हाल ही में कई रिपोर्टों एवं शोधपत्रों में हिंद महासागर के तेजी से गर्म होने एवं इसके अन्य महासागरों पर अत्यधिक प्रभाव को रेखांकित किया गया है।
विश्व महासागर दिवस (World Oceans Day)
विश्व महासागर दिवस 8 जून को मनाया जाता है।
इस दिवस को मनाने का सुझाव वर्ष 1992 में कनाडा के अंतरराष्ट्रीय महासागर विकास केंद्र एवं ओशन इंस्टीट्यूट ऑफ कनाडा द्वारा दिया गया था।
आधिकारिक मान्यता: वर्ष2008 में, संयुक्त राष्ट्र ने आधिकारिक तौर पर 8 जून को विश्व महासागर दिवस के रूप में मान्यता दी।
उद्देश्य: इसका उद्देश्य महासागर संरक्षण को बढ़ावा देना एवं महासागर के महत्त्व के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाना है।
वर्ष 2024 की थीम: ‘अवेकेन न्यू डेप्थ’ (Awaken New Depths)
संबंधित तथ्य
जलवायु परिवर्तन प्रतिक्रिया को समझना
हिंद महासागर के ऊष्मण से यह समझने में मदद मिलती है कि महासागर जलवायु परिवर्तन एवं ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धि होने पर कैसे प्रतिक्रिया करते हैं?
इस महासागर के अध्ययन से प्राप्त अंतर्दृष्टि दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन को कम करने एवं अनुकूलन के लिए रणनीतियों में योगदान कर सकती है।
हिंद महासागर के बारे में
यह तीसरा सबसे बड़ा महासागर है, जो 70,560,000 वर्ग किमी. में फैला हुआ है, जो पृथ्वी की जल सतह का लगभग 20% है।
सीमाएँ: एशिया (उत्तर), अफ्रीका (पश्चिम), ऑस्ट्रेलिया (पूर्व), दक्षिणी महासागर या अंटार्कटिका (दक्षिण)।
प्रमुख क्षेत्रीय समुद्र: अंडमान सागर, अरब सागर, बंगाल की खाड़ी, लक्षद्वीप सागर।
नामकरण: इसका नामकरण इंडिया के नाम पर किया गया है, जिसे पहले ईस्टर्न महासागर के नाम से जाना जाता था।
औसत गहराई: इसकी औसत गहराई 3,741 मीटर है; यह पूर्णतः पूर्वी गोलार्द्ध में अवस्थित है।
तीन तरफ से स्थल से घिरा, भारतीय प्रायद्वीप पर केंद्रित एक तटबंधित महासागर जैसा दिखता है।
सामरिक महत्त्व: इसका समुद्री मार्ग दुनिया के कंटेनर यातायात का प्रबंधन करता है एवं भारत को बाहरी व्यापार में मदद करता है।
यह क्षेत्र खनिज भंडार एवं ऊर्जा भंडार से भी समृद्ध है, जो इसे व्यापार के लिए एक प्रमुख क्षेत्र बनाता है।
पारिस्थितिक विविधता एवं पर्यटन
जैव विविधता से समृद्ध: प्रवाल चट्टानें, मैंग्रोव, समुद्री घास तल।
यहाँ महत्त्वपूर्ण टूना मछली पाई जाती है; साथ ही यह कई लुप्तप्राय प्रजातियों का जलीय निवास स्थल है।
लक्षद्वीप से लेकर अंडमान निकोबार द्वीपसमूह एवं रीयूनियन द्वीप तक डॉल्फिन, व्हेल, समुद्र तट तथा प्रवाल चट्टानें पर्यटकों को आकर्षित करती हैं।
हिंद महासागर की अनूठी विशेषताएँ
उत्तरी सीमाएँ: एशियाई भू-भाग फारस की खाड़ी एवं लाल सागर से छोटे कनेक्शन के साथ उत्तरी सीमा को अवरुद्ध कर देता है।
दक्षिणी सीमाएँ: दक्षिणी हिंद महासागर दो समुद्री जलमार्गों के माध्यम से प्रशांत एवं दक्षिणी महासागरों से जुड़ता है।
पहली जलमार्ग: इंडोनेशियाई समुद्र प्रशांत महासागर को प्रति सेकंड 20 मिलियन क्यूबिक मीटर जल पूर्वी हिंद महासागर में स्थानांतरित करने की अनुमति देता है।
यह जल, जिसे इंडोनेशियाई थ्रूफ्लो के रूप में जाना जाता है, ऊष्मा का स्थानांतरण करता है एवं हिंद महासागर में परिसंचरण, तापमान तथा लवणता को प्रभावित करता है।
दूसरा जलमार्ग: हिंद महासागर को दक्षिणी महासागर से दोतरफा यातायात से जोड़ती है। ठंडा, खारा जल दक्षिणी महासागर से 1 किमी. गहराई से नीचे हिंद महासागर की ओर प्रवाहित होता है।
ऊष्मा की गतिशीलता एवं प्रभाव
जल का मिश्रण: अवरुद्ध उत्तरी सीमा के कारण, जल ऊपर की ओर एवं प्रशांत महासागरीय जल के साथ मिल जाता है, फिर दक्षिण की ओर स्थानांतरित हो जाता है।
हिंद महासागर में ऊष्मा एवं जल का मिश्रण वैश्विक महासागरीय ऊष्मा को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है।
ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव: यह प्रशांत क्षेत्र से अतिरिक्त ऊष्मा में वृद्धि करता है, जबकि दक्षिणी महासागर के ठंडे जल का तापमान बढ़ने लगता है, जिससे हिंद महासागर तेजी से गर्म हो जाता है।
इस तेजी से बढ़ते ताप के कारण भारतीय उपमहाद्वीप में लू एवं अत्यधिक वर्षा होती है, जिससे प्रवाल तथा मत्स्यपालन के लिए खतरा उत्पन्न हो जाता है।
हिंद महासागर के गर्म होने के कारण वायु परिसंचरण में परिवर्तन से प्रशांत महासागर की ऊष्मा को अवशोषित करने की क्षमता प्रभावित होती है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग की दर प्रभावित होती है।
वैश्विक जलवायु पर प्रभाव: नार्थ अटलांटिक हीट सिंक
ऊष्मा अवशोषण तंत्र
उत्तरी अटलांटिक में, सतही जल का घनत्व बढ़ जाता है एवं यह अपने साथ ऊष्मा लेकर समुद्र में गहराई तक स्थानांतरित हो जाता है।
ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव
ग्लोबल वार्मिंग के कारण, उत्तरी अटलांटिक में जल का गहराई तक जाने की प्रक्रिया धीमी हो रही है, जिसके कारण सतह से ऊष्मा का निकास कम हो रहा है।
आश्चर्यजनक रूप से, हिंद महासागर का गर्म होना वास्तव में उत्तरी अटलांटिक में ऊष्मा के स्थानांतरित होने की गति बढ़ा रहा है, जो सीधे तौर पर ग्लोबल वार्मिंग को प्रभावित कर रहा है, एवं अंततः इसके प्रभावों को कम करने में मदद कर रहा है।
मानव विकास में हिंद महासागर की भूमिका
भौगोलिक परिवर्तन और विकासवादी प्रभाव
लगभग तीन मिलियन वर्ष पहले, ऑस्ट्रेलिया एवं न्यू गिनी स्थल खंडों के उत्तर की ओर बहाव ने भारतीय तथा प्रशांत महासागरों को पृथक कर दिया था।
इस अलगाव के कारण पूर्वी प्रशांत क्षेत्र ठंडा हो गया एवं अल नीनो स्थिति को स्थायी रूप से प्रासंगिक बना दिया, जिसके परिणामस्वरूप पूर्वी अफ्रीका में शुष्क स्थिति उत्पन्न हो गई।
इस पर्यावरणीय परिवर्तन ने संभावित रूप से प्राचीन प्राइमेट्स के प्रवासन के लिए मजबूर किया, जिसने संभवतः द्विपाद गति के विकास (Development of Bipedal Movement) में योगदान दिया।
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