की गोपनीयता का अधिकार आदि। 

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: नोटा विकल्प और मतदाताओं के गोपनीयता के अधिकार के बारे में, नोटा विकल्प को बड़ी संख्या में वोट मिलने का परिणाम आदि।

नोटा विकल्प कब और क्यों पेश किया गया?

  • नया रिकॉर्ड: इंदौर में असाधारण परिणाम का कारण यह है कि किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में “इनमें से कोई नहीं” (नोटा) विकल्प को अब तक मिले सबसे अधिक मत हैं।
    • पिछला NOTA रिकॉर्ड वर्ष 2019 में गोपालगंज, बिहार के नाम था, जब 51,660 मतदाताओं ने इस विकल्प को चुना था।
  • नोटा का परिचय: सर्वोच्च न्यायालय ने मतदाताओं की पसंद की गोपनीयता की रक्षा के लिए सितंबर 2013 में भारत के चुनाव आयोग (ECI) को मतदाताओं के लिए नोटा विकल्प शुरू करने का निर्देश दिया था।
  • मतदाताओं का गोपनीयता का अधिकार: वर्ष 2004 के दौरान में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर मतदाताओं के मताधिकार के प्रयोग को ‘गोपनीयता के अधिकार’ की रक्षा के लिए उपाय करने हेतु चुनाव आयोग को निर्देश देने की माँग की थी।
    • उन्होंने तर्क दिया कि निर्वाचन संचालन नियम, 1961 गोपनीयता के पहलू का उल्लंघन करता है, क्योंकि पीठासीन अधिकारी (ECI से) उन मतदाताओं का रिकॉर्ड रखता है जो मतदान नहीं करना चाहते हैं, साथ ही इस अधिकार का प्रयोग करने वाले प्रत्येक मतदाता के हस्ताक्षर या अंगूठे के निशान भी रखता है।
    • हालाँकि, केंद्र सरकार ने तर्क दिया कि मतदान का अधिकार “पूरी तरह से एक वैधानिक अधिकार है” (क्योंकि यह कानून संविधान द्वारा प्रदान किया गया है, द्वारा नहीं) और केवल उन मतदाताओं को गोपनीयता का अधिकार है, जिन्होंने अपने मतदान के अधिकार का प्रयोग किया है, न कि उन लोगों को जिन्होंने मतदान ही नहीं किया है।
  • भारत के मुख्य न्यायाधीश पी सदाशिवम, न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई और न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने इस बात का जिक्र किया है कि “चाहे मतदाता अपना वोट डालने का फैसला करे अथवा न डालने का फैसला करे, दोनों ही मामलों में गोपनीयता बनाए रखी जानी चाहिए।”
  • विशेष रूप से लोक सभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों में, न्यायालय ने माना कि गोपनीयता स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों की एक अनिवार्य विशेषता है और “मतदाता के मत या उसकी पहचान का खुलासा करने से कोई सार्वजनिक हित पूरा नहीं होगा।”
  • इसके अलावा, ई.वी.एम. के आ जाने के बाद, न्यायालय ने कहा कि मतदान केन्द्र में उपस्थित कोई भी व्यक्ति यह जान सकेगा कि मतदाता ने मतदान न करने का निर्णय लिया है, क्योंकि मशीन से कोई प्रकाश या ध्वनि उत्पन्न नहीं होगी (जैसा कि वोट डालते समय होता है)।
  • अदालत ने कहा कि वर्ष 2001 में चुनाव आयोग ने विधि एवं न्याय मंत्रालय को एक पत्र भेजकर ईवीएम और मतपत्रों में NOTA का विकल्प शामिल करने की माँग की थी, ताकि मतदाता गोपनीयता की रक्षा की जा सके और साथ ही मतदाता “चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों के खिलाफ अपनी असहमति/अस्वीकृति व्यक्त कर सके और इससे फर्जी मतदान में कमी आएगी।”

किसी निर्वाचन क्षेत्र में NOTA को सर्वाधिक मत प्राप्त होने की स्थिति में क्या होगा ? 

  • वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय एक अन्य याचिका पर विचार कर रहा है, जिसमें कहा गया है कि यदि निर्वाचन क्षेत्र में NOTA को सबसे अधिक वोट प्राप्त होते हैं तो चुनाव को “अमान्य” माना जाए।
  • लेखक और कंट्री फर्स्ट फाउंडेशन के संस्थापक शिव खेड़ा ने अप्रैल 2024 में अदालत का दरवाजा खटखटाया और चुनाव आयोग को नोटा के मत के विकल्प के समान कार्यान्वयन के संबंध में दिशानिर्देश/नियम बनाने की माँग की, जिसमें नोटा का विकल्प पार न करने वाले उम्मीदवारों के लिए भी परिणाम शामिल हों।”
  • जैसा कि सहायक सॉलिसिटर जनरल पीपी मल्होत्रा ​​ने न्यायालय को बताया कि नोटा का कोई कानूनी प्रभाव नहीं है – भले ही किसी सीट पर सबसे अधिक मत नोटा को ही क्यों न पड़े, लेकिन दूसरा सबसे सफल उम्मीदवार जीतता है।
    • ऐसा (लोकसभा चुनावों में) कभी नहीं हुआ है, लेकिन इंदौर के परिणाम, साथ ही अन्य स्थानीय निकाय चुनावों से पता चलता है कि इसकी एक स्पष्ट संभावना बनी हुई है।
  • न्यायालय ने इस तर्क और चुनाव आयोग के पत्र के सुझाव को स्वीकार कर लिया, जिसमें कहा गया था कि राजनीतिक दलों को “लोगों की इच्छा को स्वीकार करने और ऐसे उम्मीदवारों को मैदान में उतारने के लिए मजबूर होना पड़ेगा जो अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं”, और चुनाव आयोग को ईवीएम में नोटा बटन लगाने का निर्देश दिया।
  • याचिका में महाराष्ट्र, हरियाणा, पुडुचेरी, दिल्ली और चंडीगढ़ जैसे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का उदाहरण प्रस्तुत किया गया है, जहाँ राज्य चुनाव आयोग ने स्थानीय चुनावों (पंचायतों और नगर निकायों के चुनावों सहित) में नोटा को “काल्पनिक चुनावी उम्मीदवार” घोषित करने के आदेश पारित किए हैं।
  • यदि नोटा को मिले वोट अन्य सभी उम्मीदवारों को मिले वोटों से अधिक होंगे तो इन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में दोबारा से चुनाव कराए जाएंगे।
  • खेड़ा का तर्क है कि चुनाव आयोग को उन सभी चुनावों के लिए समान नियम बनाने चाहिए जहाँ नोटा को बहुमत मिलता है।
  • उनकी याचिका के अनुसार, वर्ष 2013 में NOTA की शुरूआत से “अपना उद्देश्य पूरा नहीं हुआ” क्योंकि इससे न तो मतदाताओं की भागीदारी में वृद्धि हुई और न ही राजनीतिक दलों ने अच्छे उम्मीदवारों को ही चयन किया है।
  • याचिका के अनुसार, नोटा किसी भी मतदाता के लिए एक शक्तिशाली हथियार के रूप में है और राजनीतिक दलों पर दबाव बनाने के लिए इसकी महत्ता को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।
  • इसमें इस बात का भी जिक्र किया गया है कि नोटा से कम मत पाने वाले उम्मीदवारों को “पाँच वर्ष की अवधि के लिए चुनाव लड़ने से वंचित किया जाना चाहिए” और सर्वोच्च न्यायालय से अनुरोध किया गया है कि वह भारत के निर्वाचन आयोग को इसके लिए भी नियम बनाने का निर्देश दे।

निष्कर्ष: अर्थात इंदौर में पड़े नोटा मतों की संख्या को देखते हुए इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत के मतदाताओं के मध्य असंतोष व्याप्त है, जो वास्तविक प्रतिनिधित्व और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए चुनावी सुधारों की आवश्यकता पर बल देता है।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न :

जीएस-02: जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ।

प्रश्न : “इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) पर ‘नोटा’ विकल्प की मतदाता भागीदारी और राजनीतिक जवाबदेही बढ़ाने की दिशा में एक कदम के रूप में सराहना की गई है। हालाँकि, चुनावी प्रक्रिया पर इसके सीमित प्रभाव के लिए इसकी आलोचना भी की गई है।” इस कथन के आलोक में, भारतीय चुनावी प्रणाली में ‘नोटा’ विकल्प के गुण और दोषों पर चर्चा करें। (15 अंक, 250 शब्द)

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