भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) के शोधकर्ताओं ने भू-जल से आर्सेनिक जैसे भारी धातु संदूषकों को हटाने के लिए एक नई तीन-चरणीय प्रक्रिया विकसित की है।
संबंधित तथ्य
IISc के अनुसंधानकर्ता इन प्रणालियों का परीक्षण करने और उन्हें बिहार के भागलपुर एवं कर्नाटक के चिकबल्लापुर जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में लागू करने के लिए INREM फाउंडेशन और अर्थवॉच सहित गैर-सरकारी संगठनों के साथ सहयोग कर रहे हैं।
जल में आर्सेनिक और फ्लोराइड की स्वीकार्य सीमा (WHO)
पेयजल में आर्सेनिक
पेयजल में आर्सेनिक की सुरक्षित सीमा 10 भाग प्रति बिलियन (ppb) है।
यह दिशा-निर्देश सुरक्षित उपभोग सुनिश्चित करने में मदद करता है और दीर्घकालिक जोखिम से होने वाले स्वास्थ्य जोखिमों को कम करता है।
पेयजल में फ्लोराइड
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने पेयजल में फ्लोराइड की अनंतिम सीमा 1.0 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम (mg/kg) रखने की सिफारिश की है।
कृषि उपयुक्त जल में आर्सेनिक
कृषि में प्रयुक्त जल के लिए आर्सेनिक की स्वीकार्य सीमा 0.10 मिलीग्राम प्रति लीटर (mg/l) है।
IISc की नई विधि
IISc की नई विधि भू-जल से भारी प्रदूषकों को हटाने के लिए बनाई गई है।
यह न केवल आर्सेनिक को हटाती है, बल्कि प्रदूषकों के सुरक्षित और सतत निपटान की गारंटी भी देती है।
इसके अलावा, यह उन्हें भू-जल प्रणाली में पुनः प्रवेश करने से रोकता है।
यह व्यापक दृष्टिकोण मौजूदा आर्सेनिक निष्कासन प्रौद्योगिकियों में मौजूद प्रमुख अंतर को दूर करता है।
तीन प्रक्रियाएँ हैं-
अवशोषण: बायोडिग्रेडेबल अवशोषक का उपयोग करके जल से आर्सेनिक को अलग करना।
बायोरेमेडिएशन: प्रदूषक सांद्रता को कम करना।
पर्यावरण के अनुकूल निपटान: हटाई गई भारी धातुओं का सुरक्षित निपटान सुनिश्चित करना।
भारत में प्रदूषण की स्थिति
आर्सेनिक का स्तर: रिपोर्ट बताती है कि 21 भारतीय राज्यों के 113 जिलों में आर्सेनिक का स्तर 0.01 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक है।
फ्लोराइड का स्तर: इसके अतिरिक्त, 23 राज्यों के 223 जिलों में फ्लोराइड का स्तर 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक है।
ये स्तर भारतीय मानक ब्यूरो और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा निर्धारित स्वीकार्य सीमा से अधिक हैं, जिससे स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है।
Latest Comments